मित्रो, सर्वप्रथम आप सभी को नव वर्ष 2011 की बहुत बहुत शुभकामनाएँ ! हर वर्ष की भाँति इस वर्ष भी हम सबको यही कामना और प्रार्थना करनी चाहिए कि यह नया साल घृणा, द्बेष, नफ़रत, आतंक, विध्वंश से रहित हो और इसके स्थान पर प्रेम, सौहार्द, अमन-चैन और खुशहाली को स्थापित करने वाला हो। इस नये वर्ष में हम सब मिलकर प्रकृति और जीवन को नष्ट करने वाली हर गतिविधि का विरोध करें और इन्हें और अधिक बेहतर और खुशहाल बनाने की प्रक्रिया में संलग्न हों…
जनवरी 2008 में मैंने “गवाक्ष” ब्लॉग की शुरूआत की थी। दो वर्ष का सफ़र पूरा करके यह तीसरे वर्ष की यात्रा में प्रवेश कर रहा है। “गवाक्ष” ब्लॉग के पीछे मेरी मंशा यह थी कि इस ब्लॉग के माध्यम से हिन्दी ब्लॉग-प्रेमियों को हिन्दी/पंजाबी के उन प्रवासी लेखकों/कवियों की समकालीन रचनाओं से रू-ब-रू करवाया जाए जो अपने वतन हिन्दुस्तान से कोसों दूर बैठकर अपने समय और समाज के यथार्थ को अपनी रचनाओं में ईमानदारी से रेखांकित में लगे हुए हैं। “गवाक्ष” का यही उद्देश्य आगे भी जारी रहेगा। इसमें केवल उन्हीं रचनाकारों की रचनाएं प्रकाशित होंगी जो अपने वतन की मिट्टी से कोसों दूर बैठकर सृजनरत हैं। “गवाक्ष” में अब तक विशाल (इटली), दिव्या माथुर (लंदन), अनिल जनविजय (मास्को), देवी नागरानी(यू.एस.ए.), तेजेन्द्र शर्मा(लंदन), रचना श्रीवास्तव(लंदन), पूर्णिमा वर्मन(दुबई), इला प्रसाद(यू एस ए), भगत धवन (डेनमार्क), चाँद शुक्ला (डेनमार्क), वेद प्रकाश ‘वटुक’(यू एस ए), रेखा मैत्र (यू एस ए), तनदीप तमन्ना (कनाडा), प्राण शर्मा (यू के), सुखिन्दर (कनाडा), सुरजीत(कनाडा), डॉ सुधा धींगरा(अमेरिका), मिन्नी ग्रेवाल(कनाडा), बलविंदर चहल (न्यूजीलैंड), बलबीर कौर संघेड़ा(कनाडा), शैल अग्रवाल (इंग्लैंड), श्रद्धा जैन (सिंगापुर), डा. सुखपाल(कनाडा), प्रेम मान(यू.एस.ए.), (स्व.) इकबाल अर्पण, सुश्री मीना चोपड़ा (कनाडा), डा. हरदीप कौर संधु(आस्ट्रेलिया), डा. भावना कुँअर(आस्ट्रेलिया), अनुपमा पाठक (स्वीडन) आदि की रचनाएं और पंजाबी कथाकार-उपन्यासकार हरजीत अटवाल के उपन्यास “सवारी” के हिंदी अनुवाद की बत्तीसवीं किस्त आपने पढ़ीं। “गवाक्ष” के जनवरी 2011 अंक में प्रस्तुत हैं – संयुक्त अरब इमारात से पूर्णिमा वर्मन की कविताएं तथा हरजीत अटवाल के धारावाहिक पंजाबी उपन्यास “सवारी” की तैंतीसवीं किस्त का हिंदी अनुवाद…
संयुक्त अरब इमारात से
पूर्णिमा वर्मन की कविताएँ
सर्द मौसम- बारह क्षणिकाएँ
कविताओं के साथ सभी चित्र : पूर्णिमा वर्मन
1
धुंध बादल
और ये पेड़ों पे पतझड़
सर्दियों में डूबते दिखते हैं
दिन भी
2
एक हिम सागर
धरा पर
और पत्तों को उतारे
एक तरुवर
दूधिया सूरज नहाता
3
इस अकेली शाम का
मतलब न पूछो
सर्द मौसम
और फैला दूर तक
एकांत सागर
एक पुल
थामे हुए हमको हमेशा
4
धूप की खिड़की
और सर्दी से भरा दिन
बंद अलमारी दुखों की
और पर्दों से बरसती
आस खुशियों की
5
आज
फुर्सत का कोई पल
दूर सूरज गुनगुनाए
सर्द मौसम को थपक
जैसे सुलाए
6
हरी छाँहों में बसी है
गंध सर्दी की
बहुत नम
पारदर्शी याद जैसे
कनक शबनम
7
एक मेपल पात
पियरा
देस से परदेस तक
सर्दी का मौसम जोड़ता है
मुदित जियरा
8
खुशनुमा
सर्दी का मौसम
धरा सागर
और
हिम लिपटी ये बटियाँ
दूर खुलता बादलों में से उजाला
9
पाँव में पायल या सिर पर बोझ
मौसमों से
नहीं रुकते काम
समय को साँटना भी और
जीवन साधना भी है
10
आग है तो आस है
सर्द मौसम
पार करने की
जो मन में चाह है
एक प्याली चाह में वह ताप है
11
धूप नहाया शहर और
मौसम जाड़े का
आतप झरती काँच
और खिड़की मनभावन
12
देवदारों से
ढँकी यह राह
धुँध में घिरता हुआ दिन
सर्द सन्नाटा
और झरती डालियाँ धीमे
000
जन्म : 27 जून 1955
शिक्षा : संस्कृत साहित्य में स्नातकोत्तर उपाधि, स्वातंत्र्योत्तर संस्कृत साहित्य पर शोध, पत्रकारिता और वेब डिज़ायनिंग में डिप्लोमा।
कार्यक्षेत्र : पीलीभीत (उत्तर प्रदेश, भारत) की सुंदर घाटियों जन्मी पूर्णिमा वर्मन को प्रकृति प्रेम और कला के प्रति बचपन से अनुराग रहा। मिर्ज़ापुर और इलाहाबाद में निवास के दौरान इसमें साहित्य और संस्कृति का रंग आ मिला। पत्रकारिता जीवन का पहला लगाव था जो आजतक साथ है। खाली समय में जलरंगों, रंगमंच, संगीत और स्वाध्याय से दोस्ती।
संप्रतिपिछले बीस-पचीस सालों में लेखन, संपादन, स्वतंत्र पत्रकारिता, अध्यापन, कलाकार, ग्राफ़िक डिज़ायनिंग और जाल प्रकाशन के अनेक रास्तों से गुज़रते हुए फिलहाल संयुक्त अरब इमारात के शारजाह नगर में साहित्यिक जाल पत्रिकाओं 'अभिव्यक्ति' और 'अनुभूति' के संपादन और कलाकर्म में व्यस्त।
प्रकाशित कृतियाँ : कविता संग्रह : वक्त के साथ (वेब पर उपलब्ध)ई मेल: abhi_vyakti@hotmail.com
जनवरी 2008 में मैंने “गवाक्ष” ब्लॉग की शुरूआत की थी। दो वर्ष का सफ़र पूरा करके यह तीसरे वर्ष की यात्रा में प्रवेश कर रहा है। “गवाक्ष” ब्लॉग के पीछे मेरी मंशा यह थी कि इस ब्लॉग के माध्यम से हिन्दी ब्लॉग-प्रेमियों को हिन्दी/पंजाबी के उन प्रवासी लेखकों/कवियों की समकालीन रचनाओं से रू-ब-रू करवाया जाए जो अपने वतन हिन्दुस्तान से कोसों दूर बैठकर अपने समय और समाज के यथार्थ को अपनी रचनाओं में ईमानदारी से रेखांकित में लगे हुए हैं। “गवाक्ष” का यही उद्देश्य आगे भी जारी रहेगा। इसमें केवल उन्हीं रचनाकारों की रचनाएं प्रकाशित होंगी जो अपने वतन की मिट्टी से कोसों दूर बैठकर सृजनरत हैं। “गवाक्ष” में अब तक विशाल (इटली), दिव्या माथुर (लंदन), अनिल जनविजय (मास्को), देवी नागरानी(यू.एस.ए.), तेजेन्द्र शर्मा(लंदन), रचना श्रीवास्तव(लंदन), पूर्णिमा वर्मन(दुबई), इला प्रसाद(यू एस ए), भगत धवन (डेनमार्क), चाँद शुक्ला (डेनमार्क), वेद प्रकाश ‘वटुक’(यू एस ए), रेखा मैत्र (यू एस ए), तनदीप तमन्ना (कनाडा), प्राण शर्मा (यू के), सुखिन्दर (कनाडा), सुरजीत(कनाडा), डॉ सुधा धींगरा(अमेरिका), मिन्नी ग्रेवाल(कनाडा), बलविंदर चहल (न्यूजीलैंड), बलबीर कौर संघेड़ा(कनाडा), शैल अग्रवाल (इंग्लैंड), श्रद्धा जैन (सिंगापुर), डा. सुखपाल(कनाडा), प्रेम मान(यू.एस.ए.), (स्व.) इकबाल अर्पण, सुश्री मीना चोपड़ा (कनाडा), डा. हरदीप कौर संधु(आस्ट्रेलिया), डा. भावना कुँअर(आस्ट्रेलिया), अनुपमा पाठक (स्वीडन) आदि की रचनाएं और पंजाबी कथाकार-उपन्यासकार हरजीत अटवाल के उपन्यास “सवारी” के हिंदी अनुवाद की बत्तीसवीं किस्त आपने पढ़ीं। “गवाक्ष” के जनवरी 2011 अंक में प्रस्तुत हैं – संयुक्त अरब इमारात से पूर्णिमा वर्मन की कविताएं तथा हरजीत अटवाल के धारावाहिक पंजाबी उपन्यास “सवारी” की तैंतीसवीं किस्त का हिंदी अनुवाद…
संयुक्त अरब इमारात से
पूर्णिमा वर्मन की कविताएँ
सर्द मौसम- बारह क्षणिकाएँ
कविताओं के साथ सभी चित्र : पूर्णिमा वर्मन
1
धुंध बादल
और ये पेड़ों पे पतझड़
सर्दियों में डूबते दिखते हैं
दिन भी
2
एक हिम सागर
धरा पर
और पत्तों को उतारे
एक तरुवर
दूधिया सूरज नहाता
3
इस अकेली शाम का
मतलब न पूछो
सर्द मौसम
और फैला दूर तक
एकांत सागर
एक पुल
थामे हुए हमको हमेशा
4
धूप की खिड़की
और सर्दी से भरा दिन
बंद अलमारी दुखों की
और पर्दों से बरसती
आस खुशियों की
5
आज
फुर्सत का कोई पल
दूर सूरज गुनगुनाए
सर्द मौसम को थपक
जैसे सुलाए
6
हरी छाँहों में बसी है
गंध सर्दी की
बहुत नम
पारदर्शी याद जैसे
कनक शबनम
7
एक मेपल पात
पियरा
देस से परदेस तक
सर्दी का मौसम जोड़ता है
मुदित जियरा
8
खुशनुमा
सर्दी का मौसम
धरा सागर
और
हिम लिपटी ये बटियाँ
दूर खुलता बादलों में से उजाला
9
पाँव में पायल या सिर पर बोझ
मौसमों से
नहीं रुकते काम
समय को साँटना भी और
जीवन साधना भी है
10
आग है तो आस है
सर्द मौसम
पार करने की
जो मन में चाह है
एक प्याली चाह में वह ताप है
11
धूप नहाया शहर और
मौसम जाड़े का
आतप झरती काँच
और खिड़की मनभावन
12
देवदारों से
ढँकी यह राह
धुँध में घिरता हुआ दिन
सर्द सन्नाटा
और झरती डालियाँ धीमे
000
जन्म : 27 जून 1955
शिक्षा : संस्कृत साहित्य में स्नातकोत्तर उपाधि, स्वातंत्र्योत्तर संस्कृत साहित्य पर शोध, पत्रकारिता और वेब डिज़ायनिंग में डिप्लोमा।
कार्यक्षेत्र : पीलीभीत (उत्तर प्रदेश, भारत) की सुंदर घाटियों जन्मी पूर्णिमा वर्मन को प्रकृति प्रेम और कला के प्रति बचपन से अनुराग रहा। मिर्ज़ापुर और इलाहाबाद में निवास के दौरान इसमें साहित्य और संस्कृति का रंग आ मिला। पत्रकारिता जीवन का पहला लगाव था जो आजतक साथ है। खाली समय में जलरंगों, रंगमंच, संगीत और स्वाध्याय से दोस्ती।
संप्रतिपिछले बीस-पचीस सालों में लेखन, संपादन, स्वतंत्र पत्रकारिता, अध्यापन, कलाकार, ग्राफ़िक डिज़ायनिंग और जाल प्रकाशन के अनेक रास्तों से गुज़रते हुए फिलहाल संयुक्त अरब इमारात के शारजाह नगर में साहित्यिक जाल पत्रिकाओं 'अभिव्यक्ति' और 'अनुभूति' के संपादन और कलाकर्म में व्यस्त।
प्रकाशित कृतियाँ : कविता संग्रह : वक्त के साथ (वेब पर उपलब्ध)ई मेल: abhi_vyakti@hotmail.com