शुक्रवार, 6 नवंबर 2009

गवाक्ष – नवम्बर 2009


“गवाक्ष” के माध्यम से हम हिन्दी ब्लॉग-प्रेमियों को हिन्दी/पंजाबी के उन प्रवासी लेखकों/कवियों की समकालीन रचनाओं से रू-ब-रू करवाने का प्रयास कर रहे हैं जो अपने वतन हिन्दुस्तान से कोसों दूर बैठकर अपने समय और समाज के यथार्थ को अपनी रचनाओं में रेखांकित कर रहे हैं। “गवाक्ष” के पिछ्ले तेरह अंकों में पंजाबी कवि विशाल (इटली) की कविताओं का हिन्दी अनुवाद, दिव्या माथुर (लंदन) की कहानी, अनिल जनविजय (मास्को) की कविताएं, न्यू जर्सी, यू.एस.ए. में रह रहीं देवी नागरानी की ग़ज़लें, लंदन निवासी कथाकार-कवि तेजेन्द्र शर्मा, रचना श्रीवास्तव, दिव्या माथुर की कविताएं, दुबई निवासी पूर्णिमा वर्मन की कविताएं, यू एस ए में रह रहीं हिन्दी कथाकार-कवयित्री इला प्रसाद, डेनमार्क निवासी कवि भगत धवन की कविताएँ और चाँद शुक्ला की ग़ज़लें, यू एस ए निवासी कवि वेद प्रकाश ‘वटुक’ तथा कवयित्री रेखा मैत्र की कविताएं, कनाडा अवस्थित पंजाबी कवयित्री तनदीप तमन्ना की कविताएं, यू के अवस्थित हिन्दी कवि-ग़ज़लकार प्राण शर्मा की ग़ज़लें, कैनेडा में अवस्थित पंजाबी कवि सुखिन्दर की कविताएं, कनाडा निवासी पंजाबी कवयित्री सुरजीत, अमेरिका अवस्थित डॉ सुधा धींगरा, कनाडा में अवस्थित हिंदी- पंजाबी कथाकार - कवयित्री मिन्नी ग्रेवाल की कविताएं, न्यूजीलैंड में रह रहे पंजाबी कवि बलविंदर चहल की कविता और पंजाबी कथाकार-उपन्यासकार हरजीत अटवाल के उपन्यास “सवारी” के हिंदी अनुवाद की अटठारहवीं किस्त आपने पढ़ीं। “गवाक्ष” के नवम्बर 2009 अंक में प्रस्तुत हैं – कैनेडा में अवस्थित पंजाबी लेखिका बलबीर कौर संघेड़ा की कविताएं तथा यू के निवासी पंजाबी कथाकार-उपन्यासकार हरजीत अटवाल के धारावाहिक पंजाबी उपन्यास “सवारी” की उन्नीसवीं किस्त का हिंदी अनुवाद…
कैनेडा से
बलबीर कौर संघेड़ा की दो कविताएं
मैं और वह
(अपनी पोती कमील के नाम)

वह जब मेरे पास आकर बैठती
एकटक मुझे निहारती
और कहती-
मैं तेरे आदि की
तेरे अन्त की
तेरे अनन्त की
सीमा भी हूँ
और -
तेरी सोटी भी
मैं तुझे पढ़ना चाहती हूँ
मैं तुझे पढ़ रही हूँ
मैं तुझे सुन रही हूँ
ताकि मैं स्वयं को जान सकूँ
तुझे पहचान सकूँ।

आज मैं सीख रही हूँ तुझसे
कैसे हँसी-ठहाकों की किलकारियों में
धुएं के गुबार निकाल दिए जाते हैं
कैसे सतरंगी पींग के रंग
हवा में उड़ाये जाते हैं
कैसे केसर के फूलों को
मन-मस्तक पर रचाया जाता है
और कैसे उजड़े घर
तिनका-तिनका एकत्र करके
बसाये जाते हैं
कैसे समय के दैत्य के हाथों
मर मरा जाते हैं
कैसे भूख की खातिर
स्वयं को खोया जाता है।

मैं सुन रही हूँ सब
मैं देख रही हूँ सब
पर मैं किसी भूख से
नहीं करूँगी समझौता
नहीं करूँगी मनफ़ी
सतरंगी पींग के रंग
अपने जीवन में से।

समय के पैरों में
जंजीर मेरी अपनी होगी
और मैं जानती हूँ
हर दैत्य को
पैरों तले रौंद कर
कैसे मारा जाता है।

मैं सब देख रही हूँ
और पहचान रही हूँ।

मैं रखूँगी अपना अस्तित्व
भोगूँगी हर ऋतु को
गर्व करूँगी अपनी कोख पर
दुलारूँगी उसे पल पल
रखूँगी स्मरण यह सब
जो तेरी नज़र में सवाल लटकता है
अम्बर मेरी उड़ान होगा
और मैं उन तारों की ओर हाथ बढ़ाऊँगी
जो तूने सपनों में सिरजे थे।

तोड़ लाऊँगी वह चमक
जो तेरी छाती में दफ़न है।
पर दादी -
जब तक तेरी नज़र में
सवाल जागता रहेगा
मैं हिम्मत नहीं हारूँगी।
00

ज़ब्त

उसने कहा-
लगाना है तेरे ज़ब्त का अंदाजा
खुले आम
साँसों का शोर उठेगा ही कभी

और मैंनें-
आँखों की नदी में
आँसुओं का आना ही रोक लिया
घुट घुटकर पी लिया उसका सितम

सोचा -
मेरी हार का नंगा नाच
देखेंगे वे
चमकती आँखों से
और मैंने-
ज़ब्त कर लिया
हर वह लफ्ज
जो उनकी छाती से उठा
जो जुबान ने उगला

सोचा- मैं ?
मैं तो वह औरत हूँ
जिसे धरती की कोख ने जन्मा
और जो
धरती का सीना चीर
भस्म हो गई
कोई राम भी नहीं तोड़ सका
सीता के हठ की सीमा
ज़ब्त उसने तब भी किया
और आज भी कर रही है
अपनी सोच के अन्दर
घुट घुटकर मर रही है
उसकी एक आँख में
टपकता आँसू है
और दूसरी में
तीसरे नेत्र की लौ !
00
(पंजाबी से हिंदी रूपांतर : सुभाष नीरव)
कैनेडा में अवस्थित पंजाबी की एक संवेदनशील लेखिका। पंजाबी में दो उपन्यास -''हक दी मंग'' और ''इक ख़त नां सजणां दे'', तीन कहानी संग्रह - ''आपणे ही ओहले'', ''खंभे'' और ''ठंडी हवा'' तथा यादों की एक पुस्तक -''परछाइयां दे ओहले परिक्रमा'' प्रकाशित।
सम्पर्क : 1266, Roper Drive, Milton.L9T 6E6, Ont. Canada
ई मेल : balbirsanghera@yahoo.com

10 टिप्‍पणियां:

सहज साहित्य ने कहा…

'मैं और वह' बलबीर कौर की अत्यन्त भावपूर्ण कविता है । ये पंक्तियाँ पूरा भविष्य सँजोए हुए हैं ।
जब तक तेरी नज़र में
सवाल जागता रहेगा
मैं हिम्मत नहीं हारूँगी।
00

रूपसिंह चन्देल ने कहा…

पर दादी -
जब तक तेरी नज़र में
सवाल जागता रहेगा
मैं हिम्मत नहीं हारूँगी।

सुभाष बलबीर जी की दोनों कविताएं प्रभावकारी हैं.
जब्त में कवयत्री ने नारी पीड़ा को कम शब्दों में व्याख्यायित कर दिया है.

चन्देल

Ria Sharma ने कहा…

Subhash ji

aaj pahlii baar shayd Gavaksh par aayi hun.....umda sankalan,lajvaab sampadkiya,shaandaar arthpoorn kavita sangrah ....upanyaas jara shuru se pad kar pratikriya dungi....

Aapka bahut abhaar isse rubaruu karane kaa...

Regards

बलराम अग्रवाल ने कहा…

दोनों ही कविताएँ प्रभावशाली हैं। तुम्हारी नजर बहुत तीखी है।

ashok andrey ने कहा…

maine balbeer kour jee ki dono kavitaen padee-
aur kehtee-
main tere aadi kee
tere ant kee
tere anant kee
seema bhee hoon

laajwaab , man ko chhu gaee. badhaaee
ashok andrey

सुरेश यादव ने कहा…

बलवीर कौर संघेड़ा की भावः पूर्ण कविताओं के लिए बधाई. 09818032913

Devi Nangrani ने कहा…

बलबीर जी की दोनों कवितायेँ उनकी सुलझी हुई सोच और तजुर्बे की शिखा की कसौटी पर बिलकुल सच के सम्मने आइना है.

मैं सुन रही हूँ सब
मैं देख रही हूँ सब
पर मैं किसी भूख से
नहीं करूँगी समझौता
कोई अपने ज़मीर की हद के आगे जाने की सोचे और अगर सोचे तो क्यों???

और कहती-
मैं तेरे आदि की
तेरे अन्त की
तेरे अनन्त की
सीमा भी हूँ
नीरज जी का साहित्य की बलबीर
जी की दोनों कवितायेँ उनकी सुलझी हुई सोच और तजुर्बे की शिखा की कसौटी पर बिलकुल सच के सम्मने आइना है.
मैं सुन रही हूँ सब
मैं देख रही हूँ सब
पर मैं किसी भूख से
नहीं करूँगी समझौता
कासी
कोई अपने ज़मीर की हद के आगे जाने की सोचे और अगर सोचे तो क्यों???
और कहती-
मैं तेरे आदि की
तेरे अन्त की
तेरे अनन्त की
सीमा भी हूँ
नीरज जी का साहित्य की ओर निष्ठा का यही प्रमाण है और सजदा भी
देवी नागरानी

rekhamaitra ने कहा…

Subhshji!
ek samvedansheel kaviyatri kee dil par seedhee asar karne walee kavitayen gavaksh me padhee . behad khoobsoortee se kaviytri apnee baat kahtee hain ! unhe likhne or apko anuwad karne kee dheron badhaaee!

बेनामी ने कहा…

Dear Subhash Ji,

Many thanks for translating and publishing my poems. I have read all the wonderful comments written by the readers and the writers. Yet due to my own circumstances I was unable to respond. I thank them all sincerely. The lovely gestures I received, It gives ones pen a new flow.

Thank you again.

Best wishes and regards,


Balbir Sanghera

प्रदीप जिलवाने ने कहा…

गवाक्ष के माध्‍यम से प्रवासी साहित्‍य की उम्‍दा प्रस्‍तुतियां पढ़ने को मिल रही हैं. इन दिनों खासकर पिछले 8-10 सालों से प्रवासी साहित्‍य में काफी अच्‍छा विकास हुआ है. कई महत्‍वपूर्ण रचनाकार अपनी स्‍तरीय रचनाओं से सामने आये हैं. प्रस्‍तुत कविताएं भी अच्‍छी लगी. प्रस्‍तुति के लिए आभार एवं बलवीरजी को बधाई.