सवारी
हरजीत अटवाल
हिंदी अनुवाद : सुभाष नीरव
॥ इकसठ ॥
गुरां कहती, ''जब से शिन्दा बाहर रहकर लौटा है, कुछ सुधर गया है।''
अजमेर ने भी इस बात का महसूस किया था। वह अब
शराब कम पीता था। पहले की तरह दिन में ही डिब्बा नहीं खोलता था। उसके हाथ अब नहीं कांपते
थे। एक दिन सतनाम ने उससे कहा था -
''भाई,
अगर शिन्दा ठीक नहीं तो मेरे पास भेज दे। जितना करेगा, उतना ही सही।''
पहले तो अजमेर सोचने लग पड़ा था कि जाता है
तो जाए, परंतु अब उसे दोबारा काम
करते देखकर वह समझ गया कि सतनाम फिर से उसे फुसलाने की कोशिश कर रहा था। उसने सतनाम
तो टरका दिया।
अब सबकुछ पहले की भाँति चलने लग पड़ा था। मुनीर
और प्रेम आते, पब में बैठकर बातें
भी करते। मुनीर कुछ महीने पाकिस्तान रह आया था। सतनाम उससे कहने लगा -
''मियाँ, सुना फिर कोई गप्प।''
''कोई खास ना होसी। एक वीडियो बना के लिया सां।
मुझे पता, सतनाम यकीन न कर
सी, वीडियो होसी तो यकीन होसी।''
''इसबार देखकर आया है ?''
''इस बार देखा नहीं, किया। एक बछड़ा हलाल किया सू।''
''ये तो बड़ा काम नहीं।''
''बड़ा ही होसी। मैं अकेले ने ही किया सू। इतना
बड़ा बछड़ा हलाल करना आसान न होसी। वो चार चार बंदों के काबू ना आसी।''
''तो फिर तेरे पास कौन-सा मंतर था कि तूने यह
काम कर दिया।''
''सच बात तो यह है कि मैं पी के व्हिस्की का
अधिया बस...।''
''वीडियो भी बनाई है ?''
''हाँ,
दिखा सां ना किसी दिन।''
''हलाल करते वक्त आयतें भी पढ़ी थीं ?''
''इतना टाइम कहाँ होसी, मुश्किल से तो बछड़ा ढाया सू।''
''फिर तो मियाँ तू फंस गया।''
''वो कैसे ?''
''तूने शराब पी थी, आयतें पढ़ी नहीं। अगर मुल्लों ने तेरी वीडियो
देख ली तो तेरा फातिहा पढ़ देंगे। अगर प्रेम ने देख ली तो वो भी तुझे छोड़ने वाला नहीं।''
''वो क्यों ?''
''बछड़ा गऊ से पैदा जो था।''
कहकर सतनाम हँसने लगा। उसकी बात पर अजमेर भी
हँसा, पर मुनीर गंभीर हो गया।
तब तक प्रेम और उसका भाई रमेश भी आ पहुँचे। इतवार का दिन होने के कारण सभी फुरसत में
थे। सतनाम उठता हुआ बोला-
''मियाँ, ज़िन्दा रहे तो मिलेंगे लाख बार... मैं चलता हूँ, कहीं जाना है।''
अजमेर ने सतनाम से कहा-
''याद है न, आज वचित्तर सिह ने आना है चंदा लेने ?''
''भाई,
चंदा तू ही दे देना। जैसा करना है,
कर लेंगे। बलदेव तो अब खारिज ही है।''
''पर इस बात का उन्हें
क्या पता, तू आ जाना मिल
मिला लेना।''
सतनाम चला गया। अजमेर प्रेम और रमेश के लिए
गिलास भरवाने काउंटर पर जा खड़ा हुआ। मुनीर धीरे से प्रेम से कहने लगा-
''ये मेरी बात का मजाक उड़ा सन कि वांगली कोई
गेम नहीं। अब देखो, दोनों भाई प्लेअर
बने पड़े सन और गरीब शिन्दा बना छोड़ा सू वांगलू।''
अजमेर वापस आया तो मुनीर कहने लगा-
''मोतियों वाले, तेरे सिर पर हम भी ऐश कर सां।''
अजमेर खुश हो गया। वह घड़ी देखने लगा। अब पब
खुलने का वक्त तीन बजे तक का हो गया था। ऐसे ही ऑफ लायसेंस भी दो बजे की बजाय तीन बजे
तक खुलते थे। एक घंटा अधिक मिल गया था। मुनीर कहने लगा-
''भाई जान, घड़ी क्या देखते हो। अभी तो बड़ा टाइम पड़ा सू। और शॉप में शिन्दा
है ही न।''
''हाँ,
वो तो ठीक है, पर गैस्ट आने वाले
हैं।''
''हम आते आते शिन्दे से मिलकर आए हैं। रमेश को
देखकर तो उसका चेहरा ही उतर जाता है,
पता नहीं क्यों।''
प्रेम ने कहा। उसके पीछे ही मुनीर ने पूछा-
''वैसे अब शिन्दा ठीक रह सी ?''
''ठीक को ठीक ही है। न ठीक रहेगा तो हमारा क्या
जाएगा।''
''ठीक फरमाया। हमारी तरफ कहावत है - तोड़ी उबलेगी
तो अपने ही किनारे साड़ सी।''
अजमेर ने उसी हाँ में हाँ मिलाई और उठ खड़ा
हुआ। उसके साथ ही बाकी लोग भी अपने अपने गिलास ख़त्म करने लगे।
वचित्तर सिंह उनके गाँव से था और गाँव के किसी
कार्य के लिए चंदा इकट्ठा करने इधर आया हुआ था। आज अजमेर की तरफ आ रहा था।
वचित्तर सिंह करीब तीन बजे आया। गाँव की बातें
हुईं, अन्य खैर-ख़बर का आदान-प्रदान
हुआ। शिन्दा भी दुकान बंद करके उनके बीच आ बैठा। वचित्तर सिंह बोला-
''तुम तो चार भाई हो, ढाल चार जगह दो। और फिर यह स्कूल पड़ता भी तुम्हारे
करीब ही है।''
''अंकल जी, हम सब इकट्ठे ही हैं। हमारा सारा काम एक जगह पर ही चलता है।''
''अजमेर सिंह, मैं एक ढाल तो लूंगा नहीं तुमसे। तुम्हारा नाम ही इतना बड़ा है
कि जिसके पास जाएँ, तुम्हारी तारीफें
ही सुनने को मिलती हैं।''
अजमेर दो सौ पौंड देना मान गया। एक घर को सौ
पौंड बाँध रखे थे। उसने सोच लिया था कि सो पौंड सतनाम दे देगा और सौ वह। बातों के साथ
साथ ड्रिंक भी चल रही थी। चंदे वाली बात से फुरसत पाकर गाँव की बातें फिर शुरू हो गईं।
अजमेर ने कहा -
''अंकल जी, हमारा मुंडा गागू कैसा है ?''
वचित्तर सिंह ने बात करने से पहले शिन्दे की
तरफ देखा और फिर झिझकता हुआ कहने लगा-
''गागू... ठीक ही है। आजकल के लड़के तुमको पता
ही है। और वो तो अभी बच्चा ही है।''
''कोई गड़बड़ तो नहीं करता वो ?''
''गड़बड़ तो कोई नहीं, बीबा है। बस, ये ढाणी बनाना अच्छी बात नहीं। हम सब धीयों-बहनों
वाले हैं।''
उसने धीरे धीरे बात ख़त्म की। शिन्दा बोला-
''वैसे कितना बड़ा हो गया ? मेरे जितना है ?''
''वैसे तो ईश्वर की कृपा से जवान है, मोटर साइकिल लेकर निकलता है तो खूब जंचता है।
पर यही मंढीर का डर रहता है, और क्या...।''
उसकी बातें अजमेर को उकसाने लगीं। वह थोड़ा
नशे में भी था। कहने लगा-
''अंकल जी, तुम हो घर के आदमी,
तुम्हारी हमारी इज्ज़त साझी है। एक बात सच सच बताओ।''
''पूछो जी।''
''हमें लोग इधर आ-आकर बताते हैं कि मिंदो घूमती
बहुत है।''
''देखो जी, ऐसी अफवाह तो उधर भी है। पर अफवाहें भी कभी सच हुआ करती हैं।
मुझे तो बेचारी बहुत प्यार से फतह बुलाती है।''
वचित्तर सिंह चंदा लेकर चला गया। अजमेर शिन्दे
से बोला-
''अब बता। तू हमें ही झूठा बनाए जाता था। अब
तो गाँव का बंदा मुँह पर करा दिया।''
''भाजी, तुमने गाँव का बंदा मुँह पर नहीं करवाया, गाँव के बंदे के आगे मुझे नीचा दिखाया है, मेरी औरत की बेइज्ज़ती की है।''
''तो क्या यह भी झूठ बोलता है ?''
''मुझे अपने टब्बर का पता है, उसमें रब जैसा भरोसा है। वह सुंदर है। उसे
पहनना-बरतना आता है। तुम सब उसके साथ जैलसी किए जाते हो।''
''हमें उसके साथ कोई जैलसी नहीं। हमारा तो कहना
है कि उसके कारण हमारे पूरे टब्बर की बेइज्ज़ती होती है। तू उसे लिख दे कि अक्ल से रहे।''
''वह अक्ल से ही रहती है।''
''फिर इतने पैसे क्यों उड़ाए जाती है। देख, अब वाली लैटर में और पैसे मांगे हैं। इतने
पैसे वो कहाँ खर्च करती है।''
''इन पैसों का उसके घूमने-फिरने से क्या मतलब
हुआ ?''
''किसी को बुलाती होगी, कोई रख रखा होगा।''
''देखो भाजी, तुमसे मैंने पहले ही कहा था कि मुझे जो चाहे कह लो, पर मेरी बीवी को कुछ न कहो। मैं हुआ तुम्हारा
बंदी, मुझे तो हर हाल में सुनना
ही है, पर उस बेचारी को इतनी दूर
बैठी को तो बख्श दो।''
''शिन्दे, तूने मेरी कुर्बानी का ज़रा भी मोल नहीं डाला। पहले दिन से ही
तुझे पैसे भेजे, तुझे यहाँ बुलाया।
मुफ्त में लंगर छकता है, तनख्वाह भी लेता
है, फिर भी खुद को बंदी बताता
है।''
अजमेर का गुस्सा उसके वश से बाहर होने लगा।
शिन्दा भी ढीला नहीं पड़ा, वह बोला -
''पहली बात तो यह कि तुमने मुझे मुफ्त में तो
रखा नहीं, गधे की तरह काम
करता हूँ। दूसरा, तुम मेरी बीवी
को बदनाम करते हो इसलिए कि मैं गरीब हूँ। मेरी मजबूरी की आड़ में जो गंद-मंद बोलना होता
है, बोले जाते हो कि मैं क्या
कर लूँगा। ऐसा ही लोग गुलामों के साथ करते हैं।''
''तू अपनी बीवी की साइड लिए जाता है। उसको भी
मैं जानता हूँ। वो अव्वल नंबर की आवारा है। लोग झूठ नहीं बोलते। जो तू गुलामी वाली
बात करता है, अगर यह बात है
तो यहाँ से दफा हो जा, जाकर आज़ादी से
रह, जहाँ रह सकता है।''
शिन्दा कुछ कहे बग़ैर उठा और चल पड़ा।
(जारी…)
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