रविवार, 11 जुलाई 2010

गवाक्ष – जुलाई 2010


“गवाक्ष” ब्लॉग के माध्यम से हम हिन्दी ब्लॉग-प्रेमियों को हिन्दी/पंजाबी के उन प्रवासी लेखकों/कवियों की समकालीन रचनाओं से रू-ब-रू करवाने का प्रयास करते आ रहे हैं जो अपने वतन हिन्दुस्तान से कोसों दूर बैठकर अपने समय और समाज के यथार्थ को अपनी रचनाओं में रेखांकित कर रहे हैं। “गवाक्ष” में अब तक पंजाबी कवि विशाल (इटली) की कविताओं का हिन्दी अनुवाद, दिव्या माथुर (लंदन) की कहानी, अनिल जनविजय (मास्को) की कविताएं, न्यू जर्सी, यू.एस.ए. में रह रहीं देवी नागरानी की ग़ज़लें, लंदन निवासी कथाकार-कवि तेजेन्द्र शर्मा, रचना श्रीवास्तव, दिव्या माथुर की कविताएं, दुबई निवासी पूर्णिमा वर्मन की कविताएं, यू एस ए में रह रहीं हिन्दी कथाकार-कवयित्री इला प्रसाद, डेनमार्क निवासी कवि भगत धवन की कविताएँ और चाँद शुक्ला की ग़ज़लें, यू एस ए निवासी कवि वेद प्रकाश ‘वटुक’ तथा कवयित्री रेखा मैत्र की कविताएं, कनाडा अवस्थित पंजाबी कवयित्री तनदीप तमन्ना की कविताएं, यू के अवस्थित हिन्दी कवि-ग़ज़लकार प्राण शर्मा की ग़ज़लें, कैनेडा में अवस्थित पंजाबी कवि सुखिन्दर की कविताएं, कनाडा निवासी पंजाबी कवयित्री सुरजीत, अमेरिका अवस्थित डॉ सुधा धींगरा, कनाडा में अवस्थित हिंदी- पंजाबी कथाकार - कवयित्री मिन्नी ग्रेवाल की कविताएं, न्यूजीलैंड में रह रहे पंजाबी कवि बलविंदर चहल की कविता, कैनेडा में अवस्थित पंजाबी लेखिका बलबीर कौर संघेड़ा की कविताएं, इंग्लैंड से शैल अग्रवाल की पाँच कविताएं, सिंगापुर से श्रद्धा जैन की ग़ज़लें, इटली में रह रहे पंजाबी कवि विशाल की कविताएं, यू एस ए में रह रहीं हिन्दी कथाकार-कवयित्री इला प्रसाद की एक लघुकथा, कैनेडा निवासी पंजाबी कवि डा. सुखपाल की कविता, यू.एस.ए. में अवस्थित हिंदी कवयित्री डॉ. सुधा ओम ढींगरा की कविताएं और पंजाबी कथाकार-उपन्यासकार हरजीत अटवाल के उपन्यास “सवारी” के हिंदी अनुवाद की छब्बीसवीं किस्त आपने पढ़ीं। “गवाक्ष” के जुलाई 2010 अंक में प्रस्तुत हैं – यू.एस.ए. में अवस्थित पंजाबी कवि-कथाकार प्रेम मान की पंजाबी कविताएं तथा यू.के. निवासी पंजाबी कथाकार-उपन्यासकार हरजीत अटवाल के धारावाहिक पंजाबी उपन्यास “सवारी” की सत्ताइसवीं किस्त का हिंदी अनुवाद…

यू.एस.ए. से
प्रेम मान की तीन पंजाबी कविताएं
हिंदी अनुवाद : सुभाष नीरव

रिश्ते

कुछ रिश्ते स्वयं ही उगते हैं
कुछ रिश्ते उगाये जाते हैं

रिश्ते स्वयं नहीं पलते
रिश्ते पाले जाते हैं

रिश्ते खुद नहीं समझते
इन्हें समझाना पड़ता है

रिश्तों को जिंदा रखने के लिए
लेने से अधिक
देना पड़ता है

रिश्ते आग हैं
ये जला भी सकते हैं
ये गर्मराहट भी देते हैं

रिश्ते बर्फ़ की तरह हैं
खूबसूरत भी लगते हैं
इस जिस्म को
जमा भी सकते हैं

रिश्ते दो-तरफा
सड़क की तरह हैं
इन्हें इकतरफा
समझकर
ज़लील होने वाली बात है

रिश्ते रूह की
खुराक भी बन सकते हैं
और ज़हर भी

रिश्ते खुदगर्ज भी
हो सकते हैं
और नाखुदगर्ज भी

रिश्ते वफ़ा भी
हो सकते हैं
और बेवफ़ा भी

रिश्ते निभाने ही कठिन नहीं
रिश्तों की बात करना भी
कठिन हो रहा है।
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भिन्नता

मेरे दोस्त कहते हैं
मैं दूसरों से
बहुत भिन्न हूँ

मुझे कच्चे अनार
अच्छे लगते हैं

मुझे धूपों से डर लगता है

मुझे मूसलाधार बारिश
तेज बहती हवायें
और आँधियों से
बहुत मोह है

मुझे पूरनमासी की रात से अधिक
अमावस्या की रात के गले लगकर
बहुत गर्माहट मिलती है

मुझे पक्के रास्तों से अधिक
कच्ची राहों की
उबलती धूलों पर
नंगे पैर चलना
और पैरों में पड़े
छालों की पीर में खुश होना
दिलचस्प लगता है

मुझे खूबसूरत लोगों से अधिक
बदसूरत लोगों को
आलिंगन में कस कर
अधिक आनन्द मिलता है

कुछ बिगड़ने पर
मैं किस्मत से अधिक
अपने आप को इल्ज़ाम देना
अधिक पसन्द करता हूँ

दोस्त कहते हैं
मैं अजीब इन्सान हूँ
पता नहीं क्यूँ
मैं बहुत से लोगों से
इतना भिन्न हूँ।
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पता

जब मैं
अपना घर
और देश छोड़कर
एक अनजाने और
बेगाने मुल्क में
किस्मत आजमाने के लिए चला था
तो मेरे एक दोस्त ने
कहा था
'अपनी नई जगह का
पता तो बता जा
चिट्ठी-पतरी के लिए।'
मैंने उसकी ओर
गहरी और उदास
नज़रों से देखकर
कहा था-
'दोस्त, बेघर लोगों का
कोई पता नहीं होता।'

आज अपने पुराने देश में
जाते समय सोचता हूँ-
बेघर लोगों का
सचमुच कोई भी
पता नहीं होता।
0

प्रेम मान सन् 1970 से 1975 तक पंजाबी साहित्य में काफ़ी सक्रिय रहे। सन् 1970 में इनका कहानी संग्रह 'चुबारे की इट्ट' और सन् 1972 में ग़ज़ल संग्रह 'पलकां डक्के हंझु' प्रकाशित हुए। पंजाबी की मासिक पत्रिका 'कविता' का अप्रैल 1973 अंक दो जिल्दों में 'कहानी अंक' के रूप में इनके संपादन में प्रकाशित हुआ। पंजाब यूनिवर्सिटी से इकनॉमिक्स की एम.ए. करके इन्होंने गुरू गोबिंद सिंह कालेज, चंडीगढ़ में 1971 से 1975 तक अध्यापन किया। सितम्बर 1975 में जब हिंदुस्तान को अलविदा कहा तो पंजाबी साहित्य से भी विलग गए। इंग्लैंड में फिर इकनॉमिक्स की एम.ए. करने के बाद यूनिवर्सिटी ऑफ कैलीफोर्निया, लास ऐंजल से पी.एच.डी. की और संग-संग पाँच साल कैलीफोर्निया स्टेट युनिवर्सिटी में पढ़ाया। 1986 से यह ईस्टर्न कनैटीकट स्टेट युनिवर्सिटी में इकनॉमिक्स पढ़ा रहे हैं जहाँ वर्ष 1994 से विभागाध्यक्ष भी हैं। इन्होंने अपने विषय पर अनेक किताबें लिखी हैं जो कई देशों की बहुत सारी युनिवर्सिटीज़ में कोर्स के रूप में प्रयोग में लाई जाती है। वर्ष 2004 में यह न्यूयार्क के कुछ पंजाबी साहित्यकारों की संगत में आने पर पुन: साहित्य के जुड़े हैं।
वेब साइट : www.premmann.com, www.punjabiblog.com
ई मेल : prem@premmann.com

धारावाहिक पंजाबी उपन्यास(किस्त- 27)


सवारी
हरजीत अटवाल
हिंदी अनुवाद : सुभाष नीरव

॥ बत्तीस॥

सिमरन दो सप्ताह की छुट्टियाँ बिता कर लौटी तो ऐसा महसूस करने लगी मानो गहरे स्वप्न में से उठी हो। चमकीला समंदर, दूर तक पसरा किनारा, किनारे पर रेत से चिपके लोग और उन्हें दबोचे खड़ी धूप। और अब वही डल सा मौसम, घसमैला सा लंदन, मैली दीवारें, पुरानी सड़कें, बेसब्र सी भीड़। वह सीधी अपने घर पहुँची। घर पहुँचकर तसल्ली हुई कि चोरी होने से बच गई थी। इतने दिन बन्द रहे घर का बचे रहना करिश्मा ही था। दोस्त कहते थे कि लंदन रहते हों और चोरी न हो, असंभव।
उसने अनैबल और शूगर की फोटो देखी। पहले सोचा कि फोन कर ले। वे दोनों ग्रेवजैंड़ में अवतार कौर के पास थीं। उसने कार ली और ग्रेवजैंड़ की ओर चल दी। वह उनके लिए कितना कुछ लाई थी। खिलौने, कपड़े, चाकलेट। सब साथ ही ले लिया। उसे डर था कि कहीं वे उससे रूठी होने के कारण बोले ही न। अब दोनों स्कूल जाती थीं। सब समझती थीं। सिमरन भी पहली बार घर से इतनी दूर गई थी। इतने लम्बे समय के लिए बेटियों से अलग रही थी। अब उसे बेटियों पर अधिक ही मोह आ रहा था। कभी कभी वह उन्हें बोझ भी समझने लगती कि वह उनके कारण फंस कर रह गई थी। कहीं जा भी नहीं सकती थी। अगर किसी बिजनेस डिनर पर जाना होता तो सबसे पहले इन लड़कियों को इंतज़ाम करना पड़ता। होलीडेज़ पर जाने के बारे में सोचना ही बड़ी बात होती।
ये उसकी ज़िन्दगी की पहली छुट्टियाँ थीं। सारी दुनिया छुट्टियों पर जाती। छुट्टियाँ बिता कर लौटे लोग वहाँ की रोमांटिक बातें करते। भांति-भांति के किस्से सुनाते। छुट्टियों पर जाने से पहले तरह-तरह की सलाहें बनतीं, जगहों का चुनाव किया जाता। तारीखें तय होंती। बलदेव के होते तो छुट्टियों का सपना भी नहीं लिया जा सकता था। इंडियन लोग इंडिया जाने को ही छुट्टियाँ कहा करते हैं। अधिक होता तो कैनेडा या अमेरिका किसी रिश्तेदार को मिल आते। उनके लिए होलीडेज़ के अर्थ ही ऐसे थे।
सिमरन तो इस बार भी न जाती, ली को टाल देती पर उनके एक क्लाइंट ने बहुत ही सस्ता इंतज़ाम करवा दिया था। एक ट्रैवल एजेंट को सिमरन ने एक साल फ्री बैंकिंग की सुविधा दी थी और बदले में उसने सस्ती छुट्टियाँ बुक करवा दी थीं। अनैबल और शूगर को रखने के लिए उसने मम्मी को राजी कर लिया था। दो सप्ताह वह इस ज़िन्दगी से कटी रही थी। दो हफ्ते उसने उस ज़िन्दगी को यहाँ के रूटीन से तोड़कर भरपूर जिया था। वह बहुत खुश थी। उसकी वर्षों की थकान उतर गई थी। वह सोच रही थी कि अब कोई जितना चाहे काम करवा ले। अब वह कितना भी बोझ सह सकती थी।
ग्रेवजैंड़ पहुँची तो दोनों लड़कियाँ उसे दौड़कर मिलीं। वे सिमरन से नाराज तो थीं पर तोहफ़ों को देखकर सारी नाराजगी दूर हो गई। अवतार कौर उसे देखकर खुश होते हुए बोली-
''ले री, संभाल अपनी लाडलियों को। टांग रखा है इन्होंने तो।''
मम्मी अवतार कौर और डैड निर्मल सिंह के लिए भी वह कुछ लाई हुई थी। अमरजीत और उसके पति जवैर और उनके बेटे लुक के लिए भी। निर्मल सिंह ने अपने तोहफ़े में कोई उत्साह नहीं दिखाया था। सिमरन समझ गई थी कि शायद डैडी शक होगा कि मैं अकेली नहीं गई थी। वह रात में ग्रेवजैंड़ ही रह गई। इतनी थकी हुई थी कि घर जाकर कोई काम करना उसके लिए कठिन होता।
रात में अवतार कौर ने उसे कुरेदते हुए कहा-
''सिमरन, आगे तेरा क्या प्रोग्राम है ?''
''मंडे से काम पर जाना है।''
''मेरा मतलब है, अपनी लाइफ़ के बारे में क्या सोचती है ? बलदेव तो अब गया, दूसरा विवाह करवा ले।''
''विवाह की क्या ज़रूरत है मोम ?''
''विवाह के बिना यह सब पाप है।''
सिमरन ने कोई जवाब नहीं दिया। अवतार कौर ने पुन: पूछा-
''कौन था जिसके साथ होलीडे पर गई थी ?''
''काम पर से सहेलियाँ गई थीं, डोंट यू वरी मोम।''
''चिंता क्यों न करूँ। अमरजीत की तरह मुल्ला न ले आना या कोई काला-गोरा।''
''मैं किसी को नहीं लाती, न मुझे किसी की ज़रूरत है, पर अमरजीत तो पहले से कहीं ज्यादा हैप्पी है।''
''कैसी हैप्पी है। हमारी तो लोगों में बेइज्ज़ती हो गई। तेरे डैडी किसी को मुँह दिखाने लायक नहीं रहे।''
''गुरुद्वारों के प्रैजीडेंट हैं, व्हट एल्ज़।''
''यह बात और है।''
''मोम, फिक्र न कर। मैं कहीं नहीं भागी जाती।''
''भागने को भागी जाती है। कहते हैं- मरा रोने-पीटने से रहता है !''
सिमरन उसकी बात पर हँसने लगी। अवतार कौर ने फिर कहा-
''अगर कहे तो बलदेव को अप्रोच करें ?''
''नहीं मोम, मैं ऐसे ही हैप्पी हूँ। तुम भी हैप्पी हो जाओ।''
अगले दिन वह अनैबल और शूगर को लेकर अपने घर लौट रही थी तो लड़कियाँ उससे छोटे छोटे सवाल उसकी छुट्टियों के बारे में पूछ रही थीं। अचानक शूगर ने पूछा-
''मोम, हैव यू सीन डैड देअर ?''
''व्हॉट ?''
''हैव यू सीन हिम ?''
''हू टोल्ड यू दिस ?''
''नो वन।''
सिमरन सोचने लगी कि यह सवाल कहाँ से आया हो सकता था। शायद मम्मी ने बलदेव के बारे में इनसे कोई बात की हो। नहीं तो इन्होंने कभी भी अपने डैडी के विषय में कुछ नहीं पूछा था। बलदेव ने भी अब कभी फोन नहीं किया था। पहले कभी कभार फोन आ जाया करता था। एक बार उसने फोन किया तो जवैर ने उठा लिया। सिमरन ली के साथ डिनर पर गई हुई थी। अमरजीत और जवैर लड़कियों को संभालने के लिए घर आए हुए थे। इसके बाद बलदेव ने कभी फोन नहीं किया और न ही कोई संबंध रखा।
साल से ऊपर हो गया था उसे घर से गए। उस दिन झगड़े के बाद उसने अपना कुछ सामान लपेटा और चलता बना था। सिमरन ने सोचा था कि भाइयों के पास ही गया होगा। उसने अगले दिन गुरिंदर को फोन किया। गुरिंदर आगे से उसे लड़ने को पड़ी। कुछ दिन बाद सिमरन को पता चल गया था कि वह शौन के घर रह रहा था। दोनों लड़कियों ने बलदेव को बहुत मिस किया था। अनैबल पूछने लगती-
''डैडी, आते क्यों नहीं ?''
''वह हमें लाइक नहीं करता।''
''क्यों ?''
''सम डैडीज़ आर लाइक दिस।''
फिर वे स्कूल से लौटकर कहने लगी-
''मैं डैडी मांगती हूँ। मैं डैडी लाइक करती हूँ।''
''सभी बच्चों के पास डैडी थोड़े ही होते हैं। तेरी क्लास के हाफ बच्चों के पास डैडी है ही नहीं।''
सिमरन उसे गोदी में बिठाकर समझाती। अनैबल समझ जाती थी। शूगर कई बार अचानक ही अजीब सा सवाल कर मारती। वैसे वह चुप-सी लगती थी। एक दिन वह कहने लगी-
''मोम, कैन वी हैव ऐन अदर डैड ?''
सिमरन पहले हैरान हुई, फिर हँसते हुए बोली-
''नो... एवरी बडी हैव ओनली वन डैड वन मोम, अदर आर नॉट रीयल वन्ज़।''
अगले दिन अनैबल ने कहा-
''मोम, अवर टीचर टोल्ड अस समथिंग न्यू।''
''क्या ?''
''वी कांट हैव अदर फादर, बिकॉज फादर इज़ ओनली वन। बट वी कैन हैव डैडी। देअर इज़ डिफरेंस बिटवीन डैडी एंड फादर।''
सिमरन ने उसे बांहों में कस लिया और आँखें भर लीं। वह सोचने लगी कि कहाँ से लाए इनके लिए डैडी। ली हारवे के साथ उसका वास्ता बाहर बाहर ही था। उस दिन उसे बलदेव की बहुत याद आई।
कई दिन तक वह काम पर सैटिल नहीं हो सकी थी। पहले छुट्टियों से लौटने के कारण सब पराया पराया लगता था। फिर लड़कियों के सवाल उसको तंग करने लगे थे। उसे परेशान देखकर एक दिन बारबरा ने कारण पूछा तो उसने सारी बात बता दी। बारबरा बोली-
''सिम, ये सवाल तो पीछा किया ही करते हैं। थोड़ा स्ट्रांग बनकर रह। यदि तू कमज़ोर पड़ी तो यह एक्स इनका सहारा लेकर तुझे तंग भी कर सकता है।''
सिमरन सोचने लगी कि बलदेव इन लड़कियों के सहारे उसे क्या तंग कर सकेगा। बहुत करेगा तो लड़कियों को मांग लेगा। वे हँसकर दे देगी और कहेगी कि इनके कारण तो उसकी ज़िन्दगी नरक बनी पड़ी है। कहीं जा नहीं सकती, किसी को घर बुला नहीं सकती।
एक दिन बलदेव का फोन आ गया। वह उससे मिलना चाहता था। उसके फोन ने सिमरन को बहुत उत्साहित किया था। लेकिन फिर उसकी पथरीली सी आवाज़ याद आती तो वह ढीली पड़ जाती। बलदेव के लहजे से जाहिर था कि वह किसी खास काम के कारण ही मिलना चाहता था। कोई जज्बाती कारण प्रतीत नहीं होता था। शायद तलाक लेना चाहता हो या फिर घर में से अपना हिस्सा मांगता हो। सिमरन उसके साथ हर किस्म का समझौता करने को तैयार थी। वह जो कुछ भी मांगता, सिमरन ने देने का फैसला कर लिया। दिल के किसी कोने में से आवाज़ आने लगती कि शायद वह वापस घर ही आना चाहता हो। यह आवाज़ पलभर के लिए उसे आनंदित कर जाती, पर फिर उदास होकर सोचने लगती कि नहीं, यह नहीं हो सकता। बलदेव की आवाज़ में ऐसा कोई सवाल नहीं था। वह उसकी प्रतीक्षा करने लगी।
जिस दिन बलदेव को आना था, वह जल्दी ही काम पर आ गई। बलदेव का कुछ पता नहीं था कि वह पहले ही आया खड़ा हो। काम करते हुए वह बार-बार काउंटर पर से बाहर की ओर देखने लगती। उसने छुट्टी कर ली और बैंक से बाहर निकल आई। बाहर बारिश हो रही थी। ठंड भी थी। वह फिर लौटकर बैंक में आ गई। बलदेव बारह बजे पहुँचा। उसके सिर के बाल गीले थे जिसका अर्थ था कि वह कार कहीं दूर खड़ी करके आया होगा, नज़दीक जगह नहीं मिली होगी। उसने बलदेव की आँखों में झांका। वह स्थिर-सी थीं। उसे देखते ही बोली-
''हाय डेव !''
''हाउ यू डूइंग ?''
''आयम फाइन, यू लुक वैल !''
''यू लुक बैटर दैन बिफोर ! मोर यंगर !''
''थैंक यू।''
वे एक दूसरे के सामने खड़े रहे, फिर सिमरन ने कहा-
''आ, रेस्ट्रोरेंट में बैठते हैं, वहीं बातें करेंगे।''
बलदेव कुछ कहे बग़ैर उसके पीछे चल पड़ा। रेस्ट्रोरेंट खाली सा था। सिमरन ने पहले ही इस रेस्ट्रोरेंट में बैठने का प्रोग्राम बना लिया था। वह सोच रही थी कि अवश्य बलदेव ने कोई खास बात करनी होगी, जिसे करने के लिए ठीक सी जगह चाहिए। इस रेस्ट्रोंरेंट में वह कई बार अपने स्टाफ के साथ आ जाया करती थी। आसपास के भारतीय रेस्ट्रोरेंटों में यह बहुत चलता था। उनके अन्दर प्रवेश करते ही वेटर ने दो सीटों वाले मेज की ओर इशारा करके उनके भीगे हुए कोट पकड़ लिए। कोट से बाहर आई सिमरन को देख बलदेव बोला-
''तूने तो अच्छा-खासा वेट लूज कर लिया।''
''थैंक्स... अपने आप हो गया, मैंने कुछ नहीं किया।''
बेयरा मेन्यू उनके हाथ में दे गया। सिमरन ने पूछा-
''डेव, लंच करना है कि चाय पीनी है ?''
बलदेव ने घड़ी देखकर कहा-
''ऐनीथिंग विल डू।''
सिमरन ने पहले चाय और फिर खाने का आर्डर दे दिया।
बलदेव पूछने लगा-
''फिर, कैसी रहीं तेरी कनेरी आईलैंड की छुट्टियाँ ?''
''तू मेरी स्पाई करता है ?''
''नहीं, मैं नहीं करता। पर अगर कोई खबर मेरी राह में आ खड़ी हो तो मैं क्या करूँ।''
सिमरन ने उसके सवाल की ओर ध्यान दिए बिना कहा-
''बता, किस बात के लिए मिलना चाहता था ?''
''मैं अनैबल और शूगर को देखना चाहता हूँ।''
''इतनी देर बाद ?''
''असल में मैं... मैं फ्लैट आदि नहीं ले पाया था।''
''अब ले लिया ?''
''नहीं, बस ले ही लूँगा।''
''डेव, तेरी बेटियाँ हैं, मेरी तरफ से तू ही अपने पास रख, आयम फैड अप। बट दा थिंग इज़ अगर लेकर जाना चाहता है या मिलना ही चाहता है तो रैगूलर बेस पर मिलना। ऐसा न हो कि एक बार मिल कर दोबारा मुँह ही न दिखाओ। अदरवाइज़ डोंट अपसैट दैम, लीव दैम अलोन। दे आर हैप्पी नाउ।''
बलदेव सोच में डूब गया। उसे सिमरन की बात सही प्रतीत हुई। उसने सोचकर देखा कि इन हालातों में वह यह निरंतरता कायम नहीं रख पाएगा। अभी तो उसका ही स्थायी ठिकाना नहीं था। सिमरन ने पूछा-
''क्या सोच रहा है ?''
''यू आर राइट। लैट मी सैटिल डाउन। मै फ्लैट ले रहा हूँ और फिर जॉब भी चेंज करनी है।''
''यह जॉब ठीक नहीं ?''
''मैं हैप्पी नहीं, शायद किसी बिजनेस में पड़ूँ।''
''तेरे ब्रदर्स हैं हैल्प के लिए।''
बलदेव ने कोई उत्तर न दिया। सिमरन ने फिर कहा-
''हाउ इज़ गुरां ?''
''ठीक है।'' वह संक्षिप्त का जवाब देकर चुप हो गया। सिमरन ने पूछा-
''डेव, इतनी देर हो गई, तेरा घर आने को दिल नहीं करता ?''
बलदेव खामोश रहा। सिमरन बोली-
''डेव, चल मेरे संग एक बार घर चल। एक बार फील करके देख घर को तुझे अच्छा लगेगा।''
''नहीं सिमरन, मैं बहुत खुश हूँ अब। मैं दोबारा उन्हीं फीलिंग्स में से नहीं गुजरना चाहता। वो फीलिंग्स बहुत पेनफुल होती हैं। आई नो, आई नो दैम।''
''डेव, दैट हाउस नीडज़ यू वैरी बैडली।''
''नहीं सिमरन, पता नहीं किस किस सायों का राज है उस घर पर अब।''
''डेव, यू आर रांग हियर, किसी साये का राज नहीं है वहाँ।''
''सिमरन, तू अभी भी ली हारवे के साथ अपने रीलेशन से मुकर रही है। अब तो अपने बीच कुछ नहीं, न ही मुझे तेरे साथ कोई हार्ड फीलिंग रही है। तेरी ज़िन्दगी है, कुछ भी कर। आई डोंट माइंड। आई जस्ट कम फॉर माई डॉटर्स।''
''डेव, मुकरने वाली कोई बात नहीं। मैं तुझे सिर्फ़ यह बता रही हूँ कि ली हारवे का वास्ता मेरे से या मेरी जॉब से हो सकता है, बट नॉट विद दैट हाउस... वो घर तेरा आज भी उतना ही है, जितना तेरा वहाँ रहते समय हुआ करता था। तू जब चाहे आकर रह, मेरे साथ न बोल। वहाँ आज तक कोई पराया मर्द नहीं आया और न आएगा। एक बार अमरजीत और जवैर आए थे, दोबारा वे भी नहीं... घर तेरा है और बेटियाँ तेरी हैं...।''
(जारी…)
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