गुरुवार, 7 मई 2009

गवाक्ष – मई 2009


“गवाक्ष” के माध्यम से हम हिन्दी ब्लॉग-प्रेमियों को हिन्दी/पंजाबी के उन प्रवासी लेखकों/कवियों की समकालीन रचनाओं से रू-ब-रू करवाने का प्रयास कर रहे हैं जो अपने वतन हिन्दुस्तान से कोसों दूर बैठकर अपने समय और समाज के यथार्थ को अपनी रचनाओं में रेखांकित कर रहे हैं। “गवाक्ष” के पिछ्ले तेरह अंकों में पंजाबी कवि विशाल (इटली) की कविताओं का हिन्दी अनुवाद, दिव्या माथुर (लंदन) की कहानी, अनिल जनविजय (मास्को) की कविताएं, न्यू जर्सी, यू.एस.ए. में रह रहीं देवी नागरानी की ग़ज़लें, लंदन निवासी कथाकार-कवि तेजेन्द्र शर्मा, रचना श्रीवास्तव, दिव्या माथुर की कविताएं, दुबई निवासी पूर्णिमा वर्मन की कविताएं, यू एस ए में रह रहीं हिन्दी कथाकार-कवयित्री इला प्रसाद, डेनमार्क निवासी कवि भगत धवन की कविताएं, डेनमार्क निवासी चाँद शुक्ला की ग़ज़लें, यू एस ए निवासी कवि वेद प्रकाश ‘वटुक’ तथा कवयित्री रेखा मैत्र की कविताएं, कनाडा अवस्थित पंजाबी कवयित्री तनदीप तमन्ना की कविताएं, यू के अवस्थित हिन्दी कवि-ग़ज़लकार प्राण शर्मा की ग़ज़लें और पंजाबी कथाकार-उपन्यासकार हरजीत अटवाल के उपन्यास “सवारी” के हिंदी अनुवाद की तेरह किस्तें आपने पढ़ीं। “गवाक्ष” के मई 2009 अंक में प्रस्तुत हैं – कैनेडा में अवस्थित पंजाबी कवि सुखिन्दर की तीन खूबसूरत कविताएं तथा पंजाबी कथाकार-उपन्यासकार हरजीत अटवाल के धारावाहिक पंजाबी उपन्यास “सवारी” की चौहदवीं किस्त का हिंदी अनुवाद…


कैनेडा से
सुखिन्दर की तीन कविताएँ
हिन्दी रूपांतर : सुभाष नीरव


बेटियों को हँसने दो

बेटियों को हँसने दो
हँसती हुई अच्छी लगती हैं वे
हँसती हुई बेटियों को देख याद आएगा
चिड़ियों का चहकना
चिड़ियों के चहकने के साथ याद आएगी
सुबह की ताज़गी
सुबह की ताज़गी के साथ याद आएगा
फूलों का खिलना
फूलों के खिलने के साथ याद आएगी
चारों ओर फैली महक
महक के साथ याद आएगा
तुम्हारा अपना ही मुस्कराता हुआ चेहरा
मुस्कराते हुए चेहरे के साथ याद आएगा
कितने ही ख़ुशगवार मौसमों का इतिहास।

बेटियों को हँसने दो
हँसती-खिलखिलाती ही अच्छी लगती हैं वे
हँसने दो उन्हें
घरों, बज़ारों, चौ-रास्तों पर
स्कूलों, कालेजों, विश्वविद्यालयों में।

हँसने दो उन्हें
मैगज़ीनों, अख़बारों, किताबों के पन्नों पर
रेडियो की ख़बरों में
टेलीविज़नों के स्क्रीनों पर।

हँसने दो उन्हें-
कविताओं, कहानियों, उपन्यासों, नाटकों में
शब्दों, वाक्यों, अर्थों में।

हँसने दो उन्हें-
एकांत में
महफ़िलों में

हँसने दो उन्हें
बहसों में
मुलाकातों में

हँसने दो उन्हें-
साज़ों में
आवाज़ों में

हँसने दो उन्हें-
शब्दों की ध्वनियों में
गायकों की अलापों में

बेटियों को हँसने-खिलखिलाने दो-
हँसती-खिलखिलाती ही अच्छी लगती हैं वे
सदियों से उनके मनों के अंदर
क़ैद हुए परिंदों को उड़ने दो
खुले आसमानों में, खुली हवाओं में
पूरब से पश्चिम
उत्तर से दक्खिन तक उड़ने दो

बेटियाँ घर की खुशबू होती हैं
बेटियों की हँसी से घर महक उठते हैं
बेटियों के चहकने से
उदासी में डूबे चेहरों पर
रौनक लौट आती है

धर्मों, सभ्यताओं की समय बिता चुके
सड़ांध मारते
मनुष्य की चेतना पर निरर्थक बोझ बने
कद्रों-कीमतों की मानसिक क़ैद में जकड़े
बात-बात पर कोबरा साँप की तरह फन फैलाए
मुँहों से ज़हर की पिचकारियाँ छोड़ते
मानवीय भावनाओं, अहसासों से रिक्त
बेटियों की हँसी को क़त्ल करने वाले
धरती पर मानवी जामों में
घूमते-फिरते लोग
हक़ीकत में
हैवानियत की तस्वीर बने
पत्थरों के बुत होते हैं।
0

लड़कियाँ कब हँसती हैं

हत्यारों की तरह जिद्द न करो
चिड़ियों को कमरों में क़ैद करोगे
तड़फ-तड़फ
वे मर जाएँगी

वे उड़ना चाहती हैं
खुले आसमान में
वे बड़े घूँट भरना चाहती हैं
ताज़गी भरी हवा के

वे चहकना चाहती हैं
खुशबुओं भरे मौसम में
वे खिलखिलाना चाहती हैं
खुशबू भरे फूलों की तरह

उमस भरी ज़िंदगी में
लंबी दौड़ के बाद
जब
बरखा रुत आती है
बरसों से होंठों पर लगे ताले
जब
अचानक टूटने लगते हैं
मन के दर्पण में देखने पर
अपना ही चेहरा
गुलाब के फूल की तरह
जब खिल उठता है

लड़कियाँ
तब हँसती है… ।
00

वो सारी औरतें

वो सारी औरतें
जो मेरा नाम सुनते ही
गुलाब के फूलों की तरह
खिलखिला उठती हैं

वो सारी औरतें
जो मेरे कंधों पर
अपने सिर रख
वे सारे भूले-बिसरे
गीत गुनगुनाने लगती हैं
जो गीत उन्होंने
बरसों से नहीं गाए

वो सारी औरतें
जो मेरा नाम सुनते ही
कोयल की भाँति
कू-कू करने लगती हैं
वो भूली-बिसरी आवाज़ें
जो बरसों की दहशत ने
उनके अवचेतन के
किसी कोने में
दबा दी थीं…

वो सारी औरतें
जो मुझे देखते ही
कहने लगतीं-
तू तो ‘अपना-सा’ लगता है

वो सारी औरतें
जो समयों की आवारगी में
मदमस्त हाथियों के पैरों तले
कुचली जाने के कारण
‘अपना-सा’ शब्द के
अर्थ ही भूल गई थीं

कुछ तो होता ही होगा
फूलों की सुगंध में
हवा की ताज़गी में
शब्दों के अर्थों में
रंगों के असर में
आवाज़ों की ध्वनियों में
यूँ ही तो नहीं
करोड़ों वर्षों से
नक्षत्र घूम रहे हैं
इस चुम्बकीय गर्दिश में
बंधे हुए !
00
सुखिन्दर
कैनेडा में एक कैनेडियन पंजाबी लेखक के तौर पर सन् 1975 से सक्रिय। कैनेडा से पंजाबी में छपने वाले खूबसूरत मैगज़ीन “संवाद” के सन् 1989 से संपादक। टोरंटो (कैनेडा) के पंजाबी रेडियो प्रोग्राम “जागते रहो” के प्रोड्यूसर, डायरेक्टर और होस्ट। कविता, फिक्शन और विज्ञान विषयों पर अब तक 20 से अधिक पुस्तकें प्रकाशित। सन् 1975 में हरियाणा भाषा विभाग द्वारा ‘बेस्ट बुक अवार्ड’ से सम्मानित। इसके अतिरिक्त ऑन्टारियो आर्टस कौंसल ग्रांट, कैनेडा (1986 और 1988 ), द कैनेडा कौंसल ग्रांट(1995), इंटरनेशल अवार्ड (1993 और 1996) प्राप्त।
सम्पर्क : Box 67089, 2300 Yonge St.,
Toronto ON M4P 1E0 Canada
Tel. (416) 858-7077
Email: poet_sukhinder@hotmail.com

धारावाहिक पंजाबी उपन्यास(किस्त- 14)


सवारी
हरजीत अटवाल
हिंदी अनुवाद : सुभाष नीरव

॥ उन्नीस ॥

सुबह के दस बजे सोहन सिंह की छाती में दर्द उठा। पहले तो वह खुद ही छाती मलता रहा। ऐसा दर्द पहले भी कभी-कभी उठता था, पर कुछ पल बाद बंद हो जाता था। पर आज वाला दर्द असहय था। वह उठकर कमरे में टहलने लगा। दो मिटन में ही उसे बैठना पड़ा। शरीर में जैसे जान ही नहीं रही हो। दर्द और बढ़ने लगा। वह किसी को जगाना नहीं चाहता था। अभी कुछ समय पहले ही तो वे सभी सोये थे। कल भारत की प्रधान मंत्री के क़त्ल के अफ़सोस में बहुत सारे लोग अजमेर की दुकान पर इकट्ठा हो गए थे। आधी रात तक बैठकर बातें करते रहे थे और शराब पीते रहे थे। फिर अजमेर तो रोज़ ही सोने के समय तक इतना शराबी हो जाया करता है कि दुकान का अलार्म भी उसे जगा नहीं सकता। सोहन सिंह को भी पता था कि अजमेर के लिए उठना मुश्किल होगा, पर जब दर्द उससे बिलकुल ही नहीं सहा गया तो उसने जैसे तैसे उठकर उनका दरवाजा खटखटाया। गुरिंदर ने बाहर निकल कर सोहन सिंह की हालत देखी तो उसके हाथ-पैर फूल गए। उसने उसी समय एम्बूलेंस को फोन कर दिया। उसने सोहन सिंह का पसीना पोंछा और उसे बुलाने की कोशिश की। उसका शरीर कुछ देर कांपता रहा और फिर जैसे बेहोश हो गया हो। गुरिंदर दौड़कर अजमेर के पास गयी और उसे जगाने लगी। वह उसे कंधे से पकड़कर हिलाये जा रही थी और कहे जा रही थी-
''जी उठो, देखो भाइये को क्या हो गया ?''
वह इतनी जोर से बोल रही थी कि बच्चे भी उठ गए, पर अजमेर नहीं उठा। पाँच-सात मिनट में एम्बूलेंस भी आ गयी। गुरिंदर ने जैसे तैसे अजमेर को उठाकर बिठा दिया और खुद दरवाजा खोलने चली गयी और एम्बूलेंस वालों को सोहन सिंह के पास ले आई। उन्हें देख, अजमेर भी चेतन होने लगा। एम्बूलेंस के कर्मचारियों ने सोहन सिंह को स्ट्रेचर पर डाला और नीचे ले गए। गुरिंदर ने पूछा-
''कैसी हालत है ?''
''कुछ कह नहीं सकते, हार्ट अटैक लगता है।''
वे सोहन सिंह को एम्बूलेंस में डाल रहे थे तो अजमेर और गुरिंदर भी पीछे-पीछे थे। एक कर्मचारी ने कहा-
''बहुत सीरियस मामला लग रहा है, आपमें से एक व्यक्ति हमारे साथ ही चले।''
''विटिंग्टन होस्पीटल ही जाना है ?''
''हाँ।''
''आप चलो। हम आते हैं। कार में आ जाएँगे।'' अजमेर ने कहा।
एम्बूलेंस चली गयी। गुरिंदर रोने लगी। अजमेर ने कहा-
''चल तैयार हो।''
''बच्चे ?''
''उन्हें भी साथ ही ले चलते हैं।''
''पर उनकी नींद क्या खराब करें।''
''चल, तू तैयार हो... सोचते हैं कुछ। भाइया ब्रांडी पीने से तो बाज आता नहीं था, लगता है, नहीं बचेगा।''
''बुरे बोल न बोलो, ठीक हो जाएँगे।''
''उस बुच्चड़ को फोन कर। उसे साथ ले जाता हूँ, तू घर में ही रह।''
गुरिंदर ने सतनाम के घर का फोन डायल किया। मनजीत ने उठाया। गुरिंदर रोते हुए बताने लगी-
''भाइये को हार्ट अटैक हो गया। एम्बूलेंस ले गयी है। सतनाम कहाँ है ?''
''जगाती हूँ।'' कहकर मनजीत भी रोने लगी। सतनाम फोन पर आया, बोला-
''जट्टिए, क्या हो गया ?''
''तुम जल्दी आ जाओ, तेरे भाजी का तो तुम्हें पता ही है, दिल है नहीं।''
''मैं आया।''
उसके पहुँचते को अजमेर तैयार हुआ बैठा था। अजमेर ने कहा-
''रात को ब्रांडी के तीन पैग पी गया था, पहले एक ही लिया करता था।''
''नहीं, ब्रांडी से क्या होगा, वैसे ही ब्लॅड प्रैशर होई था।''
''ब्लॅड प्रैशर हाई होने पर ब्रांडी ज्यादा ही खतरनाक हो जाती है।''
''चल भाई, जो हो गया, सो गया। अब ठीक हो जाए।''
''लगता नहीं है, मुझे तो गड़बड़ लगती है। ऊपर से काम का जोर है।''
वे दोनों नीचे उतर कर वैन में बैठ गए। सतनाम ने पूछा-''उस हीरो का कुछ पता है ?''
''शौन के यहाँ तो है नहीं, कल इसने फोन किया था।''
सतनाम चुप होकर बैठा रहा। अजमेर गाड़ी चला रहा था। हौलोवे रोड खाली पड़ी थी। कुछ मिनट में ही अस्पताल पहुँच गए। सीधे अमरजैंसी वार्ड में पहुँचे। डॉक्टर और नर्सें सोहन सिंह को घेरे खड़े थे। सतनाम और अजमेर उनके पीछे जा कर खड़े हो गए। एक डॉक्टर ने गले में से स्टैथोस्कोप उतारते हुए कहा-
''यह तुम्हारा रिश्तेदार है ?''
''जी, हमारे पिता हैं।''
''आई एम सॉरी, ही इज़ नो मोर।''
उसने पल भर रुक कर फिर कहा-
''हमने रिवाइव करने की पूरी कोशिश की थी।''
दोनों भाई एक-दूजे की ओर देखने लगे। उनकी आँखें सजल हो उठीं। सतनाम ने आँखें पोंछते हुए डॉक्टर से पूछा-
''अगल प्रोसीज़र क्या है ?''
''वो सिस्टर बताएगी।''
उसने करीब खड़ी सिस्टर की ओर इशारा किया तो नर्स स्वयं ही उनके पास आ गयी।
''हमने कुछ कागजी कार्रवाई करनी है जिसके लिए आपकी ज़रूरत है। फिर बॉडी मॉर्चरी में भेज दी जाएगी। तुम किसी अंडरटेकर से बात कर लो। पर जल्दबाजी की ज़रूरत नहीं है। पहले परिवार में जाओ, बैठो।''
नर्स सतनाम को विस्तार से बता रही थी। उसने अजमेर से कहा-
''वाकई भाई, भाइये ने बहुत गलत टाइम चुना। उधर काम बहुत है और इधर यह पंगा।''
अजमेर चुप था। क्रिसमस के दिन करीब थे। दुकानदारी का यही वक्त था और अब वे फ्यूनरल में बिजी रहेंगे। कुछ देर बाद अजमेर ने कहा-
''तेरा तो अभी फिर भी ठीक है, मेरा तो साल में यही बिजी पीरियड होता है।''
''चल, कोई बात नहीं। हो गया जो होना था। आगे का सोचें। घर चलते हैं। इधर-उधर खबर भी देनी होगी।''
वे घर पहुँचे। गुरिंदर को पता चला तो वह रोने लगी। मनजीत भी पहुँच गई। कुछ समय तक रोना-धोना चला। सतनाम ने जल्दी ही उन्हें शांत होने के लिए कह दिया था। फिर वह घड़ी देखता हुआ बोला-
''मेरा तो मार्किट जाने का समय भी हो गया।''
''आज गए बगैर काम नहीं चलेगा ?'' गुरिंदर ने पूछा।
''चल तो जाएगा, चिकन लेने ही जाना है, यहीं गफूर से पकड़ लूंगा।''
सतनाम ने जल्दबाजी में ही सोच लिया था। गफूर कहता भी रहता था कि वह स्मैथीफील्ड के भाव में ही माल उससे ले लिया करे। गफूर जैसे कई अन्य मिल कर चिकन खरीदते जो कि सस्ता पड़ जाता। सतनाम ने अजमेर से पूछा-
''भाई, क्या आज दुकानें खोलनी हैं ?''
''खोलनी क्यों नहीं !... दुकानें तो चलती रहनी चाहिएँ, नहीं तो ग्राहक किसी दूसरी तरफ चले जाएँगे। एक बार गए ग्राहक को मोड़ना कठिन हो जाता है। मेरी दुकान टोनी खोल लेगा, तेरे पास पैट्रो है...।''
सतनाम और मनजीत अपने घर लौट आए। बच्चों को भी स्कूल भेजना था। मनजीत ने छुट्टी का भी इंतज़ार करना था। घर से सतनाम दुकान में आ गया। बीफ और लैम्ब गुजारे लायक पड़े थे, पोर्क भी था ही। चिकन जैसा कि उसने सोचा था कि कश्मीरी की दुकान से ले आएगा, कुछ पैसे अधिक ही सही अगर देने पड़े तो। वह छुर्रियाँ-गंडासे सीधे करने लग पड़ा। फिर कोल्ड रूम में से मीट लाकर शैल्फ में रखने लगा। तब तक 'मार्निंग' करता हुआ पैट्रो भी आ गया। उसने सतनाम की ओर देखते हुए कहा-
''सैम, तू ठीक नहीं लगता, रात में सोया नहीं ? तेरी आँखें सूजी हुई हैं।''
''तू ठीक कह रहा है पैट्रो, आज तो काम तुम्हें ही चलाना होगा। मैं रात में सो नहीं सका। मेरे पिता जी की मौत हो गई है।''
''सच ! कैसे ?''
''हाँ, हार्ट अटैक आया और साथ ही ले गया।''
''यह तो बहुत बुरा हुआ। वह बहुत अच्छा बुजुर्ग था। जब भी यहाँ आता तो हँसता ही रहता। सैम, बहुत दुख की बात है... पर तू दुकान क्यों खोल रहा है ?''
''क्यों ?''
''तेरे समाज में तेरी बेइज्जती नहीं होगी। तेरे जानकार लोग क्या कहेंगे कि तेरा बाप मर गया और तू दुकान खोल कर बैठा है। नहीं सैम, हम दुकान नहीं खोलेंगे।''
''पर पैट्रो, ग्राहकों का क्या होगा, मीट भी पड़ा है अंदर।''
''ग्राहक सारी बात समझा करते हैं। मीट को मैं फ्रिज में रख देता हूँ, कुछ नहीं बिगड़ता इसका।''
उसने सतनाम के उत्तर की प्रतीक्षा किए बिना दरवाजा बन्द कर दिया। ''क्लोज्ड'' का साइन लगा दिया और बोला-
''देख, यहाँ कोई काला कपड़ा है तो विंडो में टांग दे।''
सतनाम कुछ न कह सका। पैट्रो काला कपड़ा खोजने लगा। उसे काला कपड़ा नहीं मिला। वह रात वाली व्हिस्की की बोतल ढूँढ़ लाया। उसमें छोटे-छोटे दो पैग थे। पैट्रो ने एक पैग सतनाम को थमाया और एक स्वयं ले लिया। गिलास को ऊपर उठाकर बोला-
''तेरे पिता के नाम... क्या नाम था उसका ?''
''सोहन सिंह।''
''सोन सिंह के नाम... हे गॉड उसकी मदद करना, आमीन !''
कह कर उसने दो घूंट व्हिस्की के भरे। तब तक माइको और मगील भी आ गए। उन्हें मालूम हुआ तो वे भी सतनाम से अफसोस प्रकट करने लगे। पैट्रो ने माइको को पैसे देकर कहा-
''ये दुकान तो अभी बंद है, हौलोवे रोड पर खुली है, बोतल पकड़ ला।''
माइको तेज कदमों से गया और बोतल ले आया। पैट्रो ने सबका पैग डाला। तब तक जुआइस भी आ गई थी। पैट्रो के कहने पर वह काली चादर घर से उठा लाई और विंडो में टांग दी। उसके हाथ में रम भी थी और बीयर भी। मगील व्हिस्की नहीं पीता था, पर आज पी ली। उसने कहा-
''हमारा बाप मरा है, उसके नाम के टोस्ट ज़रूरी हैं... कुछ नहीं कहती व्हिस्की मुझे, बुजुर्ग की आत्मा को तो खुश करना ही है न।''
मगील कुछ देर तक एक दिशा में देखता रहा, फिर ज़ोर-ज़ोर से रोने लगा। पैट्रो खीझता हुआ उससे बोला-
''चुप हो जा मगील, वह कोई जवान था कि तू विलाप करेगा। उसने पूरी उम्र भोगी है, उसकी ज़िन्दगी का जश्न रो कर न मना।''
मगील शांत हो गया। तब तक अजमेर ने आ कर दरवाजा खटखटाया। वह हैरान होता हुआ पूछने लगा-
''दुकान क्यों नहीं खोली ?''
''पैट्रो नहीं माना। मैंने भी कहा, चलो कोई बात नहीं।''
पैट्रो, माइको और मगील ने अजमेर से उसके पिता की मौत का अफसोस प्रकट किया। पैट्रो ने उसको भी पैग बनाकर दिया। अचानक मगील ने डांस करना शुरू कर दिया और स्पेनिश भाषा में कोई गीत गाने लग पड़ा। पैट्रो फिर खीझ कर बोला-
''तुझे कहा था न कि यह सब नहीं करना।''
''पैट्रो, वह मेरा भी बाप था, बाप कभी बूढ़ा नहीं होता, इसलिए मैं तो उसका विलाप करूँगा ही। अब तू कल को मरेगा तो तेरा क्या ख़याल है कि मैं नहीं रोऊँगा।''
कह कर वह पुन: रोने लगा। रोते-रोते डांस करने लग पड़ा। सतनाम ने कहा-
''पैट्रो, लौरल को जो करता है, करने दे। इसे भी अभी चांस मिला है।''
अजमेर अपना पैग खत्म करके बोला-
''उधर आ जाना, फ्यूनरल के बारे में सलाह-मशवरा करें।''
''जैसा करना है, कर लो। सलाह की कौन सी बात है।''
''सलाह करते हैं कि कैसा फ्यूनरल हो, कितने खर्चे वाला, फिर खर्च भी शेयर करना है, उस बलदेव को भी ढूँढ़ें, हिस्सा डाले अपना।''
हिस्सा डालने-डलवाने की बात सतनाम को अच्छी न लगी। वह समझता था कि सोहन सिंह की पेंशन आती थी जो कि अजमेर के पास ही रहती थी। उसमें से फ्यूनरल भी किया जा सकता था। सतनाम की खामोशी को देख कर अजमेर समझ गया और बोला-
''भाइये के थोड़े से पैसे मेरे पास पड़े हैं, पर मैं सोचता हूँ कि वे इंडिया को भेज दें। अब अपने से पीछे की देखभाल नहीं हो सकेगी। भाइये के साथ ही था सब कुछ, ऐसा करेंगे तो गाँव में भी अपनी शोभा होगी।''
''जैसा चाहो कर लो, मुझे क्या कहना है।''
सतनाम ने ढीली सी आवाज़ में कहा।
अजमेर वहाँ से गुस्से में भरा हुआ घर पहुँचा। गुरिंदर ने पूछा-
''क्या हुआ ?''
''होना क्या है ? बूचड़ फ्यूनरल में हिस्सा नहीं डालना चाहता।''
''चलो कोई बात नहीं, खफा क्यों होते हो।''
''मैं एक बात बताऊँ... अगर इन दोनों ने हिस्सा न डाला तो मैं बूढ़े की बॉडी काउंसिल को दे दूँगा। खुद लावारिस कह कर संस्कार कर देंगे।''
00
(क्रमश: जारी…)

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