मंगलवार, 6 सितंबर 2011

धारावाहिक पंजाबी उपन्यास(किस्त- 40)




सवारी

हरजीत अटवाल
हिंदी अनुवाद : सुभाष नीरव

॥ पैंतालीस ॥

शिन्दे के वापस आ जाने पर अजमेर बहुत खुश था। वह जानता था कि सतनाम को इससे काफ़ी तकलीफ़ हुई होगी। सतनाम भी तो दांव लगाकर शिन्दे को ले गया था। पचास की जगह सौ पौंड देकर। शिन्दे के कारण ही सतनाम की सेल बढ़ने लग पड़ी थी। उसकी साप्ताहिक बिक्री अजमेर के बराबर आ पहुँची थी, जबकि उसका मुनाफ़ा अजमेर के मुनाफ़े से दोगुना था। सतनाम के मीट के कारोबार में से लाभ चालीस प्रतिशत तक पहुँच जाता, जबकि अजमेर का मुनाफ़ा पंद्रह से बीस प्रतिशत ही होता था। सिगरेटों और व्हिस्की की बोतलों में से तो पाँच प्रतिशत ही रह जाता। यही कारण था कि मनजीत ने नई कार ले ली थी। सतनाम ने भी दुकान को फ्री-होल्ड खरीदने के लिए लैंडलॉर्ड के साथ बात करनी शुरू कर दी थी। ऐसे तो वह अजमेर से आगे निकल चला था। शिन्दे को वापस ले आना एक बार तो अजमेर को ऐसा लगा मानो उसने सतनाम का प्लग ही खींच दिया हो। मन ही मन कहता कि भाग कहाँ तक भागता है।
टोनी वाली पूरी तनख्वाह बचने लग पड़ी। शिन्दा सवेरे उठता और गई रात सोता। वह अकेला ही काम चला सकता था। कठिन समय के लिए गुरिंदर भी घर ही होती। अजमेर भी आस पास ही रहता। शाम को भीड़ के समय अजमेर गल्ला संभालता और शिन्दा ऊपर का काम। टोनी का छुट्टियों पर चले जाना उन्हें एक बार भी नहीं अखरा था। अपितु वह सोचता था कि इस स्कीम पर पहले क्यों नहीं अमल किया।
काम को इतना आराम से चलता देख अजमेर एक बार फिर अपने बिजनेस को बढ़ाने के सपने लेने लग पड़ा था। टोनी ने लौटकर शाम के वक्त शिन्दे के साथ खड़े होना ही था। अजमेर ने एक बार फिर खाली होना था और वह कोई दूसरी दुकान आदि ले सकता था। अब तो बच्चे भी बराबर के होने वाले थे। और कुछ वर्ष में शैरन दुकान में खड़ी होने योग्य हो जाने वाली थी और उसके पीछे ही हरविंदर भी। लोगों के बच्चे छुट्टियों में बाहर काम करने जाते हैं, उनके लिए घर की दुकान थी।
कभी-कभी अजमेर को ढिंचली वाले पब की याद हो आती तो उसको बहुत दुख होता। उसने उधर जाकर देखा था। पब अब खुल चुका था। लिया भी किसी इंडियन ने ही था और भीड़ भी खूब रहती थी। उसको सतनाम पर गुस्सा आने लगा कि आधे में उसके संग क्यों खड़ा नहीं हुआ। आधे में खड़ा होना तो एक तरफ़, उसको भी उसने दिल गिराने वाली सलाह दी थी। यदि वह पब खरीद लिया होता तो अजमेर आज कहीं का कहीं होता। पंडोरी के यहाँ आए लोगों में से शायद उसका नाम सबसे ऊपर होता।
जैसा कि स्वभाव का वह सूफी था, अधिक बात नहीं करता था। शिन्दे के साथ तो बिलकुल ही नहीं, डिब्बा पीकर खुलने लगता। दो डिब्बे पीकर सीधे सवाल करता, पूछता-
''कैसे ? खुश है ?''
''खुश क्या, मैं खुश ही हूँ।''
''मैंने कहा, अगर अब भी खुश न हुआ तो फिर तू कभी खुश नहीं होगा। तू लखपति हो गया, मिंदो के नाम पर दो लाख से ऊपर है।''
''भाजी, सब तुम्हारे कारण ही है।''
''बुच्चर की शॉप की अपेक्षा यहाँ आराम है तुझे... देख, सारा दिन बाहें लटकाये फिरता है। वहाँ मीट की बू से ही भरा फिरता था।''
''भाई, वहाँ काम भी ज्यादा है। सवेरे-सवेरे तो काम का प्रैशर ही बहुत होता है।''
अजमेर खुश हो जाता और बियर का एक डिब्बा पकड़ा देता। शिन्दे का उसने सीधा-सा हिसाब रखा हुआ था कि शाम के सात बजे उसको बियर का एक डिब्बा देता और दूसरा दस बजे। एक बड़ा पैग रोटी खाते के समय। अपनी तरफ़ से शिन्दे की शराब पर नियंत्रण रखा हुआ था। मिंदो ने भी कहकर भेजा था कि उसको ज्यादा पीने न देना। अजमेर को स्वयं भी महंगा न पड़े इसलिए भी ध्यान रखता।
शिन्दे को सुबह जल्दी उठने की आदत पड़ गई थी। वह सवेरे उठकर दुकान में झाड़ू-पौचा लगाता। रात के खाली पड़े बॉक्स तोड़ तोड़कर या फिर दूसरा फालतू सामान कूड़ेदान में डालता। टोनी यह सारे काम रात को ही किया करता था, पर उसको ये सब बहुत दौड़-दौड़ कर करने पड़ते। शिन्दा रात को मजे से काम करता और यह ऊपरवाला काम सवेरे उठ कर निपटाता और दस बजने से पाँच मिनट पहले ही दुकान खोल लेता। अजमेर उसकी यह फुर्ती देखकर खुश हो जाता। मंगलवार और शनिवार दुकान की शॉपिंग करनी होती। शिन्दा अजमेर को किसी भी काम को हाथ न लगाने देता, वह पूरी वैन खुद ही लदवाता और उतरवाता।
अजमेर को एक दिन बोतलों के पीछे ऐश-ट्रे में सिगरेट के टोटे दिखाई दे गए। यह ऐश-ट्रे टोनी इस्तेमाल करता था। वह कई बार स्टॉक रूम में खड़े होकर सिगरेट पिया करता था। सिगरेट के टुकड़े देखकर अजमेर बोला-
''ये सिगरेटें तू पीता है ओए ?''
''नहीं भाजी।''
''फिर ये ऐश ट्रे में टुकड़े कहाँ से आ गए ?''
''टोनी के होंगे।''
''टोनी को गए तो कई दिन हो गए। और वह तो ऐश ट्रे साफ करके गया था, मैंने खुद देखा।''
''नहीं भाजी, तुम्हें भ्रम हो रहा होगा।''
''भरम का कुछ लगता, क्यों झूठ बोले जा रहा है... कहीं बुच्चर ने कुछ सिखा कर तो नहीं भेजा !''
''उसने मुझे क्या सिखाना है ?''
''यही कि जाकर मुझे ज़मीन पर लगा, वह मुझे देखकर खुश जो नहीं है।''
शिन्दा कुछ न बोला। अजमेर ही चुप हो गया, पर उसके मन में यह बात बैठ गई। रात को खाना खाते समय फिर इसी बात को लेकर बड़बड़ाने लगा। शिन्दे ने अपना पैग पिया और रोटी खाये बग़ैर ही सो गया।
अजमेर सुबह को इस तरह था जैसे कुछ हुआ ही न हो। शिन्दे ने भी रात की बात का जिक्र न किया। पर अजमेर सोच रहा था कि ढाई पौंड की डिब्बी थी, अगर रोज़ की एक डिब्बी भी पी जाए तो बात कहाँ पहुँचती थी। सिगरेटों में से तो पहले ही कुछ नहीं बचता था। उसने दुबारा सिगरेट के टुकड़े कहीं न देखे। करीब दो दिन शिन्दा चुप रहा और फिर ठीक हो गया।
एक दिन अजमेर को लगा कि शिन्दा सही नहीं चल रहा। अजमेर बोला-
''ओ... तूने दिन में ही पी ली ?''
''नहीं भाजी...वैसे ही थकावट सी है। रात को आँख खुल गई, दुबारा नींद ही नहीं आई।''
अगले दिन अजमेर ने शिन्दे की ओर ध्यान से देखा तो उसकी आँखें कुछ लाल-सी प्रतीत हुईं। अजमेर ने कहा-
''आज फिर शराबी लग रहा है।''
''नहीं भाजी, नजला हो रखा है कल से।''
अजमेर ने करीब होकर सूंघकर देखा और बोला-
''तेरे से तो स्मैल ही बहुत आ रही है।''
''रात वाली होगी। मैंने जल्दी में सवेरे कपड़े जो नहीं बदले, तभी।''
अजमेर सोचने लगा कि यह सवेरे जल्दी उठता है, कहीं उसी समय ही दाव न लगाता हो। सवेरे जब शिन्दा डस्टबिन भरकर हटा तो अजमेर ने उसके अन्दर हाथ मारकर देखा। बियर के दो ताज़े डिब्बे पिये हुए मिल गए और एक व्हिस्की की खाली की गई पव्वे वाली बोतल भी। अजमेर का गुस्सा तो सातवें आसमान पर जा चढ़ा। वह चीखता हुआ बोला-
''सौ पौंड तेरी तनख्वाह, ये सौ पौंड की तू चुरा कर पी जाता है, फिर तेरा कपड़ा, खाना-पीना सब फ्री... तू तो मुझे तीन सौ पौंड हफ्ते का पड़ता है। टोनी तो तेरे से मुझे बहुत सस्ता पड़ता है। और तो और मैं गलती से तेरी तनख्वाह एडवांस में दे आया... ऐसा कर, अपने पैसे पूरे कर दे और जा, बाहर जाकर जहाँ मर्जी काम कर और जहाँ चाहे रह, फिर तू इतनी पी कर दिखा और सौ पौंड बचा कर भी...।''
शिन्दे ने उस दिन फिर खाना नहीं खाया और चुपचाप जाकर सो गया।
धीरे-धीरे अजमेर को लगा कि शिन्दा तो उसके लिए एक समस्या बनता जा रहा था। इस हिसाब से वह उसको बहुत महंगा पड़ता था। शराब पीकर दुकान में खड़े होकर गलतियाँ भी करता होगा। वह गुरिंदर के साथ बात करते हुए कहने लगा-
''शिन्दा तो फिश बोन बनकर गले में अटक गया है।''
''मुझे तो पहले ही पता था, मैं इसके कपड़े मशीन में जब धोती हूँ, बू मार रहे होते हैं।''
''तूने बताया नहीं ?''
''तुम कहते कि भाई की चुगली करती हूँ।''
''तू अब इसको समझा, समझा इसको।''
''मैं क्या समझाऊँ, तुम्हारा भाई है, तुम ही समझाओ। और फिर, इंडिया वाली ने भी तुम्हारी ही ड्यूटी लगा रखी है।''
उसके व्यंग्य पर अजमेर जल-भुन गया, पर कुछ बोल न सका। वह गुस्से में आया, अपने हाथ में मुक्के मारने लग पड़ा। गुरिंदर फिर बोली-
''प्यार से समझाओ, ज़रा धीरज से। तुम तो अगले को ऐसे पड़ते हो कि जिसने समझना हो, वह भी न समझे।''
''मैं धीरज कहाँ से लाऊँ। जिसका इतना नुकसान हो रहा हो, वह धीरज से कैसे काम ले।''
''सतनाम को कहो इसको समझाये।''
''वो बुच्चड़ तो इसको और सीख देकर जाएगा, मुझे पता है, यह उसी का उठाया हुआ है... मैं एक बात बता दूँ, अगर समझ गया तो समझ गया, नहीं तो बहुत बुरा होगा। मैं पुलिस को एक फोन करके इसको उठवा कर इंडिया फिकवा दूँगा।''
''ऐसा न सोचो, कोई सुन लेगा तो क्या कहेगा।''
''इसे समझाओ फिर।''
''बलदेव इसके साथ बात कर सकता था, उसकी बात यह समझ भी लेता, पर उसको तुमने नाराज़ कर लिया।''
''नाराज़ कैसा, ला, अभी फोन कर लेते हैं। वो ही एक बार समझा कर देख ले, नहीं तो मैं इसको वापस भेज दूँगा।''
अजमेर बलदेव को उसके काम पर फोन करने लगा। फोन वापस रखते हुए गुरिंदर से बोला-
''बलदेव ने तो वहाँ से काम छोड़ दिया।''
(जारी…)
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