शुक्रवार, 5 अप्रैल 2013

गवाक्ष – अप्रैल 2013



जनवरी 2008 गवाक्ष ब्लॉग के माध्यम से हम हिन्दी ब्लॉग-प्रेमियों को विदेशों में रह रहे हिन्दी/पंजाबी के उन लेखकों/कवियों की समकालीन रचनाओं से रू--रू करवाने का प्रयास करते आ रहे हैं जो अपने वतन हिन्दुस्तान से कोसों दूर रहकर अपने समय और समाज के यथार्थ को अपनी रचनाओं में रेखांकित कर रहे हैं। गवाक्ष में अब तक विशाल (इटली), दिव्या माथुर (लंदन), अनिल जनविजय (मास्को), देवी नागरानी(यू.एस..), तेजेन्द्र शर्मा(लंदन), रचना श्रीवास्तव(लंदन), पूर्णिमा वर्मन(दुबई), इला प्रसाद(यू एस ए), भगत धवन (डेनमार्क), चाँद शुक्ला (डेनमार्क), वेद प्रकाश वटुक’(यू एस ए), रेखा मैत्र (यू एस ए), तनदीप तमन्ना (कनाडा), प्राण शर्मा (यू के), सुखिन्दर (कनाडा), सुरजीत(कनाडा), डॉ सुधा धींगरा(अमेरिका), मिन्नी ग्रेवाल(कनाडा), बलविंदर चहल (न्यूजीलैंड), बलबीर कौर संघेड़ा(कनाडा), शैल अग्रवाल (इंग्लैंड), श्रद्धा जैन (सिंगापुर), डा. सुखपाल(कनाडा), प्रेम मान(यू.एस..), (स्व.) इकबाल अर्पण, सुश्री मीना चोपड़ा (कनाडा), डा. हरदीप कौर संधु(आस्ट्रेलिया), डा. भावना कुँअर(आस्ट्रेलिया), अनुपमा पाठक (स्वीडन), शिवचरण जग्गी कुस्सा(लंदन), जसबीर माहल(कनाडा), मंजु मिश्रा (अमेरिका), सुखिंदर (कनाडा), देविंदर कौर (यू के), नीरू असीम(कैनेडा), इला प्रसाद(अमेरिका), डा. अनिल प्रभा कुमार(अमेरिका) और डॉ. शैलजा सक्सेना (टोरंटो,कैनेडा), समीर लाल (टोरंटो, कनाडा), डॉक्टर गौतम सचदेव (ब्रिटेन), विजया सती(हंगरी), अनीता कपूर (अमेरिका), सोहन राही (ब्रिटेन), प्रो.(डॉ) पुष्पिता अवस्थी(नीदरलैंड) और अमृत दीवाना(कैनेडा) आदि की रचनाएं और पंजाबी कथाकार-उपन्यासकार हरजीत अटवाल के उपन्यास सवारी के हिंदी अनुवाद की पचपनवीं किस्त आप पढ़ चुके हैं।
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गवाक्ष के इस ताज़ा अंक में प्रस्तुत हैं ओसाका, जापान से पंजाबी कवि परमिंदर सोढ़ी की कविता और ब्रिटेन निवासी पंजाबी लेखक हरजीत अटवाल के धारावाहिक पंजाबी उपन्यास सवारी की 57वीं किस्त का हिंदी अनुवाद
-सुभाष नीरव

ओसाका, जापान से
परमिंदर सोढ़ी की कविता


आधा मील

एक सड़क पर
मेरी हस्ती नित्य धूल बन
फैलती है…

एक सड़क
मेरे अंदर बहती है

मेरे पुरखे
पीछे कहीं रह गए हैं
मेरे पिता
अभी पिछले ही मोड़ पर
ओझल हुए हैं
मेरे बच्चे
कहीं आगे निकल गए हैं

मैंने अपने हिस्से का
आधा मील
अभी तय करना है…

सड़क के बायीं ओर
हरियाली है
जहाँ दरख़्तों की
लम्बी कतार नज़र आती है
दरख़्त भी
मेरे संग-संग चलते रह हैं
ये मुझे
सड़क ने ही बताया है…

सड़क के दायें हाथ
देशकाल बसता है
जहाँ बोधि मंदिरों की
सुखद सम्मोहक घंटियों
से लेकर
गुलामों की मंडियों का
दुखद शोर है…

मैंने अपने हिस्से का
आधा मील
अभी तय करना है…।
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परमिंदर सोढ़ी
वर्तमान निवास : ओसाका,जापान
प्रकाशित पुस्तकें : कविता संग्रह : उत्सव, तेरे जाण तों बाद, इक चिड़ी ते महानगर, सांझे साह लैंदियां, झील वांग रुको, पत्ते दी महायात्रा(समूची कविता हिंदी व गुरमुखी में)
अनुवाद : आधुनिक जापानी कहानियाँ, सच्चाइयों के आर-पार, चीनी दर्शन ताओवाद, जापानी हाइकु शायरी, धम्मपद, गीता, अजोकी जापानी कविता
सम्पादन : संसार प्रसिद्ध मुहावरे। वार्ता : रब दे डाकिये और अजोकी जापानी कविता(मासिक अक्खर का विशेष अंक)।
अभी हाल में नया कविता संग्रह पल छिण जीणा प्रकाशित हुआ है।

धारावाहिक पंजाबी उपन्यास(किस्त- 57)



सवारी
हरजीत अटवाल
हिंदी अनुवाद : सुभाष नीरव

॥ बासठ ॥
बलदेव ने दुकान में फिशिंग और कैपिंग का सामान डालना प्रारंभ कर दिया। गर्मियों का बिजनेस था यह। गर्मियों में लोग फिशिंग करने निकलते और कैपिंग करते। गैस के काम के साथ यह बहुत फिट बैठ रहा था। जब गैस का काम समाप्त हुआ तो यह चल पड़ेगा। उसने अपनी स्थानीय प्रैस में इस नए बिजनेस का एड भी दे दिया था। दुकान के बाहरी बोर्ड पर भी लिखवा दिया था - ए एस फिशिंग एंड कैपिंग। बोर्ड देखते ही गैस लेने आए ग्राह पूछताछ करने लग पड़े थे।
      अब वह दुकानदारों की भाँति काम करता था। सवेरे आठ बजे खोलता और शाम को आठ बजे बंद कर देता। इतवार का अवकाश रखता। मैरी दुकान पर होती तो वह दूर दूर तक गैस देने निकल जाता। जहाँ तक दूसरा डिलीवरी वाला न पहुँचता, वह वहाँ पहुँच जाता। कठिन से कठिन जगह पर भी वह डिलीवरी कर देता। कई बार उसको लगता कि उस अकेले के लिए यह काम ज्यादा था। उसको एक और ड्राइवर अपने संग चाहिए था। एक दो बार ऐसा हुआ भी कि पूरे आर्डर उससे संभाले नहीं गए। कई डिलीवरियाँ करने वाली रह गईं। वैसे भी इतना बोझ उठाये-उठाये वह थक जाता।
      मैरी अभी काम कर रही थी। दोबारा उसने पहले की तरह अड़गे नहीं किए थे। वह शिन्दे को लेकर भी सोचने लगता कि उसको ही ले आए, पर फिर उसका मन बदल जाता कि शिन्दा अब तो अजमेर के साथ कुछ डरकर भी काम किए जा रहा था, इसी तरह सतनाम भी बड़ी जगह पर था, उसके पास आ गया तो शायद वह वैसा काम न करे। ऐसा न हो कि फिर उसे गले से उतारना कठिन हो जाए।
      उसको गुरां की बहुत याद आती। शैरन की भी। अब गुरां कभी कभी फोन कर लेती थी। शैरन का भी आ जाता। एक दिन सतनाम ने भी किया था और शिन्दे को लेकर कोई बात करता था, पर वह इतना बिजी था कि अच्छी तरह बात नहीं कर सका था। मैरी की तरफ जाते हुए अब वह कभी हाईबरी नहीं गया था। पहले की भाँति अब बाहर बाहर किसी को देखने की तमन्ना भी नहीं जागी थी। अजमेर और सतनाम पर तो उसे अब गुस्सा भी आने लगा था कि कोई उसकी दुकान देखने तक नहीं आया। मानो वे दोनों उसके बिजनेस से ना-खुश हों।
      एक दिन गैस देने वह क्लैपहम गया। एलीसन की याद आ गई। उसका मन हुआ कि वह उसका दरवाज़ा खटकाकर देखे कि घर में ही है कि नहीं। वह दोबारा एलीसन को फोन भी नहीं कर सका था। उसके मन में आया कि क्यों न इस कठिन समय में वह एलीसन की मदद ले ले। मैरी का अब डर रहता था। उसने अपने मोबाइल से ही एलीसन को फोन किया -
      एलीसन ने कहा -
      ''डेव, तू दोबारा आया ही नहीं। न फोन किया और तूने अपना नंबर भी बदल लिया।''
      ''हाँ, एलीसन। मैंने जगह जो बदल ली इसलिए फोन नंबर भी वो नहीं रहा।''
      ''क्या हाल है तेरा ?''
      ''मैं ठीक हूँ। तू सुना तेरा क्या हाल है। और तेरे ब्वॉय फ्रेंड का भी ?''
      ''ब्वॉय फ्रेंड तो मैंने सिर्फ ट्राई ही किया था। ठीक नहीं लगा, छोड़ दिया।''
      ''शौन की कोई ख़बर ?''
      ''मैं क्या बताऊँ, बल्कि तू बता शौन के बारे में ?''
      ''मुझे भी नहीं पता। मेरा फोन नंबर बदल गया है न।''
      ''डेव, तूने मेरे साथ एक प्रॉमिस किया था, याद है ?''
      ''कौन सा प्रॉमिस, याद तो करा ज़रा।''
      ''यही कि मुझे छुट्टियों में आयरलैंड भेजेगा, मेरे बच्चे संभालेगा।''
      ''क्यों नहीं, जब मर्जी जा तू। मैं तेरे बच्चे संभाल लूँगा। अब तो मेरी बेटियाँ भी कई बार आ जाया करती हैं। एक साथ खेल सकेंगे ये।''
      ''मुझे आयरलैंड जाना है क्रिसमस पर, ठीक है ?''
      ''बिलकुल ठीक। मैं किसी दिन घर आऊँगा, बैठकर बातें करेंगे।''
      फिर एक दिन समय निकालकर वह एलीसन के घर गया। वह मैरी को एलीसन के बारे में कुछ नहीं बताना चाहता था, इसलिए कुछ देर बैठकर ही लौट आया। फेह और नील उसके साथ उतावले से होकर बातें कर रहे थे। वह उन्हें अनैबल और शूगर के बारे में बता रहा था।
      वह ग्रीनिच गया तो बेटियों के साथ बातें करने लगा। उसने कहा-
      ''इस साल क्रिसमस पर तुम्हें क्या लेना है ?''
      ''एनीथिंग व्हटऐवर यू लाइक ?'' अनैबल बोली।
      शूगर ने साथ ही सिर हिला दिया। बलदेव ने कहा-
      ''नहीं, ऐसे नहीं। व्हटऐवर यू लाइक, बाइ! ओर यू टेल मी।''
      लड़कियाँ खुश हो गईं। बलदेव आगे कहने लगा-
      ''और क्रिसमस पर तुम्हारे दो फ्रेंड्स भी तुम्हारे साथ रहेंगे।''
      ''विच वन्ज़ ?''
      ''यू डोंट नो दैम यैट ?''
      बलदेव ने कहा और सिमरन की तरफ देखने लगा। सिमरन ज़रा-सा हैरान होकर बोली-
      ''कौन आ रहा है ?''
      ''तू शौन की बहन एलीसन को जानती है ?''
      ''नहीं तो।''
      ''तू मिली है उससे एक बार। उसके बेटा-बेटी इन्हीं की उम्र के हैं। उसने अपनी माँ से मिलने जाना है इस क्रिसमस पर। कहती थी दसेक दिन के लिए मेरे बच्चे रख लेना। मैंने कहा- ठीक है।''
      ''दैट्'स गुड !... पर तुम्हें बच्चे लुक-आफ्टर करने आते हैं ?''
      ''इसमें क्या है ? और फिर अब ये इतने छोटे तो नहीं रहे... तुझे कोई एतराज तो नहीं अगर ये उनके साथ खेलें-कूदें ?''
      ''मैं क्यों माइंड करुँगी, इट'स बैटर फॉर मी... मैं भी मार्च में छुट्टियों पर जाना चाहती हूँ। बेटियों को तू संभालना।''
      बलदेव को धक्का-सा लगा कि सिमरन यह क्या कह रही थी। वह कुछ न कह सका। सिमरन फिर बोली -
      ''हमारे क्लाइंट हैं जो फ्री छुट्टियाँ अरेंज कर देते हैं कई बार। इस बार मेरी बारी है, बाकी स्टाफ ले चुका है।''
      ''साथ में कौन जा रहा है, ली हारवे ?''
      ''नहीं, पर डेव दैट्स नन ऑफ़ युअर बिजनेस।''
      सिमरन खीझकर बोली। बलदेव चुप-सी लगा गया और चुप-सा ही वहाँ से आ गया। अगले वीक एंड पर ग्रीनिच नहीं गया। उसके मोबाइल पर अनैबल का फोन आया, बोली-
      ''डैड, वाय नॉट यू कम टु डे ? वी वांट सी यू।''
      ''बेटे, मैं ज़रा बिजी हूँ, नेक्सट वीक आऊँगा।''    
      कहकर बलदेव ने फोन रखा तो पीछे पीछे ही शूगर का फोन आ गया। वह भी वही बात कह रही थी। बलदेव सोचने लगा कि अच्छी-भली चलती ज़िन्दगी में गाँठें-सी डाल लीं। हफ्ताभर लड़कियों के फोन आते रहे। उसको ग्रीनिच जाना ही पड़ा। सिमरन कहने लगी-
      ''डेव, बच्चों की एक सॉयक्लोजी यह होती है कि जितना इन्हें मिल जाए, उस पर ये अपना हक समझते हैं और उससे कम इनको मंजूर नहीं होता। इसलिए जिद्द करने लगी थीं। तू हर हफ्ते आता है, एक हफ्ते नहीं आता तो इनसे झेला नहीं जाता।''
      बलदेव ने कोई उत्तर नहीं दिया। उसका रूटीन फिर से पहले वाला ही हो गया।
      क्रिसमस की छुट्टियाँ आ गईं। मैरी अपने पति और बेटे को मिलने चली गई। गई तो दो सप्ताह के लिए ही थी, पर कह गई कि हो सकता था कि वह अधिक समय रुक जाए। बलदेव को अपने काम की चिंता सताने लगी। उसको इतनी तसल्ली-सी थी कि आयरलैंड से लौटकर एलीसन उसकी मदद करेगी, बेशक रेस्टोरेंट वाली नौकरी से कुछ समय के लिए छुट्टी ही क्यों न करवानी पड़े। उसका बड़ा मसला तो इन दस-पंद्रह दिनों का था। यह चिंता उसको खाने लगी। उसने वैदर फॉरकास्ट देखी। क्रिसमस के दिनों में धूप निकलनी थी। बिजनेस के लिए यद्यपि बुरी ख़बर थी, पर बलदेव के लिए अच्छी थी। काम को आसानी से संभाला जा सकता था।
      एलीसन खुश-खुश-सी चली गई। फेह और नील को बलदेव ले आया। वह उनको ग्रीनिच ले गया। उसने उन दोनों का अपनी बेटियों से परिचय करवाया दिया। शीघ्र ही सभी घुल मिलकर खेलने लगे। सिमरन उन बच्चों के आने पर खुश थी। सिमरन को भी कुछ छुट्टियाँ थीं। क्रिसमस वाले दिन उसने टरकी बनाई। सभी बच्चों को उसने तोहफे लेकर दिए। बलदेव सवेरे ग्रीनिच से ही काम पर चला जाता। कई बार सिमरन और चारों बच्चे भी दुकान में आ जाते और पूरा दिन वहीं रहते। सिमरन ने एलीसन के बच्चों का परायापन कतई महसूस नहीं किया।
      एक दिन बलदेव सोचने लगा कि उसने दुबारा एलीसन के घर का चक्कर ही नहीं लगाया। छुट्टियों में चोरियाँ भी बहुत हो जाती हैं। सूने पड़े घर को देखकर तो चोर दौड़कर पड़ते हैं। फिर उसको नील और फेह के लिए कुछ और कपड़े भी चाहिए थे। वह एलीसन के फ्लैट में गया। जब चॉबी लगाकर दरवाज़ा खाला तो एलीसन सामने खड़ी थी। वह उसको देखकर हैरान हो गया और पूछने लगा-
      ''एलीसन, तू यहाँ क्या कर रही है ? तुझे तो आयरलैंड में होना चाहिए था।''
      एलीसन कुछ बोले बगैर रोने लग पड़ी। बलदेव ने पूछा-
      ''वहाँ सब ठीक तो है ?''
      ''हाँ, सब ठीक है।''
      ''फिर तू इतनी जल्दी क्यों लौट आई ?''
      ''मैं क्या करती ? वहाँ मुझे किसी ने बुलाया ही नहीं। घर का दरवाज़ा भी मुश्किल से खोला उन्होंने। मेरी माँ ने तो यहाँ तक कह दिया कि जैसे आई है, वैसे ही लौट जा। दुबारा कभी न आना। हमारे लिए तो तू मर चुकी है।''
      कहकर वह फिर रोने लगी। बलदेव ने उसे अपनी बाहों में भरकर दिलासा दिया। चूमा। पर एलीसन रोये जा रही थी। उसको दुख था कि उसके पैसे खराब हुए थे। इससे तो वह न ही जाती। उसकी क्रिसमस भी नष्ट हो गई थी। बलदेव उसके करीब ही बैठ गया। वह उसके कंधे पर सिर रखकर रोने लगी। बलदेव उसकी पीठ पर हाथ फेरता उसको शांत करवाता रहा। जब वह कुछ ठीक हुई तो बलदेव ने पूछा-
      ''शौन की ख़बर आई वहाँ कोई ?''
      ''शौन के बारे में मुझे उन्होंने क्या बताना था। मैथ्यू की पत्नी कैमला बताती थी कि एक दिन फादर एडरसन इन्हें मिला था। बताता था कि शौन वापस आ जाएगा। मुझे फादर जॉय भी यही कहता था। शौन फादर जॉय को ख़त लिखता रहता है, कैरन जो चर्च जाती है। मुझे लगता है, हमारी मदर को भी शौन का फोन आता है।''
      अब एलीसन शांत हो गई थी। उसने आँसू पोंछ लिए थे। बोली-
      ''डेव, माइंड न करना, है तो शौन तेरा दोस्त ही... एक तरफ तो मेरी छोटी-सी गलती को ये लोग माफ़ नहीं कर रहे और दूसरी तरफ शौन की ओर देख, अपने फर्ज से कैसे मुँह मोडे घूमता है। अच्छी-भली कैरन को पागल सिद्ध करने की कोशिश कर रहा है।''
 (जारी…)

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