“गवाक्ष” के माध्यम से हम हिन्दी ब्लॉग-प्रेमियों को हिन्दी/पंजाबी के उन प्रवासी लेखकों/कवियों की समकालीन रचनाओं से रू-ब-रू करवाने का प्रयास कर रहे हैं जो अपने वतन हिन्दुस्तान से कोसों दूर बैठकर अपने समय और समाज के यथार्थ को अपनी रचनाओं में रेखांकित कर रहे हैं। “गवाक्ष” के पिछ्ले तेरह अंकों में पंजाबी कवि विशाल (इटली) की कविताओं का हिन्दी अनुवाद, दिव्या माथुर (लंदन) की कहानी, अनिल जनविजय (मास्को) की कविताएं, न्यू जर्सी, यू.एस.ए. में रह रहीं देवी नागरानी की ग़ज़लें, लंदन निवासी कथाकार-कवि तेजेन्द्र शर्मा, रचना श्रीवास्तव, दिव्या माथुर की कविताएं, दुबई निवासी पूर्णिमा वर्मन की कविताएं, यू एस ए में रह रहीं हिन्दी कथाकार-कवयित्री इला प्रसाद, डेनमार्क निवासी कवि भगत धवन की कविताएँ और चाँद शुक्ला की ग़ज़लें, यू एस ए निवासी कवि वेद प्रकाश ‘वटुक’ तथा कवयित्री रेखा मैत्र की कविताएं, कनाडा अवस्थित पंजाबी कवयित्री तनदीप तमन्ना की कविताएं, यू के अवस्थित हिन्दी कवि-ग़ज़लकार प्राण शर्मा की ग़ज़लें, कैनेडा में अवस्थित पंजाबी कवि सुखिन्दर की कविताएं, कनाडा निवासी पंजाबी कवयित्री सुरजीत, अमेरिका अवस्थित डॉ सुधा धींगरा, कनाडा में अवस्थित हिंदी- पंजाबी कथाकार - कवयित्री मिन्नी ग्रेवाल की कविताएं, न्यूजीलैंड में रह रहे पंजाबी कवि बलविंदर चहल की कविता, कैनेडा में अवस्थित पंजाबी लेखिका बलबीर कौर संघेड़ा की कविताएं और पंजाबी कथाकार-उपन्यासकार हरजीत अटवाल के उपन्यास “सवारी” के हिंदी अनुवाद की उन्नीसवीं किस्त आपने पढ़ीं। “गवाक्ष” के दिसम्बर 2009 अंक में प्रस्तुत हैं – इंग्लैंड से शैल अग्रवाल की कविताएं तथा पंजाबी कथाकार-उपन्यासकार हरजीत अटवाल के धारावाहिक पंजाबी उपन्यास “सवारी” की बीसवीं किस्त का हिंदी अनुवाद…
इंग्लैंड से
शैल अग्रवाल की पाँच कविताएं
(1)
शब्द बनकर बह चले
देखो सब चन्दा और तारे
बहुत जतन से जो मैंने
अपनी चूनर पर थे टांके
पक्की गांठ लगाकर
टाँका वह जोड़ा था
सूई तो बहुत नुकीली थी
धागा ही कुछ छोटा था।
(2)
बेचैन ये तूलिका
ठहरे ना थमे
रंगों के मटमैले पानी में
आंसू और मुस्कान ज्यों
एक तुम्हारे
आने और जाने पर।
(3)
ठहरे ना थमे
रंगों के मटमैले पानी में
आंसू और मुस्कान ज्यों
एक तुम्हारे
आने और जाने पर।
(3)
मन्दिर यह
उसने तो नहीं बनवाया था
हमने ही
सिंहासन पे बिठा
फूल माला चढ़ा
भगवान बनाया था
आलम अब यह है
कि डाली का वह फूल
चरणों पे चढ़कर
माथे से लगकर भी
बस सूखा ही सूखा
और मँदिर में
खड़ा भगवान फिर हँसा
एकनिष्ठ परवशता
असमर्थ आस्था
और हठी हमारी
मूर्खता पर।
(4)
अजीब तस्बीर थी वह
उदास और अस्पष्ट
रंगों की तहों में गुम
ढूंढती कुछ…
लाल पीले चंद छींटे
खुशी का लिबास ओढ़े
मचले बिखरे और बेतरतीब
जैसे नामुराद कोई जिन्दगी
डायरी के पन्नों सी
बेवजह ही खुद को
भरने की कोशिश में
छुप-छुप के रोए।
(5)
दोष किसी का नहीं
जब गति तेज हो
दृष्टि भटक जाती है
धुरी पर घूमती
एक अकेली तीली
सौ रूपों में नजर आती है
शेर की खाल ओढ़े
गीदड़ भी जंगल-जंगल
डर फैला आता है
दस्तानों के पीछे जादूगर
कबूतर उड़ा जाता है
पर जब तीली रुकी
खाल उघड़ी, जादू टूटा
बादलों के पीछे से
निकला फिर सूरज।
00
जन्म: 21 जनवरी 1947, वाराणसी में। शिक्षा: बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से प्रथम श्रेणी में आनर्स के साथ स्नातक संस्कृत, चित्रकला व अंग्रेज़ी साहित्य में और स्नातकोत्तर उपाधि अंग्रेज़ी साहित्य में। '
1968 से आज तक सपरिवार भारत से दूर इंग्लैंड में, एकांत में शब्दों, रंगों और स्वरलहरी में डूबना प्रिय, लिखने का शौक बचपन से, हिंदी और अंग्रेज़ी में निरंतर लेखन पिछले चंद वर्षों से। कविता, कहानी, लेख व नाटक चंद पत्रिकाओं और संकलनों में, कुछ रेडियो पर भी। '
प्रकाशित रचनाएँ :कहानी-संग्रह :'ध्रुव-तारा' काव्य-संग्रह 'समिधा' व 'नेति-नेति' '
शैल अग्रवाल अभिव्यक्ति में बर्तानिया का प्रतिनिधित्व करती हैं और परिक्रमा के अंतर्गत ‘लंदन पाती’ नाम से नियमित स्तंभ लिखती हैं। ' कई वर्षों से नेट पर हिन्दी-अंग्रेजी में द्विभाषिक वेब पत्रिका “लेखनी” का संचालन-संपादन।
संपर्क : shailagrawal@hotmail.com'
जब गति तेज हो
दृष्टि भटक जाती है
धुरी पर घूमती
एक अकेली तीली
सौ रूपों में नजर आती है
शेर की खाल ओढ़े
गीदड़ भी जंगल-जंगल
डर फैला आता है
दस्तानों के पीछे जादूगर
कबूतर उड़ा जाता है
पर जब तीली रुकी
खाल उघड़ी, जादू टूटा
बादलों के पीछे से
निकला फिर सूरज।
00
जन्म: 21 जनवरी 1947, वाराणसी में। शिक्षा: बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से प्रथम श्रेणी में आनर्स के साथ स्नातक संस्कृत, चित्रकला व अंग्रेज़ी साहित्य में और स्नातकोत्तर उपाधि अंग्रेज़ी साहित्य में। '
1968 से आज तक सपरिवार भारत से दूर इंग्लैंड में, एकांत में शब्दों, रंगों और स्वरलहरी में डूबना प्रिय, लिखने का शौक बचपन से, हिंदी और अंग्रेज़ी में निरंतर लेखन पिछले चंद वर्षों से। कविता, कहानी, लेख व नाटक चंद पत्रिकाओं और संकलनों में, कुछ रेडियो पर भी। '
प्रकाशित रचनाएँ :कहानी-संग्रह :'ध्रुव-तारा' काव्य-संग्रह 'समिधा' व 'नेति-नेति' '
शैल अग्रवाल अभिव्यक्ति में बर्तानिया का प्रतिनिधित्व करती हैं और परिक्रमा के अंतर्गत ‘लंदन पाती’ नाम से नियमित स्तंभ लिखती हैं। ' कई वर्षों से नेट पर हिन्दी-अंग्रेजी में द्विभाषिक वेब पत्रिका “लेखनी” का संचालन-संपादन।
संपर्क : shailagrawal@hotmail.com'