शुक्रवार, 11 फ़रवरी 2011

गवाक्ष – फरवरी 2011


जनवरी 2008 “गवाक्ष” ब्लॉग के माध्यम से हम हिन्दी ब्लॉग-प्रेमियों को विदेशों में रह रहे हिन्दी/पंजाबी के उन लेखकों/कवियों की समकालीन रचनाओं से रू-ब-रू करवाने का प्रयास करते आ रहे हैं जो अपने वतन हिन्दुस्तान से कोसों दूर रहकर अपने समय और समाज के यथार्थ को अपनी रचनाओं में रेखांकित कर रहे हैं। “गवाक्ष” में अब तक विशाल (इटली), दिव्या माथुर (लंदन), अनिल जनविजय (मास्को), देवी नागरानी(यू.एस.ए.), तेजेन्द्र शर्मा(लंदन), रचना श्रीवास्तव(लंदन), पूर्णिमा वर्मन(दुबई), इला प्रसाद(यू एस ए), भगत धवन (डेनमार्क), चाँद शुक्ला (डेनमार्क), वेद प्रकाश ‘वटुक’(यू एस ए), रेखा मैत्र (यू एस ए), तनदीप तमन्ना (कनाडा), प्राण शर्मा (यू के), सुखिन्दर (कनाडा), सुरजीत(कनाडा), डॉ सुधा धींगरा(अमेरिका), मिन्नी ग्रेवाल(कनाडा), बलविंदर चहल (न्यूजीलैंड), बलबीर कौर संघेड़ा(कनाडा), शैल अग्रवाल (इंग्लैंड), श्रद्धा जैन (सिंगापुर), डा. सुखपाल(कनाडा), प्रेम मान(यू.एस.ए.), (स्व.) इकबाल अर्पण, सुश्री मीना चोपड़ा (कनाडा), डा. हरदीप कौर संधु(आस्ट्रेलिया), डा. भावना कुँअर(आस्ट्रेलिया), अनुपमा पाठक (स्वीडन) आदि की रचनाएं और पंजाबी कथाकार-उपन्यासकार हरजीत अटवाल के उपन्यास “सवारी” के हिंदी अनुवाद की तैंतीसवीं किस्त आपने पढ़ीं। “गवाक्ष” के फरवरी 2011 अंक में प्रस्तुत हैं – संयुक्त अरब इमारात से पूर्णिमा वर्मन की कविताएं तथा हरजीत अटवाल के धारावाहिक पंजाबी उपन्यास “सवारी” की चौंतिसवीं किस्त का हिंदी अनुवाद…

यू.एस.ए. से
सुदर्शन 'प्रियदर्शिनी' की कविताएँ

जीवन

वह भीड़ भरी
जिंदगी
वह कन्धे से कन्धे
छिलते हुये तन
वह उठे हुये भीड़ में चेहरे
वह असंख्य
हिलती हुई
मुंडियां
वे अभावों में
घिरे हुये घर
वह पँक्तियों में
लगी हुई
राशन की दुकानों
पर भीड़
वह जीने के
संघर्ष में की गई
एक एक दौड़
वह सुबह से सांझ तक
कुछ नया कर आने का
पूरा पन
मुझे आज भी भरता है…

वह शिद्दत के बाद
मिली हुई
थोड़ी- सी रहमत
वह ब्याही दुल्हन की
पहली रात का
नया नवेला आभास
वह उम्र भर
एक तार में बंध कर
उम्र भर की
चादर बुन
जाने का भरापन
वे छोटे छोटे
घरों में होने वाले तर्क
वह अधिकार एवं स्नेह
के बीच लड़े हुये
खेलों की तरह
जीत और हार
की अनुभूति
वह बसों में चढ़ते उतरते
भीड़ की रेल-पेल
जीवन को जीने की
पूरी चाहत से
भर देते हैं…

इस सागर की
तरह भरे हुये
पर ठहरे हुये
जीवन
जिस में छोटी-छोटी
मछलियों का
क्रिया-कलाप नहीं
जिस में चांदनी रात में
अनबिछी खाट पर
पढ़े हुए चांद को
साथ-साथ ताकने का
सुख नहीं
जिस में छोटी-छोटी
बातों का नहीं
बड़ी- बड़ी प्रलयों का
अहसास भरा हो
ऐसा सुख अन्दर कहीं
गहरे अभावों से
भर देता है …

धीरे-धीरे
स्वयं फल को
पकते देख कर
जीवन के आगे
बढ़ने का सुख
इन छलांगों के
सुख से
कहीं बड़ा लगता है
आज फिर न जाने क्यों
उन धूल-धूसरित
अपने से चेहरों में
खो जाने
का मन करता है।
0

बुत

कहते हैं
शरीर नहीं
रहता
पार्थिव है
जल, वायु, व्योम
अग्नि और
मिट्टी से बना है

पर
कहीं न कहीं
एक बुत
रह जाता है

एक अशरीरी
छवि-सा
तुम्हारी प्रकृति
तुम्हारे
आचार विचार
व्यवहार से
लिपा-पुता
किन्हीं
आँखों में…
0

अकेले

मैंने
अपने से अलग
अपने घावों
अपनी रिसती
बिवाइयों
गले की फाँस बनी
विसंगतियों
दम घोंट
देने वाली
वे सारी
व्यथाओं की
एक पोटली बांध कर
अलग अलगनी पर
टांग दी है
ताकि जब तुम
आओ तो
ले चलो
मुझे अकेले
निःसग
उन सब से
परे
निःस्वच्छ
स्फटिक लोक
में अकेले…
0

सुदर्शन 'प्रियदर्शिनी'
जन्म - लाहौर अविभाजित भारत. शिक्षा पी.एचड़ी हिन्दी. अनेक वषों तक भारत में शिक्षण कार्य किया.
अमरीका में 1982 में आई तब से लेखन लगभग बंद रहा. अब पिछले दो तीन सालों से भारत की पत्रिकाओं में छपने लगी हूं.अमरीका में रह कर भारतीय संस्कृति पर आधारित लगभग दस साल तक पत्रिका निकाली. टी वी प्रोग्राम एंव रडियो प्रसारण भी किया. अब केवल स्वतंत्र लेखन.
पुरस्कार
महादेवी पुरस्कार - हिन्दी परिषद टोरंटो, कनाडा
महानता पुरस्कार - फ़ेडरेशन ऑफ इंडिया, ओहायो
गर्वनस मीडिया पुरस्कार- ओहायो,यू एस ए
प्रकाशित रचनायें - उपन्यास -रेत के घर(भावना प्रकाशन), जलाक (आधारशिला प्रकाशन), सूरज नही उगेगा (बिशन चंद एंड संस)
कविता संग्रह - शिखंडी युग (अर्चना प्रकाशन), बराह (वाणी प्रकाशन), यह युग रावण है (अयन प्रकाशन), मैं कौण हां (पंजाबी में-चेतना प्रकाशन)
कहानी संग्रह - उत्तरायण (प्रकानाधीन)
सम्पर्क :
सुदर्शन प्रियदर्शिनी
246 Stratford Drive
Broadview Hts, Ohio 44147
USA
(440)717-1699
Sudarshansuneja@yahoo.com

8 टिप्‍पणियां:

PRAN SHRMA ने कहा…

Sudarshan Pridarshnee kee kavitayen
main bade manoyog se padh gayaa hoon. Seedhee- saadee bhasha mein
saadgee bhare bhaav hain .Achchhee
kavitaaon ke liye unhen badhaaee
aur shubh kaamna .

kusumsinha ने कहा…

mujhe aapki kavita bahut hi achhi lagi bar bar padhne ke bad bhi tripti nahi hui bahut sundar bhav gahre aur dil ko chhu lenevale
kusum

सहज साहित्य ने कहा…

प्रियदर्शोनी जी की कविता-'अकेल' मन को छू गई अन्य कविताएँ भीइ अच्छी है।

Dhingra ने कहा…

सुदर्शन जी की तीनों कविताएँ बहुत बढ़िया लगीं |
अकेले में --
मैंने
अपने से अलग
अपने घावों
अपनी रिसती
बिवाइयों
गले की फाँस बनी
विसंगतियों
दम घोंट
देने वाली
वे सारी
व्यथाओं की
एक पोटली बांध कर
अलग अलगनी पर
टांग दी है....
वाह क्या कहने ...
बधाई सुदर्शन जी और सुभाष जी आप की आभारी हूँ जो आप ने इतनी खूबसूरत कविताएँ पढ़वाईं |
सुधा ओम ढींगरा

रूपसिंह चन्देल ने कहा…

सुदर्शन प्रियदर्शनी जी की कविताएं पढ़ीं. बहुत सहज भावाभिव्यक्ति की कविताएं---सभी कविताएं पसंद आयीं.

सुदर्शन प्रियदर्शनी जी को यत्र-तत्र (आधारशिला आदि में) पढ़ता रहा हूं. गवाक्ष में देखकर अच्छा लगा.

चन्देल

उमेश महादोषी ने कहा…

jeewan ki visangatiyon aur unake prabhaw se janit anubhutiuon ko sahejatii achchhi kavitayen hain.

सुरेश यादव ने कहा…

सुदर्शन जी की कवितायेँ सहज, सरल और संवेदना पूर्ण हैं बधाई

Dr (Miss) Sharad Singh ने कहा…

सुदर्शन 'प्रियदर्शिनी'की सभी कविताएं गहन अनुभूतियों से परिपूर्ण हैं....उन्हें हार्दिक बधाई!