शनिवार, 11 मई 2013

गवाक्ष – मई 2013



जनवरी 2008 गवाक्ष ब्लॉग के माध्यम से हम हिन्दी ब्लॉग-प्रेमियों को विदेशों में रह रहे हिन्दी/पंजाबी के उन लेखकों/कवियों की समकालीन रचनाओं से रू--रू करवाने का प्रयास करते आ रहे हैं जो अपने वतन हिन्दुस्तान से कोसों दूर रहकर अपने समय और समाज के यथार्थ को अपनी रचनाओं में रेखांकित कर रहे हैं। गवाक्ष में अब तक विशाल (इटली), दिव्या माथुर (लंदन), अनिल जनविजय (मास्को), देवी नागरानी(यू.एस..), तेजेन्द्र शर्मा(लंदन), रचना श्रीवास्तव(लंदन), पूर्णिमा वर्मन(दुबई), इला प्रसाद(यू एस ए), भगत धवन (डेनमार्क), चाँद शुक्ला (डेनमार्क), वेद प्रकाश वटुक’(यू एस ए), रेखा मैत्र (यू एस ए), तनदीप तमन्ना (कनाडा), प्राण शर्मा (यू के), सुखिन्दर (कनाडा), सुरजीत(कनाडा), डॉ सुधा धींगरा(अमेरिका), मिन्नी ग्रेवाल(कनाडा), बलविंदर चहल (न्यूजीलैंड), बलबीर कौर संघेड़ा(कनाडा), शैल अग्रवाल (इंग्लैंड), श्रद्धा जैन (सिंगापुर), डा. सुखपाल(कनाडा), प्रेम मान(यू.एस..), (स्व.) इकबाल अर्पण, सुश्री मीना चोपड़ा (कनाडा), डा. हरदीप कौर संधु(आस्ट्रेलिया), डा. भावना कुँअर(आस्ट्रेलिया), अनुपमा पाठक (स्वीडन), शिवचरण जग्गी कुस्सा(लंदन), जसबीर माहल(कनाडा), मंजु मिश्रा (अमेरिका), सुखिंदर (कनाडा), देविंदर कौर (यू के), नीरू असीम(कैनेडा), इला प्रसाद(अमेरिका), डा. अनिल प्रभा कुमार(अमेरिका) और डॉ. शैलजा सक्सेना (टोरंटो,कैनेडा), समीर लाल (टोरंटो, कनाडा), डॉक्टर गौतम सचदेव (ब्रिटेन), विजया सती(हंगरी), अनीता कपूर (अमेरिका), सोहन राही (ब्रिटेन), प्रो.(डॉ) पुष्पिता अवस्थी(नीदरलैंड) अमृत दीवाना(कैनेडा) और परमिंदर सोढ़ी (जापान) आदि की रचनाएं और पंजाबी कथाकार-उपन्यासकार हरजीत अटवाल के उपन्यास सवारी के हिंदी अनुवाद की 57वी किस्त आप पढ़ चुके हैं।
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गवाक्ष के इस ताज़ा अंक में प्रस्तुत हैं यू.के. से हिंदी के प्रख्यात कवि-शायर प्राण शर्मा की ग़ज़लें और ब्रिटेन निवासी पंजाबी लेखक हरजीत अटवाल के धारावाहिक पंजाबी उपन्यास सवारी की 58वीं किस्त का हिंदी अनुवाद
-सुभाष नीरव

यू.के. से
प्राण शर्मा की ग़ज़लें

प्यार की बातें कभी मनुहार की बातें 
कितनी अच्छी लगती हैं दिलदार की बातें 

एक ये भी नुस्खा है तीमारदारी का 
ठण्डे  मन से सुनियेगा बीमार की बातें 

करते हो हर बात मतलब की हमेशा तुम 
जैसे व्यापारी करे व्यापार की बातें 

हाँ में हाँ प्यारे कभी कुछ तो मिलाया कर 
दिल दुखाती हैं सदा इनकार की बातें 

औरों की सुनिए भले ही शौक़  से लेकिन 
पहले सुनिए अपने ही परिवार की बातें 

काम की कुछ बातें हो आपस में यारो 
सर दुखाने लगती हैं बेकार की बातें 

`प्राण अपनों से कोई हक़ क्या कोई मांगे 
लगती हैं सबको बुरी हक़दार की बातें 
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क्यों घोलें कानों में रस मदभरी पुरवाइयाँ 
बज रही हैं घर सजन के शाम से शहनाइयाँ 

छू नहीं पाया अभी  आकाश की ऊँचाइयाँ 
खाक छूएगा कोई पाताल की गहराइयाँ 

इतना भी नादां किसीको समझिये मत साहिबो 
हर किसीमें होती हैं थोड़ी-बहुत चतुराइयां 

इनसे करके देखिएगा प्यार की बातें कभी 
आपको अच्छी लगेंगी आपकी तन्हाइयाँ 

हर घड़ी आँखें बिछाने वाले सब की राहों में 
क्यों भाएँगी सभी को आपकी पहुनइयां 

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 जग के दुःख में डूबे कितने इंसानों को देखा है 
मैंने जाने ऐसे कितने भगवानों को देखा है 

भीड़ भरे बाज़ारों में भी बंद पडी हैं  सालों से 
मैंने जाने ऐसी कितनी दूकानों को देखा है 

मुझको भटकाया है जिनने बस्ती-बस्ती,वन-वन में 
जीवन भर में मैंने ऐसे अरमानों को देखा है 

तुमने देखे हैं मुस्काती आँखों में आंसू लेकिन 
मैंने रोती हुई आँखों में मुस्कानों को देखा है 

जीवन सागर के जैसा है , इस सागर में प्यारे 
आते - जाते मैंने कितने तूफानों को देखा है 

अपनों को बेगाने बनते तुमने देखे हैं माना 
मैंने लेकिन अपने बनते बेगानों को देखा है 

`प्राण भले ही उगली उठाओ तुम उन पर लेकिन मैंने 
काम समझदारी से करते नादानों को देखा है 

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काश, नफ़रत की जमी काई हमेशा को धुले 
घुल  सके तो ज़िन्दगी में प्यार का अमृत घुले 

क्यों हो उस पर किसीका हाथ मेरे दोस्तो 
कोई  लावारिस सा बच्चा क्यों मुहल्लों में रुले 

कुछ की ख़ातिर ही खुला तो क्या खुला दोस्तो 
द्वार मंदिर का सभी के वास्ते क्यों खुले 

माना , पल में बनते हैं और मिटते हैं पल में मगर 
पानी ही बनते हैं आखिर पानी के सब बुलबुले 

पहले ही कुछ बढ़ रहे हैं आपसी झगड़े - तनाव 
कोई मरने-मारने पर दोस्तो क्योंकर तुले 

हर समस्या का कोई  कोई हल है दोस्तो
गाँठ हाथों से  खुल पाए तो दाँतों से खुले  
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जन्म - 1 3 . 6 . 1 9 3 7
स्थान - वजीराबाद ( अब पकिस्तान में )
शिक्षा - एम .ए ` ( हिंदी )
लब्ध प्रतिष्ठ , वरिष्ठ साहित्यकार प्राण शर्मा 1 9 6 6 से यू .के में निवास कर रहे हैं. आप बहुआयामी व्यक्तित्व के स्वामी हैं . आज इस उम्र में भी मिडलैंड के एक शहर कोवेंट्री में बैठे निरंतर विभिन्न विधाओं में समय की आवाज़ और उसकी धड़कन  को कलम से कागज़ पर ईमानदारी से बेलौस उतार रहे हैं. इसके अलावा प्राण शर्मा की कहानियाँ , लघु कथाएं, गज़लें आदि  `पुरवाई ` में ही नहीं विभिन्न वेब मैगजीन और प्रिंट मीडिया में प्रकाशित होती रहती हैं. `उर्दू  ग़ज़ल बनाम हिंदी ग़ज़ल ` उनके निबन्ध को खूब ख्याति मिली है .

प्राण शर्मा की प्रकाशित पुस्तकें हैं - ग़ज़ल कहता हूँ ( ग़ज़ल संग्रह ) , सुराही 
( मुक्तक संग्रह ) और पराया देश ( कहानी और लघु कथा संग्रह) .

सम्मान - 1 9 6 1 में भाषा विभाग , पटियाला द्वारा आयोजित निबन्ध 
प्रतयोगिता में द्वितीय पुरस्कार . 1 9 8 2 में कादम्बिनी द्वारा आयोजित 
अंतर्राष्ट्रीय कहानी प्रतयोगिता में सांत्वना पुरस्कार . 1 9 8 6 में मिडलैंड 
आर्ट्स लेस्टर , यू .के द्वारा आयोजित कहानी प्रतियोगिता में प्रथम 
पुरस्कार . 2 oo 6 में यू .के हिंदी समिति और 2 0 1 1 में भारतीय उच्चायोग 
द्वारा साहित्य सेवा सम्मान .   
सम्पर्क : 3 , CRAKSTON CLOSE , COVENTRY CV 2 5 EB  U . K 
 PH.NO . 0 2 4 7 6 4 5 7 4 4 6 




सवारी
हरजीत अटवाल
हिंदी अनुवाद : सुभाष नीरव

।। तिरसठ ।।
सात बजे लौटकर दुकान खोलनी थी। अजमेर ने शराब ज़रा अधिक पी ली थी। उसके लिए दुकान में खड़ा होना कठिन था। उसको पता था कि शिन्दा नहीं लौटेगा। पहले जब गया था तो वह चौथे दिन लौटा था। अब तो वह पहले से अधिक गुस्से में गया था। उसने और गुरिंदर ने दुकान का काम जैसे-तैसे चलाया। अजमेर सोच रहा था कि कहाँ जाता है वह। कौन-सा ऐसा खै़र-ख्वाह था जिसके बारे में उन्हें नहीं पता था। उसने सतनाम को फोन करके सारी बात बताई। वह बोला-
      भाई, फिक्र न कर। खुद ही दो दिन घूम-घामकर आ जाएगा। उसने तो अब यह रोज़ का काम बना लिया। आदत ही बन गई।
      पर अजमेर को चैन नहीं था। उसको रात को भी चैन नहीं पड़ा। सवेरे दुकान खोलने से पहले ही वह सतनाम की दुकान पर चला गया। उसको लग रहा था कि सतनाम को उसके चले जाने की इतनी फिक्र नहीं थी। सतनाम ने उसको देखते ही कहा-
      भाई, उसके साथ बैठकर एक बार बात कर लो कि वह चाहता क्या है। अगर तुम्हारे यहाँ काम नहीं करना तो इधर कर ले।
      उसकी प्रॉब्लम यह नहीं। उसकी प्रॉब्लम यह है कि बीवी के खिलाफ़ कुछ सुनने के लिए तैयार नहीं। बात कहने वाले को झूठा बनाकर रख देता है।
      उसको बिठाओ और बात करो, नहीं तो वापस भेज दो।
      मिले तो सही, तभी कुछ करेंगे।
      सतनाम ने टाइम देखते हुए कहा-
      जुआइस का टाइम हो गया आने का, पर आई नहीं अभी तक।
      कहीं उसके यहाँ ही न हो ?“
      वहीं होगा, उस दिन भी वहीं था। जुआइस साली मुकर गई थी। वैसे एक बात है, अगर जुआइस के हुआ तो सेफ है, धीरे धीरे ले आएंगे।
      धीरे धीरे क्या, अभी चलते हैं। किसी को पता चल गया कि काली के घर जा बैठा है तो लोग क्या कहेंगे, वचित्तर सिंह इंडिया पहुँचते ही डोंडी पीट देगा।
      वे दोनों एक बार फिर जुआइस के घर आ गए। सतनाम ने घंटी बजाई। अंदर से कुत्ते के भौंकने की आवाज़ आई। जुआइस ने दरवाज़ा खोला और बोली -
      हैलो सैम, कैसा है तू ?“
      यहाँ शैनी भी आया है ?“
      सतनाम ने सीधे ही सवाल कर दिया। जुआइस ने कहा -
      हाँ आया है।
      मैं उसको लेने आया हूँ।कहता हुआ सतनाम अंदर जाने लगा, पर जुआइस ने उसको वहीं रोक दिया और कहा -
      वो तुमसे नहीं मिलना चाहता।
      क्यों ? वो हमारा भाई है।
      तुम उसके भाई हो ? तुम्हारे जैसे भाई होते हैं ! तुम भाई नहीं शैतान हो। तुम उसके साथ जानवरों जैसा व्यवहार करते हो। बहुत ज्यादतियाँ करते हो। वो तुम्हारे साथ नहीं जाएगा।
      जुआइस, तू हद से आगे बढ़कर बात न कर, हमारा भाई है, तू कौन है ?“
      कहकर सतनाम ने जबरन अंदर जाने की कोशिश की। जुआइस ने उसको धकेलते हुए कहा-
      सैम, ख़बरदार, यह तेरी दुकान नहीं है जहाँ तेरा हुक्म चलता है। यह मेरा घर है। यहाँ मेरी मर्जी से सबकुछ होता है। अगर तुम खै़र चाहते हो तो चुपचाप चले जाओ।
      सतनाम झेंप गया। एक कदम पीछे हटता हुआ बोला -
      तू कब तक रखेगी उसको ?“
      सारी उम्र। सुना ! सारी उम्र, मैं तुम लोगों का रवैया बहुत दिनों से देख रही थी, मैं चुप रही, पर अब नहीं रह सकती।
      जुआइस पूरे गुस्से में थी। सतनाम ने उसका यह रूप पहले कभी नहीं देखा था। उसने अजमेर को इशारा किया और दोनों लौट पड़े। अजमेर कहने लगा -
      इसकी तो भाई आँख ही बदल गई। मानो इसे शिन्दा नहीं कोई सोने की खान मिल गई हो।
      ये निकाल ले शिन्दे में से जो निकालना है। साला निकम्मा बंदा है। शराब के बग़ैर दो कदम नहीं चल सकता। यह साली मुफ्त में ही आँखें दिखाती फिरती है।
      अब क्या करना है ?“
      बात ठंडी हो जाए ज़रा, फिर आ जाएँगे।
      नहीं यार, फिर की बात फिर रह गई, तू ऐसा कर, थोड़ा ठहरकर अकेला ही आकर देखना। जुआइस मेरी ओर बहुत ही कड़वी नज़र से देखती थी। पता नहीं क्या एलर्जी हो। तू शिन्दे को समझाना।
      अजमेर का दुकान खोलने का समय हो रहा था। वह चला गया। करीब दो घंटे बाद फिर लौट आया। उसने टोनी को काम पर बुला लिया था और गुरिंदर को टोनी के साथ खड़ी कर आया था। उसको चैन नहीं पड़ रहा था। वह आते ही कहने लगा -
      इस काली के पास रंग-बिरंगे लोग आते होंगे। कहीं शिन्दे को आगे-पीछे ही न कर दे। इसलिए वहाँ जाकर आ।
      सतनाम गया और खाली हाथ लौट आया। जुआइस पहले की भाँति ही पेश आई उसके साथ। अजमेर जलाभुना बैठा था। वह सतनाम से कहने लगा -
      अभी तो तू इसे यहाँ पक्का कराने की बात कहता था। जो बंदा कच्चा होकर ही इतना कुछ कर रहा है, पक्का होकर क्या करेगा, अंदाजा लगा ले।
      उन्हें यह मसला बहुत गंभीर लग रहा था। दोनों ही सोच में पड़ गए। सतनाम कहने लगा -
      अंत में इसका फिल्मी एंड ही करना पड़ेगा।
      वो कौन-सा ?“
      जब हीरो की पिटाई हो रही होती है तो हीरोइन ही आकर हैल्प किया करती है। इसलिए औरतों की हैल्प लेनी पड़ेगी।
      जो आदमी हमारी नहीं मान रहा, वो औरतों की क्या मानेगा।
      यहाँ फिर फिल्मी फार्मूला लागू होता है।
      कौन-सा ?“
      जिसे कहते हैं - इमोशनल ब्लैकमेल। औरतों को बच्चों सहित भेजते हैं। यह साला गब्बर सिंह सूरमा भोपाली न बन गया तो कहना।
      अजमेर को लगा कि सतनाम की बात में दम था। सतनाम फिर कहने लगा -
      भाई तू जाकर जट्टी को तैयार कर और मैं आज रात को इधर अपनी को किसी सुंदर औरत से जोड़ते हुए फूक देता हूँ, ये भी तो नखरे करेंगी न।
      यह तो है ... पहले तो इनको मनाना पड़ेगा। चल, तू मासी मनजीत को लेकर आ जा, सलाह करते हैं क्या करना है।
      ठीक है, और फिर आज का दिन रखकर जुआइस का चाव भी कम हो जाएगा।
      सतनाम और मनजीत हाईबरी पहुँच गए। दुकान में खड़े-खड़े ही सलाह-मशवरा होने लगा। गुरिंदर अजमेर से बोली -
      एक तो तुम भी कहते समय आगा-पीछा नहीं देखते, पहले ऐसे ही बलदेव को...।
      तू अब यहाँ उसका रोना न रो। यह सोचो कि अब क्या करना है।अजमेर बोला।
      मनजीत बोली-
      सबसे पहले तो यह कि वह चाहता क्या है ? बात हुई क्या थी ?“
      वह चाहता यह है कि हम उसको गलत बात पर न रोकें।
      अजमेर की बात पर गुरिंदर ने कहा -
      नहीं, यह बात नहीं। वो कहता था कि मेरी औरत को लेकर गलत न बोलो।
      जट्टिये ! जब वो है ही गलत तो कैसे न कहें।
      जब यह कहता है कि कुछ न कहो, तो न कहो। तुम्हें क्या। दूसरी बात जो मैं घर में देखती आ रही हूँ, वो यह है कि शराब उस पर थोड़ी उंडेला करो। तुम तो उसकी गलती निकालकर बातें किए ही चले जाते हो, एक बार शुरू क्या होते हो, फिर हटते ही नहीं। बंदा एक बार कह ले, बस।
      जट्टिये ! भाई को इस बात से न रोक। अगर उसका नंबर लगना हट गया तो तेरा शुरू हो जाएगा।सतनाम यह बात करने से अपने को रोक न सका।
      उसकी बात पर सभी हँस पड़े। मनजीत कहने लगी -
      मैं जो देख-सुन रही हूँ, उस हिसाब से मैं तो कहूँगी कि तुम दोनों भाई आधी अधीर तनख्वाह दो और आधा-आधा काम कराओ। जो उसे अपने पास रखेगा, वो उससे एक दिन ज्यादा काम करवा ले, पर फेयर होकर फैसला करो।
      इतना कहने की देर थी कि सतनाम में और अजमेर में लेन-देन शुरू होने लग पड़ा कि दोनों उससे कब और कितने घंटे काम लेंगे। सतनाम को उसकी ज़रूरत सुबह को थी, इसलिए सुबह से तीन बजे तक काम उसके साथ और बाकी का दिन अजमेर के साथ। दो दिन सवेर को शॉपिंग अजमेर के साथ करवा देगा और फिर इतवार का दिन भी अजमेर के साथ ही। दोनों पचास-पचास पौंड दिया करेंगे। दोनों ही उसको शराब पीने देंगे। शराब से रोकने का अर्थ, उसको चोरी के लिए प्रेरित करना होगा।
      जब सतनाम और अजमेर शिन्दे के समय का बंटवारा कर रहे थे तो गुरिंदर ने कहना शुरू किया -
      एक बात मैं भी करना चाहती हूँ कि घर में एटमॉसफियर बढ़िया बनाकर रखा करो, कम से कम हफ्ते में एक दिन एकसाथ मिलकर बैठा करो सभी भाई... बलदेव सहित।
      जट्टिये ! जैसे कम्पास साला नॉर्थ की तरह रहता है, तू भी उधर को ही रहती है। हम कब नहीं बुलाते उसको। वही मरखने बैल की तरह पीठ पर हाथ नहीं रखने देता। साला राज कुमार की तरह बुरे आदमी का किरदार नहीं निभाना चाहता।
      इसको बलदेव की कम और मेरे पर तीर चलाने की ज्यादा पड़ी रहती है।अजमेर ने अपनी भड़ास निकाली।
      चलो भाई, यह मसला बाद का है। पहले यहाँ सीता और गीता एक्शन पर निकलें, कामयाबी प्राप्त करें, बाकी बातें फिर करेंगे।
      अगले दिन मनजीत ने स्कूल से बच्चे लिए और फिर हाईबरी से होकर नोइल रोड पर आ गई। कल रात ही सतनाम ने उसको जुआइस का घर दिखला दिया था। वे दोनों कार में से उतरीं। मनजीत के दोनों बच्चे भी साथ ही थे। जो बातें उन्होंने करनी थीं, वे पहले ही तय कर ली थीं। मनजीत ने घंटी बजाई। अंदर से कुत्ता भौंका तो बच्चे डरकर माँ के साथ लग गए। जुआइस ने दरवाज़ा खोला। मनजीत बोली -
      हैलो, हम शैनी को लेने आई हैं।
      कौन हो तुम ?“
      हम उसकी सिस्टर-इन-लोज़ हैं।
      ओह ! उसके भाइयों की बीवियाँ ! वे फेल हो गए तो तुम आ गई। तुम तो औरतें हों, तुमको तो इन्सान का दर्द ज्यादा महसूस होना चाहिए। तुम्हें पता नहीं था कि तुम्हारे पति इसके साथ क्या बर्ताव करते रहे हैं ?“
      जुआइस, हमें कहाँ पता था। हम भाइयों की बातों में दख़ल नहीं देना चाहती थीं, पर अब इसकी हम खुद देखभाल करेंगी।
      तुम जाओ, वह तुम्हारे साथ बिल्कुल नहीं जाएगा, वह मेरे पास रहेगा।
      जुआइस ने सख़्त शब्दों में कहा। तब तक शिन्दा भी अंदर से उठकर वहाँ आ गया। वह उनकी बातें सुन रहा था। वह बोला-
      तुम क्यों आईं ? चलो चलें।
(जारी…)

लेखक संपर्क :
67, हिल साइड रोड,
साउथाल, मिडिलसेक्स, इंग्लैंड
दूरभाष : 020-85780393,07782-265726(मोबाइल)

11 टिप्‍पणियां:

रूपसिंह चन्देल ने कहा…

यार नीरव,

प्राण जी तो गज़लों के शाहंशाह हैं. सभी गज़लें मन को छूती हैं. वास्तविकता प्राण जी की गज़लों की खासियत है. उन्हें और तुम्हे बधाई.

एक उपन्यासकार के रूप में हरजीत ने पंजाबी साहित्य में महत्वपूर्ण मकाम कायम कर लिया है. उनका हर उपन्यास उल्लेखनीय है---उस कड़ी में यह उपन्यास भी.

उन्हें मेरी हार्दिक बधाई.

रूपसिंह चन्देल

Udan Tashtari ने कहा…

एक ये भी नुस्खा है तीमारदारी का
ठण्डे मन से सुनियेगा बीमार की बातें


इतना भी नादां किसीको समझिये मत साहिबो
हर किसीमें होती हैं थोड़ी-बहुत चतुराइयां


भीड़ भरे बाज़ारों में भी बंद पडी हैं सालों से
मैंने जाने ऐसी कितनी दूकानों को देखा है


माना , पल में बनते हैं और मिटते हैं पल में मगर
पानी ही बनते हैं आखिर पानी के सब बुलबुले


- मन छूती हुई -बहुत खूब सुंदर प्रस्तुति!!

डॉ. जेन्नी शबनम ने कहा…

प्राण शर्मा जी को पढना बहुत अनूठा अनुभव है. प्राण शर्मा जी की ये गजलें जैसे दुनियादारी सिखाती हैं, और गहरी बातें यूँ सहजता से सामने आती है जैसे हम से ही हमारे लिए कही गई हों. साक्षी भाव भी और आशावादिता भी...

एक ये भी नुस्खा है तीमारदारी का
ठण्डे मन से सुनियेगा बीमार की बातें

अपनों को बेगाने बनते तुमने देखे हैं माना
मैंने लेकिन अपने बनते बेगानों को देखा है

हर समस्या का कोई न कोई हल है दोस्तो
गाँठ हाथों से न खुल पाए तो दाँतों से खुले

प्राण शर्मा जी को बहुत बहुत बधाई. इनकी ग़ज़लों को हम सभी से साझा करने के लिए सुभाष जी का धन्यवाद.

vijay kumar sappatti ने कहा…

आदरणीय प्राण जी
नमस्कार ;

आपको पढ़कर कभी रो देता हूँ , कभी मुस्करा देता हूँ . कभी चुप हो जाता हूँ , मुझे अक्सर लगता है की काश मैं आपकी तरह लिख पाता , कितने कम शब्दों में आप कितना ज्यादा कह देते है . वैसे तो आपकी गजले ही श्रेष्ठ है , पर मेरे मनपसंद शेरो में ये कुछ शेर है :

इनसे करके देखिएगा प्यार की बातें कभी
आपको अच्छी लगेंगी आपकी तन्हाइयाँ

--- मैं भी अक्सर अपनी तन्हाईयों से बाते कर लेता हूँ . और वही से बहुत कुछ सम्जः में भी आ जाता है .

औरों की सुनिए भले ही शौक़ से लेकिन
पहले सुनिए अपने ही परिवार की बातें

------- ये एक बहुत बड़ी बात कह गए आप .. हम सब बाहरवालों को सुनने में मगरूर रहते है लेकिन अपने घर की ही नहीं सुन पाते है . बहुत सच्ची बात .

अपनों को बेगाने बनते तुमने देखे हैं माना
मैंने लेकिन अपने बनते बेगानों को देखा है

----इस फानी दुनिया में अक्सर ऐसा भी होता है की कुछ बेगाने ही अपने बन जाते है ..

काश, नफ़रत की जमी काई हमेशा को धुले
घुल सके तो ज़िन्दगी में प्यार का अमृत घुले

-- काश हर कोई इस बात को समझे तो दुनिया में बन जाए .

क्यों न हो उस पर किसीका हाथ मेरे दोस्तो
कोई लावारिस सा बच्चा क्यों मुहल्लों में रुले

-- इस शेर ने रुला दिया ...

आप कमाल का लिखते है प्राण जी , सच्ची , मेरा सलाम कबुल करे.

आपका ही
विजय

दिगम्बर नासवा ने कहा…

एक ये भी नुस्खा है तीमारदारी का
ठण्डे मन से सुनियेगा बीमार की बातें ...

कितना सहज कह दिया मन के भावों को ... शायद ये खूबी प्राण साहब की हर गज़ल की खासियत है ... मज़ा आ गया सबी गज़लों को पढ़ने के बाद ...
हरजीत साहब के उपन्यास की ये कड़ी भी बहुत प्रभावी है ... गज़ब की शैली है उनकी ...

vandana gupta ने कहा…

छू नहीं पाया अभी आकाश की ऊँचाइयाँ
खाक छूएगा कोई पाताल की गहराइयाँ

इतना भी नादां किसीको समझिये मत साहिबो
हर किसीमें होती हैं थोड़ी-बहुत चतुराइयां

हर समस्या का कोई न कोई हल है दोस्तो
गाँठ हाथों से न खुल पाए तो दाँतों से खुले

तुमने देखे हैं मुस्काती आँखों में आंसू लेकिन
मैंने रोती हुई आँखों में मुस्कानों को देखा है

ज़िन्दगी की हर छोटी बडी बात को सरलता और सहजता से कहने का हुनर तो सिर्फ़ प्राण जी में ही है …………उनके शेर रूह में उतरते हैं और प्राणों में उल्लास का संचार करते हैं।

girish pankaj ने कहा…

एक ये भी नुस्खा है तीमारदारी का
ठण्डे मन से सुनियेगा बीमार की बातें
----

काश, नफ़रत की जमी काई हमेशा को धुले
घुल सके तो ज़िन्दगी में प्यार का अमृत घुले

प्राण साहब की ग़ज़ले पढ़ कर हर बार कुछ-न-कुछ नया सीखने को मिलता है. ये चारों ग़ज़ले भी अमरता से ओतप्रोत हैं

बेनामी ने कहा…

प्रिय सुभाष जी,

प्राण शर्मा जी ने मुझे ‘गवाक्ष’ से परिचित कराया| मै २०१३ का अंक देखा|

विभिन्न देशों के साहित्यकारों को समीप लाने का बहुत अच्छा प्रयत्न है| सभी रचनाएँ बहुत सुन्दर हैं| आपको तथा ‘गवाक्ष’ से सम्बंधित सभी लोगों को बहुत-बहुत बधाई|

-दिनेश श्रीवास्तव.

मेल्बर्न, ऑस्ट्रेलिया

ashok andrey ने कहा…

bhai pran sharma jee ki gajle bahut prabhav shali hoti hain jo hamesha man ko chhu leti hain.idhar atwal jee ka upanyaas ansh bhee achchha chal rahaa hai jo manovaigaanik satar par har patr ko vishleshit karta hai,sundar.

बेनामी ने कहा…

आज की जलती, तड़पती दुनिया में हर समझदार दुखी व्यक्ति की पुकार गुंजारित करता है प्राण जी का यह शे'र --

काश, नफ़रत की जमी काई हमेशा को धुले

घुलसके तो ज़िन्दगी में प्यार का अमृत घुले



इस शे'र के प्रत्येक शब्द में जो sincerity उभर कर आई है, वह प्राण जी की ग़ज़लों का 'हॉल मार्क' है.



प्राण जी , हार्दिक बधाई!

महेन्द्र दवेसर 'दीपक'

बेनामी ने कहा…

आज की जलती, तड़पती दुनिया में हर समझदार दिल की यही पुकार है --

काश, नफ़रत की जमी कमाई हमेशा को धुले,

घुल सके तो ज़िंदगी में प्यार का अमृत घुले

इस शे'र का प्रत्येक शब्द प्राण जी की ग़ज़लों में उनकी sincerity का हॉल मार्क है.

प्राण जी, धन्यवाद और हार्दिक बधाई ,

महेन्द्र दवेसर 'दीपक'