सोमवार, 25 जनवरी 2010

गवाक्ष – जनवरी 2010


“गवाक्ष” ब्लॉग ने जनवरी 2008 में हिंदी ब्लॉग की दुनिया में पदार्पण किया था। जनवरी 2010 में इसने अपना दो वर्ष का सफ़र तय कर लिया है। इस ब्लॉग के माध्यम से हम हिन्दी ब्लॉग-प्रेमियों को हिन्दी/पंजाबी के उन प्रवासी लेखकों/कवियों की समकालीन रचनाओं से रू-ब-रू करवाने का प्रयास करते आ रहे हैं जो अपने वतन हिन्दुस्तान से कोसों दूर बैठकर अपने समय और समाज के यथार्थ को अपनी रचनाओं में रेखांकित कर रहे हैं। “गवाक्ष” में अब तक पंजाबी कवि विशाल (इटली) की कविताओं का हिन्दी अनुवाद, दिव्या माथुर (लंदन) की कहानी, अनिल जनविजय (मास्को) की कविताएं, न्यू जर्सी, यू।एस.ए. में रह रहीं देवी नागरानी की ग़ज़लें, लंदन निवासी कथाकार-कवि तेजेन्द्र शर्मा, रचना श्रीवास्तव, दिव्या माथुर की कविताएं, दुबई निवासी पूर्णिमा वर्मन की कविताएं, यू एस ए में रह रहीं हिन्दी कथाकार-कवयित्री इला प्रसाद, डेनमार्क निवासी कवि भगत धवन की कविताएँ और चाँद शुक्ला की ग़ज़लें, यू एस ए निवासी कवि वेद प्रकाश ‘वटुक’ तथा कवयित्री रेखा मैत्र की कविताएं, कनाडा अवस्थित पंजाबी कवयित्री तनदीप तमन्ना की कविताएं, यू के अवस्थित हिन्दी कवि-ग़ज़लकार प्राण शर्मा की ग़ज़लें, कैनेडा में अवस्थित पंजाबी कवि सुखिन्दर की कविताएं, कनाडा निवासी पंजाबी कवयित्री सुरजीत, अमेरिका अवस्थित डॉ सुधा धींगरा, कनाडा में अवस्थित हिंदी- पंजाबी कथाकार - कवयित्री मिन्नी ग्रेवाल की कविताएं, न्यूजीलैंड में रह रहे पंजाबी कवि बलविंदर चहल की कविता, कैनेडा में अवस्थित पंजाबी लेखिका बलबीर कौर संघेड़ा की कविताएं, इंग्लैंड से शैल अग्रवाल की पाँच कविताएं और पंजाबी कथाकार-उपन्यासकार हरजीत अटवाल के उपन्यास “सवारी” के हिंदी अनुवाद की बीसवीं किस्त आपने पढ़ीं। “गवाक्ष” के जनवरी 2010 अंक में प्रस्तुत हैं – सिंगापुर से श्रद्धा जैन की छह ग़ज़लें तथा पंजाबी कथाकार-उपन्यासकार हरजीत अटवाल के धारावाहिक पंजाबी उपन्यास “सवारी” की इकीसवीं किस्त का हिंदी अनुवाद…


सिंगापुर से
श्रद्धा जैन की छह ग़ज़लें

1
घटा से घिर गयी बदली, नज़र नहीं आती
बहा ले नीर तू उजली, नज़र नहीं आती

हवा में शोर ये कैसा सुनाई देता है
कहीं पे गिर गयी बिजली नज़र नहीं आती

है चारों ओर नुमाइश के दौर जो यारो
दुआ भी अब यहाँ असली नज़र नहीं आती

चमन में खार ने पहने, गुलों के चेहरे हैं
कली कोई कहाँ, कुचली नज़र नही आती

पहाड़ों से गिरा झरना तो यूँ ज़मीं बोली
ये दिल की पीर थी पिघली नज़र नही आती

2

तना है दम चराग़ में तब ही पता चले
फानूस की न आस हो , उस पर हवा चले

लेना है इम्तिहान अगर सब्र दे मुझे
कब तक किसी के साथ कोई रहनुमा चले
नफ़रत की आँधियाँ कभी, बदले की आग है
अब कौन लेके झंडा –ए- अमनो-वफ़ा चले
चलना अगर गुनाह है, अपने उसूल पर
सारी उमर सज़ाओं का ही सिल सिला चले

खंजर लिये खड़ें हों अगर मीत हाथ में
“श्रद्धा” बताओ तुम वहाँ फ़िर क्या दुआ चले

3
च्छी है यही खुद्दारी क्या
रख जेब में दुनियादारी क्या
जो दर्द छुपा के हंस दे हम
अश्कों से हुई गद्दारी क्या
हंस के जो मिलो सोचे दुनिया
मतलब है, छुपाया भारी क्या
वे देह के भूखे क्या जाने
ये प्यार वफ़ा दिलदारी क्या
बातें तो कहे सच्ची "श्रद्धा"
वे सोचे मीठी खारी क्या

4
ल में जब प्यार का नशा छाया
पंछी पिंजरे में खुद चला आया

सह गया जो ख़िजां के ज़ोर–ओ-खम
गुल उसी पेड़ पर नया आया

सबको कह देगा, आँख का काजल
मेरे दिल ने कहाँ सकूँ पाया

क़ैद-ए-सरहद से है वफ़ा आज़ाद
राज़ ये बादलों ने समझाया
आके पहलू में बैठ जा मेरी
“श्रद्धा” अब तो है बस तेरा साया
5
किसने जाना कि कल है क्या होगा
कुरबतें या के फासला होगा
आज़ रोया है वो तो रोने दो
हो न हो खुद से वो मिला होगा
चाँद जो पल में बन गया मिट्टी,
रात दिन किस तरह जला होगा
ज़ुल्म करता नहीं वो बन्दों पर
आज दुनिया का रब जुदा होगा
यूँ न ढूँढों यहाँ वफा “श्रद्धा”
तन्हा तन्हा सा रास्ता होगा
6
अफ़साना –ए-उलफत है, इशारों से कहेंगे
गर तुम न सुनोगे तो सितारोँ से कहेंगे
हम सिद्क़-ओ-इबादत से कभी अज़म-ओ-अदा से
बस अहद -ए- मोह्ह्बत, इन्हीं चारों से कहेंगे
आगोश में मिल जाए समंदर जो वफ़ा का
हम अलविदा दुनिया के किनारों से कहेंगे
चेहरे से चुराओगे जो सुर्खी-ए-तब्ब्सुम
क़िस्सा उड़ी रंगत का बहारों से कहेंगे
आँखों में हैं जल जाते वफाओं के जो जुगनू,
जज़्बात ये “श्रद्धा” के हज़ारों से कहेंगे
00
विदिशा एक छोटे से शहर में 8 नबम्बर 1977 को जन्मी श्रद्धा जैन ने केमिस्ट्री में अपनी शिक्षा पूरी की
ये पिछले नौ सालों से सिंगापुर में निवासित हैं और यहाँ पर एक भारतीय अंतर विद्यालय में हिन्दी अध्यापिका हैं
सम्पर्क : MS. Shrddha Jain, 86 Corporation Rd,#05-12 ,Lake Holmz Condo.
Singapore
H.P. - +65-81983705
ईमेल : shradha8@gmail.com

धारावाहिक पंजाबी उपन्यास(किस्त- 21)


सवारी
हरजीत अटवाल
हिंदी अनुवाद : सुभाष नीरव
चित्र : रुचिरा
॥ छब्बीस ॥

बलदेव ने कार लंदन ब्रिज पर रोक ली। आठ बज रहे थे। अंधेरा पूरी तरह फैल चुका था, पर यहाँ सारा वातावरण रौशनियों ने जगमग-जगमग किया हुआ था। ट्रैफिक अभी भी काफी था। यहाँ कार रोकना मना था, पर बलदेव ने रोक ली। वह शिन्दे को दरिया बिलकुल ऊपर से दिखलाना चाहता थ। पंजाब में तो दरियाओं की कमी थी। शायद ही शिन्दे ने सतलुज या फिर बियास को ध्यान से देखा होगा। अगर उसने थेम्ज़ को उतरा हुआ देखा तो उसे अच्छा नहीं लगेगा।
''हम यहाँ गाड़ी खड़ी नहीं कर सकते, पर मैंने कर ली।''
''क्यों कर ली फिर ? कहते हैं पुलिस टिकट दे देती है।''
''हाँ, दे देती है। हमने दो मिनट ही रुकना है। पुलिस आ गई तो सॉरी कह देंगे।''
''अच्छा ! फिर तो यहाँ की पुलिस मास्टरों से भी गई गुजरी है, वे तो बच्चे के सॉरी कहते-कहते दो थप्पड़ लगा देते हैं।''
''तू जल्दी से आ, तुझे रिवर थेम्ज़ दिखाऊँ। इसीलिए इधर लाया हूँ तुझे।''
शिन्दा बाहर निकलते हुए बोला -
''यह तो भाई दिवाली बना हुआ है।''
फिर उसने पुल की ग्रिल पकड़ते हुए नीचे झांककर देखा और कहा-
''यह तो भाई बहुत खतरनाक है। बंदा गिर पड़े तो लाश भी न मिले।''
फिर शिन्दे ने आसपास देखते हुए कहा-
''हम तो बहुत दूर आ गए लगते हैं।''
''नहीं, बहुत भी नहीं। जितना गाँव से माहलपुर है, यह रोड सीधी हाईब्री को जाती है। पुल पार करके नजदीक ही मेरा दफ्तर है।''
वे पुन: कार में बैठ गए। बलदेव ने कार बढ़ा ली। आगे बायें मोड़कर वाटरलू का चक्कर लगाया। अपना दफ्तर बाहर से दिखाया। दफ्तर दिखाते हुए मन में ही सोचा कि पता नहीं जॉब बचेगी भी कि नहीं। उसकी लम्बी सिक को लेकर झगड़ा पड़ा हुआ था। आगे जाकर टौवर ब्रिज का भी चक्कर लगाया और बलदेव कहने लगा-
''यह दरिया अलग-अलग जगहों से अलग-अलग तरह का दिखाई देता है। कहीं भीड़ा, कहीं से चौड़ा, कहीं भयानक और कहीं भोला सा।''
कार चलाते हुए बलदेव दरिया की ही बातें किए जा रहा था। शिन्दा खीझ-सा गया और बोला-
''तू मुझे यह बता कि थेम्ज़ के पानी से कितने एकड़ खेती होती है ?''
''यह खेती के काम नहीं आता।''
''चल, यह बता कि पिछली बाढ़ में कितने बंदे मरे ?''
''बाढ़ भी नहीं आई कभी।''
''इसके पानी के बंटवारे के लिए कितने झगड़े होते हैं ?''
''तू यार, उलटी बातें करता है। यह साला लंदन है, हुशियारपुर नहीं।''
''वहीं तो मैं कहने जा रहा हूँ कि मैं लंदन में घूम रहा हूँ, कोई लंदन वाली बात कर, यूँ हीं मूर्खों सी बातें किए जा रहा है, पानी सा दिखा कर टैम निकाले जा रहा है।''
''और क्या दिखाऊँ, दिन के समय कुछ दिखा दूँगा।''
''मैंने तो सुना है, लंदन रात में सोहणा लगता है।''
''यह रात ही है, दिखा तो रहा हूँ।''
''छोड़ यार, चल घर को चलें। इससे से भाजी की दुकान में ही ज्यादा रौनक लगती है।''
''तू क्या देखना चाहता है ?''
''कोई गोरी दिखा, अलफ नंगी, जैसी फोटो होती हैं, जैसी फिल्मों में होती हैं।''
''मुल्ला की दौड़ मस्जिद तक।''
''ऐसा ही कह ले, अगर यह काम कर सकता है तो भाई बनकर कर दे।''
''यह काम मेरे वश का नहीं। मैं इस गाड़ी का सवार नहीं।'' हँसते हुए बलदेव कहने लगा।
शिन्दे ने कहा, ''तूने कभी खुद भी कुछ देखा है ?''
बलदेव फिर हँसने लगा। शिन्दा बोला-
''चल, तेरे लिए मैं काम बहुत आसान कर देता हूँ, कहीं से सिगरेट पिला दे। दुकान में पड़ी हुई देखकर तलब लगी हुई है। यह तो तेरे वश का ही काम है ?''
''यह काम आसान ही है।''
पास ही एक दुकान आई। बलदेव उतर कर थैम्सन एंड हैजज की बीस सिगरेटें ले आया। शिन्दे ने उतावली से कार के लाइटर से सिगरेट सुलगाई। कुछ गहरे कश भरे और आनन्दित होता हुआ बोला-
''आदत नहीं, बस हुड़क सी है। वहाँ मिन्दो से छिपकर धुआं निकाल लेता था, यहाँ अब तेरी जट्टी से बहुत डर लगता है।''
उसने जानबूझ कर 'तेरी जट्टी' शब्द का प्रयोग किया था। पर बलदेव ने जैसे सुना ही न हो। उसने एक पब के पॉर्क में ले जाकर गाड़ी खड़ी कर दी। शिन्दे ने कहा-
''बियर की तुम्हारी आदत खराब है, इससे तो थोड़ा-सा पेट भरना ही होता है। मुझे तो व्हिस्की ले देना, बेशक थोड़ी हो।'' पब में जाकर बलदेव भी अधिक खुश नहीं था। उसने वहाँ से कार आगे बढ़ाई और एक ऑफ़ लायसेंस में से बोतल ले ली। कार में बैठकर ही पीने लग पड़े। शिन्दे ने पूछा-
''यह तो बता, तू रहता कहाँ है ?''
''काम के नज़दीक ही कमरा ले रखा है।''
''भाजी है, सतनाम है, इनके पास क्यों नहीं रहता ?''
''भाजी की आदत के बारे में तो तू जानता ही है। उधर मनजीत... और फिर मैं अपना कमाता-खाता हूँ, किसी पर क्यों बोझ बनूँ।''
''जट्टी से डरता तो नहीं दौड़ता ?''
''उससे मुझे क्या डरना। मुझे वैसे ही किसी के बीच रहना अच्छा नहीं लगता।''
''वैसे बलदेव, लगता है तेरी जट्टी अब पहले जैसी नहीं रही। मैंने देखा है, तू उससे बचता घूमता है।''
''वह तो पहले भी मेरी नहीं थी।''
''मुझे बता रहा है... मुझे तो यही बहुत है कि बचाव हो गया। मैं बहुत डर गया था उस समय।''
''शिन्दे लगता है, तुझे शराब चढ़ गई है।'' बलदेव ज़रा सा गुस्से में आ गया।
''जो चाहे कह ले। तू मुझे बता, अपनी घरवाली और बेटियों से कब मिलवाएगा।''
''तुझे उनसे क्या लेना ?''
''वह यार हमारे घर की बहू है, बेटियाँ हैं। उनकी ख़ैर-खबर तो लेनी ही चाहिए।''
''जिस गाँव नहीं जाना उसका राह क्या पूछना, वहाँ की ख़बर क्या रखना। सच बात तो यह है कि जब से उधर से आया हूँ, लौटकर फिर उस इलाके में जाने को दिल नहीं किया।''
''फिर दूसरा विवाह करवा ले। चल इंडिया चलें। गाजे-बाजे से तुझे घोड़ी चढ़ाऊँगा।''
''तू भी यार, भाजी वाली बोली बोले जा रहा है।''
''सभी तेरी फिक्र करते हैं। तू अपनी जगह सैटिल हो जाए, मैं भी कहूँगा विवाह...।''
''विवाह करना आसान बात नहीं। पहले तलाक लूँगा। तलाक के लिए भी ग्राउन्ड चाहिए। और फिर, दूसरी औरत भी ऐसी-वैसी मिल गई तो...।''
बात करता बलदेव अपनी बात पर ज़ोर दे रहा था। शिन्दे ने कहा-
''जैसी तेरी मर्जी। असल में तेरी बात वो है कि दूध का जला, छाछ भी फूंक-फूंक कर पीता है।''
बातें करते हुए वे हाईब्री पहुँच गए। अजमेर ने ही बलदेव को कह रखा था कि शिन्दे को कहीं घुमा दे। बलदेव भी अकेला-सा था। शौन के जाने के बाद वह और अधिक अकेला महसूस करने लगा था। हालांकि शौन से उसकी अधिक बात नहीं होती थी पर किसी दोस्त की निकटता का अहसास ही बहुत था। मैरी भी अभी लौटी नहीं थी। उसे शिन्दे के संग वक्त गुजारना अच्छा लगा पर जब वह अजीब से सवाल करने लगा तो वह ऊब गया था।
दुकान में अजमेर काउंटर पर खड़े होकर ग्राहक सर्व कर रहा था। गुरां और बच्चे भी खड़े थे। उन्हें देखते ही शैरन बलदेव की ओर दौड़ती हुई आई और बोली-
''हैलो चाचा जी, व्हेयर यू बीन ? आय हैव नाट सीन यू फॉर लांग टाइम।''
''जस्ट अराउंड डार्लिंग, आय एम जस्ट अराउंड।''
कहते हुए बलदेव उनके साथ स्कूल की बातें करने लग पड़ा। शिन्दा बोला-
''मेरे साथ नहीं ऐसा बोलते।''
अजमेर भी शैरन और हरविंदर को बलदेव के साथ इतना खुलकर बातें करते देख खुश भी होता और हैरान भी। वह कहने लगा-
''तेरे साथ क्या, ये तो मेरे से भी आँख नहीं मिलाते।''
गुरिंदर भी तभी बोल उठी-
''तुम भी इनके बीच कभी बैठो।''
''यह इनके बीच बैठता है ?''
''यह इनकी बात सुनता तो है कम से कम।''
बलदेव बच्चों से फुर्सत पाकर वापस लौटने की तैयारी में अजमेर के पास आ खड़ा हुआ। गुरां के साथ सरसरी-सी बातें की और बोला-
''अच्छा, मैं चलता हूँ।''
''क्यों ? रोटी नहीं खाएगा ?'' गुरां ने गुस्से में कहा। उसने जवाब दिया-
''बहुत लेट हो गया हूँ, बैठ गया तो ड्रिंक भी हो जाएगी। मुझे गाड़ी भी चलानी है।''
''तू कौन सा दूर रहता है।''
अजमेर ने कहा। बलदेव समझ गया कि चोरी पकड़ी गई। उसे कुछ नहीं सूझा कि जवाब में क्या कहे। वह चुप रहा। अजमेर ने कहा-
''एक दिन माइकल बता रहा था कि तू डार्टमाउथ हाउस में रहता है।''
''हाँ, कोई फ्रेंड आयरलैंड गया हुआ है। उसका फ्लैट खाली था, बस अपना देख रहा हूँ, जल्दी ही ले लूँगा।''
''हम तेरी यह बात बहुत देर से सुनते आ रहे हैं। अगर लेना है तो ले ले।''
गुरां ने खीझ कर कहा। अजमेर ने गुरां की बात की ओर ध्यान दिए बग़ैर ही कहा-
''जानता है, माइकल के पास जो गे है, अरे वही जिसकी फोटो गार्जियन में आई थी।''
''माइकल को तो जानता हूँ, पर गार्जियन में छपी उसकी फोटो के बारे में नहीं जानता।''
''पिछले दिनों इसने क्लेम किया था कि इसे किसी ने रेप किया है। इस तरह गे-रेप शब्द इसी ने पोपुलर किया था।''
''मुझे इस ख़बर का नहीं पता, पर इसकी कोई आर्गनाइजेशन है, फंड इकट्ठा करता घूमता है।''
गुरां को उनकी बातों में दिलचस्पी नहीं थी। वह बोली-
''बात सुन ध्यान से... तू अब रोटी खाकर ही जाएगा। दुकान बन्द करने का टाइम भी हो चला है। अगर अभी खानी है तो इसी तरह ऊपर आ जा, नहीं तो वेट कर ले, सुनता है !''
(जारी…)
00

लेखक संपर्क :
67, हिल साइड रोड,
साउथाल, मिडिलसेक्स
इंग्लैंड
दूरभाष : 020-८५७८०३९३
07782-265726(मोबाइल)