आस्ट्रेलिया(सिडनी) से
॥एक॥
दीये की व्यथा
(दीपावली पर विशेष)
शाम के वक्त
घर लौटते हुए
चौंका दिया मुझे एक
दर्द भरी आवाज़ ने
मैं नहीं रोक पाई स्वयं को
उसके करीब जाने से
पास जाकर देखा तो
बड़ी दयनीय अवस्था में
पड़ा हुआ था एक "मिट्टी का दीया"
मैंने उसको उठाकर
अपनी हथेली पर रखा
और प्यार से सहलाकार पूछा
उसकी कराहट का मर्म?
उसकी इस अवस्था का जिम्मेदार?
वह सिसक पड़ा
और टूटती साँसों को जोड़ता हुआ -सा
बहुत छटपटाहट से बोला-
मैं भी होता था बहुत खुश
जब किसी मन्दिर में जलता था
मैं भी होता था खुश जब
दीपावली से पहले लोग मुझे ले जाते थे अपने घर
और पानी से नहला-धुलाकर
बड़े प्यार से कपड़े से पौंछकर
सजाते थे मुझे तेल और बाती से
और फिर मैं
देता था भरपूर रोशनी उनको
झूमता था अपनी लौ के साथ
करता था बातें अँधियारों से
जाने कहाँ-कहाँ की मिट्टी को
एक साथ लाकर
कारीगर देता था एक पहचान हमें
"दीये की शक्ल"
और हम सब मिलजुलकर
फैलाते थे एक सुनहरा प्रकाश
पर अब
हमारी जगह ले ली है
सोने, चाँदी और मोम के दीयों ने
अब तो दीपावली पर भी लोग दीये नहीं
लगातें हैं रंग बिरंगी लड़ियाँ
और मिटा डाला हमारा अस्तित्व
एक ही पल में
तो फिर अब भी क्यों रखा है
नाम "दीपावली" यानी
दीयों की कतार?
आज फेंक दिया हमें
इन झाड़ियों में
तुम आगे बढ़ोगी
तो मिलेंगे तुम्हें मेरे संगी साथी
इसी अवस्था में
अपनी व्यथा सुनाने को
पर तुमसे पहले नहीं जाना किसी ने भी
हमारा दर्द, हमारी तड़प
आज वही भुला बैठे हैं हमें
जिन्हें स्वयं जलकर
दी थी रोशनी हमने
0
॥दो॥
आँखें जाने क्यों
आँखें जाने क्यों
भूल गई पलकों को झपकना...
क्यों पसंद आने लगा इनको
आँखों में जीते-जागते
सपनों के साथ खिलवाड़ करना …
क्यों नहीं हो जाती बंद
सदा के लिए
ताकि ना पड़े इन्हें किसी
असम्भव को रोकना ।
०
स्याह धब्बे ...
आँखों के नीचे
दो काले स्याह धब्बे ...
आकर ठहर गए
और नाम ही नहीं लेते जाने का...
न जाने क्यों उनको
पसंद आया ये अकेलापन।
0
॥चार॥
दस हाइकु
1-भटका मन
गुलमोहर वन
बन हिरन।
2-नन्ही चिरैया
गुलमोहर पर
फुदकी फिरे।
3-जुगनुओं से
गुलमोहर वृक्ष
हैं झिलमिल।
4-था पल्लवित
मन मेरा -देखा जो
गुलमोहर।
5-मखमली सा
शृंगार किये,खिले
गुलाबी फूल।
6-झूम गाते हैं
खेत खलिहान भी
आया बंसत।
7-नटखट -सी
चंचला,लुभावनी
ऋतु बसन्त ।
8-दुल्हन बनी
पृथ्वी रानी,पहने
फूलों के हार।
9-खेत है वधू
सरसों हैं गहने
स्वर्ण के जैसे ।
10-रंग बिरंगी
तितलियों का दल
झूमता फिरे ।
00
डॉ० भावना कुँअर
शिक्षा - हिन्दी व संस्कृत में स्नातकोत्तर उपाधि, बी० एड०, पी-एच०डी० (हिन्दी)
शोध-विषय - ' साठोत्तरी हिन्दी गज़लों में विद्रोह के स्वर व उसके विविध आयाम'।
विशेष - टेक्सटाइल डिजाइनिंग, फैशन डिजाइनिंग एवं अन्य विषयों में डिप्लोमा।
प्रकाशित पुस्तकें - 1. तारों की चूनर ( हाइकु संग्रह)
2. साठोत्तरी हिन्दी गज़ल में विद्रोह के स्वर
प्रकाशन - स्तरीय पत्र-पत्रिकाओं में कविता, कहानी, गीत, हाइकु, बालगीत, लेख, समीक्षा, आदि का अनवरत प्रकाशन। अनेक राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय अंतर्जाल पत्रिकाओं में रचनाओं एवं लेखों का नियमित प्रकाशन, अपने ब्लॉग http://dilkedarmiyan.blogspot.com पर अपनी नवीन-रचनाओं का नियमित प्रकाशन तथा http://drbhawna.blogspot.com/ पर कला का प्रकाशन अन्य योगदान
स्वनिर्मित जालघर - http://drkunwarbechain.blogspot.com/
http://leelavatibansal.blogspot.com/
सिडनी से प्रकाशित "हिन्दी गौरव" पत्रिका की सम्पादन समिति में
संप्रति - सिडनी यूनिवर्सिटी में अध्यापन
अभिरुचि- साहित्य लेखन, अध्ययन,चित्रकला एवं देश-विदेश की यात्रा करना।
सम्पर्क - bhawnak2002@yahoo.co.in