रविवार, 1 मार्च 2009

गवाक्ष – मार्च 2009



गवाक्ष” के माध्यम से हम हिन्दी ब्लॉग-प्रेमियों को हिन्दी/पंजाबी के उन प्रवासी लेखकों/कवियों की समकालीन रचनाओं से रू-ब-रू करवाने का प्रयास कर रहे हैं जो अपने वतन हिन्दुस्तान से कोसों दूर बैठकर अपने समय और समाज के यथार्थ को अपनी रचनाओं में रेखांकित कर रहे हैं। “गवाक्ष” के पिछ्ले बारह अंकों में पंजाबी कवि विशाल (इटली) की कविताओं का हिन्दी अनुवाद, दिव्या माथुर (लंदन) की कहानी, अनिल जनविजय (मास्को) की कविताएं, न्यू जर्सी, यू.एस.ए. में रह रहीं देवी नागरानी की ग़ज़लें, लंदन निवासी कथाकार-कवि तेजेन्द्र शर्मा, रचना श्रीवास्तव, दिव्या माथुर की कविताएं, दुबई निवासी पूर्णिमा वर्मन की कविताएं, यू एस ए में रह रहीं हिन्दी कथाकार-कवयित्री इला प्रसाद, डेनमार्क निवासी कवि भगत धवन की कविताएं, डेनमार्क निवासी चाँद शुक्ला की ग़ज़लें, यू एस ए निवासी कवि वेद प्रकाश ‘वटुक’ तथा कवयित्री रेखा मैत्र की कविताएं, कनाडा अवस्थित पंजाबी कवयित्री तनदीप तमन्ना की कविताएं और यू के में रहे पंजाबी कथाकार-उपन्यासकार हरजीत अटवाल के उपन्यास “सवारी” के हिंदी अनुवाद की ग्यारह किस्तें आपने पढ़ीं। “गवाक्ष” के मार्च 2009 अंक में प्रस्तुत हैं – यू के अवस्थित हिन्दी कवि-ग़ज़लकार प्राण शर्मा की ग़ज़लें तथा पंजाबी कथाकार-उपन्यासकार हरजीत अटवाल के धारावाहिक पंजाबी उपन्यास “सवारी” की बारहवीं किस्त का हिंदी अनुवाद…


यू के से
प्राण शर्मा की पाँच ग़ज़लें

1

इक -दूजे के संग साथियो नचना और नचाना क्या
जलने वालों की महफ़िल में हँसना और हंसाना क्या

भूला -बिसरा है तो उसको भूला-बिसरा रहने दो
करके याद पुराना किस्सा सोया दर्द जगाना क्या

सजी-सजायी कुछ होती तो हर इक को मैं दिखलाता
मन की सूनी-सी कुटिया को ऐ यारो दिखलाना क्या

मन से मन ऐ मीत मिले तो एक निराली बात बने
पल दो पल के लिए किसी के हाथ से हाथ मिलाना क्या

दो दिन की ही रंगरेली है दो दिन का ही उत्सव है
‘प्राण’ किसी के हँसते-गाते घर में आग लगाना क्या
0

2

आज नहीं तो कल -परसों को अपने-आप ही गंद्लायेगा
झील का ठहरा-ठहरा पानी कब तक सुथरा रह पायेगा

मेरे हमसाये का क्या कुछ उसकी लपट से बच पायेगा
मेरे घर को आग लगी तो उसका घर भी जल जायेगा

इतनी ज़ोर से फैंक नहीं तू ऊंचे परबत से पत्थर को
पत्थर तो पत्थर है प्यारे जिसको लगा वो चिल्लाएगा

अनजानी राहों में रहबर जैसा मिले तो बात बने
इक अनजाना अनजाने को राह भला क्या दिखलायेगा

मान मेरी ये बात तू अपने साथ लिए जा कुछ सौगातें
भूल पे अपनी पछतायेगा खाली हाथ जो घर जायेगा

‘प्राण’ जुटाओ पहले रोटी फिर तुम कोई बात करो
भूखे पेट किसी को कैसे प्यार तुम्हारा बहलायेगा
0

3

आपके जैसा प्यारा साथी कोई भला क्या खो सकता है
आप बुलाएं, हम ना आयें ऐसा कैसे हो सकता है

भूल-भुलैया की दुनिया में ऐसा भी तो हो सकता है
पथ दिखलाने वाला यारो ख़ुद राहों में खो सकता है

गैरों पर शक करने वाले इस पर भी कुछ गौर कभी कर
अपने घर का ही कोई बन्दा मन का मंदा हो सकता है

ये मत समझो रोना-धोना काम महज है नाज़ुक दिल का
अपनी पीडा से घबरा कर पत्थर दिल भी रो सकता है

माना की आसान नहीं है दुक्खों के बिस्तर पर सोना
सुख के बिस्तर पर भी प्यारे कोई कितना सो सकता है
0

4

मिट्टी में बीजों को बोने कोई चला है मेरे भाई
मान न मान मगर ये भी तो एक कला है मेरे भाई

इतना प्यारा, इतना न्यारा तेरा चेहरा क्यों न लगे
मौसम के फल जैसा ही तू रोज़ फला है मेरे भाई

वो इक शख्स उदासी जिसके चेहरे का नित पहरावा है
हंसती-मुस्काती नज़रों को रोज़ खला है मेरे भाई

यूँ तो यारों की गिनती से हम को गुरेज़ नहीं लेकिन
जीवन में बस इक साथी का साथ भला है मेरे भाई

तेरी नासमझी न कहूँ तो बतला मैं क्या और कहूँ
तपती सड़कों पर तू नंगे पाँव चला है मेरे भाई
0

5

किसी के सामने खामोश बनके कोई क्यों नम हो
ज़माने में मेरे रामा किसी से कोई क्यों कम हो

कफन में लाश है इक शख्स की लेकिन बिना सर के
किसी की जिंदगी का अंत ऐसा भी न निर्मम हो

न कर उम्मीद मधु ऋतू की कभी पतझड़ के मौसम में
ये मुमकिन ही नहीं प्यारे की नित रंगीन मौसम हो

हरिक गम सोख लेता है करार इंसान का अक्सर
भले ही अपना वो गम हो भले जग का वो गम हो

जताया हम पे हर अहसान जो भी था किया उसने
कभी उस सा जमाने में किसी का भी न हमदम हो

कभी टूटे नहीं ऐ ‘प्राण’ सूखे पत्ते की माफिक
दिलों का ऐसा बंधन हो, दिलों का ऐसा संगम हो
0


जन्म-१३ जून ,१९३७ ,वजीराबाद ,वर्तमान पाकिस्तान शिक्षा -एम्.ऐ -हिन्दी,पंजाब विश्वविद्यालय १९६६ से यू.के में। सम्मान -१९६१ में भाषा विभाग ,पटियाला ,पंजाब द्वारा आयोजित "टैगोरनिबंध प्रतियोगिता" में द्वितीय पुरस्कार। १९८३ में कादम्बिनी द्वारा आयोजित “अंतर्राष्ट्रीय कहानीप्रतियोगिता " में सांत्वना पुरस्कार। १९८६ में ईस्ट मिडलैंड आर्ट्स ,लेस्टर ,यूं,के द्वारा आयोजित कहानी प्रतियोगिता में प्रथम पुरकार। २००६ में हिन्दी समिति ,यूं .के द्बारा "हिन्दी साहित्य के कीर्तिपुरुष" के रूप में सम्मानित।लेखन- ग़ज़ल विधा पर कई लेख-कहानी और लघु कहानी लिखने में भी रूचि। यूँ तो गीत-कवितायें भी कहते हैं लेकिन गज़लकार के रूप में जाना जाते हैं। ग़ज़ल विधा पर इनके आलेखों की इन दिनों खूब चर्चा है।प्रकाशित कृतियाँ – ‘ग़ज़ल कहता हूँ’ और ‘सुराही’। ‘सुराही’ का धारावाहिक रूप में हिन्दी की वेब पत्रिका ‘साहित्य कुञ्ज’ और महावीर शर्मा के ब्लॉग पर प्रकाशन।
ई मेल : sharmapran4@gmail.com

28 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

सभी गज़ले एक से बढ़ कर एक. बहुत आनन्द आ गया.

कफन में लाश है इक शख्स की लेकिन बिना सर के
किसी की जिंदगी का अंत ऐसा भी न निर्मम हो


-जबरदस्त.

shelley ने कहा…

भूला -बिसरा है तो उसको भूला-बिसरा रहने दो
करके याद पुराना किस्सा सोया दर्द जगाना क्या


सजी-सजायी कुछ होती तो हर इक को मैं दिखलाता
मन की सूनी-सी कुटिया को ऐ यारो दिखलाना क्या


achchhi gajalen hain.

"अर्श" ने कहा…

मेरे हमसाये का क्या कुछ उसकी लपट से बच पायेगा
मेरे घर को आग लगी तो उसका घर भी जल जायेगा

उफ्फ्फ अब और क्या खून मैं ,आदरणीय श्री प्राण शर्मा जी को सादर प्रणाम.. इनकी ग़ज़लों के मुरीद तो मैं पहले से ही हूँ.. आपने पढ़के मेरे ऊपर कृपा कर दिया ... ढेरो बधाई आपको
आभार

अर्श

रंजना ने कहा…

सभी रचनाएँ एक से बढ़कर एक ..........
पढ़वाने के लिए आभार.

सतपाल ख़याल ने कहा…

भूला -बिसरा है तो उसको भूला-बिसरा रहने दो
करके याद पुराना किस्सा सोया दर्द जगाना क्या


सजी-सजायी कुछ होती तो हर इक को मैं दिखलाता
मन की सूनी-सी कुटिया को ऐ यारो दिखलाना क्या

bahut khoob pran jo PrNam

श्रद्धा जैन ने कहा…

Subhash ji
Aapke dwara Pran ji ki Pannch gazlen padhne ko mili uske liye main dil se abhaari hun

Pran ji ki gazlon ko padh pana naseeb ki baat hai


मन से मन ऐ मीत मिले तो एक निराली बात बने
पल दो पल के लिए किसी के हाथ से हाथ मिलाना क्या
aaj ki duniya ki sachhyi hai har rishta pal do pal ka


आज नहीं तो कल -परसों को अपने-आप ही गंद्लायेगा
झील का ठहरा-ठहरा पानी कब तक सुथरा रह पायेगा

wah kya baat ched di apane


माना की आसान नहीं है दुक्खों के बिस्तर पर सोना
सुख के बिस्तर पर भी प्यारे कोई कितना सो सकता है

maza aa gaya padh kar kamaal kaha hai ye


वो इक शख्स उदासी जिसके चेहरे का नित पहरावा है
हंसती-मुस्काती नज़रों को रोज़ खला है मेरे भाई

bhaut hi umda kaha hai ye sher hamesha yaad rahega


कफन में लाश है इक शख्स की लेकिन बिना सर के
किसी की जिंदगी का अंत ऐसा भी न निर्मम हो

bhaut bahut khoob



Pran ji ki kisi bhi gazal ki tarif karna suraz ko diye dikhane jaisa hai

phir bhi main kuch apni pasand ke sher yaha likh rahi hun jinhone dil chhu liya


Ek baar phir se bhaut bahut dhanyvaad

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` ने कहा…

सुभाष नीरव जी प्राण भाई साहब,
नमस्कार !
व्आपका आभार ज श्री प्राण भाई साहब की एकसे बढकर एक, ५ गज़लोँ का ये नायाब गुल्दस्ता आपने पाठकोँ के लिये महकता हुआ यहाँ प्रस्तुत कर दिया है ! दिल से निकले सच्चे बाव लिये सारी बातेँ, मन को छू गईँ ..आशा करते हैँ कि प्राण जी इसी भाँति स -प्राण लेखन करते रहेँगेँ
स स्नेह, सादर,

- लावण्या

seema gupta ने कहा…

आदरणीय प्राण जी को पढना एक अलग ही एहसास से रूबरू होने जैसा होता है.....उनकी ग़ज़लें इतने सजीव चित्रं करती है जैसे हम जिन्दगी का कोई हिस्सा जे रहे हों.....वो हमेशा ही मेरे प्रेरणा सोत्र रहे हैं.....उनकी हर ग़ज़ल लाजवाब है जिनमे तय करना आसान नहीं की कौन सी ज्यादा अच्छी लगी.....फिर भी कई बार पढ़ने पर हर ग़ज़ल की कुछ पंक्तियाँ मेरे दिल को छु गयी जो शायद मुझे कुछ सिखा भी गयी....

भूला -बिसरा है तो उसको भूला-बिसरा रहने दो
करके याद पुराना किस्सा सोया दर्द जगाना क्या

इतनी ज़ोर से फैंक नहीं तू ऊंचे परबत से पत्थर को
पत्थर तो पत्थर है प्यारे जिसको लगा वो चिल्लाएगा

ये मत समझो रोना-धोना काम महज है नाज़ुक दिल का
अपनी पीडा से घबरा कर पत्थर दिल भी रो सकता है

मिट्टी में बीजों को बोने कोई चला है मेरे भाई
मान न मान मगर ये भी तो एक कला है मेरे भाई

जताया हम पे हर अहसान जो भी था किया उसने
कभी उस सा जमाने में किसी का भी न हमदम हो

सुभाष जी आपका बेहद आभार प्राण जी की गज़लों को यहाँ प्रस्तुत करने का.

Regards

Kavita Vachaknavee ने कहा…

सुभाष जी,

गवाक्ष का अंक अच्छा लगा।

हरजीत अटवाल जी का उपन्यास काफ़ी नेरेशनपूर्ण व मर्मस्पर्शी है।

प्राण जी के गज़लें अपने वही चिरपरिचित जीवनानुभव कहने वाले अन्दाज़ में छाप छोड़ती हैं। कई पंक्तियाँ मन को छू गईं।
बधाई।

गौतम राजऋषि ने कहा…

सुभाष जी आपके ब्लौग पर पहली बार आया हूँ और आकर पता चला कि अब तक किस खजाने से वंचित था....
प्राण साब तो चलते-फिरते साक्षात दीवान हैं इस युग की गज़लों के और उन्हें,उनकी ये पाँच नायाब गज़लों को आपने हमें पढ़ा कर बड़ा उपकार किया है।

सारी की सारी गज़लें गज़ब की गेयता और भाव समेटे हुये...खास कर ये शेर "सजी-सजायी कुछ होती तो हर इक को मैं दिखलाता/मन की सूनी-सी कुटिया को ऐ यारो दिखलाना क्या" और "प्राण’ जुटाओ पहले रोटी फिर तुम कोई बात करो /भूखे पेट किसी को कैसे प्यार तुम्हारा बहलायेगा " और फिर ये भी "यूँ तो यारों की गिनती से हम को गुरेज़ नहीं लेकिन /जीवन में बस इक साथी का साथ भला है मेरे भाई" और आखिरी गज़ल के लाजवाब काफ़िये ...वाह
कगर तीसरी गज़ल का मतला थोड़ा हल्का-सा लगा प्राण साब की हैसियत के हिसाब से

रूपसिंह चन्देल ने कहा…

प्रिय सुभाष,

प्राण जी एक सुस्थापित गज़लकार हैं. उनकी गज़लें जीवन के निकट , सहज और सजीव होती हैं. प्राण जी की इतनी उत्कृष्ट गज़लें पढ़वाने के लिए तुम्हे बधाई और प्राण जी का आभार. आशा है शीघ्र ही उनकी और गज़लें पढ़ने का अवसर मिलेगा.

चन्देल

महावीर ने कहा…

प्राण शर्मा स्वयं एक माने-जाने ग़ज़लकार, समीक्षक, कहानीकार, कवि हैं और एक सही
माइने में इन्सान हैं। बिना किसी लाग-लपेट के, कितने ही नए शायरों को भारत और विदेशों
में ग़ज़ल के सही तरीक़ों से अवगत कराया है। मैं ख़ुद जब भी उनसे बात करता हूं तो कुछ
न कुछ लिखने में इज़ाफ़ा ही देखता हूं।
सुभाष जी को धन्यवाद देता हूं कि उनकी इन ख़ूबसूरत ग़ज़लों को पढ़ने का अवसर दिया है।
प्राण जी, कुछ अशाअर मैंने कापी करके आपसे या सुभाष जी की इज़ाज़त के बिना ही
अपनी फ़ाईल में रख लिए हैं। आशा है आप इस डाकाज़नी को नज़रअंदाज़ करेंगे।

भूला -बिसरा है तो उसको भूला-बिसरा रहने दो
करके याद पुराना किस्सा सोया दर्द जगाना क्या

अनजानी राहों में रहबर जैसा मिले तो बात बने
इक अनजाना अनजाने को राह भला क्या दिखलायेगा

ये मत समझो रोना-धोना काम महज है नाज़ुक दिल का
अपनी पीडा से घबरा कर पत्थर दिल भी रो सकता है

कभी टूटे नहीं ऐ ‘प्राण’ सूखे पत्ते की माफिक
दिलों का ऐसा बंधन हो, दिलों का ऐसा संगम हो
महावीर शर्मा

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

भूला -बिसरा है तो उसको भूला-बिसरा रहने दो
करके याद पुराना किस्सा सोया दर्द जगाना क्या
Pran ji , yun ho har she'r lajwab hai pr kuch she'r dil ko chu gaye
...Waah...!!
वो इक शख्स उदासी जिसके चेहरे का नित पहरावा है
हंसती-मुस्काती नज़रों को रोज़ खला है मेरे भाई

कफन में लाश है इक शख्स की लेकिन बिना सर के
किसी की जिंदगी का अंत ऐसा भी न निर्मम हो...kya baat hai..!

aur ye -

ये मत समझो रोना-धोना काम महज है नाज़ुक दिल का
अपनी पीडा से घबरा कर पत्थर दिल भी रो सकता है...bhot khoooob..!!!

नीरज गोस्वामी ने कहा…

भूला -बिसरा है तो उसको भूला-बिसरा रहने दो
करके याद पुराना किस्सा सोया दर्द जगाना क्या

सजी-सजायी कुछ होती तो हर इक को मैं दिखलाता
मन की सूनी-सी कुटिया को ऐ यारो दिखलाना क्या

मान मेरी ये बात तू अपने साथ लिए जा कुछ सौगातें
भूल पे अपनी पछतायेगा खाली हाथ जो घर जायेगा

माना की आसान नहीं है दुक्खों के बिस्तर पर सोना
सुख के बिस्तर पर भी प्यारे कोई कितना सो सकता है

वो इक शख्स उदासी जिसके चेहरे का नित पहरावा है
हंसती-मुस्काती नज़रों को रोज़ खला है मेरे भाई

न कर उम्मीद मधु ऋतू की कभी पतझड़ के मौसम में
ये मुमकिन ही नहीं प्यारे की नित रंगीन मौसम हो

ग़ज़ब के शेर और लाजवाब ग़ज़लें...कमाल है...भाषा की सादगी और रवानी ही नहीं ज़िन्दगी का पूरा फलसफा आदरणीय प्राण साहेब की शायरी में नजर आता है...उन्हें पढना मुझे हमेशा रूहानी सुकून पहुंचाता है....आज के इस दौर में उनकी ग़ज़लें तेज धूप में घने बरगद की छाया सा एहसास कराती हैं....ज़िन्दगी के हर रंग से सरोबार ऐसी खूबसूरत ग़ज़लें वो हमेशा यूँ ही लिखते रहें इश्वर से ये ही प्रार्थना है...

आभार आपका उन्हें प्रस्तुत करने के लिए...

नीरज

Dr. Sudha Om Dhingra ने कहा…

प्राण जी की गज़लें प्रबुद्ध पाठकों में प्राण फूक देतीं हैं, हर शब्द , हर पंक्ति कुछ सिखला जाती है .सुभाष जी की आभारी हूँ जिन्होंने प्राण साहब की पांच ग़ज़लें इकट्ठी दे कर हमें कृतार्थ कर दिया--
ये मत समझो रोना-धोना काम महज है नाज़ुक दिल का
अपनी पीड़ा से घबरा कर पत्थर दिल भी रो सकता है
माना की आसान नहीं है दुक्खों के बिस्तर पर सोना
सुख के बिस्तर पर भी प्यारे कोई कितना सो सकता है
बहुत खूब--
आभार सहित ,
सुधा

ਤਨਦੀਪ 'ਤਮੰਨਾ' ने कहा…

Neerav saheb...Pran Sharma ji ki sabhi ghazalein bahut khoobsurat hain...
आज नहीं तो कल -परसों को अपने-आप ही गंद्लायेगा
झील का ठहरा-ठहरा पानी कब तक सुथरा रह पायेगा
---
तेरी नासमझी न कहूँ तो बतला मैं क्या और कहूँ
तपती सड़कों पर तू नंगे पाँव चला है मेरे भाई
----
कफन में लाश है इक शख्स की लेकिन बिना सर के
किसी की जिंदगी का अंत ऐसा भी न निर्मम हो
Yeh sheyer mujhey bahut ziada acchey laggey... Sharma ji ko mubarakbaad! Itna accha sahit apne blogs pe post karne ke liye aapko bhi badhai ho.

Tandeep Tamanna
Vancouver, Canada

निर्मला कपिला ने कहा…

प्राण्जी की गज़लें मन को छू गयी
भूला विसरा है तो उसको भूला विसरा रहने दो
करके याद उसे फिर सोया दर्द जगाना क्योंबहुत हीूब्सुरत शेअर है
प्राण जुटाओ पहले रोटी फिर तुम कोई बात करो
भूखे पेट किसी को कैसे प्यार तुम्हारा बहलायेगा
माना आसं नहीदुखों के बिस्तर पर सोना
सुख के बिस्तर पर भी कोई कितना सो सकता है
जीवन के सत्य को कितनी सुन्दर अभिव्यक्ति सरल शब्दों मे प्रान जी कि कलम का कमालआपका बहुत बहुत धन्यवाद तथा प्रान जी को बधाई

योगेन्द्र मौदगिल ने कहा…

वाकई दादा गवाक्ष में प्रकाशित आपकी सभी ग़ज़लें एक से बढ़ कर एक हैं
मुझे तो आप सदैव ही अच्छे लगे हैं
बहुत कुछ सीखता भी रहा हूं मैं तो आप से
कृपा-दृष्टि बनाये रखें
or haan
Neerav g ko is prastuti ke liye Saadhuwaad.....

ashok andrey ने कहा…

priya bhai pran jee aaj thoda samay
mila to aapki gaklon se gujarna hua
vakeyi aapki gajlon ne man ko gehraai se chhua hai har pankti me ek darshan ke saath-saath kuchh kehne ki tadap hai jo hamare man ko gehraai se bandh leti he khas kar aapki doosri tatha panchvin gajal ne kaafi prabhavit kiya hai
mein itni achhi gajlon ke liye subhash jee ke saath aapko vishesh roop se babhai detaa hoon
ashok andrey

Manoshi Chatterjee मानोशी चटर्जी ने कहा…

क्या बात है। हर ग़ज़ल बेहद ख़ूबसूरत।

अनजानी राहों में रहबर जैसा मिले तो बात बने
इक अनजाना अनजाने को राह भला क्या दिखलायेगा


न कर उम्मीद मधु ऋतू की कभी पतझड़ के मौसम में
ये मुमकिन ही नहीं प्यारे की नित रंगीन मौसम हो

इन शेरों का कोई जवाब नहीं।

सादर
मानोशी

अनिल कान्त ने कहा…

padhkar bahut aanand aaya ...bahut achchha likhte hain aap

रश्मि प्रभा... ने कहा…

har gazal ki apni khaasiyat hai,par chauthe gazal ki ye panktiyaan bahut achhi lagi.....
मिट्टी में बीजों को बोने कोई चला है मेरे भाई
मान न मान मगर ये भी तो एक कला है मेरे भाई

योगेंद्र कृष्णा Yogendra Krishna ने कहा…

प्राण जी की जीवंत (सप्राण!)गज़लों के लिए उन्हें बहुत-बहुत बधाई। उनकी गज़लों में जीवनानुभवों की सघनता और अंदाज़े-बयां की बहुस्तरीयता गहरे प्रभावित करती है। आभार…

vijay kumar sappatti ने कहा…

deri se aane ke liye maafi chaunga

aadarniya pran ji , ke liye kya kahen , wo to ustaad hai , aur ustaad ki nazmon ki kya koi tareef karen . saari ki saari gazalen ek se badhkar ek hai ..

mera pranaam aur badhai sweekaren..

vijay

सहज साहित्य ने कहा…

वैसे तो प्राण शर्मा जी की सभी गज़लें अच्छी हैं , परन्तु यह शेर भुलाए नहीं भूलता-
हरिक गम सोख लेता है करार इंसान का अक्सर
भले ही अपना वो गम हो भले जग का वो गम हो
-रामेश्वर काम्बोज

MAYUR ने कहा…

जताया हम पे हर अहसान जो भी था किया उसने
कभी उस सा जमाने में किसी का भी न हमदम हो

वाह जी वाह , मज़ा आ गया
धन्यवाद
अपनी अपनी डगर

बेनामी ने कहा…

pran sharma ki ghazalen marm ko gahare chhuti hain .ghalkar ko badhai.

subhash neerav bari lagan aur mehanat se rachnayen la rahe hain
badhai

बेनामी ने कहा…

pran sharma ki ghazalen marm ko gahare chhuti hain .ghalkar ko badhai.

subhash neerav bari lagan aur mehanat se rachnayen la rahe hain
badhai