शनिवार, 5 दिसंबर 2009

गवाक्ष – दिसम्बर 2009


“गवाक्ष” के माध्यम से हम हिन्दी ब्लॉग-प्रेमियों को हिन्दी/पंजाबी के उन प्रवासी लेखकों/कवियों की समकालीन रचनाओं से रू-ब-रू करवाने का प्रयास कर रहे हैं जो अपने वतन हिन्दुस्तान से कोसों दूर बैठकर अपने समय और समाज के यथार्थ को अपनी रचनाओं में रेखांकित कर रहे हैं। “गवाक्ष” के पिछ्ले तेरह अंकों में पंजाबी कवि विशाल (इटली) की कविताओं का हिन्दी अनुवाद, दिव्या माथुर (लंदन) की कहानी, अनिल जनविजय (मास्को) की कविताएं, न्यू जर्सी, यू.एस.ए. में रह रहीं देवी नागरानी की ग़ज़लें, लंदन निवासी कथाकार-कवि तेजेन्द्र शर्मा, रचना श्रीवास्तव, दिव्या माथुर की कविताएं, दुबई निवासी पूर्णिमा वर्मन की कविताएं, यू एस ए में रह रहीं हिन्दी कथाकार-कवयित्री इला प्रसाद, डेनमार्क निवासी कवि भगत धवन की कविताएँ और चाँद शुक्ला की ग़ज़लें, यू एस ए निवासी कवि वेद प्रकाश ‘वटुक’ तथा कवयित्री रेखा मैत्र की कविताएं, कनाडा अवस्थित पंजाबी कवयित्री तनदीप तमन्ना की कविताएं, यू के अवस्थित हिन्दी कवि-ग़ज़लकार प्राण शर्मा की ग़ज़लें, कैनेडा में अवस्थित पंजाबी कवि सुखिन्दर की कविताएं, कनाडा निवासी पंजाबी कवयित्री सुरजीत, अमेरिका अवस्थित डॉ सुधा धींगरा, कनाडा में अवस्थित हिंदी- पंजाबी कथाकार - कवयित्री मिन्नी ग्रेवाल की कविताएं, न्यूजीलैंड में रह रहे पंजाबी कवि बलविंदर चहल की कविता, कैनेडा में अवस्थित पंजाबी लेखिका बलबीर कौर संघेड़ा की कविताएं और पंजाबी कथाकार-उपन्यासकार हरजीत अटवाल के उपन्यास “सवारी” के हिंदी अनुवाद की उन्नीसवीं किस्त आपने पढ़ीं। “गवाक्ष” के दिसम्बर 2009 अंक में प्रस्तुत हैं – इंग्लैंड से शैल अग्रवाल की कविताएं तथा पंजाबी कथाकार-उपन्यासकार हरजीत अटवाल के धारावाहिक पंजाबी उपन्यास “सवारी” की बीसवीं किस्त का हिंदी अनुवाद…

इंग्लैंड से
शैल अग्रवाल की पाँच कविताएं

(1)

शब्द बनकर बह चले
देखो सब चन्दा और तारे
बहुत जतन से जो मैंने
अपनी चूनर पर थे टांके
पक्की गांठ लगाकर
टाँका वह जोड़ा था
सूई तो बहुत नुकीली थी
धागा ही कुछ छोटा था।

(2)

बेचैन ये तूलिका
ठहरे ना थमे
रंगों के मटमैले पानी में
आंसू और मुस्कान ज्यों
एक तुम्हारे
आने और जाने पर।

(3)

मन्दिर यह
उसने तो नहीं बनवाया था
हमने ही
सिंहासन पे बिठा
फूल माला चढ़ा
भगवान बनाया था
आलम अब यह है
कि डाली का वह फूल
चरणों पे चढ़कर
माथे से लगकर भी
बस सूखा ही सूखा
और मँदिर में
खड़ा भगवान फिर हँसा
एकनिष्ठ परवशता
असमर्थ आस्था
और हठी हमारी
मूर्खता पर।

(4)

अजीब तस्बीर थी वह
उदास और अस्पष्ट
रंगों की तहों में गुम
ढूंढती कुछ…
लाल पीले चंद छींटे
खुशी का लिबास ओढ़े
मचले बिखरे और बेतरतीब
जैसे नामुराद कोई जिन्दगी
डायरी के पन्नों सी
बेवजह ही खुद को
भरने की कोशिश में
छुप-छुप के रोए।
(5)

दोष किसी का नहीं
जब गति तेज हो
दृष्टि भटक जाती है
धुरी पर घूमती
एक अकेली तीली
सौ रूपों में नजर आती है
शेर की खाल ओढ़े
गीदड़ भी जंगल-जंगल
डर फैला आता है
दस्तानों के पीछे जादूगर
कबूतर उड़ा जाता है
पर जब तीली रुकी
खाल उघड़ी, जादू टूटा
बादलों के पीछे से
निकला फिर सूरज।
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जन्म: 21 जनवरी 1947, वाराणसी में। शिक्षा: बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से प्रथम श्रेणी में आनर्स के साथ स्नातक संस्कृत, चित्रकला व अंग्रेज़ी साहित्य में और स्नातकोत्तर उपाधि अंग्रेज़ी साहित्य में। '
1968 से आज तक सपरिवार भारत से दूर इंग्लैंड में, एकांत में शब्दों, रंगों और स्वरलहरी में डूबना प्रिय, लिखने का शौक बचपन से, हिंदी और अंग्रेज़ी में निरंतर लेखन पिछले चंद वर्षों से। कविता, कहानी, लेख व नाटक चंद पत्रिकाओं और संकलनों में, कुछ रेडियो पर भी। '
प्रकाशित रचनाएँ :कहानी-संग्रह :'ध्रुव-तारा' काव्य-संग्रह 'समिधा' व 'नेति-नेति' '
शैल अग्रवाल अभिव्यक्ति में बर्तानिया का प्रतिनिधित्व करती हैं और परिक्रमा के अंतर्गत ‘लंदन पाती’ नाम से नियमित स्तंभ लिखती हैं। ' कई वर्षों से नेट पर हिन्दी-अंग्रेजी में द्विभाषिक वेब पत्रिका “लेखनी” का संचालन-संपादन।
संपर्क : shailagrawal@hotmail.com'

धारावाहिक पंजाबी उपन्यास(किस्त- 20)


सवारी
हरजीत अटवाल
हिंदी अनुवाद : सुभाष नीरव
चित्र : रुचिरा

॥ पच्चीस ॥
शौन की दो बजे की फ्लाइट थी। बारह बजे तक बलदेव को पहुँचना था। उसे शौन को एअरपोर्ट छोड़कर आना था। शौन ने अपना सामान पहले ही तैयार करके दरवाजे के नज़दीक रख लिया था। वह कमरे में घूम रहा था। कैरन एक ओर बैठी रो रही थी। वह सारी रात उसे रोकने की कोशिशें करती रही। बेटी की ज़िन्दगी का वास्ता देती रही थी। शौन उसे छोड़कर जाने को तुला हुआ था। कमरे में इधर-उधर घूमता शौन कभी घड़ी देखता और कभी खिड़की में से बाहर झांकने लगता। कैरन कुछ कह नहीं रही थी। वह सोच रही थी कि उसने जितना कहना था, कह लिया था। सारी रात कहती रही थी। बलदेव की कार को आता देख शौन उससे कहने लगा-
''लुक आफ्टर माय डॉटर।''
कैरन उठी और उसकी ओर झपटी। उसके थप्पड़ मारने लगी और कहने लगी-
''फक्क ऑफ़ यू बास्टर्ड ! गैट आउट फ्राम हेयर... यू रूइंड माय लाइफ ! यू मौंकी फेस, आय हेट यू बास्टर्ड, आय हेट यू अपटू योर डैथ।''
वह तब तक मारती रही जब तक थक न गई। शौन अपने मुँह को बचाता ज्यूं का त्यूं खड़ा रहा और फिर सामान उठाकर बाहर की ओर दौड़ पड़ा।
कैरन सिर पकड़कर बैठ गई और फिर से रोने लगी। वह कहती जा रही थी- ''मैं कहाँ गलत थी। मैं कहाँ गलत थी।''
शोर सुनकर साथ वाले कमरे में सो रही पैटर्शिया उठ गई। कैरन थपथपा कर उसे पुन: सुलाने लगी। फिर रसोई में जाकर उसके लिए दूध बनाया। बोतल उसे पकड़ाकर खिड़की में आ खड़ी हुई। सड़क खाली थी।
शौन को जाना था। बहुत समय से जाने की बात कर रहा था। सो चला गया। उसे तो फॉदर जोय ने रोक रखा था। अपने आप को धार्मिक कहने वाला शौन धर्म को ठेंगा दिखाता चला गया था। कैरन उसके धार्मिक पाखण्ड पर मन ही मन हँसने लगी।
शौन उसे तब मिला था जब वह पढ़ाई खत्म करके छुट्टियाँ बिताने लंदन आई थी। एक डिस्को पर वह मिला। डेटिंग होने लगी। शौन ने विवाह का प्रस्ताव रखा। वह विवाह के लिए अभी तैयार नहीं थी। हालांकि पढ़ाई में वह किसी किनारे नहीं लगी थी पर उसका भविष्य उजला था। उसका पिता अभी-अभी मॉरीशश का मंत्री बना था। वैसे भी उसके बिंगोहाल और सिनमा थे, जिनको संभालने में उसने पिता की मदद करनी थी। फिर उसे अच्छे से अच्छा लड़का मिलने की उम्मीद थी। उसकी बहन गायत्री कुछ वर्ष पहले लंदन आई थी तो उसने एक साधारण से लड़के के साथ विवाह करवा लिया था। लड़का यद्यपि उनके शहर का ही था, पर रुतबे में छोटे परिवार से था। पिता बहुत खीझा-खीझा रहने लगा था। कैरन पर पिता को बहुत आशाएँ थीं। जब शौन ने विवाह का प्रस्ताव रखा तो कैरन अपने पिता के बारे में सोचने लगी थी। शौन विवाह के लिए कुछ अधिक ही पीछे पड़ गया था। उसने अपने पिता को शौन के विषय में काफी कुछ बढ़ा-चढ़ा कर बताया। कितना कुछ झूठ बोलकर पिता को विवाह के लिए मनाया था।
वह माना तो शौन इंडिया चला गया। कैरन का मन बहुत दुखी हुआ। वह सबकुछ कैंसिल करके वापस मॉरीशश चली गई। शौन इंडिया से लौटकर फिर उसे खोजने लगा। उसे मॉरीशश फोन करता रहता। जब कैरन नहीं मानी तो वह स्वयं मॉरीशश पहुँच गया। शौन का इतना प्यार देखकर कैरन को पुन: मन बदलना पड़ा।
विवाह के बाद शौन अच्छा-भला था। कुछ धार्मिक अधिक था, पर कैरन को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता था। वह उसके संग चर्च चली जाती। उनके घर में धर्म को अधिक महत्व नहीं दिया जाता था। हिन्दू पृष्ठभूमि होने के कारण कुछ रस्म-रिवाज़ अलग थे, नहीं तो शौन के धर्म में कैरन को कुछ भी पराया नहीं लगा था। बल्कि फॉदर जोय उससे बहुत प्यार करता था। उसकी ओर विशेष ध्यान देता था। वह शौन के साथ आयरलैंड भी गई। वहाँ जाकर उसका मन बहुत खराब हुआ। बहुत ही साधारण से अनपढ़ परिवार में से था शौन। वैलज़ी के लोग एकदम गंवार से थे। उसके सामने ही उसके रंग की बातें करने लगते और कई तो नफ़रत का इज़हार भी कर जाते।
कैरन को बड़े-बड़े सपने दिखाने वाला शौन जल्द ही उसे झूठा-झूठा लगने लग पड़ा। उसकी नौकरी भी साधारण क्लर्की थी। उसका फ्लैट भी कौंसल का ही था। वह कंजूस भी हद दर्जे का था। कैरन को घूमने-फिरने का शौक था। अपने देश में हर वीक एंड उसका कहीं बाहर ही बीतता था, पर शौन तो घर में ही बैठा रहता। वह ज्यादा कहती तो झगड़ा हो जाता। फिर शौन ने हेराफेरी से उसे गर्भवती बना डाला ताकि बाहर आने-जाने के योग्य ही न रहे। कैरन अभी बच्चा नहीं चाहती थी। उसने गर्भपात करवाना चाहा तो शौन ने आसमान सिर पर उठा लिया। गर्भपात शौन के धर्म में महापाप था। शौन उसको चर्च में ले गया। फॉदर जोय ने गर्भपात के खिलाफ़ भाषण दे मारा।
इसके पश्चात् शौन उसे बुरा लगने लग पड़ा। उसने उसे एक तरह से कैदी बना रखा था। उसके सारे सपने किसी खाई में जा गिरे थे। वह विवाह के चक्कर में फंस कर रह गई थी। नहीं तो उसकी ज़िन्दगी कुछ और ही होती। किसी बड़े आदमी से ब्याही जानी थी वह। नौकर-चाकर होते। बड़ा-सा कारोबार होता। अब यहाँ छोटे से फ्लैट में फंसी बैठी थी। अपने पिता को अपनी असलीयत भी नहीं बता सकती थी। वह उससे धन लेकर कोई कारोबार आरंभ कर सकती थी, पर शौन ऐसा व्यक्ति नहीं था जो उसके कहने के अनुसार चल सके। अमीर बनने का सपना लिए वह घूमता था, पर काम करके वह खुश नहीं था। उसकी तनख्वाह से घर का खर्च बमुश्किल चलता था। फिर पैटर्शिया आ गई तो उनके खर्चे बढ़ गए। पैटर्शिया की क्रिश्चियनिंग के समय उन्हें किसी से पैसे पकड़ने पड़े थे। फिर तो उसने काम भी छोड़ दिया था और सोशल सिक्युरिटी लेने लगा था। पैसे की तंगी के कारण झगड़ा और बढ़ने लगा था। कैरन को अपनी ख्वाहिशें तो भूल ही गई थीं, उसे तो अपनी ज़रूरतें पूरी करने की चिंता सताती रहती थी। फिर बलदेव को एक कमरा किराये पर दिया तो कुछ मदद होने लगी थी। शौन का धार्मिक होना भी अब चुभने लगा था। कैरन को उसका धर्म में यकीन एक ढोंग प्रतीत होता। वह स्वयं सबकुछ धर्म के विपरीत करता था।
एक दिन चर्च गई तो फॉदर जोय उसे शौन से अकेला करके एक कमरे में ले गया और बोला-
''मेरी बच्ची, कन्फैशन करना चाहेगी।''
''कैसा कन्फैशन फॉदर ?''
''मेरी बच्ची, कन्फैशन कर लेगी तो जीसस माफ़ कर देंगे। सारे गुनाह बख्से जाएंगे।''
''कैसे गुनाह फॉदर, मैंने कोई गुनाह नहीं किया, मैं किसी के गुनाह की शिकार अवश्य बनी हुई हूँ।''
कन्फैशन वाली बात शौन ने भी उससे कही थी। कई बार घर में झगड़ा होता। शौन उसे सॉरी कहने के लिए कहता। वह सॉरी कह देती तो शौन कहता कि ऐसे नहीं, जाकर कन्फैशन बॉक्स में माफ़ी मांग। उसने सोचा कि ज़रूर शौन ने ऐसी कोई बात फॉदर को कही होगी। उसने फॉदर से पूछा-
''फॉदर, क्या शौन मेरे पर कोई इल्ज़ाम लगा रहा है ?''
''हाँ, कि तूने सिर्फ़ पासपोर्ट के लिए उससे विवाह करवाया है।''
''यह बिलकुल झूठ है फॉदर, बिलकुल झूठ ! मैं तो हर हालत में इसके साथ रहने को तैयार हूँ। इसके साथ रहने में मेरी और मेरे परिवार की इज्ज़त है। गुनाहगार तो शौन है फॉदर।''
फिर उसने शौन के प्रति अपने सभी गिले-शिकवे बता दिए कि कैसे अपनी अमीरी के बारे में झूठ बोला। कैसे घर की हालत बुरी कर रखी थी। कैसे उसके साथ हर वक्त झगड़ा किया करता था। उसे पाकि(पाकिस्तानी) कहकर नस्लवादी फ़र्क पैदा करता था और कैसे अपने धर्म पर पछता रहा था, जिसमें तलाक की सुविधा ही नहीं थी। इस विवाह से छुटकारा शौन चाहता था न कि वह। अपनी बात पूरी सही सिद्ध करने के लिए उसने पैटर्शिया का सहारा भी लिया। उसने शौन को ज़ालिम बनाने में अपनी पूरी ताकत लगा दी। फॉदर पर उसकी बातों का असर हो गया। उसने आशीर्वाद देते हुए उसे वापस भेज दिया था। उस दिन के बाद उसकी हर बात बहुत ध्यान से सुनने लगा था।
शौन के चले जाने के बाद उसने पैटर्शिया को बग्घी में डाला और फॉदर जोय को बताने चल पड़ी। उसने फॉदर से कहा-
''फॉदर, शौन मुझे छोड़कर चला गया है।''
''कहाँ गया ?''
''पता नहीं, यह देश ही छोड़ गया, किसी दूसरी देश में...।''
फॉदर मन ही मन कोई प्रार्थना करने लगा और फिर बोला-
''मेरी बच्ची, ज़िन्दगी में ऐसे इम्तिहान इन्सान को परखने के लिए आया ही करते हैं। तुम्हारी ज़िन्दगी में भी आया है। हौसला रखो, अगर वह सच्चा क्रिश्चियन हुआ तो ज़रूर लौटेगा। उसे आना पड़ेगा।''
''फॉदर, यह गुनाह नहीं ?''
''बेशक गुनाह है, वह कन्फैशन करेगा।''
''फॉदर, मैं बहुत अकेली रह गई हूँ।''
''नहीं, तू अकेली नहीं। जीसस तेरे संग है। यहाँ आया कर। देख, यहाँ कितने तेरे ब्रदर-सिसटर्स आते हैं, कोई जिम्मेदारी संभाल ले। मैं शौन को तलाशूँगा और वापस तेरे पास लौटने के लिए मज़बूर करूँगा।''
''फॉदर, मुझे आर्थिक सहायता की भी ज़रूरत पड़ेगी।''
''मेरी बच्ची, इस बारे में हमारे पास कोई सुविधा नहीं है पर सरकार कर ही रही है। यहाँ ब्रदर सिसल डौनोमोर है जो ऐसे मामलों में माहिर है, वह तेरी हर मदद करेगा, उसे मिल लेना।''
उस दिन के बाद कैरन हर रोज़ चर्च जाने लगी। वह सवेरे ही पैटर्शिया को तैयार करके संग ले जाती। बड़े-बड़े स्टोरों से बहुत सारा सामान चर्च के लिए आया करता था। जिस सामान की तारीख छोटी होती, वह दूसरे चर्चों या चैरिटेबल संस्थाओं को भेज दिया जाता। कैरन की खाने-पीने की समस्या हल हो गई। ऐसे सामान से उसका फ्रिज भरा रहता था। सोशल सिक्युरिटी की ओर से फ्लैट का किराया और उसके अपने और पैटर्शिया के पैसे निरंतर लग गए थे। उसकी ज़िंदगी पहले से अच्छी और आसान हो गई।
उसे यकीन था कि शौन नहीं लौटेगा। लेकिन फॉदर उसे विश्वास दिलाये रहता। उसे शौन के लौटने की चाहत भी नहीं थी। कई बार बैठकर सोचने लगती कि अब वह क्या करे। उसका दिल करता कि डिस्को आदि जाए, पर पैटर्शिया के कारण बंधी बैठी थी। इन दिनों में ही उसका अपनी बहन गायत्री से फोन पर सम्पर्क हो गया। गायत्री उसे मिलने आने लगी। उसका अपने पति से झगड़ा चल रहा था। बात तलाक तक पहुँची हुई थी। तलाक के बाद गायत्री ने अपने घर में से आधा हिस्सा लिया और कैरन के पास आकर रहने लगी। गायत्री के आने से उसको बहुत फायदा हुआ। अकेलापन भी कम हुआ और अब वह बच्ची को उसके पास छोड़कर बाहर भी जा सकती थी। गायत्री के तलाक से उनके बाप पर ऐसा असर हुआ कि उसे हार्ट अटैक हो गया। बड़ा हार्ट अटैक था और वह लम्बे समय के लिए बिस्तर पर पड़ गया। कई बार कैरन सोचा करती थी कि वापस पिता के पास ही चली जाए, पर अब उसने वापस जाने का विचार ही छोड़ दिया था। उसके पिता को अब उसकी ज़रूरत भी नहीं थी। उसका कारोबार लड़के ने संभाल लिया था। फिर कैरन अपनी समस्याएँ बताकर पिता की बीमारी में वृद्धि नहीं करना चाहती थी।
एक शाम वह बाहर जाने के लिए तैयार हो रही थी। उसने बढ़िया से बढ़िया ड्रैस पहनी। उससे मेल खाता मेकअप किया। चमकीला-सा पर्स हाथ में पकड़ा। नए ढंग से संवारे बालों को ठीक करती हुई वह गायत्री से हंसकर बोली-
''आज मेरी अच्छी किस्मत की कामना कर कि शिकार के बग़ैर वापस न आऊँ।''
00
(क्रमश: जारी…)

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