रविवार, 12 अप्रैल 2009

धारावाहिक पंजाबी उपन्यास(किस्त- 13)

सवारी
हरजीत अटवाल
हिंदी अनुवाद : सुभाष नीरव


॥ अट्ठारह ॥
सुबह बलदेव की नींद खुली तो मैरी उसकी छाती के बालों से खेल रही थी। उसने बलदेव को आँखें खोलते देख 'गुड मार्निंग' कहा और एक बड़ा-सा चुम्बन दिया। बलदेव ने उसे बांहों में कस लिया और सोचने लगा कि इतना बेसब्रा तो वह नहीं था। अगर उसके अंदर ज़रा-सी भी फुर्ती होती तो गुरां को दिल की बात कह सकता था। अगर ऐसा कर सका होता तो ज़िंदगी कुछ और ही होती। मैरी ने पूछा-
''डेव, कहाँ गुम हो ?''
''मैरी, मैं यह सोच रहा था कि छोटी-सी मुलाकात हमें कहाँ से कहाँ ले आई है, मैं इसके लिए तैयार नहीं था।''
''तेरा क्या ख़याल है, मैं तैयार थी ? मैं लंदन में ग्रांट की खातिर आई हूँ, किसी के साथ सोने के लिए नहीं, वह भी इतनी जल्दी।''
''मैरी, तू मुझे पसंद है, पर मुझ पर कोई आस न बांध बैठना।''
''मुझे तेरे पर या किसी और पर अभी कोई आस नहीं है। यह सब कुछ तो इस कारण घटित हो गया कि तू बहुत बढ़िया मनुष्य है। मुझे आशा है कि मेरा अंदाजा सही होगा।''
बलदेव कुछ नहीं बोला। आँखें मूंदे यूँ ही पड़ा रहा। वह इस आनंद को भीतर तक महसूस करना चाहता था। मैरी कहने लगी-
''डेव, मेरे संग सोकर तू कितना खुश है ?''
''बहुत, इतना कि बता नहीं सकता।''
''मेरे पास आदमी को खुश करने की स्किल है। मैंने इस बारे में बहुत किताबें पढ़ी हैं, अपनी सहेलियों के साथ भी इस विषय पर बात करती रहती हूँ, मेरी जितनी जानकारी किसी की नहीं होगी।''
''तेरी बात सच है मैरी, मेरा अधिक अनुभव नहीं पर तेरी बात सही लगती है।''
''डेव, मेरा दुखान्त देख, टैंड फिर भी लूना के पीछे भाग गया।''
कह कर मैरी उदास हो गई। बलदेव ने उसे अपने संग कसकर दबाया और कहा-
''शायद टैंड ने तुझे मेरे लिए छोड़ दिया हो।''
उसकी बात पर मैरी हँसने लगी। कुछ देर बाद बोली-
''डेव, अब तेरा अगला प्रोग्राम क्या है ?''
''मैं उठ कर अब चलता हूँ। जाते-जाते नाइजल को मिलूंगा। दुकान के बारे में सोचना है, लेनी है कि नहीं।''
''उसके बाद, तू कह रहा था कि फ्लैट खोजने जाना है।''
''हाँ, रहने के लिए जगह खोजनी है। फिर फ्लैट खरीदना चाहता हूँ। इसीलिए दुकान एक बार फिर से देखनी है। फैसला करना है।''
''काम पर नहीं जाना अब ? तेरी जॉब सुनने में तो अच्छी लगती है।''
''अगर दुकान नहीं ली तो जल्दी ही काम पर चला जाऊँगा। यूँ ही पीठ के दर्द का बहाना बना कर सिक-लीव लिए बैठा हूँ। अगर फ्लैट लेना हुआ तो काम पर जाना ही पडेग़ा नहीं तो मोर्टगेज नहीं मिलेगी।''
''मैं एक बात कहूँ ?''
''कह ।''
''तू मेरे पास क्यों नहीं रहने लग जाता।''
''मैरी, हम अभी कल ही तो मिले हैं।''
''तू दूसरी जगह भी तो किराये पर मकान लेगा ही, किराया मुझे देते रहना या खर्च शेयर कर लेना।''
बलदेव को मैरी की बात में दम लगा। उस फ्लैट के दो कमरे थे। एक में वह रह सकता था, पर फ्लैट गंदा बहुत था। उसने कहा-
''सोच ले मैरी, तू मुझे झेल भी सकेगी ? किसी को एक रात में कितना जान सकती है।''
''कोशिश तो कर सकती हूँ। मैं ग्रांट की मौत तक तो यहाँ हूँ ही। फिर भी मुझे अब यहीं लंदन में ही रहना है, इस फ्लैट को अपने नाम करवाना है किसी तरह। तू तो जानता है न, काउँसल के फ्लैट आजकल मिलते कहाँ हैं। फिर इस मिले-मिलाये को हाथ से क्यों जाने दें।''
वे देर से उठे। मैरी अस्पताल चली गई और बलदेव नाइजल की दुकान पर जा पहुँचा। जुआइना टिल्ल(गल्ले) पर खड़ी थी। उसे देखते ही बोली-
''हम रात में तुम्हारा इंतज़ार करते रहे, रात में दुकान इतनी बिजी थी कि देखकर तेरी रूह खुश हो जाती।''
बलदेव ने दुकान लेने का फैसला कर दिया। पन्द्रह हजार उसके पास था, पन्द्रह का कर्ज़ा उठा लेगा। बीस की दुकान और दस हजार का स्टॉक। पर नाइजल पच्चीस हजार पौंड मांग रहा था। उसने सोचा कि वह बीस की ऑफर दे देगा, अगर मान गया तो ठीक, नहीं तो इससे अधिक कीमत नहीं देगा। जुआइना ने कहा-
''फ्रैंक आया हुआ है न, उसके साथ पब में गया है, सामने कैट में। फ्रैंक ही तो हमें अपने पास ले जाना चाहता है।''
''फ्रैंक नाइजल का भाई है ?''
उसकी बात पर जुआइना हँसने लगी और बोली-
''नहीं, फ्रैंक मेरा पहला पति है, पर अब उसकी नाइजल के साथ दोस्ती हो गई है। अब हम सब एकसाथ रहेंगे। उसकी पत्नी भी बहुत अच्छी है, हमारी खूब निभती है।''
बलदेव को यह रिश्ता अच्छा लगा। इन्सान में इतनी तो सहनशीलता होनी ही चाहिए। उसने कहा-
''जुआइना, मैं अब पब तो नहीं जा सकूँगा, फिर आऊँगा।''
''डेव, तू जो कुछ कहना चाहता है, मुझे कह जा। बता, क्या ऑफर देना चाहता है ?''
''बीस हजार, जैसी भी दुकान है, ठीक है, न अकाउंट देखूँगा और न ही कुछ और देखूँगा।''
बीस हजार सुनकर जुआइना का मुँह कुछ अजीब-सा हो गया। वह बोली-
''यह तो बहुत कम है, पच्चीस तो हमने सिर्फ तुम्हें वाकिफ होने के कारण कहा था। मार्किट में लगाई तो पैंतीस की लगाएँगे।''
बलदेव चुप था। जुआइना ने फिर कहा-
''तू दुबारा सोच कर आ। अपने भाई के साथ सलाह कर ले, फिर बात करना।''
बलदेव वहाँ से चला आया। उसने एक पल के लिए स्वयं को दुकानदार बना देख लिया था। वह समझ गया था कि यह सौदा नहीं बनने वाला। बीस से अधिक देने को वह तैयार नहीं था। दुकान की हालत भी अच्छी नहीं थी। ऊपर भी खर्चा होना था। दुकान में से निकल कर उसने सोचा कि अजमेर से भी मिलता जाए। गुरां को एक बार देख लेगा। शैरन तो इस वक्त स्कूल में होगी। अजमेर उसे देखते ही नाराज होता हुआ बोला-
''कल नहीं आया, हम इंतज़ार करते रहे। मैं तेरी कार देखने गया, पर तू तो चुपके से खिसक गया।''
''भाजी, असल में मैं सतनाम के यहाँ दो पैग लगा बैठा, मुझे कहीं और भी जाना था इसलिए मैं चला गया।''
''मैंने तो सोचा था, दुकान के बारे में सलाह करेंगे।''
''अब मैं वहीं से आ रहा हूँ... मैं बीस हजार की ऑफर दे आया हूँ।''
''मुझसे पूछ तो लेता।''
''मैंने सोचा कि अपनी जेब के हिसाब से ऑफर दे दूँ।''
''जेब... तू अकेले लेना चाहता है ?''
''तुम ऐसा ही तो कहते थे।''
''मैं... पर तू अकेले चलाएगा कैसे ?''
''किसी को रख लूँगा।''
बलदेव के मन में उसी समय मैरी का नाम आ गया कि वह उसकी मदद ले लेगा। मैरी का नाम मन में आते ही वह उत्साह से भी भर गया। अजमेर कह रहा था-
''यह दुकानदारी अकेले बंदे का काम नहीं होती।''
''पर यह दुकान दो मालिकों का खर्च नहीं उठा पाएगी।''
''तेरी तनख्वाह तो निकालेगी ही।''
''तनख्वाह के लिए तो मेरे पास जॉब है ही।''
''अगर है तो कर जाकर, सड़कों पर क्यों घूमता फिरता है।''
कह कर अजमेर ने मुँह दूसरी तरफ कर लिया। उनकी बातें सुन कर गुरिंदर भी ऊपर से नीचे उतर आयी। उसे देखकर बोली-
''तू है... मैंने सोचा, पता नहीं ये किसके साथ तेज आवाज़ में बातें कर रहे हैं। रात को हम तेरा वेट करते रहे।''
फिर उसने पति का मूड खराब देखकर पूछा-
''आपको क्या हो गया ?''
''कुछ नहीं। गधे से कहो कि लूण(नमक) दे तो कहता है कि कान फटते हैं।''
बलदेव कुछ नहीं बोला। अजमेर भी चुप था। दुकान में सोहन सिंह भी था। वह माहौल गरम देखकर अन्दर चला गया। कुछ देर बाद गुरां ने कहा-
''चाय पिएगा ?''
''नहीं, अब मैं चलूँगा।''
''जाना कहाँ है ? शौन के घर ?''
''नहीं, मैं कहीं और मूव हो जाऊँगा अब।''
''कहाँ ? हमें भी बता। अगर तुझे ढूँढ़ना हो तो कहाँ ढूँढ़ें।''
बलदेव से पहले ही अजमेर बोल उठा-
''जब वह हमारे में भीजता ही नहीं तो क्यों पूछे जाती है। जाने दे, जहाँ जाता है।''
बलदेव वहाँ से आ गया। उसे अजमेर की खुदगर्जी पर गुस्सा आ रहा था लेकिन उसका मूड खराब नहीं हुआ था, क्योंकि मैरी उसके अंग-संग थी। अजमेर के साथ तो उसने पहले रहकर देख ही लिया था। दूसरे की इज्ज़त एक मिनट में उतार कर रख देता है। अगर उसकी हाँ में हाँ मिलाते रहो तो खुश रहता है।
वहाँ से वह सीधा शौन के पास गया। फ्लैट की चाबी उसके पास थी पर उसने घंटी बजाना ही ठीक समझा। उसे अपना सामान उठाना था। सामान उसका ज्यादा नहीं था। कुछ सामान तो लॉण्डरी में होता और कुछ कार में ही रखता। कैरन ने दरवाजा खोला। उनके चेहरों से लगता था कि वे अभी-अभी लड़ कर हटे थे। शौन उसे देखकर खुश हो गया और बोला-
''कल नहीं आया ? भाई के यहाँ ठहर गया था ?''
''नहीं, मैंने दूसरी जगह ढूँढ़ ली है, मूव हो जाऊँगा अब।''
''कब ?''
''अभी, इसी वक्त। सामान लेने आया हूँ।''
कह कर उसने अपना सामान बटोरना आरंभ कर दिया। थोड़ा होने के कारण जल्द ही इकट्ठा हो गया और दो ही बैग में आ गया। उसने कैरन को अलविदा कहा। शौन उससे कहने लगा-
''चल, तुझे पैग पिलाकर भेजता हूँ।''
वे क्राउन पब में आ बैठे। बीयर पीते हुए शौन बोला-
''इसी पब से शुरू हुई थी मेरी लंडन की ज़िन्दगी। यहीं मैं आकर उतरा था। कमरा किराये पर लिया, फिर यह फ्लैट मिल गया और कैरन मिल गई, सब कुछ बहुत ठीकठाक था पर कैरन से सब खराब कर दिया। अब और बर्दाश्त नहीं हो रहा, मेरे धर्म ने मेरे हाथ बाँध रखे हैं। कुछ भी हो, मैं भी यहाँ से मूव हो जाऊँगा।''
''शौन, मैं जल्द ही फ्लैट खरीदने वाला हूँ, तू मेरे पास आ जाना।''
''डेव, मेरा तो लंडन में रहने को ही दिल नहीं करता।''
शौन बहुत उदास था। बलदेव उसको हौसला देने लगा। बीयर के नशे में आकर शौन ने कहा-
''डेव, तुझे कहीं मूव होने की ज़रूरत नहीं। तू एलिशन के चला जा। चल, मैं तुझे मिलवा आता हूँ, आजकल वह अकेली है। उस आदमी को उसने निकाल दिया है। तुझे एलिशन से अच्छी लड़की नहीं मिलेगी। अगर तुम्हारे संबंध ठीक रहे तो विवाह करवा लेना।''
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(क्रमश: जारी…)

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