मंगलवार, 7 दिसंबर 2010

गवाक्ष – दिसंबर 2010



“गवाक्ष” ब्लॉग के माध्यम से हम हिन्दी ब्लॉग-प्रेमियों को हिन्दी/पंजाबी के उन प्रवासी लेखकों/कवियों की समकालीन रचनाओं से रू-ब-रू करवाने का प्रयास करते आ रहे हैं जो अपने वतन हिन्दुस्तान से कोसों दूर बैठकर अपने समय और समाज के यथार्थ को अपनी रचनाओं में रेखांकित कर रहे हैं। “गवाक्ष” में अब तक विशाल (इटली), दिव्या माथुर (लंदन), अनिल जनविजय (मास्को), देवी नागरानी(यू.एस.ए.), तेजेन्द्र शर्मा(लंदन), रचना श्रीवास्तव(लंदन), पूर्णिमा वर्मन(दुबई), इला प्रसाद(यू एस ए), भगत धवन (डेनमार्क), चाँद शुक्ला (डेनमार्क), वेद प्रकाश ‘वटुक’(यू एस ए), रेखा मैत्र (यू एस ए), तनदीप तमन्ना (कनाडा), प्राण शर्मा (यू के), सुखिन्दर (कनाडा), सुरजीत(कनाडा), डॉ सुधा धींगरा(अमेरिका), मिन्नी ग्रेवाल(कनाडा), बलविंदर चहल (न्यूजीलैंड), बलबीर कौर संघेड़ा(कनाडा), शैल अग्रवाल (इंग्लैंड), श्रद्धा जैन (सिंगापुर), डा. सुखपाल(कनाडा), प्रेम मान(यू.एस.ए.), (स्व.) इकबाल अर्पण, सुश्री मीना चोपड़ा (कनाडा), डा. हरदीप कौर संधु(आस्ट्रेलिया), डा. भावना कुँअर(आस्ट्रेलिया) आदि की रचनाएं और पंजाबी कथाकार-उपन्यासकार हरजीत अटवाल के उपन्यास “सवारी” के हिंदी अनुवाद की इकत्तीसवीं किस्त आपने पढ़ीं। “गवाक्ष” के दिसंबर 2010 अंक में प्रस्तुत हैं – स्वीडन से अनुपमा पाठक की कविताएं तथा हरजीत अटवाल के धारावाहिक पंजाबी उपन्यास “सवारी” की बत्तीसवीं किस्त का हिंदी अनुवाद…

स्वीडन से
अनुपमा पाठक की कविताएँ


॥एक॥
इंसानियत का आत्मकथ्य


गुजरती रही सदियाँ
बीतते रहे पल
आये
कितने ही दलदल
पर झेल सबकुछ
अब तक अड़ी हूँ मैं!
अटल खड़ी हूँ मैं!

अट्टालिकाएं करें अट्टहास
गर्वित उनका हर उच्छ्वास
अनजान इस बात से कि
नींव बन पड़ी हूँ मैं!
अटल खड़ी हूँ मैं!

देख नहीं पाते तुम
दामन छुड़ा हो जाते हो गुम
पर मैं कैसे बिसार दूं
इंसानियत की कड़ी हूँ मैं!
अटल खड़ी हूँ मैं!

जब जब हारा तुम्हारा विवेक
आये राह में रोड़े अनेक
तब तब कोमल एहसास बन
परिस्थितियों सेलड़ी हूँ मैं!
अटल खड़ी हूँ मैं!

भूलते हो जब राह तुम
घेर लेते हैं जब सारे अवगुण
तब जो चोट कर होश में लाती है
वो मार्गदर्शिका छड़ी हूँ मैं!
अटल खड़ी हूँ मैं!

मैं नहीं खोयी खोया है तुमने वजूद
इंसान बनो इंसानियत हो तुममें मौजूद
फिर धरा पर ही स्वर्ग होगा
प्रभुप्रदत्त नेयमतों में, सबसे बड़ी हूँ मैं!
अटल खड़ी हूँ मैं!
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॥दो॥
ऐसा हो...!!!


मान-अभिमान से परे
रूठने-मनाने के सिलसिले सा
कुछ तो भावुक आकर्षण हो!

किनारे पर रेत से घर बनाता
और अगले पल उसे तोड़ छोड़
आगे बढ़ता सा
भोला भाला जीवन दर्शन हो!

नमी सुखाती हुई
रुखी हवा के विरुद्ध
नयनो से बहता निर्झर हो!

परिस्थितियों की दुहाई न देकर
अन्तःस्थिति की बात हो
शाश्वत संघर्ष
आत्मशक्ति पर ही निर्भर हो!

भीतर बाहर
एक से...
कोई दुराव-छिपाव नहीं
व्यवहारगत सच्चाइयां
मन प्राण का दर्पण हो!

सच के लिए
लड़ाई में
निजी स्वार्थों के हाथों
कभी न आत्मसमर्पण हो!
॥तीन॥
कविता
बनती रहे कविता
शब्द थिरकते रहे अपनी लय में
भाव नित परिमार्जित होता रहे अपने वेग से
लेखक और पाठक...संवेदना के एक ही धरातल पर हो खड़े
भेद ही मिट जाये...
फिर सौंदर्य ही सौंदर्य है इस विलय में!!!!

जीने के लिए जमीन के साथ-साथ
आसमान का होना भी जरूरी है
धरती पे रोपे कदम...सपने फ़लक पे भाग सकें
फिर सृजन की संभावनाएं पूरी हैं
हो विश्वास का आधार...हो स्नेह का अवलंब
नहीं तो नैया डूब जाती है संशय में!!!!

बहती रहे कविता सरिता की तरह
शब्द थिरकते रहे अपनी लय में
जीवन की आपाधापी में कुछ क्षणों का अवकाश हो
कुछ लम्हे एकाकी से पास हो
निहारने को आसपास बिखरी अद्भुत रश्मियाँ...
और डूब जाने को विष्मय में!!!!

यही तो सहेजा जायेगा...
और शब्दों में सजकर नयी आभा में प्रगट हो पायेगा
एक पल की अनुभूति का मर्म
विस्तार को प्राप्त हो नीलगगन की गरिमा पायेगा
ये कालजयी भावनाएं ही बच जाएँगी...
नहीं तो...यहाँ कहाँ कुछ भी बच पाता है प्रलय में!!!!
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अनुपमा पाठक जमशेदपुर से हैं और बचपन से कविताएँ लिखती रही हैं। रचनाओं का संकलन नहीं हो पाया। अभी कुछ समय से अपनी वेबसाइट “अनुशील” http://www.anusheel.in/ पर लिख रही हैं। शिक्षा जमशेदपुर में ही हुई, फिर वाराणसी से बोटनी में स्नातक की डिग्री ली और फिर बॉयो-इनफॉर्मेटिक में परास्नातक। एक वर्ष विद्यालय में अध्यापन कार्य भी किया। अध्ययन –अध्यापन में रूचि है। बॉयो-इनफार्मेटिक में पी.एचडी के लिए प्रयासरत। फिलहाल, गत एक वर्ष से स्टॉकहॉम ( स्वीडन ) में रह रही हैं।
ईमेल : anupama623@gmail.com
anushil623@rediffmail.com
वेब साइट : http://www.anusheel.in/

धारावाहिक पंजाबी उपन्यास(किस्त- 32)



सवारी
हरजीत अटवाल
हिंदी अनुवाद : सुभाष नीरव

॥ सैंतीस ॥
कॉफी टेबल पर लोकल पेपर पड़ा था जो घरों में मुफ्त फेंका जाता था। बलदेव उठाकर पन्ने पलटने लगा। ख़बर तो ख़ास नहीं थी, बस विज्ञापनों से ही भरा पड़ा था। कारों के, घरों के और अन्य छोटी-मोटी सर्विसों के विज्ञापन। वह क्लैपहम में घरों की कीमतों का जायजा लेने लगा। उसे व्यस्त देखकर नील ने ख़बरों वाला चैनल बदलकर कार्टून लगा लिए। नील को देखकर बलदेव हँसने लगा। एलीसन ने भी नील को चैनल बदलते देख लिया था। वह बलदेव के समीप बैठते हुए बोली-
''डैरक के साथ इतने नहीं खुले थे ये, उससे डरते थे। वह मार भी देता था, पर तेरे संग तो मिक्स हो गए हैं।''
बलदेव समझ गया कि डैरक उसके पहले प्रेमी का नाम होगा। उसका मन होता था कि वह डैरक के विषय में कुछ पूछे क्योंकि शौन उसके बहुत खिलाफ़ रहा करता था, पर उसने सोचा कि अतीत में जाने का अधिक लाभ नहीं होता। एलीसन बुरा भी मान सकती थी।
एलीसन ने लोकल अख़बार 'न्यू टाइम्ज़' की ओर देखते हुए उससे पूछा-
''डेव, क्या ढूँढ़ रहा है ?''
''घर खरीदना है, देख रहा हूँ कि इस इलाके में कैसे घर हैं।''
''यहाँ तो ये विक्टोरियन जैसे घर है, पर क्लैपहम कॉमन में बहुत खूबसूरत घर हैं।''
''मेरा दिल करता है, दरिया के करीब खरीदूँ।''
''आज अचानक घर की सोच कैसे आ गई ?''
''एलीसन, मैं ज़रा सैटिल होना चाहता हूँ, बहुत देर भटक लिया।''
असल बात उसने बताई नहीं कि फेह और नील को देखकर उसे अपने बच्चे याद आते थे और सिमरन ने कहा था कि यदि लगातार लड़कियों को लेकर जाया करेगा तभी लेकर जाना। लड़कियों को लाने के लिए अपना घर भी चाहिए था। दूसरा भय उसे अपनी नौकरी का था कि छूट ही न जाए। नौकरी छूटने से पहले पहले वह घर ले लेगा तो मोर्टगेज आसानी से मिल जाएगी, नौकरी के बिना बैंक मोर्टगेज नहीं देते।
उनके बातचीत करते समय ही फोन की घंटी बजी। बलदेव फोन के करीब बैठा था। एलीसन ने कहा-
''डेव, देख तो ज़रा।''
उसने झिझकते हुए फोन उठाया। शौन का था। वह बोला-
''मैं तुझे इतने दिनों से ढूँढ़ता घूम रहा हूँ, कितनी बार ऐंडी के घर फोन किया और शैम की शॉप पर भी... चल अच्छा हुआ तू यहाँ मिल गया। एलीसन से तेरे बारे में पूछने के लिए ही फोन किया था मैंने।''
''सुना, कहाँ है ?''
''न्यूज़ीलैंड, तेरे कज़न के पास, कैराफेई।''
''क्या हाल है ग्रेवाल का और तेरा भी।''
''बहुत अच्छा। शराब का दौर चल रहा है।''
''काम करता है ?''
''काम की समस्या नहीं, काम तो मिल जाएगा। फार्मिंग के काम बहुत आसानी से मिल जाते हैं।''
''दिल लगा हुआ है ?''
''हाँ, ग्रेवाल की कम्पनी में दिल न लगे !'' कहकर शौन हँसने लगा।
फिर बलदेव ने ग्रेवाल से भी बातें कीं। उसने फोन रखा तो एलीसन बोली-
''देख, अपने दोस्त की बात, मेरे घर फोन किया और मेरे से हैलो तक नहीं की। यह पहले से ही ऐसा रहा, ख़ुदगर्ज़।''
''वह जल्दी में था, वहाँ बिल भी बहुत आता होगा।''
''यह भी ठीक है पर मैं इसे बचपन से जानती हूँ। ऐसा ही रहा है। मेरी ज़रूरत होगी तो आएगा, नहीं तो तू कौन, मैं कौन।''
''एलीसन, यूँ ही न मन खराब कर, ज़िन्दगी ऐसे ही चलती है।''
''डेव, मेरा मन अब खराब नहीं होता, हो चुका जितना होना था। मैंने बहुत कठिन समय देखा है। किसी ने मेरी मदद नहीं की, बल्कि उल्टा लड़ने आ जाता था। यह मैं जानती हूँ, अपनी ज़रूरत के कारण मेरे साथ सुलह की है।'' कहती हुई वह अपने घर से भागने की, यहाँ आकर देखी तकलीफ़ों की कहानी फिर से सुनाने लगी। बलदेव ने पूछा-
''एलीसन, तेरा दिल नहीं करता वैलजी जाने को ?''
''बहुत करता है पर एक तो मेरे बच्चे कौन संभालेगा ? दूसरे वहाँ मेरा स्वागत बिलकुल नहीं होगा।''
''इन्हें तू संग ही ले जाना।''
''मुझे तो पता नहीं कि वे बुलाएँगे भी कि नहीं। मेरे बच्चों को देखकर वे वैसे ही मर जाएँगे। वे तो यह समझे बैठे हैं कि मैं उनके घर में कभी पैदा ही नहीं हुई थी।'' कहकर एलीसन चुप हो गई। वह दूर आयरलैंड जा पहुँची थी। कुछ देर बाद कहने लगी-
''डेव, वे लोग बहुत साधारण बुद्धि वाले हैं। मेरी छोटी-सी बात को इतना बड़ा हादास बनाये फिरते हैं। वे यह नहीं समझते कि लंदन में पिचहत्तर फीसदी बच्चे बिना विवाह के पैदा होते हैं। विवाह की अब कद्र ही नहीं, एक काग़ज़ का टुकड़ा हाथ में पकड़ भी लो तो बहुत जल्दी तुम उसे फाड़ने लगते हो। विवाह के बग़ैर जोड़ों में समझ अधिक बनती है।''
''एलीसन, जो कुछ भी है, यदि तेरा मन वैलज़ी जाने को करता है तो फेह और नील को मैं संभाल लूँगा।''
''यह तो तेरा बड़प्पन है। मैं तो तेरी वैसे ही बहुत शुक्रगुजार हूँ कि तू मेरी बातें सुन लेता है, इतने साल हो गए, ये बातें मैं किसी के साथ भी नहीं कर सकी। डेव, मेरा घर जाने को, सबको देखने को बहुत दिल करता है, पर वे नहीं चाहते कि मैं आऊँ। कई बार मैं फोन पर बात करना चाहती हूँ तो वे फोन कट कर देते हैं।''
''तेरी बहन है, आयरीन, वह तुझे शायद समझती हो।''
''हाँ डेव, वह समझदार है, पर उसका पति कट्टर कैथोलिक है।''
''तू तो चर्च जाती है, फॉदर एडवर्ड क्या कहता है ?''
''डेव, वह भी यही बोली बोलता है। असल में तो यह चर्च की ही शिक्षा है, वहीं से तो सारे हुक्मनामे चला करते हैं।''
बलदेव को एलीसन से बातें करना अच्छा लगता था। यद्यपि एलीसन को राजनीति की बहुत समझ नहीं थी, पर ज़िन्दगी की मारें काफ़ी खाई हुई थीं। बच्चों को स्कूल छोड़कर एक कॉफ़ी शॉप में काम करने जाया करती थी और स्कूल बन्द होने तक वहीं काम किया करती। कुछ पैसे सोशल सिक्युरिटी की तरफ़ से मिलते थे। उसका गुजारा ठीक हो रहा था। वह बलदेव को इतनी सहजता से पैसे खर्च करने नहीं देती थी।
बलदेव अब क्लैपहम से ही काम पर जाता था। यहाँ से ट्यूब का सफ़र टफनल पॉर्क से भी कम था। वही नॉर्दन लाइन पर छठा स्टेशन। काम पर वह जाता ज़रूर था पर दिल अभी भी नहीं लग सका था। अभी भी उसे स्थायी सीट नहीं मिली थी। जो भी कोई छुट्टी पर होता, उसे उसके स्थान पर ही भेज दिया जाता। उसकी लम्बी सिक का केस अभी चल रहा था। जो भी मिलता, उससे उसके केस के बारे में पूछने लगता। उसे शोकॉज़ नोटिस मिला था कि तुझे काम पर से हटा क्यों न दिया जाए। उसने यूनियन की मार्फ़त हैड ऑफिस में अपील की थी, जहाँ उसे आस थी कि मुआफ़ीनामा देकर नौकरी बच जाएगी। लेकिन उसे अब इस नौकरी में कोई दिलचस्पी नहीं थी। यदि घर लेने का विचार न होता तो वह कभी का इस्तीफ़ा दे चुका होता।
घर तलाशने के लिए उसने लंदन का नक्शा खोला और साँप जैसे थेम्ज़ पर हाथ फेरने लगा। वॉलफोर्ड को उंगलियों से दरिया को छूता हुआ वह ग्रीनिच आ गया। फिर धीरे-धीरे फुल्हम आ पहुँचा। एक दिन उसने एलीसन और बच्चों को कार में बिठाया और फुल्हम के चक्कर लगाने लगा। कितनी ही सड़कें देखीं, सब एक जैसी लग रही थीं।
अगले रोज़ वह अकेला ही फुल्हम आया और कार एक तरफ़ खड़ी करके पैदल चलने लगा। पैदल चलना उसे सदैव ही अच्छा लगा करता था। वह थेम्ज़ के किनारे आ गया। यहाँ थेम्ज़ कुछ और ही तरह का लगता था। घर दरिया से हटकर थे। वह चाहता था कि उसका घर दरिया से इतना भर दूर हो कि मिनट भर में ही चलकर वह दरिया पहुँच सकता हो। यदि खिड़की से दिखाई देता हो तो सोने पर सुहागे वाली बात होगी। वह चलता हुआ एक पब के पास आ गया। पब की दीवार दरिया के साथ जा लगती थी। पानी के चढ़ने-उतरने के निशान दीवार पर दिखाई देते थे। चढ़ा हुआ दरिया यूँ प्रतीत होता होगा कि बेशक पानी चुल्लू में भर लो। यही सोचता हुआ वह पब में प्रवेश कर गया।
काफ़ी बड़ा पब था। अधिक लोग नहीं थे। जो थे भी, वे सभी चढ़ी उम्र के थे। उसने मन ही मन सोचा कि जैंटिलमैन पब होगा। वह आसपास देखता हुआ समझ गया कि इस पब में लोकल लोग ही अधिक आते होंगे। उसने लागर का गिलास भरवाया और दरिया की ओर खिड़की के पास बैठ गया। दरिया के पार रौशनियाँ जगमग-जगमग कर रही थीं। एक बड़ी किश्ती दरिया में से गुजरी। यह रौशनियों से भरी हुई थी और लोग खड़े होकर ड्रिंक कर रहे थे, आपस में बातें कर रहे थे। इसमें कोई पार्टी चल रही थी। एक बोट कुछ ड्रम-से खींचती हुई गुजरी। जैसे-जैसे शाम ढल कर रात की ओर बढी, पब भी भरने लगा।
भारी कदकाठी का एक व्यक्ति उसके सामने वाली सीट की ओर इशारा करता हुआ पूछने लगा-
''यहाँ कोई बैठा तो नहीं ?''
''नहीं।''
''बैठ सकता हूँ ?''
''क्यों नहीं।''
कहकर बलदेव उसकी ओर देखकर मुस्कराने लगा। वह व्यक्ति अपनी दाढ़ी पर हाथ फेरता हुआ बोला-
''मैं जैरी स्टोन हूँ।''
''और मैं डेव बैंज।''
''मैं तुम्हें पहली बार देख रहा हूँ, इसी इलाके में रहते हो ?''
''नहीं, इस इलाके में रहने की कोशिश कर रहा हूँ। इधर कहीं घर की तलाश कर रहा हूँ इसीलिए इलाका देखने आया रिवरसाइड आर्मज में आ बैठा।''
''यह बात बहुत अच्छी है, कोई इलाका देखने के लिए लोकल पब में चला जाए तो सब पता चल जाएगा। पर यहाँ लोग अन्य दूर-दराज इलाकों से भी आ जाते हैं।''
''जैरी, तुम इसी इलाके में रहते हो ?''
''हाँ, यहीं जन्मा, जवान हुआ और बूढ़ा हो रहा हूँ।'' कहकर जैरी हँसा।
बलदेव ने कहा, ''मैं दरिया के किनारे घर लेने का इच्छुक हूँ। दरिया किनारे ही मेरा काम है, ब्रिटिश रेल का हैड ऑफिस। और मेरा पहला घर जहाँ मेरी पत्नी बच्चों के संग अलहदगी के बाद रहती है, ग्रीनिच है, वो भी दरिया के बहुत करीब है।''
''हाँ डेव... पर इससे क्या फ़र्क़ पड़ता है। तुम दो दिन में तो दरिया के आदी हो जाते हो। हमारा मेन डीपू दरिया के ऐन किनारे पर है, मैं तो वहाँ बोर होने लगता हूँ।''
''क्या काम करते हो जैरी ?''
''मैं सेंट्रल गैस में साउथ ईस्ट का एरिया मैनेजर हूँ।''
''सेंट्रल गैस कौन सी ? सिलंडरगैस ?''
''हाँ, जो पेट्रोल पम्पों पर पड़े होते हैं।''
''मैं जानता हूँ। पहले मैं सोचा करता था कि घरों में तो नेचुरल गैस की सप्लाई है, ये सिलंडर कौन लेता होगा।''
''सभी ऐसा ही सोचते हैं, पर यह बिजनेस बहुत बड़ी स्केल पर चल रही है। हर एरिये में डीपू हैं इसके।''
''यहाँ किस रोड पर रहते हो ?''
''हार्ट ग्रोव पर... मेरे पिता का घर है यह। अब तो वह नहीं रहा और मैं ही मालिक हूँ। कैमला कहती है कि सफाई नहीं की जाती, घर बेचकर फ्लैट ले लेना है। और फिर मेरे सारे बच्चे चले गए, लड़की ही रहती है।''
''कितने बच्चे हैं ?''
''तीन। बड़ा लड़का, उसने अपना घर ले लिया है, काम करता है। छोटी लड़की है, वह अपने ब्वॉय फ्रेंड के साथ हमारे पास रहती है। उसका यह ब्वॉय फ्रेंड अच्छा नहीं है, मुझे नहीं पसन्द इसलिए मैंने उन्हें घर से चले जाने के लिए कह दिया है। इससे पहले वाला ब्वॉय फ्रेंड बहुत अच्छा था, मेरे साथ पब में भी आता था। सबसे छोटा मेरा लड़का है, उसे भी हमने घर से निकाल दिया है।''
''क्यों ?''
''क्योंकि वह सोलह साल का हो गया था, न तो वह हमें किराया देता था और न ही पढ़ता था। कैमला ने उसे चलता कर दिया।''
(जारी…)
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