शनिवार, 19 मई 2012

गवाक्ष – मई 2012


जनवरी 2008 गवाक्ष ब्लॉग के माध्यम से हम हिन्दी ब्लॉग-प्रेमियों को विदेशों में रह रहे हिन्दी/पंजाबी के उन लेखकों/कवियों की समकालीन रचनाओं से रू--रू करवाने का प्रयास करते आ रहे हैं जो अपने वतन हिन्दुस्तान से कोसों दूर रहकर अपने समय और समाज के यथार्थ को अपनी रचनाओं में रेखांकित कर रहे हैं। गवाक्ष में अब तक विशाल (इटली), दिव्या माथुर (लंदन), अनिल जनविजय (मास्को), देवी नागरानी(यू.एस..), तेजेन्द्र शर्मा(लंदन), रचना श्रीवास्तव(लंदन), पूर्णिमा वर्मन(दुबई), इला प्रसाद(यू एस ए), भगत धवन (डेनमार्क), चाँद शुक्ला (डेनमार्क), वेद प्रकाश वटुक’(यू एस ए), रेखा मैत्र (यू एस ए), तनदीप तमन्ना (कनाडा), प्राण शर्मा (यू के), सुखिन्दर (कनाडा), सुरजीत(कनाडा), डॉ सुधा धींगरा(अमेरिका), मिन्नी ग्रेवाल(कनाडा), बलविंदर चहल (न्यूजीलैंड), बलबीर कौर संघेड़ा(कनाडा), शैल अग्रवाल (इंग्लैंड), श्रद्धा जैन (सिंगापुर), डा. सुखपाल(कनाडा), प्रेम मान(यू.एस..), (स्व.) इकबाल अर्पण, सुश्री मीना चोपड़ा (कनाडा), डा. हरदीप कौर संधु(आस्ट्रेलिया), डा. भावना कुँअर(आस्ट्रेलिया), अनुपमा पाठक (स्वीडन), शिवचरण जग्गी कुस्सा(लंदन), जसबीर माहल(कनाडा), मंजु मिश्रा (अमेरिका), सुखिंदर (कनाडा), देविंदर कौर (यू के), नीरू असीम(कैनेडा), इला प्रसाद और डा. अनिल प्रभा कुमार आदि की रचनाएं और पंजाबी कथाकार-उपन्यासकार हरजीत अटवाल के उपन्यास सवारी के हिंदी अनुवाद की छिआलीसवीं किस्त आपने पढ़ीं। गवाक्ष के मई 2012 अंक में प्रस्तुत हैं टोरोंटो,कैनेडा से डॉ. शैलजा सक्सेना की चार कविताएँ तथा हरजीत अटवाल के धारावाहिक पंजाबी उपन्यास सवारी की सैंतालीसवीं किस्त का हिंदी अनुवाद

टोरोंटो,कैनेडा से
डॉ. शैलजा सक्सेना की चार कविताएँ


जाने वाले

जाने वाले
तू गया तो ठीक,
पर क्यों छोड़ गया चौराहे मेरे लिये?

जब मैं
चौराहों से राहों का पता पूछती हूँ
तो चौराहे हँसते हैं बेशर्मी से,
और बेमतलब
अपने से आ मिलने वाली
गलियों से मेरी बेवकूफी की चुगली करते हैं।

जाने वाले
तू गया तो ठीक
पर आँखों में क्यों इतना पानी छोड़ गया
कि मैं उसमें डूबने-डूबने को हो जाती हूँ
और जब तेरी यादों से
तिनके का सहारा माँगती हूँ तो
वे तेरी बेवफाई के किस्से छेड़
और भी डुबोने लगती हैं मुझे।

जाने वाले
तू गया तो ठीक
पर तेरी याद क्यों दिये-सी जल जाती है
जब जोड़ती हूँ मैं हाथ
ईश्वर के सामने
तेरे दिये घाव रिसने लगते हैं
शिवलिंग पर चढ़्ते हुए जल से
और मैं रखती जाती हूँ व्रत
यह सोच कर
कि मेरे व्रत सुधार देंगे तुझे
कि तेरे पाँव मुडेंगे सुथरे हो कर
घर की देहरी को…

आ जा देख,
मेरे मन का ज्वार चढ़ने को है
इससे पहले कि मेरे प्यार में कोई भाटा आये,
आ के मेरी आँखों की मछलियों को पकड़,
चौराहों के कान उमेठ कर
कह दे कि ऐसे मुझे न सताये
कह दे पानी से कि किनारे से ऊपर न उमड़े
रोक दे चाँद को घटने-बढ़्ने से
तेरे जैसा ही हर रोज़ बदलता है वह अपनी बातें
और मेरे प्यार का पानी
संग-संग जैसे चढ़ता- उतरता है।

जाने वाले
तू गया तो ठीक
पर रात की चादर सिमटने को है
सूरज के जलने से पहले,
चाँद की राख बिखरने से पहले
आ जा
और बंद गली की तरह
अब मेरी ज़िंदगी के पते पर
अपना नाम लिखा जा।



युद्ध

खबरों में बराबर जारी है युद्ध
यहाँ गिरे बम,
वहाँ चलीं बँदूकें,
इतने हुए घायल,
कितने ही चल बसे
अखबारों के पन्नों में रहते हैं
रोते हुए बच्चे
सिर पटकतीं औरतें,
बहस करते राजनेता,
प्रदर्शन करते मानवतावादी,
सब को धौंसियाते बमधारी,
दुनिया डरी-सहमी कुछ देर,
घबरायी-चिल्लायी कुछ देर,
बहुत बुरा हुआ…
कह मातम में रही कुछ देर
फिर फ़िक्रों में रोटी-पानी की
सहज हो आई
बीच में पसरा था युद्ध जो
हाशिए पर जा बसा,
पढ़ लिया, हो गया
खबरों में अब भी
बराबर जारी है युद्ध।


मौन संबंध

अकेलापन आया
और बैठ गया पसर के
मेरे और तुम्हारे बीच
डाइनिंग टेबल पर
कभी तुम्हारे बाल बिखेरता,
कभी मुझ पर आँख तरेरता,
अकेलापन करता रहा
छेडछाड दोनों से
और हम बैठे रहे
संवादहीनता के बीच....
कभी सोचा था क्या हमने
कि संबंध ऐसे मौन हो जायेंगे।
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अम्माँ

सुबह से शुरु हो जाती है अम्माँ की बुड-बुड…
महरी साफ नहीं करती बर्तन
बस फैलाती है पानी,
पानी, जिसकी बूँद-बूँद अनमोल है,
बाबा भरते हैं रोज़ सुबह चार बजे,
घर के उठने से पहले…
महरी नहीं समझती, न समझता है कोई और,
जूठन लगे बर्तन पर, कोई और नहीं बरसता
बस बरसती है अम्माँ।

सुबह से शुरु हो जाती है अम्माँ की बुड-बुड…
झाडू वाली झाडती नहीं धूल, केवल झाडती है वक्त
दो-चार कागज़, मोटा-मोटा कूडा निकालती है
छोड जाती है ढेरों धूल,
जो किसकिसाती है पैरों में, पैरों से बिस्तर तक
और किसकिसाती हैं अम्मा की ज़ुबान,
अम्मा का दिल, अम्मा की आँखें
सोने सी चमकती गॄहस्थी को
अब यूँ किसकिसाते हुए देख कर…
अब कोई काम नहीं करता, सिर्फ काम का नाटक करता है।
बाबा की जी किसकिसाता है अखबार पढ कर,
समाचार सुन कर टी.वी. पर।
बहू-बच्चों का जी नहीं किसकिसाता
वे जानते हैं
अब वह ज़माना नहीं
ज़माना बदल गया है और वे भी इसी ज़माने के हिस्से हैं
पर क्या करें? बदलते नहीं बाबू जी,
बदलती नहीं अम्माँ
किसकिसाता रहता है उनका जी
और सुबह से शुरू हो जाती है उनकी बुड-बुड,
काम नहीं, काम करने के इस नाटक पर।
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डॉ. शैलजा सक्सेना
जन्म : मथुरा (उ.प्र.)
शिक्षा : एम.ए., पी. एच.डी.
टोरोंटो में मानव संसाधन प्रबंधक के पद पर कार्यरत।
प्रकाशन : सारिका, पाँचजन्य, समाज कल्याण, तुलसी, वामा आदि अनेक पत्रिकाओं में कहानी, कविताएँ तथा लेखों का प्रकाशन। "अष्ठाक्षर" नाम के संग्रह में अन्य सात कवियों के साथ आठ कविताओं का संकलन। विश्विद्यालय की कई पत्रिकाओं में लेख तथा संपादन कार्य। एक कविता संकलन, कहानी संग्रह शीघ्र ही प्रकाश्य।
पुरस्कार : सरस्वती पुरस्कार तथा मैथिलीशरण गुप्त पुरस्कार
विशेष : अमेरिका में "हिन्दी, भारतीय इतिहास, संस्कृति, धर्म तथा भाषा" पर कार्यशाला का संचालन किया तथा हिन्दी और भारतीय संस्कृति के अनेक कार्यों में भाग लिया।  "हिन्दी साहित्य सभा, कनाडा" की भूतपूर्व उपाध्यक्ष।
"साहित्य कुंज" में साहित्यिक परामर्श सहयोग।
"हिन्दी राइटर्स गिल्ड" की संस्थापक निदेश।
सम्पर्क : shailjasaksena@hotmail.com

धारावाहिक पंजाबी उपन्यास(किस्त- 47)










सवारी
हरजीत अटवाल
हिंदी अनुवाद : सुभाष नीरव


॥ बावन ॥

बलदेव और डौमनिक की दोस्ती दिनोंदिन पक्की हो रही थी। लिज़ को मिलने आया डौमनिक बलदेव के पास अधिक समय गुज़ारता। एक दिन डौमनिक कहने लगा-
      ''डेव, बोट शो लगा हुआ है, अर्ल्ज क़ोर्ट। देखने चलेगा ?''
      ''क्यों नहीं ?''
      ''किस दिन की टिकटें लूँ ?''
      ''मेरे पास तो टाइम ही टाइम है, अपना देख।'' बलदेव ने कहा।
      वह अर्ल्ज़ कोर्ट की ओर से कितनी बार गुज़रता और वहाँ खड़ी रंग-बिरंगी किश्तियाँ देखने में बहुत सुन्दर लगतीं। किश्तियों में हालांकि उसने ज्यादा सफ़र नहीं किया था, पर उसको पसन्द बहुत थीं। जब भी थेम्ज़ की ओर जाता तो वहाँ से गुज़रती छोटी-बड़ी किश्तियों को बहुत ध्यान से देखा करता।
      अगले सोमवार डौमनिक टिकटें लेकर आ गया। वह इस बोट शौ पर हर साल जाया करता था। किश्तियाँ उसकी हॉबी का ख़ास हिस्सा थीं। बोट मैग़जीन वह निरंतर पढ़ा करता। वे सवेरे जल्दी ही अर्ल्ज क़ोर्ट पहुँच गए। यह बहुत बड़ा हॉल था जिसमें आई बोटो की विस्तृत जानकारी एक किताबचे के रूप में गेट पर ही मिल जाती थी। उन्होंने ये बोट एक तरफ़ से देखनी प्रारंभ कीं। इनकी कीमत कुछ हज़ार से लेकर लाखों पाउंड तक जाती थी। सारा शौ देखने में तो एक दिन ना-काफ़ी था इसलिए वे ज्यादा दिलचस्पी वाली बोट ही देख रहे थे। समुद्री किश्तियाँ, दरियाई किश्तियाँ, नहरी किश्तियाँ सब अलग अलग थीं। बोट हाउस भी थे। डौमनिक एक बोट को बहुत ध्यान से देखने लगा। वह इस बोट में चढ़कर इसका निरीक्षण करते हुए बोला-
      ''यह एकदम मॉडर्न बोट है, लेटस्ट।''
      ''पसन्द है ?''
      ''हाँ, बहुत पसन्द। मेरे परिवार के लिए आयडियल।''
      ''खरीदने का तो मन नहीं ?''
      ''खरीदने को तो खरीद लूँ, बहुत वाजिब मूल्य है। सस्ता लोन भी दे रहे हैं, इंश्योरेंस भी मुफ्त।''
      ''फिर देर कैसी, खरीद ले।''
      डौमनिक जवाब देने की बजाय उदास हो गया। बलदेव ने कहा-
      ''क्या बात है ? सब ठीक है ?''
      ''नहीं, मेरे से ज्यादा यह पौलीन की पसंदीदा बोट है, पर उसके साथ मेरी अनबन है, नहीं तो मैं ज़रूर खरीद लेता। बच्चों को छुट्टियों पर लेकर जाने के लिए यह बहुत बढ़िया रहती।''
      ''कितने बच्चे हैं तेरे ?''
      ''तीन बेटे, बड़ा पंद्रह वर्ष का है। साउथएंड ही रहते हैं सब। वहाँ मेरा घर है।''
      ''डौमनिक, तू तो बहुत जवान दिखाई देता है। कोई कह ही नहीं सकता कि इतने बड़े तेरे बच्चे हो सकते हैं।''
      ''शुक्रिया।''
      ''जवान दिखाई देने के कारण ही लिज तेरे पर मरती है।''
      ''लिज किसी पर नहीं मरती। अगर उसने मरना होता तो तेरे पर ही मर गई होती। तेरी खूब तारीफ़ें करती रहती है।''
      ''तुझे खिझाने के लिए करती होगी।''
      ''नहीं, ऐसे नहीं। वह सच ही तेरी बहुत बातें किया करती है।''
      ''मेरी कौन-सी तारीफ़ करती थी ?''
      ''तेरी जल्दबाजी की।''
      कहकर डौमनिक हँसने लगा और बलदेव भी। डौमनिक बोट में से उतरता हुआ कहने लगा-
      ''अगर पौलीन मान जाए तो यह बोट उसको तोहफ़े के तौर पर दूँ।''
      ''ज्यादा ही रूठी हुई है ?''
      ''हाँ डेव, उसने दूसरा आदमी रख लिया है। मेरे घर में ही रहता है। अब तो उससे वह गर्भवती भी है। मैं बहुत परेशान रहता हूँ उसे लेकर।''
      उसकी बात सुनकर बलदेव भी उदास हो गया। डौमनिक फिर बोला-
      ''डेव, इसमें कुछ कसूर मेरा भी है। मैं लंदन में ही रहने लगा था, लिज जैसी लड़कियाँ बहुत हैं और पौलीन को भी मौका मिल गया।''
      इसके बाद वे अधिक देर बोट-शौ में न रुक सके और वापस आ गए।
      डौमनिक 'माइल एंड' में रहता था, पूर्वी लंदन में। वहाँ उसका काम बहुत करीब था। बलदेव ट्यूब पकड़कर उसके पास पहुँच जाता। बलदेव के पास कोई ख़ास दोस्त नहीं था। इसलिए भी उसको डौमनिक के घर जाना अच्छा लगता। वह उसके मित्रों में भी विचरने लगा था। इनमें से क्लाइव और ईअन के साथ उसकी अच्छी छनने लग पड़ी थी। क्लाइव वाल-स्ट्रीट में काम करता था और ईअन पार्लियामेंट में किसी मिनिस्टर का सलाहकार था। वह भी अदृश्य हाथों के विषय में बहुत बातें करने लगता था।
      लिज़ और डौमनिक के बीच एक फ़ासला पड़ चुका था। लिज़ ने अपने साथ कैलविन नाम के लड़के को रूममेट रख लिया था। कैलविन देखने में लिज़ से बहुत छोटा लगता था। डौमनिक आता और घर में कैलविन भी होता तो वे सब एकसाथ बैठकर बियर या व्हिस्की आदि पीते। कैलविन थोड़ा दूर हटता तो वे लिज़ से पूछने लगते-
      ''लिज़, ये किसका बच्चा पालने में से उठा लाई है।''
      यदि लिज़ अकेली घर में होती तो दोनों मिलकर लिज़ को उठाए फिरते और तरह-तरह से तंग करते। लिज़ खीझती हुई कहती-
      ''मैंने तुम दोनों की दोस्ती करवाकर बहुत बड़ी गलती की है। तुम्हारा मेरे साथ बर्ताव बहुत शर्मनाक है।''
      फिर लिज़ रूठ जाती और वे उसे मनाने लगते।
      एक दिन डौमनिक का फोन आया।
      ''डेव, बुधवार को क्या कर रहा है ?''
      ''कुछ ख़ास नहीं, क्यों ?''
      ''क्लाइव एक ख़ास प्रोग्राम बनाए घूमता है, सात बजे मेरे पास पहुँच जाना।''
      बलदेव समय से डौमनिक के घर पहुँच गया। क्लाइव और ईअन पहले ही पहुँचे हुए थे। वे बियर पी रहे थे। क्लाइव ने बलदेव को बियर की बोतल देकर पूछा -
      ''डेव, क्या यह सच है कि हिंदू धर्म में सैक्स का भी देवता होता है।''
      ''कलाइव, सच्चाई यह है कि मुझे नहीं पता। शायद होता हो, मुझे धर्मों के बारे में अधिक जानकारी नहीं।''
      ''मैंने एक किताब में पढ़ा है कि यदि शिवलिंग की पूजा करो तो सैक्स करने की शक्ति बढ़ती है।''
      ''मुझे यह पता है कि शिवलिंग की पूजा होती है। इसको लेकर कई मिथ हैं। एक मिथ तो यह भी है कि कुआँरी लड़कियाँ पहला संभोग शिवलिंग से ही करती है। अर्थ यह कि उसका कुआँरापन इस देवता की सम्पत्ति है।''
      ''हाँ, यह भी पढ़ा है मैंने।''
      ''पर आज यह सवाल क्यों कर रहे हो ?''
      बलदेव ने पूछा। ईअन उठता हुआ बोला-
      ''आओ चलते हैं, बाकी बातें राह में करेंगे।''
      वे सब ईअन की मर्सिडीज़ में जा बैठे। ईअन ने कार रम्मफोर्ड रोड पर चढ़ा ली। आगे पहुँचकर नॉर्थ सरकुलर रोड पर जा चढ़ा और फिर एम इलेविन पकड़ ली। करीब दो मील आगे जाकर एक स्लिप रोड पर उतर गए और सुनसान रोड पर चलने लगे। बलदेव कहने लगा-
      ''किसी ख़ास आप्रेशन पर जा रहे लगते हो ?''
      ''देखता चल, देखते है कि तूने शिवलिंग की कितनी पूजा की है।''
      आगे नज़दीक ही एक फॉर्म हाउस आ गया। कितनी ही कारें वहाँ खड़ी थीं। एक तरफ बड़ा हॉल था। बहुत सारे लोग इधर-उधर बियर के बड़े-बड़े गैलन लिए फिरते थे। ईअन ने टिकट दिखाए और वे अन्दर चले गए। क्लाइव काउंटर पर जाकर एक गैलन बियर और चार गिलास ले आया। यहाँ बियर गिलासों में नही मिलती थी। बियर चार गिलासों से कहीं अधिक थी। उनके और भी कई परिचित आ गए। सभी आकर बलदेव से हाथ मिलाने लगे। कई उसके रंग को देखकर मुँह अजीब-सा बनाते, फिर ठीक हो जाते। बियर बार वाले हॉल में कोई कुर्सी नहीं थी, सिर्फ़ मेज ही थे। साथ ही, एक दूसरा हॉल था जिसमें कई कुर्सियाँ लगी हुई थीं और सामने दीवार के साथ स्टेज बनी हुई थी। बलदेव समझ गया कि नृत्य वगैरह का कार्यक्रम होगा।
      दस बजे तक वे सभी शराबी थे। घंटी बजी तो सब बियर के भरे गैलन लिए हॉल में चले गए। लगभग दो सौ कुर्सियाँ होंगी। सब भर गई थीं। सारा हॉल ही नशे में था। पहले एक हंसोड़ मंच पर आया और लतीफ़े सुनाने लगा। उसके लतीफ़े धीरे धीरे गन्दे होने लगे। लोग हँसते हुए दोहरे हुए जाते। हंसोड़ ने दर्शकों के साथ ऐसा सुर मिलाया कि उसका मुँह खुलते ही लोग हँस पड़ते। वह गंजे व्यक्ति के बारे में लतीफ़ा सुनाता तो दर्शकों में बैठे गंजे व्यक्ति की ओर इशारा करता। मोटे व्यक्ति के बारे में सुनाता तो कोई मोटा ढूँढ़ लेता। पाकिस्तानियों के बारे में सुनाते हुए उसने बलदेव को धर लिया। एक काला लड़का भी था जो कि बार का कर्मचारी था। ऐसे ही आयरिशों और गोरों को लेकर भी गंदे-गंदे लतीफ़े उसने सुनाए। दर्शकों में कोई औरत नहीं थी। यह पार्टी सिर्फ़ मर्दों के लिए थी।
      घंटाभर लतीफ़ेबाजी चलती रही। एक छोटी-सी ब्रेक के बाद नृत्य शुरू हो गया। स्ट्रिपटीज़ डांस की तरह ही था। वही एक-एक करके वस्त्र उतारना, काम उकसाऊ मुद्राएँ। पहले दो लड़कियाँ मंच पर आईं - एक गोरी और एक काली। वे दर्शकों की आँखों में आँखें डालकर नृत्य कर रही थीं। फिर उनमें दो और लड़कियाँ आ मिलीं। वे वस्त्र उतारकर ही मंच पर चढ़ी थीं। कुछ देर बाद वे दर्शकों को आमंत्रित करने लगीं। ईअन उछल कर मंच पर जा चढ़ा और कमीज़ उतारता हुआ उनके संग नाचने लगा। ईअन के पीछे-पीछे क्लाइव स्टेज पर चला गया। मंच पर ही काम क्रीड़ा चलने लगी। पहले अधिक उतावले हो गए। फिर जो सुस्त थे, जब वे भी भुगत चुके तो लड़कियाँ पुरुषों को खींच-खींचकर मंच पर ले जाने लगीं। डौमनिक भी शर्माता-लजाता हाज़िरी लगवाने चला गया। वह चोर आँख से बलदेव की ओर भी देख लेता। एक लड़की उतर कर बलदेव की तरफ आई और उसको बांह से पकड़कर खींचने लगी। बलदेव मना करने लगा। ईअन और क्लाइव ने लड़की की मदद की और उसको जबरन मंच पर ले गए।
(जारी…)
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