सोमवार, 14 मार्च 2011

धारावाहिक पंजाबी उपन्यास(किस्त- 35)


सवारी
हरजीत अटवाल
हिंदी अनुवाद : सुभाष नीरव


॥ चालीस ॥
रात में महिमत का फोन आया था कि सवेरे बियर डिलीवर करके जाएगा। आठ-नौ बजे से पहले पहले। उस वक्त ट्रैफ़िक वार्डन भी नहीं होते और बियर भी छिपाकर अन्दर रख ली जाती थी। महिमत यूरोप से स्मगल करके बियर लाता था। यूरोपकी साझी मंडी बन जाने के कारण उस तरफ से ब्रिटेन को काफ़ी मात्रा में बियर, वाइन और व्हिस्की सप्लाई हो रही थी। कैश एंड कैरी से कहीं सस्ता माल मिलता। नहीं तो बड़े-बड़े स्टोरों ने छोटे दुकानदारों की टें बुलवा दी थी। यह दो नंबर का माल ही था जो उन्हें साँस दिला रहा था। माल तो वही था जो कैश एंड कैरी से मिलता था, पर स्मगलर टैक्स पर भी ए.टी. बचाकर उधर से ले आते। अभी इसे रोकने के लिए बहुत सख्त कानून भी नहीं बने थे। यूरोपियन साझी मंडी के अपवाद से निबटने के लिए गवर्नमेंट अभी तैयार जो नहीं थी। अजमेर दो नंबर का माल लेने से बहुत झिझकता था। वह करीब आधी बियर ऐसे खरीद कर बाकी की कैश एंड कैरी से लेकर आता ताकि रसीदें भी पास में सबूत के तौर पर रह सकें। महिमत से वह सौ केस बियर का इकट्ठा फिकवा लेता। जिसमें स्टैला, बडवाइज़र, पिल्ज़ और फौस्टर होंती। एकसाथ सौ केस लेने पर महिमत उसे पच्चीस पैंस एक केस के पीछे और सस्ती दे जाता।
महिमत जल्दी से माल उतारकर पैसे खरे करके चला गया। अजमेर ने अकेले ही सारे केस पीछे वाले स्टोर रूम में टिका दिए। वह पसीने में भीगा पड़ा था। उसको शिन्दे पर रह रहकर गुस्सा आ रहा था कि सतनाम के साथ काम करने जा लगा। इसमें दोष हालांकि सतनाम का अधिक था जो कि उसे यहाँ से ले गया था। शिन्दा भी पहले से ही तैयार बैठा था। शिन्दे को उसके अहसान की कोई कद्र नहीं थी। वह सोच रहा था कि अवसर मिलेगा तो वह उन दोनों को सबक अवश्य सिखाएगा। उसको लगता कि उसके सभी भाई ही अहसान फ़रामोश थे। सब उसके किए को भुलाये बैठे थे।
काम समाप्त करके वह ऊपर चला गया। बच्चे स्कूल जा चुके थे। गुरिंदर शायद नहा रही थी। वह टेलीविज़न के सामने बैठ गया पर दिल नहीं लगा। उसके अन्दर बेचैनी-सी हो रही थी। सौ केस बियर के उठाकर अन्दर रखने ने उसके शरीर को यद्यपि थका दिया था, पर मन स्थिर नहीं था। उसने दस बजने से पहले ही नीचे आकर दुकान खोल ली।
डिंगूमल जैसे दुकान के बाहर खड़ा इसके खुलने का ही इंतज़ार कर रहा था। वैस्ट इंडियन डिंगूमल उसका पुराना ग्राहक था। वह अक्सर उधार ले जाता और पैसे समय से लौटा देता था। अजमेर उधार बहुत कम करता था। यदि करता भी था तो दस पौंड तक का ही करता। वह भी इस प्रकार कि ग्राहक को हर बार दस पैनियाँ अधिक लगा लगाकर उसने अपने दस पौंड पूरे कर लिए होते ताकि यदि ग्राहक भाग भी जाए तो उसको बहुत फ़र्क न पड़े। लेकिन डिंगूमल ऐसा था कि जिसकी सीमा बीस-पच्चीस पौंड तक भी पहुँच जाया करती। डिंगूमल अन्दर घुसा और चार डिब्बे टेनंट के उठाता हुआ बोला-
''ऐंडी, ये लिख लेना।''
''नहीं डिंगूमल अभी मैं उधार नहीं दूँगा।''
''क्यों ?''
''क्योंकि तू मेरा पहला ग्राहक है। पहले कुछ ग्राहक मुझे नकद वाले चाहिएँ।''
''ऐंडी, तेरा उधार लौटाने वाला भी तो मैं ही पहला ग्राहक होता हूँ।''
''लिए हुए माल के ही पैसे देकर जाता है, कोई मुफ्त में तो नहीं पकड़ा जाता।''
''ऐंडी, तू बहुत खराब आदमी है। तू अपने मूड का कैदी है।''
''जो भी है, तू डिब्बे वापस रख दे।''
डिब्बे फेंकता हुआ सा डिंगूमल उसको गालियाँ बकता चला गया। अजमेर दाँत पीसता रहा गया और दुकानदारी के धंधे को कोसने लगा। खराब दिन की शुरूआत के बारे में भी चिंता करने लगा। व्यापारियों वाले छोटे-छोटे वहम वो करने लगता था।
करीब आधे घंटे बाद एक औरत आई। यह परिचित-से चेहरे वाली ग्राहक थी। वह हैलो करते हुए बोली-
''दो बोतलें ब्लैक लेबल और एक सौ रौथमन।''
अजमेर ने दो बोतलें और पाँच डिब्बियाँ सिगरेट की काउंटर पर रख दीं। उस औरत ने क्रेडिट कार्ड निकालकर उसके सामने कर दिया। अजमेर बोला-
''सॉरी मैडम, हम स्प्रिट और सिगरेट पर कार्ड नहीं लेते। बाहर विंडो में भी लिखकर लगा रखा है।''
''क्यों नहीं लेते ?''
''क्योंकि इनमें हमें बचता कुछ नहीं। पाँच परसेंट तो हमारे बैंक वाले ले जाते हैं। हमें इतने भी नहीं बचते और अन्त में पल्ले से पैसे डालकर छूटते हैं।''
''मिस्टर यह तो गैर-कानूनी है।''
''हो सकता है पर यहाँ हम अपने लिए काम करते हैं, न कि लोगों के लिए..., हाँ, यदि वाइन ग्रौसरी चाहिए तो ले जा, बियर भी। पर व्हिस्की-सिगरेटों पर नहीं।''
''पर मुझे तो यही चाहिएँ।''
''सॉरी मैडम।''
''तुझे किस बात की सॉरी। सॉरी तो मुझे है कि जिसके मुल्क में आकर तू मालिक बना बैठा है और मन मर्जी के कानून बना रहा है।'' कहकर वह औरत चल पड़ी और दरवाजे से बाहर निकलते हुए बोली-
''पाकि हरामी, वापस जा।''
यह सुनकर अजमेर भी गालियाँ बकने लगा। औरत तो चली गई पर अजमेर ठगा-सा खड़ा-खड़ा सोचने लगा कि वह कहाँ गलत था। उसने बियर का डिब्बा खोला और बड़े-बड़े कुछ घूंट भरकर एक तरफ रख दिया। बियर ने उसके निराश मन को स्थिर किया। डिब्बा खत्म करते हुए वह सोच रहा था कि यदि बिजनेस करना है तो ऐसे लोगों का सामना भी करना ही पड़ेगा। वह काउंटर के पीछे रखे स्टूल पर बैठा था। उसका दिल करता था कि कुछ बियर और पिये, पर वह जानता था कि बियर उसके जिस्म को निढाल कर देगी। उसके लिए काम करना भी कठिन हो जाएगा। टोनी को अभी ठहर कर आना था। गुरिंदर भी ऊपर घर के काम में लगी हुई थी। उसको फुर्सत नहीं थी। एक ग्राहक दुकान का दरवाजा पार करके अन्दर आया। अजमेर बांहें मारता हुआ इस प्रकार उठा मानो सघन जंगल में से निकल रहा हो। कुछ ग्राहक और आए। अजमेर का मूड कुछ-कुछ बदला, पर पूरी तरह नहीं।
रोटी का वक्त हुआ। गुरिंदर नीचे आई। जैसा कि वह किया ही करती थी कि वह दुकान देखती और अजमेर ऊपर जाकर रोटी खा आता। उसका चेहरा देखकर गुरां कुछ न बोली। संक्षिप्त से शब्दों में सिर्फ इतना कहा कि रोटी किचन में रखी है। अजमेर चला गया।
रोटी खाते हुए अजमेर शॉपिंग के विषय में सोचने लगा कि अगले दिन क्या-क्या चाहिए था। बियर तो आज आ ही गई थी। कल वैन ओवरलोड करने की ज़रूरत नहीं पड़नी थी। फिर लोड, अनलोड करने में भी आसानी रहती। वह नीचे आया तो गुरिंदर फिर भी न बोली और वापस ऊपर चढ़ गई। अजमेर ने स्टॉक रूम में जाकर शीशा देखा। उसको सब बुरा-बुरा लग रहा था। उसने दुकान का चक्कर लगाया और फिर काउंटर पर जा बैठा।
कुछ देर बाद बर्नी आया। बर्नी अजमेर का ऐसा ग्राहक था जो चोरी के क्रेडिट कार्डों पर शॉपिंग करता था। अजमेर दुगने पैसे चार्ज क़र लेता और अपने नफ़े को आसानी से दुगना-तिगना कर लेता। कई बार वह नकद पैसे भी अगले को दे देता। बर्नी जैसे कुछ विश्वसनीय ग्राहक थे जिनके साथ अजमेर ऐसा कर लेता था। क्रेडिट कार्ड वाले बैंक हर दुकानदार की एक सीमा बना देते थे कि उस सीमा से ऊपर की शॉपिंग के लिए दुकानदार बैंक को फोन करके एक रेफ्रेंस नंबर लेता, जिस कारण भुगतान यकीनी बन जाता। बहुत से कार्ड ऐसे ही होते कि चोरी होने के बाद एकदम ही उपयोग में लाए जा सकते थे जब तक कि उनके मालिक चोरी या गुम होने की बैंक के पास शिकायत न कर देते। इसके बाद तो बैंक उस कार्ड के हर भुगतान पर रोक लगा देता था। चोर और दुकानदार की मिली भगत से ही हेराफेरी परवान चढ़ती थी। अजमेर काफ़ी देर तक करता रहा था यह काम, तब तक जब तक बैंक का एक कर्मचारी आकर उसे यह चेतावनी नहीं दिया गया था कि उसकी दुकान से संबंधित बड़े भुगतान अधिकतर चोरी वाले ही होते हैं। अगर दुबारा ऐसा हुआ तो इसकी इन्क्वारी हो सकती थी। अजमेर अपना नाम बदनाम तो किसी भी कीमत पर नहीं होने देना चाहता था। उसने चोरी के क्रेडिट कार्ड लेने एकदम बन्द कर दिए।
बर्नी आया। उसने एक क्रेडिट कार्ड निकालकर अजमेर के सामने रख दिया। अजमेर तुरन्त बोला-
''बनी, नहीं यह कार्ड मैं मंजूर नहीं कर सकता। तू तो जानता ही है कि मेरी इन्क्वारी होने को फिरती है।''
''ऐंडी, मुझे सब पता है। तू मेरा साथी है, मैं तेरे लिए कोई मुसीबत थोड़ा खड़ी करूँगा। यह कार्ड मेरा अपना है।''
''तेरा कार्ड किस बैंक ने बना दिया ?''
''इस बात से तुझे क्या ? फिर मुझे शॉपिंग भी तेरी लिमिट में रहकर ही करनी है।''
''नहीं बर्नी, मैं अब कोई रिस्क नहीं ले सकता।''
''क्यों ?''
''क्योंकि अन्दर जाने का मेरा कोई शौक नहीं है।''
''सेफ मैन सेफ।''
''सॉरी बर्नी, बिलकुल नहीं।''
''यू श्योर ?''
''हाँ।''
''ऐंडी, तूने मेरे कारण हजारों पौंड कमाये हैं। तू अगर बग़ैर पैसे लिए ही कुछ सामान मुझे दे दे तो भी तू घाटे में नहीं।''
''यह भी ठीक है। मैंने बहुत चांस ले लिए, अब नहीं।''
''ऐंडी, तू बहुत बड़ा हरामी है।''
''बर्नी, तेरे से अभी भी छोटा हूँ।''
बर्नी आगे बढ़ा और काउंटर के ऊपर से अपनी लम्बी बांह बढ़ाकर उसने अजमेर की कमीज़ का गला पकड़ लिया। पूरे ज़ोर से उसे हिलाते हुए धक्का मारकर पीछे फेंक दिया और गंदी गालियाँ बकता हुआ बाहर निकल गया।
अजमेर पगड़ी संभालता हुआ उठा और कोने में पड़ी हॉकी जो ऐसे अवसरों के लिए रखी हुई थी, लेकर बाहर निकला। बर्नी दूर जा चुका था। अजमेर फटी हुई कमीज़ को ठीक करता हुआ काउंटर के पीछे आ खड़ा हुआ।
(जारी…)
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