“गवाक्ष” के माध्यम से हम हिन्दी ब्लॉग-प्रेमियों को हिन्दी/पंजाबी के उन प्रवासी लेखकों/कवियों की समकालीन रचनाओं से रू-ब-रू करवाने का प्रयास कर रहे हैं जो अपने वतन हिन्दुस्तान से कोसों दूर बैठकर अपने समय और समाज के यथार्थ को अपनी रचनाओं में रेखांकित कर रहे हैं। “गवाक्ष” के पिछ्ले बारह अंकों में पंजाबी कवि विशाल (इटली) की कविताओं का हिन्दी अनुवाद, दिव्या माथुर (लंदन) की कहानी, अनिल जनविजय (मास्को) की कविताएं, न्यू जर्सी, यू.एस.ए. में रह रहीं देवी नागरानी की ग़ज़लें, लंदन निवासी कथाकार-कवि तेजेन्द्र शर्मा, रचना श्रीवास्तव, दिव्या माथुर की कविताएं, दुबई निवासी पूर्णिमा वर्मन की कविताएं, यू एस ए में रह रहीं हिन्दी कथाकार-कवयित्री इला प्रसाद, डेनमार्क निवासी कवि भगत धवन की कविताएं, डेनमार्क निवासी चाँद शुक्ला की ग़ज़लें, यू एस ए निवासी कवि वेद प्रकाश ‘वटुक’ तथा कवयित्री रेखा मैत्र की कविताएं, कनाडा अवस्थित पंजाबी कवयित्री तनदीप तमन्ना की कविताएं और यू के में रहे पंजाबी कथाकार-उपन्यासकार हरजीत अटवाल के उपन्यास “सवारी” के हिंदी अनुवाद की ग्यारह किस्तें आपने पढ़ीं। “गवाक्ष” के मार्च 2009 अंक में प्रस्तुत हैं – यू के अवस्थित हिन्दी कवि-ग़ज़लकार प्राण शर्मा की ग़ज़लें तथा पंजाबी कथाकार-उपन्यासकार हरजीत अटवाल के धारावाहिक पंजाबी उपन्यास “सवारी” की बारहवीं किस्त का हिंदी अनुवाद…
यू के से
प्राण शर्मा की पाँच ग़ज़लें
1
यू के से
प्राण शर्मा की पाँच ग़ज़लें
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जलने वालों की महफ़िल में हँसना और हंसाना क्या
भूला -बिसरा है तो उसको भूला-बिसरा रहने दो
करके याद पुराना किस्सा सोया दर्द जगाना क्या
सजी-सजायी कुछ होती तो हर इक को मैं दिखलाता
मन की सूनी-सी कुटिया को ऐ यारो दिखलाना क्या
मन से मन ऐ मीत मिले तो एक निराली बात बने
पल दो पल के लिए किसी के हाथ से हाथ मिलाना क्या
दो दिन की ही रंगरेली है दो दिन का ही उत्सव है
‘प्राण’ किसी के हँसते-गाते घर में आग लगाना क्या
‘प्राण’ किसी के हँसते-गाते घर में आग लगाना क्या
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आज नहीं तो कल -परसों को अपने-आप ही गंद्लायेगा
झील का ठहरा-ठहरा पानी कब तक सुथरा रह पायेगा
मेरे हमसाये का क्या कुछ उसकी लपट से बच पायेगा
मेरे घर को आग लगी तो उसका घर भी जल जायेगा
इतनी ज़ोर से फैंक नहीं तू ऊंचे परबत से पत्थर को
पत्थर तो पत्थर है प्यारे जिसको लगा वो चिल्लाएगा
अनजानी राहों में रहबर जैसा मिले तो बात बने
इक अनजाना अनजाने को राह भला क्या दिखलायेगा
मान मेरी ये बात तू अपने साथ लिए जा कुछ सौगातें
भूल पे अपनी पछतायेगा खाली हाथ जो घर जायेगा
‘प्राण’ जुटाओ पहले रोटी फिर तुम कोई बात करो
भूखे पेट किसी को कैसे प्यार तुम्हारा बहलायेगा
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आपके जैसा प्यारा साथी कोई भला क्या खो सकता है
आप बुलाएं, हम ना आयें ऐसा कैसे हो सकता है
भूल-भुलैया की दुनिया में ऐसा भी तो हो सकता है
पथ दिखलाने वाला यारो ख़ुद राहों में खो सकता है
गैरों पर शक करने वाले इस पर भी कुछ गौर कभी कर
अपने घर का ही कोई बन्दा मन का मंदा हो सकता है
ये मत समझो रोना-धोना काम महज है नाज़ुक दिल का
अपनी पीडा से घबरा कर पत्थर दिल भी रो सकता है
माना की आसान नहीं है दुक्खों के बिस्तर पर सोना
सुख के बिस्तर पर भी प्यारे कोई कितना सो सकता है
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मिट्टी में बीजों को बोने कोई चला है मेरे भाई
मान न मान मगर ये भी तो एक कला है मेरे भाई
इतना प्यारा, इतना न्यारा तेरा चेहरा क्यों न लगे
मौसम के फल जैसा ही तू रोज़ फला है मेरे भाई
वो इक शख्स उदासी जिसके चेहरे का नित पहरावा है
हंसती-मुस्काती नज़रों को रोज़ खला है मेरे भाई
यूँ तो यारों की गिनती से हम को गुरेज़ नहीं लेकिन
जीवन में बस इक साथी का साथ भला है मेरे भाई
तेरी नासमझी न कहूँ तो बतला मैं क्या और कहूँ
तपती सड़कों पर तू नंगे पाँव चला है मेरे भाई
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किसी के सामने खामोश बनके कोई क्यों नम हो
ज़माने में मेरे रामा किसी से कोई क्यों कम हो
कफन में लाश है इक शख्स की लेकिन बिना सर के
किसी की जिंदगी का अंत ऐसा भी न निर्मम हो
न कर उम्मीद मधु ऋतू की कभी पतझड़ के मौसम में
ये मुमकिन ही नहीं प्यारे की नित रंगीन मौसम हो
हरिक गम सोख लेता है करार इंसान का अक्सर
भले ही अपना वो गम हो भले जग का वो गम हो
भले ही अपना वो गम हो भले जग का वो गम हो
जताया हम पे हर अहसान जो भी था किया उसने
कभी उस सा जमाने में किसी का भी न हमदम हो
कभी टूटे नहीं ऐ ‘प्राण’ सूखे पत्ते की माफिक
दिलों का ऐसा बंधन हो, दिलों का ऐसा संगम हो
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जन्म-१३ जून ,१९३७ ,वजीराबाद ,वर्तमान पाकिस्तान शिक्षा -एम्.ऐ -हिन्दी,पंजाब विश्वविद्यालय १९६६ से यू.के में। सम्मान -१९६१ में भाषा विभाग ,पटियाला ,पंजाब द्वारा आयोजित "टैगोरनिबंध प्रतियोगिता" में द्वितीय पुरस्कार। १९८३ में कादम्बिनी द्वारा आयोजित “अंतर्राष्ट्रीय कहानीप्रतियोगिता " में सांत्वना पुरस्कार। १९८६ में ईस्ट मिडलैंड आर्ट्स ,लेस्टर ,यूं,के द्वारा आयोजित कहानी प्रतियोगिता में प्रथम पुरकार। २००६ में हिन्दी समिति ,यूं .के द्बारा "हिन्दी साहित्य के कीर्तिपुरुष" के रूप में सम्मानित।लेखन- ग़ज़ल विधा पर कई लेख-कहानी और लघु कहानी लिखने में भी रूचि। यूँ तो गीत-कवितायें भी कहते हैं लेकिन गज़लकार के रूप में जाना जाते हैं। ग़ज़ल विधा पर इनके आलेखों की इन दिनों खूब चर्चा है।प्रकाशित कृतियाँ – ‘ग़ज़ल कहता हूँ’ और ‘सुराही’। ‘सुराही’ का धारावाहिक रूप में हिन्दी की वेब पत्रिका ‘साहित्य कुञ्ज’ और महावीर शर्मा के ब्लॉग पर प्रकाशन।
ई मेल : sharmapran4@gmail.com