सवारी
हरजीत अटवाल
हरजीत अटवाल
हिंदी अनुवाद : सुभाष नीरव
॥ उनसठ ॥
बारिश हो रही थी। कार चलाना कठिन हो रहा था। रास्ता खोजने में भी दिक्कत पेश आ रही थी, पर बलदेव डौमनिक के घर पहुँच ही गया। डौमनिक ने बताया था, “शहर में घुसते ही बुशमिल
के साइन मिल जाते हैं। बुशमिल की मुख्य सड़क का नाम फोर्ड रोड था। उसमें से ही निकलती
थी- मिलर्ड लेन। यदि कहीं भूल भी जाओ तो पूछ लेना।” मिलर्ड लेन उस इलाके की प्रसिद्ध रोड थी। जब बलदेव परेशान-सा होकर रास्ता खोजने लगता तो सिमरन नक्शा खोल लेती।
बलदेव को नक्शा देखने की आदत नहीं थी। ए-थर्टीन छोड़ते ही उसने सिमरन से पूछा-
''बच्चों को 'सी-फ्रंट' दिखा लाएँ ?''
''क्या दिखाएँगे इतनी बारिश में ? मैंने तो तुमसे कहा था कि प्रोग्राम ही कैंसल कर दो।''
''अब टाइम दे रखा था डौमनिक को। अगर न आते तो वह क्या सोचता।''
बेटियाँ रास्ते भर पूछती आई थीं, ''आर वी देअर ?''
सिमरन बोली, ''ये कभी लंबे रूट पर गई जो नहीं।''
''ये साउथऐंड भी कोई लंबा रूट है, कुल तीस-पैंतीस मील है सारा।''
''इनके लिए यही बहुत है। बारिश होने के कारण भी ऊब गई होंगी।''
वे मिलर्ड लेन पर आए तो बड़े-बड़े घर देखकर सिमरन ने कहा -
''तेरा फ्रेंड तो रिच लगता है।''
''मे बी, हो सकता है। शेयरों का बिजनेस करता है, अमीर तो होगा ही।''
वे सत्तर नंबर के आगे पहुँच गए। लिखा था -''चिज़नी कॉटेज''। एक तरफ अंदर जाने का रास्ता था और दूसरी तरफ बाहर निकलने
का। अंदर तीन बड़ी-बड़ी कारें खड़ी थीं। गेट के अंदर बोट भी खड़ी दिखाई दे रही थी। बलदेव
सोच रहा था कि यह तो अर्ल्ज क़ोर्ट वाली बोट लगती है जिस पर डौमनिक की आँख थी।
डौमनिक ने उनके साथ बहुत गरमजोशी से हाथ मिलाए। अंदर गए तो पोलीन और उनके तीनों
लड़के एक पंक्ति में खड़े हो गए और सभी बारी-बारी से प्रेमपूर्वक मिले। डौमनिक ने परिचय
बड़े मज़ाकिया ढंग से करवाया। एक बच्ची पालने में भी थी। डौमनिक ने उसे गोदी में उठाकर
सबकी तरफ घुमाया। फिर एक-एक कप चाय का पिया जो पहले से ही तैयार थी। पोलीन और सिमरन
अपनी बातें करने लगीं। बलदेव ने डौमनिक के घर की तारीफ़ की तो वह उसको अपना घर दिखाने
के लिए ले चला। बलदेव ने इतना बड़ा घर पहले नहीं देखा था। उसके अपने मन में भी ऐसे ही
घर को लेने का सपना जन्म लेने लगा। वह एक-एक वस्तु को बड़े ध्यान से देख रहा था। घर
का चक्कर लगाकर वे दोनों बार में आ बैठे। डौमनिक ने बरांडी के पैग बनाए। बाहर बारिश
थम गई थी। अपना पैग उठाकर बलदेव कहने लगा -
''डौमनिक, तेरा घर मुझे बेहद पसंद आया।''
''मैंने यह बहुत सोच-समझकर खरीदा था। फिर इसकी लगातार
देख-रेख की, इस पर और पैसे खर्च किए और यह कैसे हो सकता था कि इसमें कोई दूसरा आकर रहे।''
''अब तो तेरी पोलीन के साथ पूरी सुलह है ?''
''हाँ, अब सब ठीक है, पर मुझे बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ी। यह बच्ची उसी आदमी की है। बड़ी बात तो यह है
कि अब हम दोनों खुश हैं।''
''अब तू भी अच्छा बनकर रहना।''
''डेव, असल में गलती मेरी ही थी। मैंने काम की खातिर लंडन में फ्लैट ले लिया था और वहीं
रहने लग पड़ा था। और तू तो जानता ही है.... अब वो फ्लैट भी मैं बेच दूँगा।''
अपने पैग समाप्त करके वे दोनों बाहर गार्डन में आ गए। गार्डन बड़े पॉर्क जैसा था।
गार्डन के पिछवाड़े नहर बहती थी। नहर की छोटी-सी एक शाखा घरों के अंदर भी आती थी। डौमनिक
के गार्डन में भी नहर की एक ब्रांच आ रही थी और उसके ऊपर एक शैड डाला हुआ था। डौमनिक
ने जाकर शैड का दरवाज़ा खोला। अंदर चार सीटों वाली नाव छत से टंगी हुई थी। डौमनिक ने
बिजली का बटन दबाया। नाव धीरे-धीरे पानी में जाकर टिक गई। फिर उसने नहर की ओर खुलने
वाला गेट खोला। नाव को स्टार्ट करते हुए बोला -
''आ जा एक-एक गिलास पीकर आते हैं।''
''तुझे बोटों का कुछ ज्यादा ही शौक है। अर्ल्ज़ कोर्ट वाली भी ले आया।''
''यह तो तुझे बताया है न कि यह हमारी सुलह करवाने का साधन भी बनी है। मुझे बोट रखने
का बचपन से ही शौक है। मेरा बाप फिशरमैन हुआ करता था। मछली पकड़ने वाली कई नावें थीं
हमारे पास। अपने समय में मेरा बाप दूर-दूर तक मछली पकड़ने जाया करता था। कभी-कभी मैं
भी संग चला जाता।''
उसने बोट बढ़ा ली और नहर में ले आया। नहर के एक ओर पैदल चलने के लिए पटरी बनी हुई
थी और दूसरी तरफ सरकंडों की झाड़ियाँ थीं। कहीं तो नहर ज़मीन के बराबर ही बहती थी और
कहीं नीची हो जाती थी। डौमनिक अपनी ज़िन्दगी की कहानी बताता जा रहा था। बलदेव का ध्यान
आसपास देखने की ओर अधिक था। करीब दो मील पर जाकर एक वॉर्फ बना हुआ था। खुले मैदान जैसा
खुला तालाब। वॉर्फ के एक तरफ नावों की मरम्मत करने की गैरज़ थी और दूसरी तरफ एक बड़ा-सा
पब। कारों की भाँति नावें खड़ी थीं। हल्की हवा के कारण हल्का-हल्का झूलती नावें। डौमनिक
ने कहा -
''मौसम खराब है, नहीं तो ये सारा वॉर्फ भरा होता है। अगर मौसम ठीक होता तो हम भी अपनी बीवियों को
ले आते।''
''डौमनिक, वे घर पर ही ठीक हैं। बल्कि वे एक-दूसरे से खुल लेंगी।''
''पोलीन की मेरे मित्रों की पत्नियों के संग खूब बनती है। इसका स्वभाव इस बात से
बहुत बढ़िया है।''
फिर वह हँसते हुए कहने लगा -
''इसी स्वभाव ने ही तो इतनी मुसीबत खड़ी की थी। मैं बेघर हो चला था।''
''डौमनिक, हमारे यहाँ एक कहावत है कि तीवीं रख नीवीं यानि औरत को नीचे ही रखो। पर आजकल का
सच दूसरा है। आदमी नीचे, औरत ऊपर।''
वे दोनों हँसने लगे। पब में डौमनिक के कुछ अन्य मित्र भी थे। उसने डेव को उनसे
मिलवाया। बलदेव ने पूछा -
''क्लाइव और ईअन का क्या हाल है ?''
''ठीक हैं। मिलते रहते हैं। तुझे याद करते रहते हैं। किसी दिन वैसा प्रोग्राम फिर
बनाएंगे।''
''बना लो।''
बलदेव को क्लब वाली रात अभी भी नहीं भूली थी। उस रात को स्मरण करता वह मन ही मन
कहने लगता कि आदमी के अंदर कितने आदमी बैठे होते हैं। जैसे हालात हों, वैसा ही आदमी अंदर से निकल
आता है।
डौमनिक ने घड़ी देखी और बोला -
''चलते हैं, डिनर के लिए प्रतीक्षा हो रही होगी।''
डौमनिक नाव को वापस नहर में ले आया तो बारिश होने लगी। उसने नाव दौड़ा ली। बारिश
में नाव चलाना ख़तरनाक हो सकता था। आगे आए तो बारिश रुक गई, डौमनिक ने पूछा -
''लिज़ नहीं मिली कभी ?''
''एक दिन मिली थी, उसने जैसे पहचाना ही न हो।''
''शायद इसलिए कि वह अब बड़े लोगों में है। चैनल-4 के कई प्रोग्रामों की नंबरिंग में उसका नाम आने लग पड़ा
है।''
''तुझे मिली कभी ?''
''डेव, मुझे नहीं मिली। वैसे उसका बाप मेरा क्लाइंट है। मैंने कई बार शेयर खरीदकर दिए
हैं उसको।''
फिर डौमनिक उसको नहर के बारे में जानकारी देने लगा कि यह नहर बहुत पुरानी नहीं
थी। लंडन की नहरों की तरह यह आवाजाही के लिए नहीं निकाली गई। यह तो लोगों की एक शौकिया
नहर थी जो समुद्र से जुड़ी हुई थी। इस इलाके के बहुत सारे घरों के साथ यह लगती थी। यही
से लोग नावें लेकर समुद्र में उतर सकते थे।
वह घर पहुँच गए। नाव को वापस ऊपर उठाते हुए डौमनिक बोला-
''डेव, एक ही बीवी से काम चलाए जा रहा है कि है कोई और भी ?''
''मेरे पास सबकुछ अस्थायी-सा ही रहा है।'' कहकर बलदेव मैरी वाली कहानी सुनाने लगा।
घर पर पोलीन और सिमरन खाने के लिए उनकी प्रतीक्षा कर रही थीं। डौमनिक और बलदेव
ने दो-दो पैग और लिए। फिर सबके साथ मिलकर खाना खाया। खाने के बाद डौमनिक ने लिकर के
दो बड़े पैग बना लिए और बोला-
''डेव, तू और सिम भी कुछ शेयर खरीदो। किसी समय समय निकालकर बात करते हैं। मैं बताऊँगा
कि कौन-से खरीदने वाले हैं और कौन-से नहीं। मैं तुम्हें बहुत बढ़िया डील लेकर दूँगा।''
''ज़रूर लेंगे, बेशक थोड़े ही लें।''
कहकर बलदेव सिमरन की ओर देखने लगा। वह सोच रहा था कि शायद सिमरन ने पहले ही शेयर
खरीद रखे हों। डौमनिक ने फिर कहा -
''यह तेरा गैस का काम कैसा है ? तू खुश है ?''
''ठीक ही है। कुछ भारी है।''
''कुछ भारी! यह बहुत भारी है... तेरे जैसी कूवत के बंदे के योग्य नहीं यह काम। तुझे
कुछ और करना चाहिए। कुछ बड़ा। तू सोच कि क्या करना है। पैसे का इंतज़ाम मैं कर दूँगा।
मिलियन पौंड तक भी।''
''किस तरह का काम एडवाइज़ करेगा ?''
''कोई भी, पर रिटेल का नहीं, होल सेल का कर... सिम के साथ सलाह कर ले।''
''हम सोचते हैं, करेंगे कुछ न कुछ।''
उन्होंने खाना खत्म किया। चार बज गए थे। पोलीन बोली -
''कभी दिन बढ़िया होगा तो समुद्र की ओर चलेंगे।''
''हाँ, फिर प्रोग्राम बनाएँगे। अब तुम लोग हमारे घर आना।''
''ज़रूर आएँगे।'' पोलीन कह रही थी।
सिमरन उसके भोजन की प्रशंसा और धन्यवाद करती रही। डौमनिक बलदेव को घर का फ्रंट
गार्डन दिखाने लगा। फिर अपनी कारों के बारे में बताता रहा और फिर उन्होंने एक-दूजे
को अलविदा कहा और बलदेव अपने परिवार सहित कार में आ बैठा।
कार सिमरन चला रही थी। बलदेव कुछ नशे में था।
अनैबल और शूगर थक गई थीं। वे तो कार के हीटर के चलते ही सो गईं। बलदेव ने पूछा
-
''कैसा लगा चिज़नी परिवार ?''
''औरत थोड़ी भोली है, पर आदमी तेज़ है।''
''तू तो औरत की साइड ही लेगी।''
''नहीं, पोलीन सीधी बातें करती थी और डौमनिक अपना सौदा बेचने पर लगा हुआ था... वैसे डेव...
मैं तो इसे बिजनेस डिनर ही कहूँगी।''
''पर उसकी बातों में तो दम है।''
''ही इज़ राइट, पर यदि तुझे लोन चाहिए तो मेरा बैंक भी दे सकता है। सस्ता भी मिलेगा।''
''तू भी कहीं सौदा तो नहीं बेच रही ?''
''मुझे कुछ बेचना नहीं आता।''
सिमरन ने बलदेव की ओर देखते हुए कहा। बलदेव उसकी ओर देखने लगा और कितनी ही देर
देखता रहा। सिमरन ने कार रोक ली और बोली -
''क्या देख रहे हो ?''
''मैं देख रहा हूँ कि तेरी आँखों में क्या है ?''
सिमरन ने कार फिर चलानी आरंभ कर दी और शांत होकर चलाती रही। कुछ देर बाद बलदेव
ने पूछा -
''इतनी चुप होकर क्या सोच रही है ?''
''कि मैंने इतने दिनों से तेरी आँखों को पढ़ने की कोशिश क्यों नहीं की।''
(जारी…)
लेखक संपर्क :
67, हिल साइड रोड,
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दूरभाष : 020-85780393,
07782-265726(मोबाइल)
1 टिप्पणी:
पार्लियामेंट जबरदस्त है .....
बधाई अमृत जी को ....
अनुवाद के लिए आभार ....!!
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