बुधवार, 19 नवंबर 2008

गवाक्ष - नवंबर 2008



गवाक्ष” के माध्यम से हम हिन्दी ब्लॉग-प्रेमियों को हिन्दी/पंजाबी के उन प्रवासी लेखकों/कवियों की समकालीन रचनाओं से रू-ब-रू करवाने का प्रयास कर रहे हैं जो अपने वतन हिन्दुस्तान से कोसों दूर बैठकर अपने समय और समाज के यथार्थ को अपनी रचनाओं में रेखांकित कर रहे हैं। “गवाक्ष” के पिछ्ले नौ अंकों में पंजाबी कवि विशाल (इटली) की कविताओं का हिन्दी अनुवाद, दिव्या माथुर (लंदन) की कहानी, अनिल जनविजय (मास्को) की कविताएं, न्यू जर्सी, यू.एस.ए. में रह रहीं देवी नागरानी की पाँच ग़ज़लें, लंदन निवासी कथाकार-कवि तेजेन्द्र शर्मा, रचना श्रीवास्तव, दिव्या माथुर की कविताएं, दुबई निवासी पूर्णिमा वर्मन की कविताएं, यू एस ए में रह रहीं हिन्दी कथाकार-कवयित्री इला प्रसाद, डेनमार्क निवासी कवि भगत धवन की कविताएं और पंजाबी कथाकार-उपन्यासकार हरजीत अटवाल के उपन्यास “सवारी” के हिंदी अनुवाद की सात किस्तें आपने पढ़ीं। “गवाक्ष” के नवंबर,2008 अंक में प्रस्तुत हैं – डेनमार्क निवासी कवि-कहानीकार चाँद शुक्ला हदियाबादी की ग़ज़लें तथा पंजाबी कथाकार-उपन्यासकार हरजीत अटवाल के धारावाहिक पंजाबी उपन्यास “सवारी” की आठवीं किस्त का हिंदी अनुवाद…


डेनमार्क से
चाँद शुक्ला हदियाबादी की दो ग़ज़लें


1
रुख़ पर उसके बहार आती है
जब वो मुझसे नज़र मिलाती है

इक नज़र गर मैं देख लूँ उसको
शमअ जैसी वो झिलमिलाती है

उसकी आवाज़ फ़ोन पर गोया
घर में ख़ुश्बू बिखेर जाती है

मेरे घर की हरेक खिड़की से
चाँदनी साफ़ झिलमिलाती है

वोह मिरे दिल की झील में अक्सर
चांदनी बन के उतर जाती है

शब के तारीक रास्तों में कहीं
इक किरन-सी भी जगमगाती है

मैं ख़यालों में उसके रहता हूँ
वो मेरे दिल में मुस्कुराती है

"चाँद" तारों की यह नावाजिश है
रौशनी जो घरों में आती है

2
ऐ हवा मुझको तू आँचल में छुपा कर ले जा
सूखा पत्ता हूँ मुझे साथ उड़ा कर ले जा

शाख से कट के तुझे टूट के चाहा मैंने
आ मेरी याद को सीने में छुपा कर ले जा

बंद आखों में मेरी झांकते रहना हरदम
अपनी पलकों में मेरा प्यार बसा कर ले जा

गुनगुनाना मेरी नज्में जब भी हो फुर्सत
मेरे गीतों को तू होठों पे सजा कर ले जा

साथ क्या लाई हो पूछेंगे जब तुझे अपने
अपने माथे पे मेरा प्यार सजा कर ले जा

सियाह रात में तुझको यह रौशनी देंगे
मांग में "चाँद" सितारों को सजा कर ले जा
00

जन्म : चाँद हदियाबादी शुक्ल का जन्म भारत के पंजाब प्रांत के जिला कपूरथला के ऐतिहासिक नगर हादियाबाद में हुआ।
शिक्षा : प्रारम्भिक शिक्षा डलहौज़ी और शिमला में प्राप्त की।
संप्रति : बचपन से ही शेरो-शायरी के शौक और जादुई आवाज़ होने के कारण पिछ्ले पन्द्रह वर्षों से स्वतंत्र प्रसार माध्यम 'रेडियो सबरंग' में मानद निदेशक के पद पर आसीन हैं। आल वर्ल्ड कम्युनिटी रेडियो ब्राडकास्टर कनाडा (AMARIK) के सदस्य। आयात-निर्यात का व्यापार।
प्रकाशन एवं प्रसारण : दूरदर्शन और आकाशवाणी जालन्धर द्वारा मान्यता प्राप्त शायर। पंजाब केसरी, शमा (दिल्ली) और देश विदेश में रचनायें प्रकाशित। गजल संग्रह प्रकाशनाधीन।
पुरस्कार - सम्मान : सन्‌ १९९५ में डेनमार्क शांति संस्थान द्वारा सम्मानित किये गये।सन्‌ २००० में जर्मनी के रेडियो प्रसारक संस्था ने 'हेंस ग्रेट बेंच' नाम पुरस्कार से सम्मानित किया
अन्य : कई लघु फ़िल्मों और वृत्त फ़िल्मों में अभिनय।

ई-मेल- chaandshukla@gmail.com


धारावाहिक पंजाबी उपन्यास(किस्त- 8)

सवारी
हरजीत अटवाल
हिंदी अनुवाद : सुभाष नीरव


।। तेरह ।।

कई दिन अच्छे बीते और इतवार के दिन बारिश हो गई। छुट्टीवाले दिन बारिश को लोग बुरा समझते हैं, पर इतने दिन धूप चमकती रही थी कि बारिश अच्छी लग रही थी।
सतनाम ने कार ‘सिंह वाइन्ज’ के सामने ला खड़ी की। संयोग से उसे वहाँ जगह मिल गई। कार में से बाईं ओर से मनजीत निकली और पिछली सीटों से बच्चे उतर कर दुकान की ओर दौड़ पड़े। गुरिंदर ‘टिल्ल’ पर खड़ी थी। सोहन सिंह काउंटर के पीछे कुर्सी पर बैठा था। टोनी नित्य की तरह काम में व्यस्त था। सतनाम ने अंदर घुसते ही कहा-
“तगड़ी हैं न जट्टिये ? और बापू तू कैसा है ?”
“आ भई, तू सुना कैसा है ?” सोहन सिंह बोला। गुरिंदर मुस्कराई और फिर मनजीत का हालचाल पूछने लगी। बच्चे चॉकलेट उठाने लग पड़े। सतनाम कहने लगा-
“हेमा मालिनी कहती थी कि बहन से मिलना है। मैंने कहा, चल, गोली किसकी और गहने किसके !”
“तेरा काम कैसा है भई ?”
“भाइया, काम ठीक नहीं। गरमी बहुत पड़ती है, लोग मीट नहीं खाते, ये ड्रिंक पीते हैं, तुम तो बिजी होगे ?”
“हाँ, आज बारिश के कारण स्लो है।”
“और भाइया, तू सुना, तेरी दाल में घी होता है कि नहीं ? रात में दूध मिलता है ?” कह कर उसने तिरछी नज़र से गुरिंदर की तरफ देखा। गुरिंदर गुस्से में बोली-
“तुझे कितना मिलता है घी ?... तुझे कितना दूध मिलता है ?... बता तो ज़रा।”
“ए जट्टी ! मेरी तो अभी बहुत उम्र पड़ी है पर भाइये के खाने-पीने और जीने के यही दिन हैं।”
“अगर तुझे बापू की इतना ही फिक्र है तो ले जा अपने संग, कर बूढ़े की सेवा, पता लग जाएगा !”
“देख जट्टी ! हेमा मालिनी से काम कहीं होता है... यह धमिंदर ही भूखा रह जाता है... मैं तो मजाक करता हूँ, जट्टी की बराबरी कौन कर सकता है ?”
गुरिंदर अपनी प्रशंसा सुनकर खुश होने लगी। सतनाम ने सोहन सिंह की कमीज़ टटोली और पूछा-
“ओ भाइया, यह तो बता, कपड़े तुझे आज प्रेस किए मिले थे ?”
गुरिंदर ने फिर मुँह बनाया। मनजीत बोली-
“आओ बहिन जी, हम ऊपर चलें।”
“इसे तू ही झेले जाती है, मैं तो एक दिन न काट सकूं।”
कह कर गुरिंदर ने सतनाम की तरफ देखा। सतनाम ने कहा-
“यह तो ज्यादती है जट्टी ! मेरे मुकाबले जट्ट ज्यादा चालू है। मैं यों ही तो नहीं उसे प्रेम चोपड़ा कहा करता हूँ।”
“यह ठीक है, तेरी हेमा मालिनी और मेरा प्रेम चोपड़ा।”
“वह है कहाँ ?”
गुरिंदर से पहले ही सोहन सिंह कहने लगा-
“राम और श्याम आए हुए हैं।”
मुनीर और प्रेम का नाम राम और श्याम सतनाम ने ही रखा हुआ था। वह एक साथ बाहर निकले थे। विदरिंग रोड सतनाम की दुकान के निकट ही पड़ती थी। वे उसके पास भी चले जाया करते थे। कई बार शाम को हिस्सा डालकर पीने भी बैठ जाते।
मनजीत और गुरिंदर ऊपर चली गईं। स्टोर रूम में लगे शीशे के पास से गुजरीं तो गुरिंदर ने एक नज़र शीशे में मारी। वह मनजीत से किसी भी तरह से कम नहीं थी। पर मनजीत से अपने आप को बहुत कम आंका करती थी वह। मनजीत के पास नौकरी थी। वह कार चला कर जहाँ चाहती, जाती। वह बाहर की दुनिया में घूमती-फिरती थी और वह थी कि इस चारदीवारी में कैद थी। ऊपर जाकर बच्चे शैरन और हरविंदर के संग खेलने लगे। गुरिंदर के बच्चे मनजीत के बच्चों से आयु में बड़े थे, पर वे उन्हें अपने संग खिला लेते थे। सतनाम पब की ओर चला गया। उसके जाने के बाद सोहन सिंह टोनी से बोला-
“माई दिस सन, टू मच यैपी-यैपी... वन सन इंडिया, वैरी गुड।”
टोनी सतनाम के स्वभाव को जानता था। वह गुरिंदर और सतनाम के बीच हुई बात को समझ तो नहीं सकता था, पर वह जानता था कि उनके बीच नोंक-झोंक हो रही थी इसलिए मंद-मंद मुस्कराये जा रहा था।
अजमेर ने सतनाम की कार देखते ही उसके लिए गिलास भरवा लिया। सतनाम, मुनीर और प्रेम से बड़ी गर्मजोशी से मिला। अजमेर ने मुनीर की चांगलो कबीले वाली कहानी, वांगली खेल और वांगलू को फाड़ने वाली सारी कथा सतनाम को सुनाकर उससे उसकी राय पूछी। बात सुनकर सतनाम हँसने लगा। इतना हँसा कि सभी को उसका साथ देना पड़ा। मुनीर खीझ-सा गया। सतनाम ने कहा-
“इस खेल का लॉजिक तो बाद की बात है, मुझे तो ये नाम ही चाइनीज़ से लगते हैं। कहीं कोई चाइनी कबीला तो नहीं था वह ?”
“भाई जान, मैं तो उनके बीच रह कर आया हूँ।”
“मुनीर मियां, मुकाबला हमेशा दो ग्रुपों या दो प्लेयरों में होता है, कई तरह की कशमकश होती है, टेंशन होती है।”
“टेंशन तो यहाँ भी जे, पर जे कि पहले वांगलू को कौन फाड़सी, पर बहुत बारी प्लेयर मिल जासण।”
“वही कि उनका मुकाबला तो वांगलू या नगाड़े के साथ हुआ।”
“वो तो हो सी।”
“मैं नहीं मानता।”
“मन जासी, इक दिन मन जासी।”
फिर मुनीर ने सोचा कि बात को बदला जाए। उसने पूछा-
“भाई जान, हलाल भी रखा करो, हमको कश्मीरियों के जाणा पैसी।”
“किन कश्मीरियों के जाते हो ? गफूर के ?”
“नहीं साईम के, उसके मामा का लड़का ही है।”
“हाँ, अब तो बहनोइया भी है।”
“हाँ, स्ट्राउड ग्रीन में कश्मीरियों की बहोत चढ़त होसी।”
“शक्लें भी सभी की एक जैसी हैं।”
“हाँ, फिर रिश्तेदार जो होसी।”
“इतनी मिलती जुलती कि जैसे एक ही टीके के कटड़ू हों।”
उसकी बात पर सभी हँसने लगे। अब दो बज रहे थे। पब बन्द करने की घंटी बज गई। उन्होंने अपने गिलास शीघ्रता में खाली किए और उठकर चल पड़े। मुनीर और प्रेम दोनों अपने घरों की ओर चल दिए। अगर सतनाम ना आया होता तो रुक भी लेते। अब वे समझते थे कि उन्होंने कोई पारिवारिक बात करनी होगी। नहीं तो कई बार वे पब से उठने के बाद दुकान में आकर खड़े हो जाते थे।
दुकान में आकर अजमेर ने मोटा-सा हिसाब आज की सेल का लगाया और बोला-
“आज तो बारिश ने काम डाउन कर दिया।”
फिर उन्होंने व्हिस्की की बोतल उठाई और ऊपर चले गये। उनके पहुँचने तक सोहन सिंह ने अपने लिए ब्रांडी डाल ली थी। सतनाम और अजमेर आर्सनल की फुटबाल टीम की बातें करने लग पड़े। वे दोनों ही आर्सनल के फैन थे और इस बार आर्सनल ने दोहरी जीत हासिल की थी। एफ.ए. फाइनल भी जीता था और चैम्पीयन लीग भी। अब तीसरी जीत पर नज़रें टिकाये बैठे थे। पूरे युरोप की विजयी टीमों के फाइनल की जीत की भी आस थी उन्हें। अजमेर और सतनाम के पास जब बातें खत्म हो जाती थीं तो फुटबाल की बातें बहुत बढि़या समय व्यतीत कराती थीं।
गुरिंदर ने यों ही आदत के अनुसार खिड़की में खड़े होकर राउंड-अबाउट की ओर देखा। कोई इक्का-दुक्का कार ही आ जा रही थी। बारिश ने दिन को बहुत ही धुंधला-सा बना दिया था। फिर वह अजमेर से बोली-
“रोटी कब खाओगे ?”
“जब मर्जी ले आना, पर पहले अल्मारी में से बहन बंसों वाली चिट्ठी निकाल कर इसे दे।”
गुरिंदर ने चिट्ठी सतनाम को थमायी। वह पढ़ने लगा और फिर बोला-
“इंडिया वाले सोचते हैं कि यहाँ पैसे दरख्तों में लगते हैं, तोड़ो और उन्हें भेज दो। अभी पिछले साल तो हजार पोंड भेजा था।”
“कहते हैं कि वह तो घर की छत डालने में मदद थी और अब तो लड़की का ब्याह है।” अजमेर गुस्से में बिफरा बैठा था। उसने आगे कहा-
“इतने पैसे कहाँ से निकालते रहें। उधर शिंदे का संदेशा आया हुआ है कि ट्रैक्टर खराब पड़ा है।”
“शिंदा भी साला शक्ति कपूर बना घूमता है। पहले ट्रैक्टर लेकर दो, फिर रिपेयर भी करवाओ और वह खुद बांह लटकाये गाँव में घूमता फिरता है। वहाँ बैठे-बैठे आर्डर दिए जाता है।”
“शिंदे वाली प्रॉब्लम तो बाद में है, पर इसका क्या करें, यह सोचो। अगर लड़की का ब्याह है तो उसने पूरे खर्चे की इधर से आस रखनी ही है।”
अजमेर का गुस्सा कुछ कम हुआ था। सतनाम समझता था कि इस खर्चे में वह उससे हिस्सा डलवाना चाहता था। इसीलिए गुस्सा दिखा रहा था कि वह गुस्सा दिखलाए, कुछ बोले। बंसो ने चिट्ठी के शुरू में अजमेर की बढ़-चढ़कर तारीफें की थीं। उसे राजी करने के लिए इतनी ही बात काफी थी। सतनाम ने जानबूझ कर दूसरा ही टोना लगा दिया। वह कंधे पर हाथ रखते हुए सोहन सिंह से कहने लगा-
“भाइया, तू नजीर हुसैन की तरह यों ही हँसता रहता है। इतनी पेंशन लेता है, बंसो को पैसे भेज।”
अजमेर को उसकी यह बात तीर की भांति लगी। सोहन सिंह बोला-
“जैसा मरजी कर लो, उधर शिंदा भी है। यही, ट्रैक्टर का संदेशा आया हुआ है।”
अजमेर गुस्से में भरा हुआ बैठा था। उसे गिला था कि सतनाम अच्छी तरह जानता था कि सोहन सिंह की पेंशन को वह साझे तौर पर गाँव वाले घर के लिए इस्तेमाल किया करता था। सतनाम भी उसका मूड समझ गया और उसे खुश करने के लिए कहने लगा-
“असल में ये चिट्ठियाँ भाई की दरियादिली के कारण आती हैं।”
फिर उसने बात बदलने के लिए गुरिंदर से कहा-
“जट्टी ! तेरे लाड़ले देवर का क्या हाल है ? कोई खैर-खबर है कि नहीं?”
“मैंने शौन के घर फोन किया था। उसकी वाइफ कहती थी कि उसके साथ आयरलैंड गया हुआ है।”
सोहन सिंह जैसे सपने में से उठा हो, कहने लगा-
“इस लड़के ने भी खून पी रखा है, घर में नहीं घुसता, बस गोरे के पीछे घूमता फिरता है।”
“भाइया, तेरा लाड़ला जो ठहरा।”
अजमेर का मूड कुछ बदला। उसने कहा-
“होस्पीटल के सामने दुकान बिक रही है। ठिकाने की दुकान है। मैंने सोचा था कि ले लेते हैं, टिक कर बैठेगा, पर उसका पता ही नहीं कि कब वापस लौटेगा।”
“कहीं आयरलैंड में ही न टिक जाए ?”
“कुछ कह रहा था क्या ?”
“कहता तो नहीं, पर मलंग आदमी का क्या भरोसा ?”
उनकी बात सुनकर गुरिंदर के मुँह से आह निकली। वह बोली-
“तुम्हारा भाई है, भटकता घूमता है, कुछ करो उसका, उसे समझाओ।”
“वह समझने वाली चीज नहीं, जट्टिए।”
“शौन की वाइफ को फोन करके कह कि लौटते ही घर को आए।”
सोहन सिंह ने अपनी बात बताते हुए कहा-
“अगर वह समझने वाला होता तो अपना टब्बर छोड़ कर इस तरह न घूमता फिरता। मैंने बहुत कहा कि घर में झगड़ा न डाल, पर ये नहीं माना।”
“भाइया, वो लड़की इतनी बुरी नहीं, यही पृथ्वीराज के जमाने का बना फिरता है। कहता है- यह न पहनो, वो न पहनो। और लड़की है कि श्रीदेवी वाला माडल।”
(क्रमश: जारी…)
लेखक संपर्क :
67, हिल साइड रोड,
साउथहाल, मिडिलसेक्स
इंग्लैंड
दूरभाष : 020-85780393
07782-265726(मोबाइल)
ई-मेल : harjeetatwal@yahoo.co.uk



अनुरोध

गवाक्ष” में उन सभी प्रवासी लेखकों/कवियों की समकालीन रचनाओं का स्वागत है जो अपने वतन हिंदुस्तान की मिट्टी से कोसों दूर बैठ अपने समय और समाज के यथार्थ को हिंदी अथवा पंजाबी भाषा में अपनी रचनाओं के माध्यम से रेखांकित कर रहे हैं। रचनाएं ‘कृतिदेव’ अथवा ‘शुषा’ फोन्ट में हों या फिर यूनीकोड में। रचना के साथ अपना परिचय, फोटो, पूरा पता, टेलीफोन नंबर और ई-मेल आई डी भी भेजें। रचनाएं ई-मेल से भेजने के लिए हमारा ई-मेल आई डी है- gavaaksh@gmail.com