रविवार, 1 मार्च 2009

गवाक्ष – मार्च 2009



गवाक्ष” के माध्यम से हम हिन्दी ब्लॉग-प्रेमियों को हिन्दी/पंजाबी के उन प्रवासी लेखकों/कवियों की समकालीन रचनाओं से रू-ब-रू करवाने का प्रयास कर रहे हैं जो अपने वतन हिन्दुस्तान से कोसों दूर बैठकर अपने समय और समाज के यथार्थ को अपनी रचनाओं में रेखांकित कर रहे हैं। “गवाक्ष” के पिछ्ले बारह अंकों में पंजाबी कवि विशाल (इटली) की कविताओं का हिन्दी अनुवाद, दिव्या माथुर (लंदन) की कहानी, अनिल जनविजय (मास्को) की कविताएं, न्यू जर्सी, यू.एस.ए. में रह रहीं देवी नागरानी की ग़ज़लें, लंदन निवासी कथाकार-कवि तेजेन्द्र शर्मा, रचना श्रीवास्तव, दिव्या माथुर की कविताएं, दुबई निवासी पूर्णिमा वर्मन की कविताएं, यू एस ए में रह रहीं हिन्दी कथाकार-कवयित्री इला प्रसाद, डेनमार्क निवासी कवि भगत धवन की कविताएं, डेनमार्क निवासी चाँद शुक्ला की ग़ज़लें, यू एस ए निवासी कवि वेद प्रकाश ‘वटुक’ तथा कवयित्री रेखा मैत्र की कविताएं, कनाडा अवस्थित पंजाबी कवयित्री तनदीप तमन्ना की कविताएं और यू के में रहे पंजाबी कथाकार-उपन्यासकार हरजीत अटवाल के उपन्यास “सवारी” के हिंदी अनुवाद की ग्यारह किस्तें आपने पढ़ीं। “गवाक्ष” के मार्च 2009 अंक में प्रस्तुत हैं – यू के अवस्थित हिन्दी कवि-ग़ज़लकार प्राण शर्मा की ग़ज़लें तथा पंजाबी कथाकार-उपन्यासकार हरजीत अटवाल के धारावाहिक पंजाबी उपन्यास “सवारी” की बारहवीं किस्त का हिंदी अनुवाद…


यू के से
प्राण शर्मा की पाँच ग़ज़लें

1

इक -दूजे के संग साथियो नचना और नचाना क्या
जलने वालों की महफ़िल में हँसना और हंसाना क्या

भूला -बिसरा है तो उसको भूला-बिसरा रहने दो
करके याद पुराना किस्सा सोया दर्द जगाना क्या

सजी-सजायी कुछ होती तो हर इक को मैं दिखलाता
मन की सूनी-सी कुटिया को ऐ यारो दिखलाना क्या

मन से मन ऐ मीत मिले तो एक निराली बात बने
पल दो पल के लिए किसी के हाथ से हाथ मिलाना क्या

दो दिन की ही रंगरेली है दो दिन का ही उत्सव है
‘प्राण’ किसी के हँसते-गाते घर में आग लगाना क्या
0

2

आज नहीं तो कल -परसों को अपने-आप ही गंद्लायेगा
झील का ठहरा-ठहरा पानी कब तक सुथरा रह पायेगा

मेरे हमसाये का क्या कुछ उसकी लपट से बच पायेगा
मेरे घर को आग लगी तो उसका घर भी जल जायेगा

इतनी ज़ोर से फैंक नहीं तू ऊंचे परबत से पत्थर को
पत्थर तो पत्थर है प्यारे जिसको लगा वो चिल्लाएगा

अनजानी राहों में रहबर जैसा मिले तो बात बने
इक अनजाना अनजाने को राह भला क्या दिखलायेगा

मान मेरी ये बात तू अपने साथ लिए जा कुछ सौगातें
भूल पे अपनी पछतायेगा खाली हाथ जो घर जायेगा

‘प्राण’ जुटाओ पहले रोटी फिर तुम कोई बात करो
भूखे पेट किसी को कैसे प्यार तुम्हारा बहलायेगा
0

3

आपके जैसा प्यारा साथी कोई भला क्या खो सकता है
आप बुलाएं, हम ना आयें ऐसा कैसे हो सकता है

भूल-भुलैया की दुनिया में ऐसा भी तो हो सकता है
पथ दिखलाने वाला यारो ख़ुद राहों में खो सकता है

गैरों पर शक करने वाले इस पर भी कुछ गौर कभी कर
अपने घर का ही कोई बन्दा मन का मंदा हो सकता है

ये मत समझो रोना-धोना काम महज है नाज़ुक दिल का
अपनी पीडा से घबरा कर पत्थर दिल भी रो सकता है

माना की आसान नहीं है दुक्खों के बिस्तर पर सोना
सुख के बिस्तर पर भी प्यारे कोई कितना सो सकता है
0

4

मिट्टी में बीजों को बोने कोई चला है मेरे भाई
मान न मान मगर ये भी तो एक कला है मेरे भाई

इतना प्यारा, इतना न्यारा तेरा चेहरा क्यों न लगे
मौसम के फल जैसा ही तू रोज़ फला है मेरे भाई

वो इक शख्स उदासी जिसके चेहरे का नित पहरावा है
हंसती-मुस्काती नज़रों को रोज़ खला है मेरे भाई

यूँ तो यारों की गिनती से हम को गुरेज़ नहीं लेकिन
जीवन में बस इक साथी का साथ भला है मेरे भाई

तेरी नासमझी न कहूँ तो बतला मैं क्या और कहूँ
तपती सड़कों पर तू नंगे पाँव चला है मेरे भाई
0

5

किसी के सामने खामोश बनके कोई क्यों नम हो
ज़माने में मेरे रामा किसी से कोई क्यों कम हो

कफन में लाश है इक शख्स की लेकिन बिना सर के
किसी की जिंदगी का अंत ऐसा भी न निर्मम हो

न कर उम्मीद मधु ऋतू की कभी पतझड़ के मौसम में
ये मुमकिन ही नहीं प्यारे की नित रंगीन मौसम हो

हरिक गम सोख लेता है करार इंसान का अक्सर
भले ही अपना वो गम हो भले जग का वो गम हो

जताया हम पे हर अहसान जो भी था किया उसने
कभी उस सा जमाने में किसी का भी न हमदम हो

कभी टूटे नहीं ऐ ‘प्राण’ सूखे पत्ते की माफिक
दिलों का ऐसा बंधन हो, दिलों का ऐसा संगम हो
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जन्म-१३ जून ,१९३७ ,वजीराबाद ,वर्तमान पाकिस्तान शिक्षा -एम्.ऐ -हिन्दी,पंजाब विश्वविद्यालय १९६६ से यू.के में। सम्मान -१९६१ में भाषा विभाग ,पटियाला ,पंजाब द्वारा आयोजित "टैगोरनिबंध प्रतियोगिता" में द्वितीय पुरस्कार। १९८३ में कादम्बिनी द्वारा आयोजित “अंतर्राष्ट्रीय कहानीप्रतियोगिता " में सांत्वना पुरस्कार। १९८६ में ईस्ट मिडलैंड आर्ट्स ,लेस्टर ,यूं,के द्वारा आयोजित कहानी प्रतियोगिता में प्रथम पुरकार। २००६ में हिन्दी समिति ,यूं .के द्बारा "हिन्दी साहित्य के कीर्तिपुरुष" के रूप में सम्मानित।लेखन- ग़ज़ल विधा पर कई लेख-कहानी और लघु कहानी लिखने में भी रूचि। यूँ तो गीत-कवितायें भी कहते हैं लेकिन गज़लकार के रूप में जाना जाते हैं। ग़ज़ल विधा पर इनके आलेखों की इन दिनों खूब चर्चा है।प्रकाशित कृतियाँ – ‘ग़ज़ल कहता हूँ’ और ‘सुराही’। ‘सुराही’ का धारावाहिक रूप में हिन्दी की वेब पत्रिका ‘साहित्य कुञ्ज’ और महावीर शर्मा के ब्लॉग पर प्रकाशन।
ई मेल : sharmapran4@gmail.com
धारावाहिक पंजाबी उपन्यास(किस्त- 12)



सवारी
हरजीत अटवाल
हिंदी अनुवाद : सुभाष नीरव

॥ सत्रह ॥

लंदन की अंडरग्राउंड वाली नॉर्दन लाइन पर टफनल पॉर्क नाम का स्टेशन है, जिसका मुख्य द्वार टफनल रोड की तरफ निकलता है। यहाँ से बायें मुड़ें तो कुछ दूर जाकर डार्ट माऊथ हाउस नाम की एस्टेट है। बहुत बड़ी नहीं है। सौ के करीब फ्लैट होंगे। पहले टफनल रोड की इस जगह पर घर हुआ करते थे जिनके दरवाजे इस रोड की तरफ खुलते थे। घरों की मुनियाद खत्म हो गई तो गिरा कर यह एस्टेट बना दी गई। अब इस एस्टेट के फ्लैटों की पीठ टफनल रोड के साथ लगती है। इस एस्टेट के आँगन में एक कार पॉर्क है और एक छोटा-सा पॉर्क बच्चों के खेलने के लिए भी है, जिसमें बच्चों के फिसलने और झूलने का प्रबंध भी किया हुआ है। इस एस्टेट में ही ग्रांट का फ्लैट था जहाँ मैरी ठहरी हुई थी। जब से यह एस्टेट बनी थी, ग्रांट तभी से यहाँ रह रहा था। सारी एस्टेट ग्रांट को जानती थी। करीब सौ फ्लैटों के लोग एक-दूजे को जानते थे। अजनबी आदमी का पता एकदम चल जाता। पर मैरी उनके बीच परायी बनकर नहीं आई थी। वह ग्रांट की बहन थी। ग्रांट के बीमार होने के कारण सभी उससे सहानुभूति रखते थे। ज़रूरत पड़ने पर उसकी सहायता भी करते।
वैसे ग्रांट बीमार तो करीब दो साल से था पर शुरूआत में इस बीमारी का पता नहीं चला। रोज का पियक्कड़ होने के कारण छोटे-मोटे दर्द को नशे के नीचे दबा लेता होगा। अब पिछले छह महीनों से उसकी हालत खराब थी। अब तो वह विटिंग्टन अस्पताल की ऐसी मंजिल पर था जहाँ पर गम्भीर मरीज ही जाया करते हैं। कइयों का विचार है कि यहाँ पहुँचने वाले मरीजों की मौत निश्चित होती है। इसके बाद तो मरीज को हौसपीट्स ही भेजा जाता जहाँ रख कर उसकी मौत को आसान बनाया जाता है। दर्द से मारफीन जैसे दवाई देकर या आत्मिक विश्वास के लिए प्रार्थनायें आदि करके।
मैरी के परिवार को ग्रांट के बीमार होने की सूचना उसकी पड़ोसिन बूढ़ी मोअ से मिली थी। ग्रांट का घरवालों से कोई ज्यादा वास्ता नहीं था। अब कोई रास्ता न देख ग्रांट ने कह कर फोन करवाया था। पहले उसका बड़ा भाई आया था और कुछ दिन यहाँ रहा था। लेकिन पीछे फॉर्म का काम होने के कारण उसे डैरी लौटना पड़ा था। अब मैरी आई थी। परिवार की ओर से अब उसे यह काम सौंपा गया था। अब मैरी खाली भी थी और डैरी में रहकर ऊबी हुई भी थी। अगर कुछ समय पहले उसे ऐसा कहा जाता तो उसके लिए डैरी को छोड़ना कठिन हो जाता। उस समय मैरी की ज़िंदगी ठीक थी, पर अब जैसे नरक हुई पड़ी थी। जब उसे लंदन आने का कहा गया तो बग़ैर सोचे-समझे वह मानो दौड़ ही पड़ी थी।
मैरी की अपने पति से अनबन चल रही थी। यह अनबन तो पिछले कई बरस से थी। उसके पति टैंड ने अपने संग काम करती लूना के साथ सम्बन्ध बना लिए थे। यद्यपि वह पक्का क्रिश्चियन था, पढ़ा-लिखा और गर्वमेंट की नौकरी पर था, फिर भी वह फिसल गया था। मैरी को मालूम हुआ तो घर की शांति भंग हो गई। टैंड अपनी हरकत से बाज नहीं आया, इसलिए मैरी पर असर यह हुआ कि उसे अपने साथ काम करते अध्यापक रे से नाता जोड़ने में हवा मिल गई। यही कारण था कि उसका घर टूटने की कगार पर पहुँच गया। उनका एक बेटा भी था- मिच्च। उनका झगड़ा शहर भर में फैल गया। उनके पादरी को पता चला तो उसने दोनों को बुला कर समझाया, सच्चे क्रिश्चियन के फ़र्ज के बारे में बताया। कन्फैशन बॉक्स में ले जाकर दोनों से कन्फैशन करवाया। जीसस से माफी मंगवाई और उन्हें घर में दुबारा रहने योग्य बनवाया। इसके बाद एक बरस ठीकठाक गुजरा, फिर पहले जैसा होने लगा। टैंड ने लूना को छोड़ने से इन्कार कर दिया था। मैरी अपनी माँ के पास जाकर रहने लगी थी। अब लंदन आने की बात हुई तो वह एकदम तैयार हो गई। बेटा मिच्च तो पहले ही टैंड के पास रहता था इसलिए उसे डैरी छोड़ने का दु:ख भी नहीं था।

डैरी से चलते समय उसने कुछ भी नहीं सोचा था लेकिन जहाज में बैठते ही उसे चिंताओं ने घेर लिया कि लंदन पहुँचकर वह हालात से कैसे निपटेगी। एक तो वह लंदन पहली बार आ रही थी, दूसरा यहाँ कोई उसका परिचित भी नहीं था। ग्रांट की पड़ोसिन बूढ़ी मोअ के साथ ही उसकी फोन पर बातचीत होती थी। उसके पास ही ग्रांट के फ्लैट की चाबी थी। मोअ ही कभी-कभी ग्रांट को देखने अस्पताल जाया करती थी। मैरी ने हीथ्रो उतर कर पिकडली लाइन पकड़ी और फिर नॉदर्न लाइन लेकर मंजिल पर पहुँच गई। मोअ से चाबी लेकर फ्लैट को रहने योग्य बनाने लगी और फिर ग्रांट से मिलने अस्पताल चली गई।
अगले दिन मैरी खोजने लगी कि यहाँ कोई दोस्त मिल जाए, जिसके साथ वह दो बातें कर सके। ग्रांट के कुछ मित्र मिले पर वे सभी शराबी और निकम्मे थे। कई तो ग्रांट के फ्लैट पर निगाहें जमाये बैठे थे। आजकल कौंसल पहले की भाँति आसानी से फ्लैट अलॉट नहीं करती थी। लम्बी प्रतीक्षा करनी पड़ती थी। इस प्रकार ग्रांट के फ्लैट पर कब्ज़ा करना आसान था। बीच में कई घुंडियाँ थीं कि फ्लैट किसी ओर के नाम चढ़ सकता था। मैरी को आया देखकर सभी के हौसले पस्त हो गए, इरादे नेस्तोनाबूद हो गए। ऐसे लोग ग्रांट की खैर-ख़बर लेने से भी गए।
जब बलदेव ने मैरी को अपने संग ड्रिंक पीने के लिए आमंत्रित किया तो वह खुश हो गई। उसे इंडियन लोग बहुत पसंद थे। डैरी में भी इंडियन थे पर सभी व्यापारी किस्म के थे। वहाँ उनकी अच्छी इज्ज़त थी। यहाँ आकर उसने कौंसल के इन फ्लैटों में कोई इंडियन नहीं देखा था। काले, गोरे, आयरिश सभी थे। एक बात और जो उसे इन लोगों में पसंद थी कि ये लड़ने-झगड़ने वाले लोग नहीं थे। अधिकांश आयरिश लोगों की भाँति हर समय नशे में रहने वाले भी नहीं थे।
शाम को सात बजे नॉर्थ स्टार में पहुँचने का वायदा करके आई थी वह। पैदल दसेक मिनट का रास्ता था पर वह छह बजे ही तैयार हो बैठी। कितनी ही देर तक वह यह सोचती रही कि वह कौन से कपड़े पहने। डेव कैसे कपड़े पसंद करता होगा। बहुत सोच विचार के बाद उसने लाल फूलों वाली स्कर्ट और हल्के लाल रंग का स्लीवलैस टॉप पहन लिया। उसके पास अधिक कपड़े थे भी नहीं। एक बढ़िया सूट उसने ग्रांट की मौत वाले दिन के लिए रख रखा था तथा एक और था अगर फ्यूनरल लंदन में ही करना पड़ा, उसके लिए। वैसे उसके परिवार में यह निर्णय लिया गया था कि ग्रांट की देह आयरलैंड ले जायी जाएगी, वहीं उनकी पारिवारिक कब्रों में उसे दफनाया जाएगा।
वह धीरे-धीरे चलकर नॉर्थ स्टार जा पहुँची। आर्च वे स्टेशन के सामने बने इस पब में जा बैठी। पब का हरा रंग इसके आयरश होने का सबूत था। यह पब नहीं, बल्कि एक तरह का जज़ीरा -सा था। इसके चारों तरफ वन-वे सड़क थी। बड़ा-सा ग्रारुंड अबाउट ही था। पब के साथ एक बड़ा कार पॉर्क था। आयरश संगीत हर वक्त चलता रहता था। दोपहर को आयरश खाना भी मिलता। मैरी यहाँ कल रात भी आई थी। बहुत देर तक बैठी रही थी। कोई ढंग का साथ नहीं मिला था। उसने वाइन का गिलास भरवाया और एक तरफ होकर बैठ गई। घड़ी देखी, अभी सात नहीं बजे थे।
जल्द ही बलदेव भी आ गया। उसे कार खड़ी करने में कुछ वक्त लग गया था। सतनाम ने दो पैग जल्द-जल्दी में पिला दिए थे। अजमेर की तरफ वह गया ही नहीं था। उसे इस बात का गुस्सा था कि उसने दुकान खरीदने वाली बात स्पष्ट क्यों नहीं की कि वह दुकान हिस्सेदारी में खरीदना चाहता था। उसने अपनी कार उठाई और बिना उनसे मिले ही इधर आ गया। गुरां से मिलने को एक बार मन हुआ, पर उसने मैरी को भी समय दे रखा था। पब में घुसते ही सामने मैरी बैठी मिली। उसे देखकर वह खड़ी हो गई। साँपिन जैसा बदन बलदेव को डसने लगा। अब वाली मैरी और दोपहर वाली मैरी में काफी अंतर था। वह मैरी की गोल बांहों और ठोस पिंडलियों को देखता हुआ उसके करीब आ गया। धीमे स्वर में पूछने लगा-
''क्या पिओगी ?''
''कुछ भी।''
''क्या पी रही हो ?''
''वाइन पर जो तू पियेगा, वही मेरे लिए ले आ।''
वह बियर के दो गिलास ले आया और उसके पास बैठ गया। उसने मैरी के चेहरे पर एक निगाह डाली। उसकी नीली आँखें उसे बहुत गहरी प्रतीत हुईं। उसका मन हुआ कि कंधों पर गिरते रेश्मी बालों पर उँगलियाँ फिरा कर देखे। उसने कहा-
''मैरी तू बहुत खूबसूरत है।''
''शुक्रिया...। डेव, तू भी चलते हुए जैंटल जाइंट लगता है।'' कहकर वह मुस्कराई। बलदेव ने पूछा-
''ग्रांट अब कैसा है ?''
''वैसा ही है, धीरे-धीरे मौत की ओर बढ़ रहा है।''
''सॉरी ! मैरी आय एम रियली सॉरी !''
''कोई कुछ नहीं कर सकता। बहुत अजीब स्थिति है डेव।''
''यही दुआ कर सकते हैं कि उसकी मौत आसान हो।''
''हाँ, देव। मैं उसकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करती रहती हूँ, पर डेव हम कुछ और बातें करें।''
बलदेव को भी लगा कि ऐसे अवसर पर ग्रांट की बात नहीं करनी चाहिए थी। उसने फिर पूछा-
''तू सिगरेट नहीं पी रही ?''
''मैं स्मोक नहीं करती। बहुत कम करती हूँ जब कभी ज्यादा ही टेंशन में होती हूँ। मैंने उस वक्त दस की डिब्बी खरीदी थी, अभी भी रखी हैं। तू लेगा, डिब्बी निकालूँ ?''
''नहीं मैरी, मैं भी स्मोक नहीं करता। टेंशन में भी नहीं।''
''फिर टेंशन में क्या करता है ?''
''शराब पीता हूँ। शराब भी नहीं पीता, बहुत कम पीता हूँ। यह जब से मैं अब आयरलैंड होकर लौटा हूँ, पीने की कैपेसिटी बढ़ गई लगती है।''
फिर वह उसके बारे में बातें करने लगा। मैरी अपनी अध्यापिका की नौकरी छोड़ने की कहानी सुनाती रही। टैंड और लूना के इश्क के बारे में बताती रही। बलदेव ने भी बता दिया कि उसकी पत्नी और दो बेटियाँ अलग रहती हैं। रेलवे में क्लर्क था और आजकल सिक लीव लिए बैठा था। अब नौकरी छूट जाने का खतरा बना हुआ था क्योंकि सिक लीव लम्बी हुए जा रही थी। फिर वे उत्तरी आयरलैंड की राजनीति की बातें करने लग पड़े।
मैरी बलदेव की बात को बड़े ध्यान से सुनती और बार-बार बालों को पीछे की ओर झटकती। बलदेव को वह और भी प्यारी लगती। बलदेव दिल से उसका हुआ जाता था। सिमरन के बाद वह किसी से भी भावुक तौर पर जुड़ नहीं पाया था। गुरां से तो वह वैसे भी दूर रहने का प्रयास करता था। उसे चुप देखकर मैरी ने पूछा-
''क्या सोच रहे हो ?''
''सोच रहा हूँ कि जब तू हँसती हो तो तेरी हँसी में से छोटे शहर की खुशबू आने लगती है।''
''वाह, बहुत बारीक नज़र रखते हो।''
''ऐसा अभी हुआ है।''
बलदेव जानता था कि नशा उसे खोल देता था। उसने अपने आप को खुल जाने दिया और मैरी का हाथ पकड़ कर बोला-
''मैरी, मेरे अंदर तेरे लिए बहुत स्ट्रोंग फीलिंग्स पैदा हो रही हैं, मैं तुझे बहुत करीब महसूस कर रहा हूँ।''
''डेव, मुझे इन फीलिंग्स की ज़रूरत है, इस वक्त मैं बहुत अकेली हूँ।''
पब बन्द होने तक वे दोनों शराबी थे। मैरी ने पूछा-
''डेव, अब कार चला सकते हो ?''
''मुझे तो लगता है, बढ़िया चला सकता हूँ। पर रहने देता हूँ, यहाँ से ट्यूब पकड़ कर चला जाऊँगा।''
वे उठकर बाहर निकले तो बलदेव को महसूस हुआ कि वह ठीक था। कार चलाने की स्थिति में था। उसने मैरी से कहा-
''चल आ, मैं तुझे राह में उतार दूँगा।''
पब से निकल वे जंक्शन रोड पर चिप्स की दुकान के आगे खड़े हो गए। मैरी उतर कर दो पैकेट चिप्स के ले आई। बलदेव ने कहा-
''अगली बार तुझे किसी भारतीय रेस्टोरेंट में ले चलूँगा।''
''ज़रूर चलूँगी, मुझे इंडियन भोजन बहुत पसंद है।''
डार्ट माऊथ हाउस के सामने गाड़ी खड़ी करते हुए बलदेव बोला-
''मैरी, तेरी मंजिल आ गई।''
''तेरी मंजिल दूर है, तू नशे में भी है, यहीं क्यों नहीं रह जाता ?''
बलदेव सोच में पड़ गया। वह झिझक रहा था। मैरी ने कहा-
''कोइ एतराज है ? मुझे कोई बीमारी नहीं, मैं साफ औरत हूँ।''
''नहीं नहीं, मैंरी, यह बात नहीं।''
''फिर चल अंदर, कार पॉर्क कर।''
बलदेव ने अंदर खड़ी कारों के बीच कार खड़ी कर दी। मैरी उससे पूछने लगी-
''डेव, कंडोम है ?''
''मैरी, मैंने ऐसा सोचा ही नहीं था।''
''अच्छा... पर गुड ब्वॉय बन कर रहना।''
00
(क्रमश: जारी…)

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67, हिल साइड रोड,
साउथहाल, मिडिलसेक्स
इंग्लैंड
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