रविवार, 8 अप्रैल 2012

धारावाहिक पंजाबी उपन्यास(किस्त- 46)




सवारी

हरजीत अटवाल
हिंदी अनुवाद : सुभाष नीरव

॥ इक्यावन ॥
ईस्टर तक तो काम बहुत कम हो गया था। दिन में दो तीन ही डिलीवरी के आर्डर आते। वह मजे से यार्ड की तरफ जाता। ऑनसरिंग मशीन देखता कि किस किस के मैसेज हैं। वहाँ बैठ कर वह कुछ देर अख़बार पढ़ता। फिर कुछ सिलेंडर पिकअप पर रखता और फोन को घरवाले फोन पर डायवर्ट करके आ जाता। ईस्टर से पहले एक बड़ा लोड सिलेंडरों का मंगवा लिया था। वह सोचता कि यदि कारोबार ऐसे ही रहा तो यह स्टॉक सारी गर्मियाँ खत्म नहीं होने वाला। उसे इतनी तसल्ली थी कि इस सीज़न में सालभर की तनख्वाह बन गई। अब उसने सोशल सिक्युरिटी लेने बन्द कर दी। कोई मुसीबत खड़ी कर सकता था, मुफ्त में यूँ ही पैसे क्लेम करने। अब उसको नौकरी की ज़रूरत नहीं थी। यह बिजनेस उसके लिए ठीक था। इस सीज़न में उसको काफ़ी अनुभव हो गया था। आगे पूरे गरमी के दिन खाली पड़े थे। अगले सीज़न के लिए पूरी तरह तैयार हो सकता था।
एलीसन से उसका अब वास्ता नहीं रहा था, पर उसको अपना फोन नंबर दे आया था कि यदि ज़रूरत पड़े तो फोन कर ले। शौन अब न्यूजीलैंड से आस्ट्रेलिया आ गया था। उसका फोन आता रहता था। शौन की बातों से लगता था कि वह बहुत खुश नहीं था, पर वापस भी नहीं आ सकता था। जैरी स्टोन उसको मिलता रहता था। जैरी खुश था कि बलदेव ने अपना काम ठीकठाक चला लिया था। वह कहता-
''अगर तेरा यार्ड किसी सरल पहुँच वाली जगह पर हो तो तेरा बिजनेस और भी ठीक चले।''
लिज़ अपने कमरे में कम ही आती। वह घर कम ही आती। यदि आती तो डौमनिक उसके संग होता। उसका डौमनिक के साथ ही बहुत समय गुज़रता था। रात में डौमनिक उसके साथ आ जाता या लिज़ उसके फ्लैट में चली जाती। यदि कभी लिज़ अकेली होती और उसका मूड होता तो वह बलदेव के साथ आ लेटती। बलदेव कभी न रोकता। लिज़ अब किसी स्टोर में काम करने लगी थी। स्टोर से उसका कालेज करीब पड़ता था। बलदेव को किराया समय से दे जाती। उसको कभी भी मांगना नहीं पड़ता था। बलदेव को लिज़ अपने काम की शिफ्टों के बारे में जानकारी देने लगती, पर बलदेव ने कभी इस तरफ ध्यान नहीं दिया था मानो उसमें अब उसकी कोई दिलचस्पी नहीं रही थी।
एक शाम डौमनिक ने घंटी बजाई। लिज़ घर में नहीं थी। बलदेव ने दरवाज़ा खोला। डौमनिक 'हैलो' कहता हुआ अन्दर आ गया। लिज़ को न देखकर बोला-
''अभी लौटी नहीं ?... मैं फिर कभी आऊँगा, अब चलता हूँ।''
''अगर उसका इंतज़ार करना है तो यहाँ बैठकर कर ले, मुझे कोई एतराज़ नहीं।''
''शुक्रिया ! मुझे उम्मीद थी कि आज उसकी पहली शिफ्ट होगी।''
''कहीं फंस गई होगी, कोई बातों वाला मिल गया होगा। क्या पिएगा ?''
डौमनिक कुर्सी पर बैठ चुका था, बोला-
''कुछ भी चलेगा, पर ठंडा ही।''
''बियर पियेगा ?''
''नहीं, कोक वगैरह।''
बलदेव दो गिलासों में कोक डाल लाया। डौमनिक ने चीअर्स कहते हुए अपना गिलास उठा लिया। बलदेव पूछने लगा-
''लिज़ बता रही थी कि तू शेयर एक्सचेंज में काम करता है, ठीक है ?''
''हाँ डेव, दस साल हो गए।''
''फिर तो मिलियन्ज़ में खेलता होगा।''
''पर मेरे हिस्से तो कुछ सौ ही आते हैं।''
कहकर डौमनिक हँसा और पूछने लगा-
''तू भी शेयरों के साथ डील करता है ?''
''मुझे इस बिजनेस की कतई समझ नहीं है, मेरा दोस्त है शौन, उसको खूब अच्छी जानकारी है इस बारे में। उसके कहने पर एक बार मैंने खरीदे थे और पैसे बच गए थे। मैंने तो वे पैसे बचा लिए पर शौन ने दुबारा दूसरे शेयर खरीद लिए थे और वे सारे गंवा बैठा। जो शेयर उसने खरीदे, उनके भाव गिर गए थे।''
''इस बिजनेस में यह डर तो बना ही रहता है। बहुत केयरफुल होने की ज़रूरत होती है। इसमें जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए। वैसे आजकल कीमतें गिरी हुई हैं। शेयर खरीदने का बढ़िया मौका है।''
''हो सकता है, पर मेरे पास इतने पैसे नहीं है।''
''कीमतें तो संपत्तियों की भी बढ़ रही हैं। लोग कर्ज़ा उठाकर भी खरीद लेते हैं, अगर ठीक चीज़ ठीक भाव में मिल जाए।''
''डौमनिक, तेरी तो यह लाइन है। तुझे नहीं लगता कि इकनोमी में यह बूम नकली है या अस्थायी है।''
''यह तू कैसे कह सकता है ?''
''क्योंकि जायदाद की कीमत निर्धारित करने के लिए दो प्रमुख तत्व काम करते हैं। एक तो घर को बनाने की कीमत और दूसरा जगह की कीमत। इस मुल्क में न जगह की कीमत बढ़ी है और न ही घर बनाने की। फिर यह घरों की कीमतें कैसे बढ़ गईं !''
''डेव, मैं तेरी बात से सहमत नहीं। पर तूने बात बहुत पते की की है। यह जो बूम है, पूरी दुनिया में है, अकेले ब्रितानिया में ही नहीं।''
''यह थेचर-रेगन जोड़ी आर्थिकता को नकली टीके लगा लगा कर मज़बूत दिखाए जा रही है। मैं तो डरता हूँ कि कहीं कीमतें गिर न पड़ें।''
''वैसे शेयर बाज़ार में भी बड़े क्रैश का डर पल रहा है। ऐसे क्रैश में से कई लोग कमा जाते हैं जैसे तीसरे दशक में कैनेडी परिवार ने कमाया था। जिसके पल्ले पैसे हों, गिरती कीमतों पर शेयर खरीद ले।''
''वही चांस की बातें हैं, जुआ है।''
''हाँ, ऐसा जुआ जिसको ध्यान से खेलकर यकीनी बनाया जा सकता है।''
''अगर जायदादों की कीमतें गिर पड़ीं तो इस सरकार के लिए बुरा होगा।''
''डेव, अगर रिसैशन आया तो पूरी दुनिया में आएगा, शायद न भी आए।''
''इकोनोमिस्ट तो बहुत भविष्यवाणियाँ कर रहे हैं''
''हाँ, इनफ्लेशन जो नहीं बढ़ी जो कि अच्छी बात है, पर बूम के लिए बुरी भी। तनख्वाहें बढ़ी नहीं, जायदादों की कीमतें बढ़ गईं।''
''डौमनिक, यदि इसके बारे में गहराई से सोचें तो साफ़ दिखने लग पड़ता है कि यह सब नकली है।''
''डेव, तू गैस के बिजनेस में है। इसके शेयर भी ठीक होते हैं। पैट्रोल से वास्ता जो है इसका... अगर मन बने तो खरीद लेना।''
''देखूँगा किसी पड़ाव पर जाकर यदि मन बना तो। अभी तो मैं इस बिजनेस में बिल्कुल नया हँ, पहला ही सीज़न है।''
डौमनिक घड़ी देखते हुए बोला-
''मुझे तो बैठे बहुत टाइम हो गया। लिज़ अभी भी नहीं आई। अब मुझे चलना चाहिए।''
''डौमनिक, तू तो बहुत बढ़िया आदमी है, मुझे तो आज पता चला। तेरे साथ बातें करने में मजा आ रहा है।''
डौमनिक ने डिब्बा खोला और ठीक से होकर बैठते हुए बोला-
''लेबर पार्टी को सपोर्ट करते हो ?''
''नही, मैं किसी पार्टी को सपोर्ट नहीं करता। मैं वोट ही नहीं डालता।''
''क्यों ?''
''मुझे ये लीडर लीडर कम और एक्टर ज्यादा लगते हैं।''
''यह भी ठीक है पर हर पार्टी की कुछ पालिसियाँ होती हैं, जिनसे आपको सहमत-असहमत होना होता है।''
''डौमनिक, मैंने गौर से देखा है कि पालिसियों का बहुत थोड़ा फ़र्क हुआ करता है। अब मुझे तो लेबर पार्टी अच्छी लगती है पर ये टोरी का मुकाबला करने लायक नहीं।''
''इसीलिए डेव, मैं एस.डी.एल.पी. का सपोर्टर हूँ।''
''किसी के भी सपोर्टर हो जाओ, आख़िर देशों को चलाते तो कुछ अदृश्य हाथ ही हैं।''
''तेरा भी यह यकीन है।''
''बिल्कुल। ये अदृश्य हाथ हर देश में होते हैं। यहाँ भी और अमेरिका में भी हैं। अब अमेरिका के प्रेजीडेंट के लिए अलिखित शर्तें हैं कि वह अमीर हो, गोरा हो, आयरिश पिछड़ी जाति का हो, ज्युओ का हमदर्द हो वगैरह...।''
''डेव, हम किसी पब में चलें, फिर जी भरकर बातें करेंगे। मुझे लगता है कि लिज़ के बहाने मेरी पहचान एक अच्छे दोस्त से हो गई है।''
बलदेव मुस्कराया और कहने लगा-
''लिज़ को इन बातों से एलर्जी है।''
''उसका क्षेत्र दूसरा है। वह ज़िन्दगी को हल्के-फुल्के अंदाज में लेती है।''
''डौमनिक, तेरी लिज़ से दोस्ती कैसे हुई, उसको तो तेरी कोई भी बात पसन्द नहीं आती होगी। वह तुझे भी बोर करती होगी।''
''डेव, बड़ी दूर की सोच रहे हो। मेरी उसके साथ दोस्ती का एक आधार तो यह है कि वह औरत है, खूबसूरत है। दूसरा यह कि मुझे लगता है कि उसके माध्यम से कुछ शेयर बेच सकूँगा। मेरी कारोबारी नज़र मुझे कई सन्देश दे रही है, तभी...।''
उनके बात करते करते ही लिज़ भी आ गई। उन्हें एक साथ बैठे देखकर बोली-
''सॉरी ब्यॉयज़, आई एम लेट।''
बलदेव डौमनिक से बोला-
''अगर तुम चाहो तो यहाँ मेरे साथ बैठकर भी शाम गुज़ार सकते हो। पीज़ा मंगवा लेंगे, मेरे पास हर तरह की ड्रिंक है ही।''
(जारी…)

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1 टिप्पणी:

ashok andrey ने कहा…

Subhash jee maine ek baat mehsus kii hai ki Harjeet jee upanyaas ko vistaar dene mai mahir hain aur pathak ko bandhe rakhte hain yahii unki khoobii hai,badhai.