सवारी
हरजीत अटवाल
हिंदी अनुवाद : सुभाष नीरव
॥ तेंतालीस ॥
इतवार की दोपहर। मौसम यद्यपि बढ़िया नहीं था, पर फिर भी हाउस खचाखच भरा पड़ा था। एक बड़ा टेबल तो अजमेर वगैरह ही घेरे बैठे थे। कल वह इंडिया से वापस लौटा था और आज सभी मिलने आ गए थे। गुरिंदर के पामर्ज़ ग्रीन से रिश्तेदार सामान लेने आए हुए थे। दो ग्रामीण भी वहाँ से गुज़रते हुए आ गए थे। सतनाम, मुनीर और प्रेम शर्मा भी थे। बलदेव भी था। अजमेर अपने इंडिया में हुए अनुभव साझे कर रहा था। विवाह में उसकी अच्छी-खासी शोभा हुई थी। वहाँ लोग आमतौर पर कहते सुने जाते थे कि लड़की का मामा विवाह करने के लिए विलायत से आया है। विवाह में हिस्सा बेशक सतनाम और शिन्दे ने भी डाला था, पर सारा श्रेय अजमेर के खाते में ही चढ़ गया। बलदेव से दुखी होकर ही अजमेर इंडिया गया था, क्योंकि उसने कोई पैसा इस विवाह के लिए नहीं दिया था। उसने बहाना बना दिया था कि वह फ्लैट ले रहा है और उसके पास पहले ही पैसे की कमी हो रही थी। अब पब में बैठते ही मुनीर ने अजमेर की तारीफ़ों के पुल बांध कर उसको बियर खरीदने लायक कर रखा था। सतनाम और मुनीर की यह बात निरी मिरासीपना लगती। वह मुनीर पर खीझा पड़ा था, पर चुप था।
लेकिन सतनाम ने मुनीर को तंग करने के लिए वांगली वाली बात फिर शुरू कर दी। मुनीर इतने देर बाद भी अपनी बात पर अड़ा बैठा था। सतनाम अपने 'ना मानूँ' वाले अंदाज में खुश था। बलदेव को मुनीर कहने लगा-
''ले यारा, ये तो अनपढ़ लाणा ही है, तू बता क्या मैं गलत होसी ?''
''मीयां, उन प्लेयरों में मुकाबला तो है, डायरेक्ट या इनडायरेक्ट... उन दोनों में से तेज़ धीमे तो होंगे ही... यह भी हो सकता है कि उनका मकसद वांगलू फाड़ने का न हो, पर उनका मुकाबला वांगलू के फटने पर आकर खत्म होता हो।''
''यही तो मैं कह रहा था, प्लेयर एक दूसरे की ओर वेखसण और ताकत फड़सन, पर अजीब बात यह होसी कि अगर वांगलू न फटे तो दोनों हार मनसण, अगर फट गया तो दोनों जितसण। इनाम शिनाम दोनों को एक जैसा होसी।''
''मीयां, वांगलू ने तो फटना ही फटना है। आदमी अपनी आई पर आ जाए तो वांगलू क्या चीज़ है।''
''बलदेव, यह बात एक गेम की होसी ना कि आदमी की ताकत की...।''
फिर किसी ने बोर होते हुए पंजाब की सियासत के बारे में बात छेड़ दी। अजमेर जगह-जगह पुलिस के नाकों की बातें बताने लगा और नाकों पर होती ज्यादतियों की भी। मुनीर ने कहा-
''भाई जान, यह बताओ कि खालिस्तान कब बणसी ?''
''मीयां, खालिस्तान तुम्हारे जेहनों में ही बणसी।''
अजमेर की बात पर सभी हँस पड़े। मुनीर को लगा कि अजमेर झूठ बोल रहा था और वह कम्युनिस्टों का हमदर्द होने के कारण संकीर्ण सोच रखता था। मुनीर कहने लगा-
''असल में तुम्हारा ताया तुम्हें उल्टी दिशा में जो डाल गया होसी।''
दो बजे दुकान बन्द करके शिन्दा भी आ गया। वह पब में कम ही आया करता था, पर आज मेहमानों के आया होने के कारण अजमेर उसको आने के लिए कह आया था। शिन्दे को देखते ही प्रेम शर्मा ने कहा-
''शिन्दे से पूछ लो वांगली के बारे में।''
पास से ही सतनाम बोला, ''शिन्दे को वांगली बारे नहीं, बांगण के बारे में पता है।''
सभी हँसे। मुनीर कहने लगा-
''शिन्दा तो हमारा बहुत शरीफ भ्रा होसी, बिलकुल वांगलू की तरह !''
एक बार फिर हँसी बिखर गई। पब बन्द करने की घंटी बार-बार बज रही थी। वे सभी एक दूसरे को अलविदा कहते हुए उठे और वहीं से अपनी-अपनी राह पर पड़ गए। पामर्ज़ ग्रीन वाले रिश्तेदार दसेक मिनट घर आकर बैठे और फिर वे भी चले गए। अब वे चारो भाई ही रह गए थे। बोतल खुली पड़ी थी। जल्दी ही नीचे चली गई। अजमेर ने शिन्दे से कहा-
''जा, लीटर वाली ही उठा ला।''
शिन्दा उठकर गया तो सतनाम बोला-
''भाई, मिंदो भाभी ने अच्छी सेवा की लगती है।''
अजमेर मुस्कराया और उसके चेहरे का रंग उसकी पगड़ी के रंग जैसा बिस्कुटी हो गया। सतनाम ने बलदेव को आँख मारकर बोला-
''तुझे बहुत कहा था, पर तू गया नहीं। नहीं तो भाई वाली सेवा तेरी होनी थी... पर तुझे अब गोरियों की आदत पड़ गई है।''
अजमेर उसकी बात काटते हुए बलदेव से कहने लगा-
''तेरे बारे में सभी फिक्र करते हैं, बंसो बहन ने तेरे लिए कितनी ही लड़कियाँ देख रही हैं, एक बार जा तो सही, अब तो तूने फ्लैट ले लिया है।''
सतनाम ने अजमेर की बात की हामी भरी और कहा-
''मैं तो इसे यही समझाता हूँ कि गोरी औरतें तो रबड़ होती हैं, रबड़ चबाने से पेट नहीं भरते।''
शिन्दा बोतल ले आया। मनजीत और गुरिंदर भी उनके बीच आ बैठीं। गुरिंदर बोली-
''यह तो भाइयों की खास मीटिंग लगती है।''
''जट्टी ! तेरे लाडले को समझाने बैठे हैं कि विवाह करवा ले, नहीं तो छड़े को तो भाई भी बुलाना छोड़ देते हैं, गड़बड़ से डरकर। हाँ, तुझे बताऊँ !''
बलदेव भी जवाब देने के मूड में आ गया और कहने लगा-
''मैं तो कुछ और ही देखता-सुनता आया हूँ कि अपने तो ब्याहते ही एक भाई को थे, भाभी के तीन-चार तो वैसे ही होते थे, पर यहाँ तुम तीन-तीन विवाहित होकर मुझ एक को ही फालतू बनाये जाते हो।''
सभी हँसने लगे। सतनाम बोला-
“अरे ओ रांझे, तेरे में हिम्मत नहीं, तू लक्ष्मण की तरह देखता है पैरों की तरफ। देख, ये बैठी है माधुरी दीक्षित, कभी इसकी तरफ सीधा झांक कर भी दिखा।''
''रोयेगा सतनाम सिंह, रोयेगा, जिस दिन माधुरी दीक्षित को पता चलेगा कि उसने इतने साल गुलशन ग्रोवर के साथ ही काट लिए और सन्नी देओल तो इधर घूमता है तो तू बहुत रोयेगा।''
चारों ओर हँसी का ठहाका बिखर गया। बच्चों को उनकी बातों की कोई समझ नहीं आ रही थी। शैरन उठकर आई और गुरिंदर से पूछने लगी-
''मॉम, वट'स दा जोक ?''
''कुछ नहीं, अपने चाचा से पूछ ले।''
शैरन बलदेव की तरफ जाते हुए बोली'
''वट'स दा जोक चाचा जी ?''
''यू कांट गैट इट, इट'स इंडियन साईकी'ज़ जोक।''
मनजीत ने अजमेर से कहा-
''भाजी, हमें भी कोई इंडिया की बात सुनाओ।''
''हाँ, मैं गागू को लेकर तुम्हारे गाँव भी गया था, मिंदो के गाँव भी। लगभग सबसे मिलकर आया हूँ।''
''विवाह कैसा हुआ ?''
''विवाह बढ़िया हो गया। लड़का टीचर और लड़की भी।''
''गागू तो अब बड़ा हो गया होगा ?''
''पन्द्रहवें में है, मोटर साइकिल दौड़ाये फिरता है, ट्रैक्टर भी। ट्रैक्टर तो मैंने बिकवा दिया, पैसे मिंदों के नाम रख दिए हैं। सोचा कि अगर ज़रूरत पड़ गई तो फिर ले लेंगे।''
सतनाम पूछने लगा-
''गागू मुंडीर(लड़कों की टोली) में तो नहीं बैठता। किसी गलत सोसायटी में न हो, पीला पटका ही न बांधे घूमता हो।''
''वो तो सारा पंजाब मारे डर के बांधे घूमता है। जिधर जाओ, पीली चुन्नी या पीली पगड़ी। पर ये सब टेम्परेरी है। मैं गागू को समझाकर आया हूँ कि वह जितना चाहे पढ़े और फिर घर को संभाले। लड़कियाँ बराबर की हो चली हैं।''
शिन्दा उसकी बातें सुन सुनकर खुश हो रहा था। धीरे-धीरे सभी को व्हिस्की को असर होने लगा। पहले पब में भी पीकर आए थे। अजमेर बोला-
''आज तुम सभी इकट्ठे बैठे हो, बलदेव के साथ बात करो, पूछो कि यह क्या चाहता है ? हमारे संग शामिल क्यों नहीं होता?''
''भाजी, शामिल, शामिल कैसे नहीं मैं... शामिल हूँ तभी तो बैठा हूँ।''
''यह बैठना भी कोई बैठना हुआ, हम सबका कहना मान। यह देख इतने बन्दे बैठे हैं, पूरा टब्बर, ये जो फैसला कर दे, वहाँ खड़ा हो... विवाह करवा, रैडिंग वाली लड़की अच्छी-भली थी। कोई दूसरी देख देते हैं, नहीं तो इंडिया ही हो आ।''
कहकर अजमेर ने गुरिंदर की ओर और फिर बार-बार सबकी ओर देखा। सभी उससे सहमत थे। बलदेव बोला-
''भाजी, मुझे भी अकेले घूमना अच्छा नहीं लगता, पर हर बात का अपना हिसाब होता है और हर बात अपना टाइम लेती है।''
''चल, ये तेरा पर्सनल मामला है। दूसरी बात जो ज्यादा इम्पोर्टेंट है वो यह कि तू घर के किसी कार्य-व्यवहार में हमारे साथ नहीं खड़ा होता, हमेशा ही भागता है।''
''यह तो भाजी, तुम्हारा मुकाबला करना मेरे लिए मुश्किल है। तुम हो दोनों बिजनेस मैन और मेरी छोटी सी नौकरी है जिसमें मेरा गुज़ारा ही बड़ी मुश्किल से होता है।''
''अगर मुश्किल होता है तो नौकरी छोड़कर बिजनेस कर ले। उस वक्त कितना अच्छा मौका तूने गवां दिया, तुझे मैं लेकर दे रहा था वो गोरे वाली शॉप।''
''भाजी, यह अहसान मुफ्त में मेरे सिर न चढ़ाओ। तुम मुझे नहीं लेकर दे रहे थे, तुम तो हिस्सा डालकर मुझे तनख्वाह पर रखना चाहते थे। तनख्वाह तो मैं अब भी ले रहा हूँ।''
बलदेव की इस बात ने अजमेर को गुस्सा दिला दिया। लेकिन वह चुप रहा। सतनाम को पता था कि यह चुप साधारण नहीं थी। उसने बात को संभालने के लिए कहा-
''तनख्वाह को तू खर्च कहाँ करता है ? गोरियों की गिनती कम कर दे।''
''गोरियों के लिए मैं क्या महाराजा पटियाला हूँ।''
''पता नहीं साली क्या बात है तेरे में... मैं तेरे से ज्यादा सुन्दर हूँ, मेरे ऐनक भी नहीं लगी, इतने साल हो गए मेरे पर कोई गोरी नहीं मरी।'' सतनाम हैरानी प्रकट करते हुए कह रहा था।
अजमेरे ने अपना पैग एक साँस में पिया और बोला-
''दैट्स योर आउन प्रॉब्लम्ज़... मेरी बात यह है कि मैंने इसके संग एक ही बात करनी है। मैं इसका हिसाब कर देता हूँ। यह अपना हिस्सा दे, और दे भी अभी ही।''
''कौन सा हिसाब ?''
''भाइये के फ्यूनरल का, उस वक्त बंसे को पैसे भेजे, अब ब्याह किया, सबने हिस्सा डाला, तूने पैनी नहीं दी। पहले यह हिस्सा दे और आने वाले सब खर्चे जो इंडिया के हैं, वे भी देने पड़ेंगे। अपने शेयर से तू भाग नहीं सकता।''
''भाजी, मैं अफोर्ड नहीं कर सकता। फिर मुझे ये खर्च इतने ज़रूरी नहीं लगते। भाइये के फ्यूनरल के लायक तो उसकी पेंशन आती थी, बंसो बहन का हम सारी उम्र बोझ नहीं उठा सकते... तुम ब्याहे गए हो, बड़े बने हो तो खर्च भी कर दो। मैंने अभी-अभी फ्लैट लिया है, मेरे पास फिजूल खर्च करने के लिए कोई पैसा नहीं।''
''सौ बातों की एक बात, अगर हमारा भाई है तो यह हिस्सा हर हालत में देना पड़ेगा, नहीं तो...।''
''नहीं तो क्या ?''
''वो दरवाज़ा है और वो सीढ़ियाँ।''
(जारी…)
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