शनिवार, 11 सितंबर 2010

गवाक्ष – सितम्बर 2010



“गवाक्ष” ब्लॉग के माध्यम से हम हिन्दी ब्लॉग-प्रेमियों को हिन्दी/पंजाबी के उन प्रवासी लेखकों/कवियों की समकालीन रचनाओं से रू-ब-रू करवाने का प्रयास करते आ रहे हैं जो अपने वतन हिन्दुस्तान से कोसों दूर बैठकर अपने समय और समाज के यथार्थ को अपनी रचनाओं में रेखांकित कर रहे हैं। “गवाक्ष” में अब तक पंजाबी कवि विशाल (इटली) की कविताओं का हिन्दी अनुवाद, दिव्या माथुर (लंदन) की कहानी, अनिल जनविजय (मास्को) की कविताएं, न्यू जर्सी, यू.एस.ए. में रह रहीं देवी नागरानी की ग़ज़लें, लंदन निवासी कथाकार-कवि तेजेन्द्र शर्मा, रचना श्रीवास्तव, दिव्या माथुर की कविताएं, दुबई निवासी पूर्णिमा वर्मन की कविताएं, यू एस ए में रह रहीं हिन्दी कथाकार-कवयित्री इला प्रसाद, डेनमार्क निवासी कवि भगत धवन की कविताएँ और चाँद शुक्ला की ग़ज़लें, यू एस ए निवासी कवि वेद प्रकाश ‘वटुक’ तथा कवयित्री रेखा मैत्र की कविताएं, कनाडा अवस्थित पंजाबी कवयित्री तनदीप तमन्ना की कविताएं, यू के अवस्थित हिन्दी कवि-ग़ज़लकार प्राण शर्मा की ग़ज़लें, कैनेडा में अवस्थित पंजाबी कवि सुखिन्दर की कविताएं, कनाडा निवासी पंजाबी कवयित्री सुरजीत, अमेरिका अवस्थित डॉ सुधा धींगरा, कनाडा में अवस्थित हिंदी- पंजाबी कथाकार - कवयित्री मिन्नी ग्रेवाल की कविताएं, न्यूजीलैंड में रह रहे पंजाबी कवि बलविंदर चहल की कविता, कैनेडा में अवस्थित पंजाबी लेखिका बलबीर कौर संघेड़ा की कविताएं, इंग्लैंड से शैल अग्रवाल की पाँच कविताएं, सिंगापुर से श्रद्धा जैन की ग़ज़लें, इटली में रह रहे पंजाबी कवि विशाल की कविताएं, यू एस ए में रह रहीं हिन्दी कथाकार-कवयित्री इला प्रसाद की एक लघुकथा, कैनेडा निवासी पंजाबी कवि डा. सुखपाल की कविता, यू.एस.ए. में अवस्थित हिंदी कवयित्री डॉ. सुधा ओम ढींगरा की कविताएं, यू.एस.ए. में अवस्थित पंजाबी कवि-कथाकार प्रेम मान की पंजाबी कविताएं, इकबाल अर्पण की एक ग़ज़ल और पंजाबी कथाकार-उपन्यासकार हरजीत अटवाल के उपन्यास “सवारी” के हिंदी अनुवाद की अट्ठाइसवीं किस्त आपने पढ़ीं। “गवाक्ष” के सितम्बर 2010 अंक में प्रस्तुत हैं - कैनेडा निवासी सुश्री मीना चोपड़ा की कविताएं तथा यू.के. निवासी पंजाबी कथाकार-उपन्यासकार हरजीत अटवाल के धारावाहिक पंजाबी उपन्यास “सवारी” की उन्तीसवीं किस्त का हिंदी अनुवाद…
कैनेडा से
मीना चोपड़ा की तीन कविताएं
(कविताओं के संग सभी चित्र : मीना चोपड़ा)

दुशाला

अँधेरों का दुशाला
मिट्टी को मेरी ओढ़े
अपनी सिलवटों के बीच
खुद ही सिमटता चला गया
और कुछ झलकती
परछाइयों की सरसराहट,
सरकती हुई
इन सिलवटों में
गुम होती चली गयी
मेरी नज़रों में सोई हुई
सुबह के कुछ आंसू
आँखों के किनारों से छलक पड़े

देखो तो सही
पूरब की पेशानी से उगती
मखमली रोशनी के उस टुकड़े ने
हरियाली के हसीन चेहरे पर
यह कैसी शबनम बिखेर दी है?
शाम के वक़्त
जो शाम के प्याले में भरकर
अँधेरी रात के नशीले होंठों का
जादूई जाम बना करती है

सर्द सन्नाटा

सुबह के वक़्त
आँखें बंद कर के देखती हूँ जब
तो यह जिस्म के कोनो से
ससराता हुआ निकल जाता है
सूरज की किरणे चूमती हैं
जब भी इस को
तो खिल उठता है यह
फूल बनकर
और मुस्कुरा देता है
आँखों में मेरी झांक कर

सर्द सन्नाटा
कभी यह जिस्म के कोनो में
ठहर भी जाता है
कभी गीत बन कर
होठों पे रुक भी जाता है
और कभी
गले के सुरों को पकड़
गुनगुनाता है
फिर शाम के
रंगीन अँधेरों में घुल कर
सर्द रातों में गूंजता है अक्सर
सर्द सन्नाटा

मेरे करीब
आ जाता है बहुत
बरसों से मेरा हबीब
सन्नाटा
मुट्ठी भर आरज़ू

जीवन ने उठा दिया
चेहरे से अपने
शीत का वह ठिठुरता नकाब
फिर उसी गहरी धूप में
वही जलता सा शबाब
सूरज की गर्म साँसों में
उछलता है आज फिर से
छलकते जीवन का
उमड़ता हुआ रुआब

इन बहकते प्रतिबिम्बों के बीच
कहीं यह ज़िंदगी के आयने की
मचलती मृगतृष्णा तो नहीं?

किनारों को समेटे जीवन में अपने
कहीं यह मुट्ठी भर आरज़ू तो नहीं?
००
मीना चोपड़ा
जन्म : नैनीताल (उत्तर प्रदेश)।
शिक्षा : बी.एस सी. (लखनऊ), टेक्सटाइल डिज़ाइनिंग में शिक्षा ।
प्रकाशन : पहला अंग्रेज़ी कविताओं का संकलन ’इग्नाइटिड लाईन्स’ १९९६ में इंग्लैंड में लोकार्पित हुआ। कविताओं का अनुवाद जर्मन भाषा में । कविताएँ अनेक राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय साहित्यिक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित।
कला और अन्य गतिविधियाँ : एक कवयित्री होने के साथ-साथ एक चित्रकार भी हैं। अब तक राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर २५ से अधिक कला-प्रदर्शनियाँ लगा चुकी हैं। इन्होंने २००२ में ’साऊथ एशियन ऐसोसिएशन ऑफ़ रीजनल कोऑपरेशन’ द्वारा आयोजित कलाकारों की सभा में भारत का प्रतिनिधित्व किया।
मीना चोपड़ा कला-क्षेत्र में हमेशा से ही बहुत क्रियाशील रही हैं। भारत में "पोइट्री क्लब" की सचिव रही हैं। इसके अतिरिक्त कई व्यापारिक एवं कला संस्थाओं की सदस्या भी रह चुकी हैं। भारतवर्ष में इनका व्यवसाय "एडवर्टाइज़िंग" रहा है, जहाँ यह अपनी एडवर्टाइज़िंग एजेन्सी का संचालन करती रही हैं।
कैनेडा आने के बाद इन्होंने कई कलाकारों और कला प्रेमियों को संगठित कर एक कला संस्था का निर्माण किया, जिसका उद्देश्य भिन्न-भिन्न, जन-जातियों के लोगों को कला के द्वार समान स्थल पर लाकर जोड़ना, आपस की भावनाओं और कामनाओं को कला के द्वारा समझना और बाँटना है। कला जो हमेशा से सीमाओं में बंधती नहीं, उसे सीमाओं से आगे ले जाना ही इस संस्था का उद्देश्य है। इस संस्था को "क्रॉस-करंट्स इंडो-कनेडियन इंटरनेशनल आर्टस’ के नाम से जाना जाता है। यह संस्था २००५ से लगभग दस से अधिक कला समारोह एवं प्रदर्शनियाँ आयोजित कर चुकी है।
मीना चोपड़ा के बनाये हुए चित्र भारत तथा कई अन्य देशों में सरकारी, व्यवसायिक तथा संग्रहकर्ताओं के कला संग्रहों में हैं।
टेलीफोन : 905 819 8142
वेबसाइट्स :
http://meenasartworld.blogspot.com
http://childrens-art-competition.blogspot.com/
http://starbuzz-starbuzz.blogspot.com/
http://learnaheartland.blogspot.com/

धारावाहिक पंजाबी उपन्यास(किस्त- 29)


सवारी
हरजीत अटवाल
हिंदी अनुवाद : सुभाष नीरव

॥ चौंतीस ॥

लॉरी से सामान उतरवा कर सतनाम और शिन्दा खड़े हुए ही थे कि मगील आ गया। दूर से ही बोला-
''सॉरी सैम, आज मुझे पता था कि शैनी भी आ जाएगा, काम थोड़ा ही हिस्से में आएगा, पर मेरे से पहुँचा नहीं गया।''
''क्या बात हो गई ?''
''मरीना... मेरी बेटी मरीना ने सारी रात मुसीबत डाले रखी।''
''क्या ?''
''बगैर किसी बात के झगड़ा। तू तो जानता ही है न इन औरतों को... जिन दिनों में इन्हें गुस्सा आता है, बस वही दिन चल रहे हैं। और उसका ब्वॉय फ्रैंड कई दिन से आया ही नहीं, बस यही मुसीबत है।''
''यू आर बास्टर्ड लौरल !... गेट लॉस्ट एंड डू समथिंग।''
सतनाम ने उसे धमकाते हुए काम पर लगा दिया।
शिन्दे का आज पहला दिन था सतनाम की दुकान पर। मगील उसका गाईड बन गया। छुरियाँ तीखी करने से लेकर आरी चलाने तक की ट्रेनिंग देने लगा। उसे था कि शिन्दे को अंग्रेजी नहीं आती। वह मुँह से कम बोलता और इशारे ज्यादा करता। वह उंगलियाँ दिखाते हुए बोला-
''छुरी ध्यान से... नहीं तो ये गईं... ये दो उंगलियाँ बहुत ज़रूरी, किसी को 'फक ऑफ' कहने के लिए... बीचवाली उंगली गुदा दिखाने के लिए।''
शिन्दा उसकी एक्टिंग पर हँसने लगा। मगील ने कहा-
''हँस मत। ध्यान से समझ, नहीं तो ग्राहक लैंब के साथ-साथ तेरी उंगलियाँ भी पका लेंगे।''
''मगील, तू मेरी ज्यादा चिंता मत कर।''
शिन्दे ने अंग्रेजी में कहा। मगील भड़कता हुआ बोला-
''मेरी इतनी मगजमारी यूँ ही करवाई। अगर तू समझता था तो बताया क्यों नहीं?''
पैट्रो ने शिन्दे को अपने पास बुलाते हुए कहा-
''शैनी, तू इधर आ, एक दिन में कुछ नहीं सीखा जाता, जल्दी मचाने की कोई ज़रूरत नहीं।''
फिर पैट्रो उसे मीट काटने के प्रारंभिक गुण बताने लगा कि मीट जोड़ों पर से आसानी से काटा जाता है। हड्डी वाले मीट पर इस तरह वार करना है कि एक ही वार में हड्टी कट जाए। सूअर की कटाई अलग और बीफ़ तथा लैंब की कटाई अलग। चिकन अलग। गर्दन और पूछ की कटाई में कैसे फर्क होता है,आदि। शिन्दा कहने लगा-
''पैट्रो, यह तो बहुत कारीगिरी का काम है।''
''और नहीं तो क्या। आज कल बुच्चरों की कमी इसी कारण ही है। यह बहुत स्किल्ड जॉब है।''
शराब की दुकान से यह काम बिलकुल अलग था। शिन्दे को अच्छा नहीं लग रहा था। लहू-मांस की बदबू नाक को चढ़ रही थी। हाथ भी लिबड़े से रहते। सफ़ेद रंग का कोट जल्द ही लाल रंग से भर जाता। कुछ दिन घिन्न-सी आती रही और फिर सब कुछ ठीक हो गया। दुर्गन्ध आनी भी बन्द हो गई। काम हालांकि अजमेर की दुकान से अधिक था, पर माहौल बहुत बढ़िया था। कोई किसी को चुभती हुई बात नहीं कहता था। कोई रौब नहीं डालता था। दिन भर हँसी-मजाक चलता रहता।
दोपहर को जुआइश आकर अपनी ही हाय-तौबा मचाने लगी। पहले दिन शिन्दे को उसने गाहक ही समझा था। जुआइश को देखते ही मगील कहने लगा था-
''सैनोरीटा, तेरे दुख के दिन दूर हो गए, अब तू खुश हो जा।''
''सैनिओर, तू मेरे लिए क्या खोजकर लाया है ?''
''ये देख, जवान लड़का, शैनी, सिर्फ़ तेरे लिए मंगवाया है।''
''पर सैनिओर, मैं तो तुझे पसन्द करती हूँ।''
''पर मेरा हरम इस वक्त भरा पड़ा है, शैनी से ही काम चला। देख इसकी जवानी।''
कहते हुए मगील शिन्दे की बाजू की मछलियों पर हाथ फेरने लगा। जुआइश शिन्दे से बोली-
''मैंने तुझे ऐंडी की दुकान पर देखा हुआ है।''
''मेरा बड़ा भाई जो है।''
''पर उसका स्वभाव सैम से एक दिन उलट है, हर वक्त खीझा ही रहता है।''
शिन्दे ने जुआइश की इस बात का कोई जवाब नहीं दिया। जुआइश मिनट भर प्रतीक्षा करके बोली-
''मैं नोइल रोड पर रहती हूँ, होर्नज़ी रोड से ऑफ़ है, ब्रिज के बाद। दोपहर-शाम यहाँ सफाई करती हूँ, सवेरे भी।''
कहकर वह अपने काम में लग गई थी।
पहले दिन ही सतनाम ने शिन्दे का हाथ देख लिया था कि वह काम में तेज था। वह सोचने लग पड़ा था कि अगर शिन्दा दुकान संभाल ले तो वह काम को थोड़ा बढ़ा ले। कुछ और रेस्ट्रोरेंट वगैरह को माल सप्लाई करने लग पड़े। वह पूरा दिन ही डिलवरी कर सकता था। होलसेल के काम के विषय में भी सोचा जा सकता था। साथ ही फ्रोजन मीट का भी काम चल सकता था। अब उसे पीछे की चिंता सताने लगी थी कि दुकान में सब ठीक ही हो। माइको को जुआ खेलने की आदत होने के कारण उसके द्वारा टिल्ल में से पैसे निकाल लेने का डर बना रहता। यद्यपि पैट्रो वहाँ था, फिर भी सतनाम को पीछे की फिक्र रहती ही थी। शिन्दा अब टिल्ल संभाल सकता था। वह सोच रहा था कि यदि शिन्दा टिक जाए तो उसके कितने ही मसले हल हो जाएँ।
दुकान बन्द करके सतनाम शिन्दे को अजमेर की ओर छोड़ने चला गया। अजमेर के साथ यही फैसला हुआ था कि शिन्दा अजमेर के पास ही रहता रहेगा। इतवार को उसकी दुकान संभालेगा। सतनाम तो पहले ही शिन्दे को अपने पास नहीं रख सकता था। मनजीत इन्कार किए जाती थी। उसे पता था कि मनजीत आई पर आ जाए तो अपनी बात मनवा कर ही हटती थी। सतनाम की दुकान से ही शिन्दा थका हुआ था। लेकिन वह दुकान में घुसते ही शैल्फों को भरने लग पड़ा। फ्रिज को देखने लगा कि ड्रिंक का कौन सा डिब्बा बिका ताकि उसकी जगह नया रख दे। टोनी बोला-
''शैनी, तू फिक्र न कर। मैंने सारा काम किया हुआ है।''
अजमेर अधिक खुश नहीं था। शिन्दा भी जानता था कि वह उसे सतनाम की ओर भेजकर दुखी था। उसे पचास पाउंड में ही इस्तेमाल करना चाहता था। सतनाम उसके मूड को ठीक करने के मकसद से कहने लगा-
''भाई, शिन्दा पुत तो बन गया पूरा झटकई, अब बेशक माहिलपुर के अड्डे में दुकान डाल ले। भाइया आज होता तो कितना खुश होता। उस नज़ीर हुसैन ने ऊपरवाले का शुक्रिया अदा करने से ही बाज नहीं आना था।''
''हाँ, तुम मुझे झटकाई बनाकर ही खूब खुश किए जाओ।''
अजमेर का मूड ज़रा-सा बदला पर फिर सख्त हो गया। अब तक शिन्दा भी समझ चुका था कि अजमेर कैसी बातों से मूड में आया करता है। उसने कहा-
''झटकाई तो कोट वाला रतना बाज़ीगर है, कभी उसने बकरी नहीं बनाई, सदा बकरा ही झटकेगा... भाई के विवाह पर भी बकरे उससे ही लिए थे।''
''उस समय तो बताते हैं, तुमने बकरे ही कई झटक दिए थे।'' कहते हुए सतनाम ने अजमेर की तरफ देखा।
''भाई का विवाह था, झटकने ही थे, झटके भी हमने शर्तें लगा-लगा कर कि देखें एक ही वार में गर्दन कौन उतारता है।''
''उतारी किसी ने ?''
''नहीं, बलदेव ने कई वार किए, बकरा ‘में-में’ करके चीखे, मैंने दो वार करके उतार दिया था। इस भाई ने तो सींगों पर ही किरपाण जड़ दी।''
''यूँ ही शराबी हुए शरारतें करते थे, और क्या।'' अजमेर बोला।
सतनाम कहने लगा, ''तुमने विवाह पर खर्चा ही बहुत कर दिया। ड्रम शराब का निकाल लिया, ठेके से भी बोरियाँ मंगवा लीं, गाँव के सारे कुक्कड़ खत्म कर दिए। इतनी भी भला क्या ज़रूरत थी।''
''ओ एक ही बार तो विवाह करवाना था। अगर तू भी वहाँ विवाह करवाता तो ऐसे ही धूमधाम से करते। इस शिन्दे का ज़रा पहले करना पड़ा, नहीं तो उस वक्त भी पटाखे बजाने थे।''
अजमेर अब पूरे रौ में था। शिन्दा कहने लगा-
''मैंने तो उस वक्त भाई को कहा था भई गाने वाली बुला लेते हैं, ऐसी क्या बात है।''
अजमेर ने फ्रिज में से टेनंट का डिब्बा निकाला और सबको थमाते हुए बोला-
''अपना रेपुटेशन है यार, ताया ने नाम कमाया हुआ है, ये गाने वाली तो हल्का टेस्ट है।''
फिर वह शिन्दे से कहने लगा-
''तू जा कर सो जा, सवेरे फिर जल्दी उठेगा।''
''नहीं भाई, कुछ नहीं होता। घंटे भर बाद ठहर कर पड़ लूँगा।''
शिन्दे के कहने पर अजमेर और भी खुश हो गया। सतनाम को तसल्ली थी कि अजमेर ने सब मंजूर कर लिया था। अजमेर ने कहा-
''गिलास पीना है ?''
''नहीं भाई, चलता हूँ, वहाँ भी जनता पार्टी इंतज़ार करती होगी। श्रीदेवी तो ललिता पवार बन जाएगी।''
शिन्दा अभी भी अजमेर के विवाह में फंसा बैठा था। वह कहने लगा-
''मैंने तो बलदेव से कहा था कि भाई चल, इंडिया चल मेरे साथ, तेरा विवाह भी ऐसा करेंगे कि एक बार तो बल्ले-बल्ले हो जाएगी, पर वह मानता ही नहीं।''
सतनाम और अजमेर ने शिन्दे की बलदेव वाली बात नहीं सुनी थी। वे दोनों फिंचली वाले पब को लेकर बातें करने लगे थे।
(जारी…)
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लेखक संपर्क :
67, हिल साइड रोड,
साउथाल, मिडिलसेक्स
इंग्लैंड
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