बुधवार, 17 अक्तूबर 2012

गवाक्ष – अक्तूबर 2012



जनवरी 2008 गवाक्ष ब्लॉग के माध्यम से हम हिन्दी ब्लॉग-प्रेमियों को विदेशों में रह रहे हिन्दी/पंजाबी के उन लेखकों/कवियों की समकालीन रचनाओं से रू--रू करवाने का प्रयास करते आ रहे हैं जो अपने वतन हिन्दुस्तान से कोसों दूर रहकर अपने समय और समाज के यथार्थ को अपनी रचनाओं में रेखांकित कर रहे हैं। गवाक्ष में अब तक विशाल (इटली), दिव्या माथुर (लंदन), अनिल जनविजय (मास्को), देवी नागरानी(यू.एस..), तेजेन्द्र शर्मा(लंदन), रचना श्रीवास्तव(लंदन), पूर्णिमा वर्मन(दुबई), इला प्रसाद(यू एस ए), भगत धवन (डेनमार्क), चाँद शुक्ला (डेनमार्क), वेद प्रकाश वटुक’(यू एस ए), रेखा मैत्र (यू एस ए), तनदीप तमन्ना (कनाडा), प्राण शर्मा (यू के), सुखिन्दर (कनाडा), सुरजीत(कनाडा), डॉ सुधा धींगरा(अमेरिका), मिन्नी ग्रेवाल(कनाडा), बलविंदर चहल (न्यूजीलैंड), बलबीर कौर संघेड़ा(कनाडा), शैल अग्रवाल (इंग्लैंड), श्रद्धा जैन (सिंगापुर), डा. सुखपाल(कनाडा), प्रेम मान(यू.एस..), (स्व.) इकबाल अर्पण, सुश्री मीना चोपड़ा (कनाडा), डा. हरदीप कौर संधु(आस्ट्रेलिया), डा. भावना कुँअर(आस्ट्रेलिया), अनुपमा पाठक (स्वीडन), शिवचरण जग्गी कुस्सा(लंदन), जसबीर माहल(कनाडा), मंजु मिश्रा (अमेरिका), सुखिंदर (कनाडा), देविंदर कौर (यू के), नीरू असीम(कैनेडा), इला प्रसाद(अमेरिका), डा. अनिल प्रभा कुमार(अमेरिका) और डॉ. शैलजा सक्सेना (टोरंटो,कैनेडा), समीर लाल (टोरंटो, कनाडा), डॉक्टर गौतम सचदेव (ब्रिटेन), विजया सती(हंगरी) और अनीता कपूर (अमेरिका) आदि की रचनाएं और पंजाबी कथाकार-उपन्यासकार हरजीत अटवाल के उपन्यास सवारी के हिंदी अनुवाद की इक्यावनवीं किस्त आप पढ़ चुके हैं।
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गवाक्ष के इस ताज़ा अंक में प्रस्तुत हैं यू.के. से हिंदी कवि सोहन राही की तीन ग़ज़लें और ब्रिटेन निवासी पंजाबी लेखक हरजीत अटवाल के धारावाहिक पंजाबी उपन्यास सवारी की बावनवीं किस्त का हिंदी अनुवाद
-सुभाष नीरव

यू.के. से
सोहन राही की तीन ग़ज़लें
(1)
बेखुदी कारगर नहीं होती
मुझ पे मेरी नज़र नहीं होती

मौत की पुर सुकून वादी में
कोई शै हमसफ़र नहीं होती

झूठ तो सच है ज़िंदगी का मगर
ज़िंदगी मोअतबर नहीं होती

शान से अब कफ़स में रहते हैं
हाजते बालों पर नहीं होती

ख़ून-ए-दिल से चिराग़ जलते हैं
तीरगी कम मगर नहीं होती

मौत का इंतज़ार करने से
ज़िंदगी मुख़्तसर नहीं होती।

(2)
भीड़ में चेहरा कोई मेरा भी था
मुझमें ही मुझसा कोई मेरा भी था

ज़िंदगी से ज़िंदगी के दरमियां
ढूंढ़ता रस्ता कोई मेरा भी था

रात और दिन की मधुर झंकार में
गूंजता नग़मा कोई मेरा भी था

उस बदन के रंग-ओ-बू में तैरता
बिन खिला गुन्चा कोई मेरा भी था

उस नज़र पर चांद से राही कभी
प्यार का रिश्ता कोई मेरा भी था

(3)

जब भी पुराना ज़ख़्म खुला तो ग़ज़ल हुई
तेरा कहीं सुराग मिला तो ग़ज़ल हुई

दिल पार जब न कर सका दहलीज़ याद की
अश्कों से फिर कलाम हुआ तो ग़ज़ल हुई

इक हर्फ़ भी न कह सका तेरे करम बिना
शीशे में तेरा रंग घुला तो ग़ज़ल हुई

अहसास तेरा बन गया कांटों का रास्ता
जब चलते-चलते रुक गया तो ग़ज़ल हुई

बादल का टुकड़ा,प्यास का सहरा,हमारा घर
जब इनसे दोस्ताना हुआ तो ग़ज़ल हूई।
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सोहन राही
जन्म : 21-06-1935
प्रकाशित कृतियाँ : ज़ख़्मों के आँगन, घूंघट के पट, धूप की तख्ती, ज़ख़्म घूंघट धूप, सुर रेखा, खिड़की भर आस्मां, ग़ज़ल का आईना, गीत हमारे ख्वाब, आरती वंदन, तुम केसर हम क्यारी, कुछ ग़ज़ल, कुछ गीत।

पुरस्कार व सम्मान : चैनल फ़ार ग़ज़ल कंपीटिशन 1993, एशियन आर्टिस्ट ऐसोसिएशन ग्लासगो,1993, संत कबीर एवार्ड(हिंदी समिति लंदन) 1999, साहिर कल्चरल एकेडेमी, अदीब एवार्ड, लुधियाना 2000, यूरोपियन उर्दू साहिर सोसाइटी यू.के. साहिर लुधियानवी एवार्ड 2000, इंडियन ओवरसीज़ कांग्रेस यू.के. लंदन के मेडल शहरी सेवाओं के लिए 2001 और 2006 के एवार्ड और कथा यू.के. का पद्मानंद साहित्य सम्मान 2012

सम्पर्क : 63, Hamilton Avenue, Surbiton, Surrey,
                KT 6, 7PW, England
फोन : 0208-397-0974
ई मेल : sohanrahi@blueyonder.co.uk

धारावाहिक पंजाबी उपन्यास(किस्त- 52)



सवारी
हरजीत अटवाल
हिंदी अनुवाद : सुभाष नीरव

॥ सत्तावन ॥

अजमेर सोचता कि जितनी भी मुश्किलों को वह आसान करने की कोशिश करता है, वे उतनी ही बढ़ती जाती थीं। उसकी मदद करने वाला कोई नहीं था। उसके साथ न कभी सतनाम खड़ा होता था और न बलदेव। सतनाम पैर पैर पर उससे ई्ष्या करता प्रतीत होता। अपित उसके लिए और मुसीबतें खड़ी करके दुश्मन बन बैठता। ऐसे ही बलदेव था, वह छोटी-सी बात भी न सहन करता। जबकि उसको इधर बुलाने और यहाँ सैटिल करवाने में अजमेर का ही हाथ था। वे सभी इधर कभी भी नहीं आ सकते थे, उसकी मदद के बग़ैर और अब उसको बुरा बनाए जाते थे। गुरिंदर भी यूँ ही व्यर्थ-सी बा पर मुँह फुला लेती। वह उसकी बात को अच्छी तरह से सुनती भी नहीं थी और फिर उस पर शराब पीने का दोष मढ़कर एक तरफ़ हो जाती। अब शैरन भी ऐसा ही करने लग पड़ी थी।
      इनमें से वह सबसे ज्यादा जिससे तंग था, वह था- शिन्दा। शिन्दे से जो उसने आशाएँ बाँध रखी थीं, वह किसी में भी पूरा नहीं उतरा था। पहले उसका लाख रुपया उसके घर देकर आया। वह पूरा हो गया तो एक लाख और भेजा और फिर एक लाख और। शिन्दे की निगाह में अब एक लाख की कोई कीमत नहीं रही थी। उसको उसने अकेले ही इंडिया से मंगवाया। खुद ही टिकट भेजी। पर शिन्दे ने उसके लिए उतना काम नहीं किया, जितना करना चाहिए था। उसका ध्यान सतनाम की तरफ़ ही रहता। उसकी बातों में भी वह झट आ जाता। बातों में तो वह हर किसी की आ जाता। प्रेम और मुनीर की बातें भी उस पर असर कर रही थीं। जुआइस भी सिखाती-पढ़ाती रहती होगी। बिजनेस में शिन्दा यकीन वाला आदमी नहीं रहा था। अजमेर अपने में काम करने की जितनी ऊर्जा समझता था या फिर जितनी उसको बिजनेस करने की समझ थी, उसको तो कई दुकानों का मालिक होना चाहिए था। परन्तु उसके इर्दगिर्द के व्यक्ति ठीक नहीं थे। बलदेव भी दुकान लेने से मुकर गया था। इसी तरह सतनाम पब खरीदने के समय साथ खड़ा नहीं हुआ था। 
      बलदेव द्वारा गोरी को घर लाने वाली बात उसको दिल से बुरी लगी थी। शैरन तो पहले ही बगावत किए बैठी थी। उसने गुरिंदर को अस्पताल पहुँचता कर दिया था और बलदेव ने ऊपर से जलती आग में तेल डाल दिया। उस दिन के बाद शैरन कितनी बार बहस कर चुकी थी कि यदि चाचा जी गर्ल फ्रेंड रख सकते हैं तो वह बुआय फ्रेंड क्यों नही बना सकती। इंडिया होता तो शैरन की इतनी -सी बात पर उसका गला घोंट देता, पर यह इंग्लैंड था। यहाँ बच्चों से डर कर रहना पड़ता था। यदि कहीं घर से चली गई तो बिरादरी के लोगों में क्या मुँह दिखाएगा। वह असर-रसूख वाला आदमी था। लोग उसकी इज्ज़त करते थे। अगर उसका कोई बच्चा ही गलत काम कर जाए तो क्या जवाब देगा। उसने अपना यह डर सतनाम से साझा किया तो वह प्रत्युत्तर में बोला-
      ''भाई, कोयले की खान में घुसकर बगैर काला हुए कैसे निकलेंगे ? यह मुल्क ऐसा ही है, बढ़िया होगा अगर समझौता कर लें। साला यहाँ अब यह डर नहीं कि बच्चे कहाँ विवाह करवाएँगे, डर यह है कि करवाएँगे भी कि नहीं। वो जो मनजीत के चाचा का लड़का है, जो जतिंदर की तरह चलता है, इकलौता लड़का माँ-बाप का, साला गे निकल गया।''
      ये लोग तो घर के थे, उसके साथ तो मुनीर और प्रेम भी वफ़ा नहीं करते थे। वह उनकी कितनी मदद करता आया था, पर वे भी अवसर मिलता है तो आकर शिन्दे को शह देने लग जाते हैं। पर मुनीर और प्रेम पर उसको इतना गुस्सा नहीं आता था जितना की घर के लोगों की बातों पर आता था। यदि अपना ही सिक्का खोटा हो तो किसी का क्या दोष है। शिन्दा ठीक हो तो उनकी बात सुने ही क्यों ? अगर मनजीत जैसी गुरिंदर भी होती तो एक दिन भी शिन्दे को न रहने देती। मनजीत तो असल में सतनाम से संभाली ही नहीं जा रही थी। आदमी दबंग हो तो बीवी कैसे न कहना माने। इसलिए तो गुरिंदर खीझते हुए भी शिन्दे के कपड़े धो देती थी। उसका बैड भी बदल देती थी, नहीं तो शिन्दा गन्दा करने में कोई कसर नहीं छोड़ता था। शराबी होकर पेशाब बिस्तर में ही कर देता था। अजमेर ने कितना समझाया, पर वह रूठ कर सतनाम की ओर भाग जाता। यदि सतनाम उसको मुँह न लगाए तो इसको कहीं ओर जाने की जगह न मिले। बलदेव की तो अपनी हालत टप्परवासियों जैसी थी।
      एक दिन सतनाम आया। उसको पब में ले गया। बोला-
      ''भाई, करमजीत गाँव से आया है, दो महीने रहकर।''
      ''क्यों ? सब ठीक बताता है ?''
      एकबार तो अजमेर को लगा कि सतनाम फिर किसी ढंग से शिन्दे को हथियाने आया था। शिन्दा शराब पीने के बाद भी बहुत घाटे का सौदा नहीं था। यह बात अजमेर अब समझने लग पड़ा था। सतनाम भी इसी कारण उसको छोड़ता नहीं था। सतनाम कहने लगा-
      ''एक बुरी खबर बताता है वह।''
      ''कौन सी ?''
      ''कहता है कि मिंदो का चाल चलन ठीक नहीं। सवेरे ही तैयार होकर शहर चली जाती है और अँधेरा होने पर लौटती है।''
      ''अच्छा ! पर ऐसी लगती नहीं।''
      ''वह बता रहा था कि सवेरे माहिलपुर के अड्डे से बस पकड़ती है, रोज़ नया सूट पहनती है, कभी होशियारपुर तो कभी फगवाड़े होती है, शाम को आती  है।''
      ''और क्या कहता है ?''
      ''कहता है कि गागू पैसे को उड़ाये जाता है, जवान लड़कियाँ घर में हैं और गागू के फ्रेंड घर में घुसे रहते हैं।''
      ''क्या करें फिर ?''
      ''यह जो इसका लाख पर लाख जा रहा है, यह उसी का प्रताप है।'' सतनाम ने कहा।
      अजमेर को लगा कि वह उसके सिर ही सारा दोष मढ़ रहा है। उसने कहा-
      ''जो पहले मैं देकर आया था, वो तो फिक्सड कराये थे, बाद वाले उसको कहा तो था, पर अब क्या किया जाए ?''
      ''इसको भेज दो वापस, ताकि जाकर बीवी को संभाले। या फिर भाई तू जाकर उसको दबक कर आ।''
      ''मेरा जाना तो मुश्किल है, गुरिंदर भी अस्पताल में रह कर आई है, अभी पूरी तरह ठीक नहीं। वो बलदेव भी गुड फार नथिंग है। तेरी अपनी शॉप की रिस्पोंसबिलिटी है। फिर मेरी शॉप का काम कैसे चलेगा ? इसलिए मुझसे तो इंडिया जाना नहीं हो सकेगा।''
      ''फिर इसको कहते हैं कि फोन करे, चिट्ठी लिखे, नहीं तो वापस चला जाए।''
      दोनों ने दो-दो गिलास पिये और उभर-उभर कर बातें करने लगे। फिर उठकर दुकान में शिन्दे के पास आ गए। सतनाम ने शिन्दे से कहा-
      ''हमें पता चला है कि पीछे घर में हालात ठीक नहीं।''
      ''क्या हुआ ? अभी कल तो घर से चिट्ठी आई है।''
      ''मिंदो शहर ही रहती है, सारे गाँव में तरह तरह की बातें होती हैं अब।''
      ''मैं नहीं मानता यह।'' शिन्दे ने कहा।
      उन दोनों को एक साथ आया देख, शिन्दा पहले ही समझ गया था कि कुछ होने वाला था। उसने फिर कहा-
      ''गाँव में तो अकेली औरत को देखकर कितने ही कुत्ते भौंकने लग पड़ते हैं।''
      ''करमजीत आया है गाँव से, वही बताता है। तुझे पता है कि वह झूठ बोलने वाला बंदा नहीं। और वह यह भी कहता है कि पराये लड़के गागू के पास आकर बैठे रहते हैं।''
      ''लड़के तो लड़के के पास आ जाते होंगे, मैं मानता हूँ।''
      ''पर घर में जवान लड़कियाँ भी हैं।''
      ''भाजी, आप दोनों मेरे भाई हो, कोई दुश्मन नहीं। आप क्यों इतना बड़ा इल्ज़ाम किसी दूसरे के कहे पर मेरी फैमिली पर लगाये जा रहे हो।''
      ''तू तो यहाँ बना फिरता है कैस्टो मुखर्जी और वहाँ तेरी औरत गन्द बिखेरे जाती है और तू कह रहा है कि इल्ज़ाम क्यों लगाते हैं।''
      ''क्यों अकेले अकेले का बस नहीं चला मुझ पर जो इकट्ठा होकर मुझ पर आ चढ़े हो।'' शिन्दे के टेनंट के पिये हुए डिब्बे काम कर रहे थे।
      ''देख ओए, तुझे हम कुछ समझाने की कोशिश कर रहे हैं और तू चढ़े आ रहा है।''
      ''आप चाहते क्या हो ? क्लीयर करो।''    
      ''तेरी बीवी आवारागर्द हुई फिरती है, बाहर जाकर टांगें...।'' सतनाम ने कहा।
      शिन्दा बुद्धू-सा बन गया। उसने बियर का डिब्बा जल्दी से खाली किया और अपनी जैकेट उठाकर बाहर निकल गया। सतनाम ने पूछा-
      ''चला कहाँ ?''
      ''जाने दे जहाँ जाता है।'' अजमेर ने दबकभरी आवाज़ में कहा।
      कुछ मिनट वे देखते रहे। फिर बाहर निकलकर देखा। शिन्दा कहीं नहीं था। अजमेर ने कहा-
      ''आ जाएगा, यहीं कहीं घुम-घामकर आ जाएगा खुद... जाना कहाँ है उसने।''
      आधा घंटा बीत गया। शिन्दा न लौटा। दुकान बन्द करने का समय हो गया, फिर भी शिन्दा न आया। सतनाम इतनी देर तक रुका नहीं करता था, परंतु चिंता में डूबा वह भी खड़ा रहा। उन्होंने शिन्दे का इंतज़ार करके ही दुकान बन्द की। अजमेर कहने लगा-
      ''कहाँ गया होगा ?''
      ''जाना कहाँ है, जुआइस  के चला गया होगा।''
      दुकान बन्द किए को भी आधा घंटा हो गया, पर शिन्दा न आया। उन दोनों ने वैन उठाई और जुआइस  के घर की ओर चल पड़े। इतनी रात गए उन्हें देखकर वह हैरान रह गई। सतनाम ने पूछा-
      ''जुआइस , यहाँ शैनी तो नहीं आया ?''
      ''नहीं, क्या हुआ ?''
      ''पता नहीं... ड्रिंक ले रहा था और उठकर चल पड़ा, हमने सोचा कि तेरे पास आया होगा।''
      ''यहाँ तो नहीं आया। कहीं नशे में रास्ता न भूल गया हो। चलो, मैं तुम्हारे साथ चलती हूँ, उसको चलकर खोजते हैं, देखो ठंड भी कितनी पड़ रही है।''
      जुआइस शिन्दे की कुछ अधिक ही चिंता करने लग पड़ी। सतनाम बोला-
      ''नहीं जुआइस, तू यहीं घर में ही रह। अगर वह आ गया तो मुझे फोन कर देना।''
      सतनाम ने उसको अपने घर का फोन नंबर दे दिया। फिर वे वैन सड़कों पर दौड़ाने लगे। आसपास के पॉर्क में बने छोटे-मोटे आसरे भी तलाश कर मारे, पर शिन्दा कहीं न मिला। सतनाम ने पूछा-
      ''भाई, उसके पास पैसे कितने थे ?''
      ''मेरा नहीं ख़याल कि उसके पास कुछ होगा।''
      ''फिर साला डरवाने सीरियल की तरह कहाँ जा घुसा।''
      ''छोटी-सी तो बात कही थी, एडवाइज़ ही दे रहे थे हम तो।''
      ''कहीं पुलिस ने न उठा लिया हो ?''
      ''अगर पुलिस उठाकर ले गई होगी तो अच्छी बात है। पुलिस उठाकर सीधे इंडिया ही फेंकेगी और टिकट भी गोरमिंट का, घर चला जाए तो ठीक ही है।''
      ''ठीक है यह भी, हमारे सिर बदनामी नहीं आएगी कि इन्होंने भगा दिया।''
      ''अब फिर क्या करें ? पुलिस के फोन का इंतज़ार करें ?''
      ''कहीं सीधे ही न हवाई जहाज में चढ़ा दें, हमें बताएँ ही न।''
      ''नहीं, ऐसा नहीं करते। और फिर यह अच्छी भली इंग्लिश बोल लेता है, शायद न ही चढ़ाएँ, छोड़ ही दें।''
      वे दोनों विचारों में गुम हुए पड़े थे। सतनाम तड़के के दो बजे अपने घर पहुँचा। अजमेर को भी नशा नहीं चढ़ रहा था। उसको नींद भी न आ सकी। सवेरे उठकर अजमेर फिर सड़कों का एक चक्कर लगा आया।
      थोड़ा दिन चढ़ा तो सतनाम फिर आ गया। आते ही पूछने लगा-
      ''पता चला कुछ ?''
      ''नहीं, कुछ नहीं। मैं सोचता था कि कहीं बलदेव की ओर न चला गया हो।''
      ''नहीं। पहली बात तो इसके पास बलदेव का एड्रेस नहीं होगा। अगर वह इसको भी कार्ड दे गया होगा तो भी बैटरसी यहाँ से काफी दूर है। यह जाएगा कैसे, ढूँढेग़ा कैसे ?''
      ''हम बलदेव को फोन करके बता न दें।''
      ''नहीं नहीं, उसको बिलकुल इन्वोल्व न करें तो अच्छा, उल्टी राय देने बैठ जाएगा।''
 (जारी…)

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