रविवार, 2 दिसंबर 2012

गवाक्ष – दिसंबर 2012



जनवरी 2008 गवाक्ष ब्लॉग के माध्यम से हम हिन्दी ब्लॉग-प्रेमियों को विदेशों में रह रहे हिन्दी/पंजाबी के उन लेखकों/कवियों की समकालीन रचनाओं से रू--रू करवाने का प्रयास करते आ रहे हैं जो अपने वतन हिन्दुस्तान से कोसों दूर रहकर अपने समय और समाज के यथार्थ को अपनी रचनाओं में रेखांकित कर रहे हैं। गवाक्ष में अब तक विशाल (इटली), दिव्या माथुर (लंदन), अनिल जनविजय (मास्को), देवी नागरानी(यू.एस..), तेजेन्द्र शर्मा(लंदन), रचना श्रीवास्तव(लंदन), पूर्णिमा वर्मन(दुबई), इला प्रसाद(यू एस ए), भगत धवन (डेनमार्क), चाँद शुक्ला (डेनमार्क), वेद प्रकाश वटुक’(यू एस ए), रेखा मैत्र (यू एस ए), तनदीप तमन्ना (कनाडा), प्राण शर्मा (यू के), सुखिन्दर (कनाडा), सुरजीत(कनाडा), डॉ सुधा धींगरा(अमेरिका), मिन्नी ग्रेवाल(कनाडा), बलविंदर चहल (न्यूजीलैंड), बलबीर कौर संघेड़ा(कनाडा), शैल अग्रवाल (इंग्लैंड), श्रद्धा जैन (सिंगापुर), डा. सुखपाल(कनाडा), प्रेम मान(यू.एस..), (स्व.) इकबाल अर्पण, सुश्री मीना चोपड़ा (कनाडा), डा. हरदीप कौर संधु(आस्ट्रेलिया), डा. भावना कुँअर(आस्ट्रेलिया), अनुपमा पाठक (स्वीडन), शिवचरण जग्गी कुस्सा(लंदन), जसबीर माहल(कनाडा), मंजु मिश्रा (अमेरिका), सुखिंदर (कनाडा), देविंदर कौर (यू के), नीरू असीम(कैनेडा), इला प्रसाद(अमेरिका), डा. अनिल प्रभा कुमार(अमेरिका) और डॉ. शैलजा सक्सेना (टोरंटो,कैनेडा), समीर लाल (टोरंटो, कनाडा), डॉक्टर गौतम सचदेव (ब्रिटेन), विजया सती(हंगरी), अनीता कपूर (अमेरिका) और सोहन राही (ब्रिटेन) आदि की रचनाएं और पंजाबी कथाकार-उपन्यासकार हरजीत अटवाल के उपन्यास सवारी के हिंदी अनुवाद की बावनवीं किस्त आप पढ़ चुके हैं।

0

गवाक्ष के इस ताज़ा अंक में प्रस्तुत हैं नीदरलैंड से हिंदी की चर्चित कवयित्री प्रो.(डॉ) पुष्पिता अवस्थी की कुछ प्रेम कविताएँ और ब्रिटेन निवासी पंजाबी लेखक हरजीत अटवाल के धारावाहिक पंजाबी उपन्यास सवारी की बावनवीं किस्त का हिंदी अनुवाद

-सुभाष नीरव

नीदरलैंड से
प्रो.(डॉ) पुष्पिता अवस्थी की कुछ प्रेम कविताएँ


सिद्धी


प्रेम
आत्मा का राग है
प्रिय
साधता है उसे
देह के वाद्ययंत्र में
प्रणय-सिद्धियों के निमित्त।


ताप







धूप में
सूर्य
हममें।
 
प्रेम में
प्रिय।

तितलियाँ
भरती हैं रंग
आँखों में
और आँखें
प्रेम में।


दुर्गम देह











दैहिक महाद्वीपी दूरियों के बावजूद
हार्दिक लहरें
स्पर्श कर आती हैं चित्त-तट-बन्ध
और तब
मुक्त हो जाती है देह
देह सीमा के
दुर्गम बन्धनों से।



रुपान्तरण











शब्दों में लीन
ध्वनियाँ
अर्थ में विलीन हो जाती हैं
अर्द्धांगिनी की तरह
जैसे
मैं
तुममें।


राग-प्रार्थना


प्रेम
घुलता है
घोलता है।

द्रव्य की तरह
पिघलता है।
राग-प्रार्थना में
लिप्त हो जाती है आत्मा

मुंदी पलकों और मौन अधरों के भीतर है
प्रेम का ईश्वर
जुड़े हुए हाथों के भीतर
हाथ जोड़े है -
प्रेम

प्रेम में
बग़ैर संकेत के
देह से परे हो जाती है देह
अमूर्त देह में अनुभव होती है -
आत्मा की छुअन
अन्तत:
चेतना से सचेतन-संवाद।


परछाईं








सूर्य की
परछाईं में… सूर्य

प्रकाश के
बिम्ब में… प्रकाश

सूर्य निज-ताप से
बढ़ाता है -  आत्म-तृषा
और नहाते हुए नदी में
पीता है -  नदी को

नदी
समेट लेती है
अपने प्राण-भीतर
सूर्य को
और जीती है
प्रकाश की ईश्वरीय-देह

नदी
बहती हुई
समा जाती है समुद्र में
जैसे
मैं
तुममें
तुम्हारी होने के लिए।


 
प्रेमधुन











तुम्हारी ध्वनि में
सुनाई देती है
अपनी आत्मा की प्रतिध्वनि।

तुम्हारे शब्दों की बरसात में
भीगती है आत्मा।

आत्मा जनित
प्रेम में होती है
प्रेम की पवित्रता
और चिरन्तरता…
…बजती है प्रेमधुन
रामधुन सरीखी
लीन हो जाने के लिए।


प्रणय-संधान
प्रणय में
प्रिय को
वह पुकारती है
कभी सूर्य
कभी नक्षत्र
कभी अंतरिक्ष
कभी अग्नि
कभी मेघ

स्वयं को
वह मानती है
कभी पृथ्वी
कभी प्रकृति
कभी सुगन्ध
कभी स्वाद
कभी सृष्टि।

और
वह सोचती है
अनुभूति का रजकण ही
प्रणय है
आत्मा से प्रणय-संधान के लिए।


शब्द










खालीपन को
भरते हैं
तुम्हारे शब्द
जैसे
धरती को
पूरते हैं बीज।
0

पुष्पिता अवस्थी अध्यापक हैं, कवि हैं, संपादक, अनुवादक, कहानीकार, कुशल संगठनकर्ता और हिंदी की विश्वदूत हैं यानी बहुमुखी प्रतिभा की धनी पुष्पिता जी को किसी एक सीमा में रख पाना कठिन है। कानपुर, भारत में जन्मी पुष्पिता जी की पढ़ाई राजघाट, वाराणसी के प्रतिष्टित जे. कृष्णमूर्ति फाउंडेशन (बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से संबद्ध) में हुई, बाद में सन 1984 से 2001 तक ये जे. कृष्णमूर्ति फाउंडेशन के वसंत कॉलेज फ़ॉर विमैन के काशी हिंदू विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग की अध्यक्ष भी रहीं। भारतीय दूतावास एवं भारतीय सांस्कृतिक केन्द्र, पारामारियो, सूरीनाम में प्रथम सचिव एवं हिंदी प्रोफ़ेसर के रूप में सन् 2001 से 2005 तक कार्य किया। सन् 2003 में सूरीनाम में सातवाँ विश्व हिंदी सम्मेलन इन्हीं के कुशल संयोजन में संपन्न हुआ। सन् 2006 से नीदरलैंड स्थित हिंदी यूनिवर्स फाउंडेशन की निदेशक हैं। सामाजिक सरोकारों से गहराई से जुड़ी पुष्पिता जी बचपन बचाओ आंदोलन और स्त्री अधिकारों के लिए संघर्षरत समूहों से सक्रियता से संबद्ध रही हैं। अपने सूरीनाम प्रवास के दौरान पुष्पिता जी ने अथक प्रयास से एक हिंदीप्रेमी समुदाय संगठित किया जिसकी परिणति उनके द्वारा अनूदित और संपादित समकालीन सूरीनामी लेखन के दो संग्रहों कविता सूरीनामऔर कहानी सूरीनाम(दोनों पुस्तकें राजकमल प्रकाशन से वर्ष 2003 में प्रकाशित) में हुई। वर्ष 2003 में ही राजकमल प्रकाशन से मोनोग्राफ़ सूरीनाम भी प्रकाशित हुआ। इनके कविता संग्रहों शब्द बनकर रहती हैं ॠतुएँ(कथारूप 1997), अक्षत (राधाकृष्ण प्रकाशन,2002), ईश्वराशीष(राधाकृष्ण प्रकाशन,2005) और हृदय की हथेली(राधाकृष्ण प्रकाशन 2009) तथा कहानी संग्रह गोखरू(राजकमल प्रकाशन,2002) को साहित्य प्रेमियों द्वारा खूब सराहना मिली। वर्ष 2005 में राधाकृष्ण प्रकाशन से आधुनिक हिंदी काव्यालोचना के सौ वर्ष एक आलोचनात्मक पुस्तक आई। हिंदी और संस्कृत के विद्वान पंडित विद्यानिवास मिश्र से संवाद सांस्कृतिक आलोक से संवाद वर्ष 2006 में भारतीय ज्ञानपीठ से प्रकाशित हुआ।  वर्ष 2009 में मेधा बुक्स से अंतर्ध्वनि काव्य-संग्रह और अंग्रेजी अनुवाद सहित रे माधव प्रकाशन से देववृक्ष का प्रकाशन हुआ। साहित्य अकादमी, दिल्ली से सूरीनाम का सृजनात्मक हिंदी साहित्य-2010 और नेशनल बुक ट्रस्ट से सूरीनाम वर्ष 2010 में प्रकाशित हुआ। इंडियन इंस्टिट्यूट, एम्सटर्डम ने डिक प्लक्कर और लोडविक ब्रण्ट द्बारा डच में किए इनकी कविताओं के अनुवाद का एक संग्रह 2008 में छापा है। नीदरलैंड के अमृत प्रकाशन से डच अंग्रेजी और हिंदी भाषाओं में 2010 में शैल प्रतिमाओं से शीर्षक से काव्य-संकलन प्रकाशित हुआ।


सम्पर्क :
Postbus 1080
1810 KB Alkmaar
Netherlands
Telephone: 0031 72 540 2005
Mobile: 0031 6 30 41 07 58
Fax: 0031 72 512 70 55

  

9 टिप्‍पणियां:

कुसुम ने कहा…

पुष्पिता जी की प्रेम कविताएँ अद्भुत लगीं। साहित्य में प्रेम अभी ज़िन्दा है, यह जानकर मन को सुकून मिलता है।

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

मुंदी पलकों और मौन अधरों के भीतर है
प्रेम का ईश्वर
जुड़े हुए हाथों के भीतर
हाथ जोड़े है -
प्रेम

प्रेम को शाश्वत रूप देती कवितायें ...

पुष्पिता जी को बधाई ...!!

Raju Patel ने कहा…

पुष्पिता जी की रचनाएँ बेहद सुंदर है......सभी...परन्तु क्या एक साथ इतनी रचना का कोई लाभ उठा सकता है...? जब हर रचना इतनी खूबसूरत हो तो उसे रफ्ता रफ्ता प्रकाशित करना चाहिए ऐसा मुझे लगता है.आभार पुष्पिता जी, आभार सुभाष जी-

भारतेंदु मिश्र ने कहा…

पुष्पिता जी की कविताए सचमुच हृदयस्पर्शी हैं।स्त्री विमर्श और भारतीय संस्कृति की छाप इन कविताओ मे एक साथ अभिव्यक्त होती है। बधाई।

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

सभी रचनाएँ गहनता लिए हुये ...

Sunita Sharma Khatri ने कहा…

प्रेम की इतनी सुन्दर अभिव्यक्ति साहित्यकार ही कर सकते ह वरना तो वर्तमान इसका स्वरूप बिगडता ही जा रहा हैं।
बहुत प्यारी कविताए है।

Sushil Kumar ने कहा…

प्रो (डॉ) पुष्पिता अवस्थी की प्रेम कविताओं में देह की परिणति आत्मवाद में होती है जो प्रेम-तत्व को उसके उत्कर्ष पर ले जाता है , यह सफल प्रेम-कविताओं का उदाहरण है वरना आजकल देहवाद और यौन-उत्प्रेरणा मात्र को लोग प्रेम कविता कह बैठते हैं |डॉ अवस्थी को उत्तम कोटि की कविता के लिए बधाई |

ओम निश्‍चल ने कहा…

पुष्‍पिता की कुछ कविताऍं पढ़ीं। यों उनका अब तक का लगभग समस्‍त सृजन आंखों से हो कर गुजरा है। हिंदी कविता में प्रेम की ऐसी समुज्‍ज्‍वल अभिव्‍यक्‍ति कम मिलती है। देह तथा तज्‍जन्‍य बिम्‍बों की समानता और पुनरावृत्‍ति जैसा अहसास उनकी कविताओं मे बहुधा दीखता है पर जिसने उनकी 'शब्‍द बन कर रहती हैं ऋतुऐ,अक्षत, अंतर्ध्‍वनि, हृदय की हथेली पढ़ा है और शैल प्रतिमाओं से शीर्षक संग्रह पढे हैं वे पाऍंगे कि वस्‍तुत: पुष्‍पिता प्रेम की ही कवयित्री है। ईश्‍वराशीष आदि में वैश्‍विक संदर्भ की अनेंक कविताऍं हैं पर उनमें उनका काव्‍यबोध थोड़ा क्षीणबल दिखता है। यों विश्‍व के अनेक देशों, द्वीपों रम्‍य जगहों पर आवाजाही करने वाली पुष्‍पिता की यह कविता यात्रा बनारस से शुरु हुई थी, जहॉ धर्म और अध्‍यात्‍म के तुमुलनाद के बीच उन्‍होंने प्रेम के अनन्‍य रस का अवगाहन किया है। प्रेम की यह पूँजी लेकर ही सूरीनाम और अब नीदरलैंड की धरती पर पहुँची हैं और अपने भीतर भारतीय स्‍त्री का अगाध वैभव समेटे हुए हैं।

ashok andrey ने कहा…

pushpita jee kii prem sambhandhii kavitaon ne bahut gehre aakarshit kiya hai,itni sundar kavitaon ke liye unhen badhai.