शुक्रवार, 24 जुलाई 2009

धारावाहिक पंजाबी उपन्यास(किस्त- 16)


सवारी
हरजीत अटवाल
हिंदी अनुवाद : सुभाष नीरव

॥ इक्कीस ॥

दुकान में से निकलकर उसने पीछे की ओर देखा। उसे लगा मानो वहाँ भाइया खड़ा हो और उसने हँसते हुए उससे कुछ कहने के लिए मुँह खोला हो। वह सोचने लगा कि वह अभी पत्थर नहीं हुआ जैसा कि सभी कह रहे थे। उसके अन्दर अभी भी भावनाएँ जिन्दा थीं। वह पिता को याद करता हुआ कार की तरफ चल पड़ा। न-न करने के बावजूद सतनाम ने उसे दो भारी पैग पिला ही दिए थे। उसके लिए ये काफी थे। कार चलाने के लिए भी खतरनाक थे। वह अपने लायसेंस को लेकर बहुत भयभीत रहता था। आजकल रोका भी बहुत जाता था। राहों में पुलिसवाले स्पॉट चैक के लिए खड़े हो जाते थे। उसने डरते हुए ही कार स्टार्ट की। कार आगे बढ़ी तो उसे यकीन हो गया कि वह कार ठीक चला रहा था, कोई खतरा नहीं था। हौलो वे रोड तक वह बिलकुल ठीक आया। आगे सिनेमा के पास से सीधी टफनल पार्क की ओर मोड़ ली। सामने से पुलिस की कार आ रही थी। एक बार तो वह सिर से पांव तक कांप उठा। लेकिन पुलिस आगे बढ़ गई। उसकी सांस में सांस आया। जब से उसके एक परिचित का लायसेंस गया था, वह स्वयं डर-डर कर कार चलाने लगा था।
स्टेशन के साथ लगने वाले ऑफ़ लायसेंस के सामने कार रोक ली। घर के लिए उसे ड्रिंक चाहिए थी। वह मैरी का खर्चा नहीं करवाना चाहता था इसलिए घर का सारा सामान स्वयं ही लाता। मैरी के नाम पर फोन भी लगवा दिया था। घर की कुछ और भी वस्तुएं ली थीं। उसने वोदका की बड़ी बोतल और जूस के डिब्बे लिए। वह व्हिस्की पीता आया था, पर मैरी वोदका पसंद करती थी। दुकान का मालिक शाम देसाई कुछ ही दिनों में उसका परिचित बन गया था। वह उसका बड़ा ग्राहक था। पन्द्रह बीस पौंड की शॉपिंग कर लेता। शाम देसाई उसको देखते ही खुश हो जाता, पर आज बलदेव की आँखें चढ़ी होने के कारण चुप रहा। उसे अनुभव था कि शराबी आदमी के साथ अधिक बात नहीं करते।
दुकान में खड़े एक अन्य ग्राहक ने उससे कहा-
''हैलो मिस्टर, हाउ आर यू ?''
''फाइन...फाइन।'' कह कर बलदेव ने उसकी तरफ देखा। वह व्यक्ति न तो काला था, न ही इंडियन। वह उसे पहचानने की कोशिश करने लगा कि उसने हैलो क्यों कहा होगा। उस व्यक्ति ने बलदेव के मन की बात समझते हुए कहा-
''मेरा नाम डूडू है। मैं पैंतीस नंबर में रहता हूँ। तू ग्रांट वाले फ्लैट में आया है ना ?''
''नहीं डूडू, वहाँ मेरी गर्ल फ्रेंड मैरी रहती है।''
''उसका तो मुझे पता है, पर सभी कहते हैं कि तू ही रहता है।''
''नहीं डूडू, मेरा कुछ पता नहीं। पर तू क्यों फिक्र कर रहा है ?''
''क्योंकि मैं तेरा शुभचिंतक हूँ, तेरा भला सोचता हूँ। इस जगह तू नया है, मैं बहुत समय से रह रहा हूँ। अगर कोई ज़रूरत पड़े तो पैंतीस नंबर याद रखना।''
''शुक्रिया डूडू, जो भी तुझे हमदर्दी मेरे साथ है, उसके लिए शुक्रिया।''
''पाकिस्तानी है ?''
''नहीं, इंडियन।''
''मैंने तो यूँ ही मूंछें देख कर पूछ लिया... मैं भी इंडियन ही हूँ, पर मेरे बड़े बुजुर्ग़ वैस्ट इंडीज जा कर बस गए थे, अब वैस्ट इंडियन ही हूँ।''
बलदेव उसे बॉय-बॉय कह कर चल पड़ा। उसने पैंतीस नंबर एक बार फिर याद करवाया। बलदेव कार में बैठा डूडू के बारे में सोचने लगा कि उसने ऐसा क्यों कहा। शायद लोग उसके बारे में बातें करते हों। नये आए व्यक्ति के बारे में किया ही करते हैं। लोग सोचते होंगे कि मैं ग्रांट वाला फ्लैट हथियाना चाहता हूँ। अपनी ओर अजीब नज़रों से झांकते लोग तो उसने कई बार देखे थे। कोई उसे खतरा समझेगा, ऐसा उसने कभी नहीं सोचा था। उसने कार खड़ी की। बैग उठा कर फ्लैट की सीढ़ियाँ चढ़ने के लिए आगे बढ़ा। ग्राउंड फ्लोर वाले फ्लैट में हमेशा की तरह कुत्ते के भौंकने की आवाज़ आई। यहाँ एक स्कॉटिश परिवार रहता था। माँ और चार जवान बच्चे। दो लड़कियाँ और दो लड़के। कई बार उनसे हैलो-हैलो हो जाया करती थी। दरवाजा खुला होने के कारण कुत्ता बाहर की ओर दौड़ा आया। बलदेव की ओर झपटने ही लगा था कि बलदेव ने उसे डांटा और उंगली दिखाते हुए कहा-
''क्वाइट एंड सिट डाउन।''
कुत्ता पूंछ हिलाता हुआ बैठ गया। फिर उसने इशारा करते हुए कहा- ''गो इन साइड।''
कुत्ता अन्दर की ओर दौड़ गया। कुत्ते को काबू में करने का यह गुर उसे गैरथ डेवी ने सिखाया था। उसने कहा था, ''कुत्ता तुम्हें अजनबी समझ कर भौंकेगा, हुक्म मानेगा अपना समझ कर। कुत्ते को आर्डर दो, वह तुम्हें अपना नया मालिक समझ कर कहना मानेगा। कुत्ते के दो ही प्रमुख काम होते हैं, एक भौंकना और दूसरा कहना मानना।''
गैरथ की बातें सुन कर बलदेव कह उठा था-
''वाह गैरथ ! क्या साइंटेफिक उदाहरण दी है, बहुत सारी फिलॉसफी से भरी हुई। कुत्ता भले ही आदमी के भेस में ही क्यों न हो, उसके दो ही काम है- भौंकना और सुनना।''
वह गैरथ के विषय में सोच रहा था कि बूढ़ी बलिंडा का छोटा बेटा डगलस दरवाजे में आ खड़ा हुआ। वह भी कुत्ते को झिड़कता हुआ बोला-
''सॉरी डेव, यह खतरनाक नहीं है।''
''कोई बात नहीं डग्गी, खतरनाक भी हो तो कोई बात नहीं, कुत्तों को संभालना मुझे आता है।''
कह कर वह हँसा। डगलस उससे बातें करना चाहता था, पर बलदेव अलविदा कहते हुए सीढ़ियाँ चढ़ गया। वह सोच रहा था कि अब तक तो सारी एस्टेट ही उसका नाम जान गई होगी। इस कम्युनिटी का हिस्सा ही बन गया था वह हालांकि कई लोग उसे पसंद भी नहीं करते होंगे। उसे इस बात की खुशी थी कि मैरी के साथ उसकी ठीक ठाक निभ रही थी। इतने दिन हो गए थे एक साथ रहते, वे खुश थे। कितने दिन और खुश रहेंगे, इसका उसे पता नहीं था। फिर उसे चिंता सताने लगी कि अपना फ्लैट खरीदने के बारे में वह देर किए जा रहा था। उसे चाहिए था कि जल्दी ही कुछ करे।
उसने दरवाजा खोला। मैरी अभी तक लौटी नहीं थी। अवश्य कहीं बैठ गई होगी। अस्पताल का विजिटिंग टाइम आठ बजे तक का था। वह आठ बजे तक बैठने वाली नहीं थी और अब नौ बजने को थे। उसने बोतल, जूस और गिलास मेज पर रखे और मैरी का इंतज़ार करने लगा। मैरी की प्रतीक्षा करते हुए वह सोच रहा था कि उसे उसके साथ मोह हो गया था। उसके अन्दर मोह की भावना बहुत प्रबल थी। उसे गुरां के साथ कितना मोह था, फिर शैरन के साथ, फिर अपनी दोनों बेटियों के साथ। सिमरन ही थी जिससे उसका मोह नहीं हो सका था। भाइये के साथ भी उसका बहुत प्यार था। भाइया भी उसकी तरह बहुत खुल कर बात नहीं करता था। उसे पहले ताया ने दबाये रखा और फिर अजमेर ने। उसे अपने फैसले करने का अवसर ही नहीं मिला। यही हालत उसकी अपनी थी। भाइये की तरह उसमें भी कहीं आत्म-विश्वास की कमी रह गई होगी। उसे भाइया अपने आस पास महसूस होने लगा।
उसने उठ कर अपने लिए पैग बना लिया। मैरी जब आएगी, तब आएगी। वह क्यों ऐसे ही बैठा रहे। मैरी के साथ बैठ कर उसे शराब पीना अच्छा लगता था। मैरी के साथ वह बहुत सारी बातें खुल कर करता। वह जल्दी ही समझ गया था कि एक मुद्दत से ढकी हुई रूह को वह मैरी के सामने किसी भी हद तक नंगा कर सकता था। कभी कभी वह हैरान भी होने लगता कि जो अपने हैं, उनसे पर्दे रखने पड़ते हैं, पर बेगानों से कैसा पर्दा !
उसे फिर भाइया की याद आने लगी। उसे लग रहा था कि वह कहीं अनावश्यक रूप से भावुक न हो बैठे। भावुक होना उसे अच्छा नहीं लगता था।
वह फिर से मैरी के विषय में सोचने लगा कि कहाँ रह गई वह। एक बार तो दिल किया कि उठ कर नॉर्थ स्टार पब में ही देख आए, पर वह बैठा रहा।
उसे पता था कि मैरी अभी आ जाएगी। अपने कपड़े इस तरह उतार कर फेंकेगी मानो वे उसके लिए जंजीरें हों और आस पास इस तरह फेंकेगी मानो दुबारा उनकी ज़रूरत ही नहीं पडेग़ी। वैसे भी घर में वह अधिकांश समय अंडी में ही रहती। उसकी छातियाँ बहुत खूबसूरत थीं। बलदेव तारीफ करने लगता तो वह कहती-
''अभी तो मिच ने इन्हें चूसा है, टैंड ने भी शेप खराब की है, नहीं तो मेरी छातियों की सही शेप और सही जगह...।''
वह सोच ही रहा था कि वह आ गई। बलदेव ने मैरी की ओर गौर से देखा। उसका चेहरा उतरा हुआ था। वह नशे में थी। बलदेव ने उसकी तरफ देख कर मुस्कराने की कोशिश की और कहा -
''बहुत लेट हो गई ?''
''हाँ, पीने बैठ गई थी।''
कह कर वह कपड़े उतारने लगी जैसे वह प्राय: उतारा करती थी और फिर बलदेव के पास आ बैठी। बलदेव ने उसे पैग पकड़ाया और पूछा-
''आज का दिन कैसा रहा ?''
''ठीक था।'' उसने अपने पैग में से बड़ा सा घूंट भरा और एक ओर रख दिया। उसने बलदेव को चूमा और कहा-
''डेव, आय लव यू।''
''मी टू डार्लिंग।''
बलदेव ने कहा। मैरी उसकी कमीज के बटन खोलने लगी और बैड पर ले गई। उसके अंगों को सहलाते हुए उसने उसे कस कर आलिंगन में भर लिया और रोने लगी। बोली-
''डेव, ग्रांट मर गया है।'' और फिर उसे बेतहाशा चूमते हुए कहने लगी-
''कम ऑन माई लव ! कम ऑन !''
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(क्रमश: जारी…)

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