बुधवार, 21 दिसंबर 2011

गवाक्ष – दिसंबर, 2011


जनवरी 2008 “गवाक्ष” ब्लॉग के माध्यम से हम हिन्दी ब्लॉग-प्रेमियों को विदेशों में रह रहे हिन्दी/पंजाबी के उन लेखकों/कवियों की समकालीन रचनाओं से रू-ब-रू करवाने का प्रयास करते आ रहे हैं जो अपने वतन हिन्दुस्तान से कोसों दूर रहकर अपने समय और समाज के यथार्थ को अपनी रचनाओं में रेखांकित कर रहे हैं। “गवाक्ष” में अब तक विशाल (इटली), दिव्या माथुर (लंदन), अनिल जनविजय (मास्को), देवी नागरानी(यू।एस.ए.), तेजेन्द्र शर्मा(लंदन), रचना श्रीवास्तव(लंदन), पूर्णिमा वर्मन(दुबई), इला प्रसाद(यू एस ए), भगत धवन (डेनमार्क), चाँद शुक्ला (डेनमार्क), वेद प्रकाश ‘वटुक’(यू एस ए), रेखा मैत्र (यू एस ए), तनदीप तमन्ना (कनाडा), प्राण शर्मा (यू के), सुखिन्दर (कनाडा), सुरजीत(कनाडा), डॉ सुधा धींगरा(अमेरिका), मिन्नी ग्रेवाल(कनाडा), बलविंदर चहल (न्यूजीलैंड), बलबीर कौर संघेड़ा(कनाडा), शैल अग्रवाल (इंग्लैंड), श्रद्धा जैन (सिंगापुर), डा. सुखपाल(कनाडा), प्रेम मान(यू.एस.ए.), (स्व.) इकबाल अर्पण, सुश्री मीना चोपड़ा (कनाडा), डा. हरदीप कौर संधु(आस्ट्रेलिया), डा. भावना कुँअर(आस्ट्रेलिया), अनुपमा पाठक (स्वीडन), शिवचरण जग्गी कुस्सा(लंदन), जसबीर माहल(कनाडा), मंजु मिश्रा (अमेरिका), सुखिंदर (कनाडा) और देविंदर कौर (यू के) आदि की रचनाएं और पंजाबी कथाकार-उपन्यासकार हरजीत अटवाल के उपन्यास “सवारी” के हिंदी अनुवाद की इकतालीसवीं किस्त आपने पढ़ीं। “गवाक्ष” के दिसंबर, 2011 अंक में प्रस्तुत हैं – कनाडा में रह रहीं पंजाबी कवयित्री सुरजीत की कविताएं तथा हरजीत अटवाल के धारावाहिक पंजाबी उपन्यास “सवारी” की बयालीसवीं किस्त का हिंदी अनुवाद…


टोरंटो, कनाडा से
सुरजीत की तीन पंजाबी कविताएं
पंजाबी से अनुवाद : सुभाष नीरव

पागल मुहब्बत

मेरी मुहब्बत को ही
यह पागलपन क्यों है
कि तू रहे मेरे संग
जैसे रहते है मेरे साथ
मेरे साँस

तसव्वुर में तू है
इंतज़ार में तू है
नज़र में तू है
अस्तित्व में भी तू !

मेरी मुहब्बत को
यह कैसा पागलपन है
कि मेरे दुपट्टे की छोर में
तू चाबियों के गुच्छे की तरह बंधा रहे !

मेरे पर्स की तनी की भाँति
मेरे कंधे पर लटका रहे !

मैंने ही क्यूँ ऐसे इंतज़ार किया तेरा
जैसे बादवान
हवा की प्रतीक्षा करते है
जैसे बेड़े
मल्लाहों का इंतज़ार करते हैं!

मेरी ही सोच क्यूँ
तेरे दर पर खड़ी हो गई है
मेरी नज़र ही क्यूँ
तेरी तलाश के बाद
पत्थर हो गई है !

तस्वीरें और परछाइयाँ

मैं जो
मैं नहीं हूँ
किसी शो-विंडों में
एक पुतले की तरह
ख़ामोश खड़ी हूँ !
कुछ रिश्तों
कुछ रिवायतों से मोहताज !

बाहर से ख़ामोश हूँ
अन्दर ज़लज़ला है
तुफ़ान है
अस्तित्व और अनस्तित्व के

इस पार, उस पार खड़ा एक सवाल है-
कि मैं जो मैं हूँ
मैं क्या हूँ ?

पु्स्तकालय से समाधी तक
इस सच को तलाशते हुए
सोचती हूँ
मैं जिस्म हूँ
कि जान हूँ !
मेजबान हूँ
कि मेहमान हूँ !!

ज़िन्दगी
मौत
रूह
और मोक्ष
शब्दों के अर्थ तलाशती
सोचती हूँ
आख़िर मैं कौन हूँ !

तस्वीरों की जून में पड़कर
ख़ामोश ज़िन्दगी को व्यतीत करते
कई बार
अहसास होता है
कि मैं केवल
हारे-थके रिश्तों की
मर्यादा हूँ !!

या शायद
मैं कुछा भी नहीं
न रूह, न जिस्म
न कोई मर्यादा-
केवल एक
जीता जागता धड़कता
दिल ही हूँ !

तभी तो जब
रिश्ते टूटने का अहसास होता है
तो निगल जाता है
मेरा दिल
मेरा विवेक !!

मैं जो मैं नहीं हूँ
अपने आप को
रिश्तों की दीवार पर
टिका रखा है !

मैं जो मैं हूँ
इन तस्वीरों के
तिड़के शीशों में से निकल कर
परछाइयों की जून पड़ गई हूँ !!

फाइलों से जूझता शख्स

रोज़ सूरज
समुन्दर में जा गिरता है
रोज़ चन्द्रमा
रात से मिलता है
रोज़ पखेरू
पंख फड़फड़ाता हुआ
घर को लौटता है !

एक शख्स
अभी भी
दफ्तर की
फाइलों से जूझता
भूल गया घर का रास्ता।
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पंजाबी की चर्चित कवयित्री।

प्रकाशित कविता संग्रह –‘शिरकत रंग’

वर्तमान निवास : टोरोंटो (कनैडा)

संप्रति : टीचिंग।

ब्लॉग – सुरजीत (http://surjitkaur।blogspot.com)

ई मेल : surjit.sound@gmail.com

4 टिप्‍पणियां:

अनुपमा पाठक ने कहा…

सुन्दर प्रस्तुति!
अच्छा लगा इन कविताओं से गुजरना!!!

ashok andrey ने कहा…

man ki chhatpataht ko ukerti yeh kavitaen man ke har kono ko chhu jaatin hain,sundar rachna ke liye badhai.

नवगीत ने कहा…

बहुत अच्छी प्रस्तुति लगी सुभाष जी आपकी, सभी कविताएँ पठनीय हैं। नववर्ष की शुभकामनाएँ ।

PRAN SHARMA ने कहा…

ACHCHHEE KAVITAAON KE LIYE SURJIT
JI KO BADHAAEE AUR SHUBH KAMNA.
SUBHASH NEERAV JI KAA ANUWAAD ACHCHHA BAN PADAA HAI . UNHEN BHEE
BADHAAEE AUR SHUBH KAMNA .