शुक्रवार, 10 अगस्त 2012

गवाक्ष – अगस्त 2012


जनवरी 2008 गवाक्ष ब्लॉग के माध्यम से हम हिन्दी ब्लॉग-प्रेमियों को विदेशों में रह रहे हिन्दी/पंजाबी के उन लेखकों/कवियों की समकालीन रचनाओं से रू--रू करवाने का प्रयास करते आ रहे हैं जो अपने वतन हिन्दुस्तान से कोसों दूर रहकर अपने समय और समाज के यथार्थ को अपनी रचनाओं में रेखांकित कर रहे हैं। गवाक्ष में अब तक विशाल (इटली), दिव्या माथुर (लंदन), अनिल जनविजय (मास्को), देवी नागरानी(यू.एस..), तेजेन्द्र शर्मा(लंदन), रचना श्रीवास्तव(लंदन), पूर्णिमा वर्मन(दुबई), इला प्रसाद(यू एस ए), भगत धवन (डेनमार्क), चाँद शुक्ला (डेनमार्क), वेद प्रकाश वटुक’(यू एस ए), रेखा मैत्र (यू एस ए), तनदीप तमन्ना (कनाडा), प्राण शर्मा (यू के), सुखिन्दर (कनाडा), सुरजीत(कनाडा), डॉ सुधा धींगरा(अमेरिका), मिन्नी ग्रेवाल(कनाडा), बलविंदर चहल (न्यूजीलैंड), बलबीर कौर संघेड़ा(कनाडा), शैल अग्रवाल (इंग्लैंड), श्रद्धा जैन (सिंगापुर), डा. सुखपाल(कनाडा), प्रेम मान(यू.एस..), (स्व.) इकबाल अर्पण, सुश्री मीना चोपड़ा (कनाडा), डा. हरदीप कौर संधु(आस्ट्रेलिया), डा. भावना कुँअर(आस्ट्रेलिया), अनुपमा पाठक (स्वीडन), शिवचरण जग्गी कुस्सा(लंदन), जसबीर माहल(कनाडा), मंजु मिश्रा (अमेरिका), सुखिंदर (कनाडा), देविंदर कौर (यू के), नीरू असीम(कैनेडा), इला प्रसाद(अमेरिका), डा. अनिल प्रभा कुमार(अमेरिका) और डॉ. शैलजा सक्सेना (टोरंटो,कैनेडा), समीर लाल (टोरंटो, कनाडा), डॉक्टर गौतम सचदेव (ब्रिटेन) आदि की रचनाएं और पंजाबी कथाकार-उपन्यासकार हरजीत अटवाल के उपन्यास सवारी के हिंदी अनुवाद की उनचासवीं किस्त आप पढ़ चुके हैं।
0
गवाक्ष के इस ताज़ा अंक में प्रस्तुत हैं हंगरी से हिंदी कवयित्री विजया सती की कुछ कविताएँ और ब्रिटेन निवासी पंजाबी लेखक हरजीत अटवाल के धारावाहिक पंजाबी उपन्यास सवारी की पचासवीं किस्त का हिंदी अनुवाद
साथ ही, गवाक्ष के पाठकों को जन्माष्टमी और 15 अगस्त(स्वतंत्रता दिवस) की शुभकामनाएँ…
हंगरी से
विजया सती की कविताएँ


एकांत

एक
जब कोई नहीं है साथ
बहुत काफ़ी हैं एक दूसरे के लिए
मैं और मेरा एकांत

सताते नहीं एक-दूसरे को हम
न कतराते ही हैं एक-दूसरे से
झाँक लेते हैं फ़्लैट की खिड़की से
हाथों में हाथ डाल साथ-साथ

कबूतरों की उड़ान, बिल्ली की छलांग
छलछलाई नदी के किनारे की चहलकदमी
अनूठी शीतलता से भर देती है
मुझे और मेरे एकांत को !

दो
दोहरे शीशे जड़ी खिड़की से देखती हूँ बाहर की दुनिया
और भरपूर जीती हूँ
अकेलापन नहीं यह मेरा एकांत है
जो मुझे रचता है !

तीन
सोए हुए को जगाना चाहिए –  कहा था अपने आपसे
जाग उठा सागर अबाध एक उस दिन
आश्चर्य कि वह खारा भी नहीं था !

चार
अपने-अपने कोटर में जा दुबके जब
मौन वृक्ष की छाया लंबी होती चली गई !

पाँच
जुड़ाव
नया देखकर याद आता है कुछ पुराना
वैसी ही हैं ये गलियाँ रास्ते इमारतें
यहां पहले भी आए थे हम !

छ:
मित्रता
इतने मित्र भी नहीं थे तुम कि संवाद कायम रखते?
मित्रता का सच आँख ओझल होना भर था?


सात
इंसान
तुमने भी देखा न
नीली जमीन पर सफ़ेद फूलों सा छाया आसमान,
कभी संवलाया-बदराया आसमान,
डूबते सूरज की लाली में रंगा
और कभी भरी दोपहरी
बेतरह तमतमाया आसमान,
देर तक ठहर कर हवा में हाथ हिलाता
धब्बेदार आसमान तुमने भी देखा न ?

इतने रंग बदलता है आसमान हम तो फिर इंसान हैं !

00
शिक्षा  - एम ए , पीएच डी (हिन्दी) दिल्ली विश्वविद्यालय
कार्यक्षेत्र अध्यापन. एसोसि़एट प्रोफ़ेसर हिन्दी विभाग हिन्दू कॉलेज दिल्ली विश्वविद्यालय
संप्रति विज़िटिंग प्रोफ़ेसर ऐल्ते विश्वविद्यालय बुदापैश्त हंगरी
प्रकाशित कृतियाँ :
*शुरू यात्रा में’ – 1979, सहयोगी काव्य संकलन; * आत्मजयी चेतना और शिल्प-1979, आलोचना ग्रन्थ * भवानी प्रसाद मिश्र की कविता- 2003, आलोचना ग्रन्थ * समकालीन हिन्दी कविता (1960-1988) में प्रकृति : तकनीकी विकास के कारण आए परिवर्तनों के सन्दर्भ में -1993, शोध आलेख पांडुलिपि
पुरस्कार :
* दिल्ली विश्वविद्यालय की बी.ए. ऑनर्स और एम.ए. हिन्दी परीक्षाओं में सर्वश्रेष्ठ छात्रा होने के नाते सरस्वती पुरस्कार, मैथिलीशरण पुरस्कार और सावित्री सिन्हा स्मृति स्वर्ण पदक से पुरस्कृत. * विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा टीचर फेलोशिप और कैरियर अवार्ड के लिए चयनित * उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा अनुशंसा पुरस्कार * हिन्दी अकादमी द्वारा कविता पुरस्कृत.
विशेष :
जीवन पर्यंत शिक्षण संस्थान दिल्ली विश्वविद्यालय में ई-सामग्री निर्माण परियोजना में एसोसिएट को-ऑर्डिनेटर.
नेत्रहीन छात्रों के लिए ऑडियो लाइब्रेरी निर्माण.
फ़ोन नंबर (वर्तमान प्रवास) 00361 23 922 66

धारावाहिक पंजाबी उपन्यास(किस्त- 50)



सवारी
हरजीत अटवाल
हिंदी अनुवाद : सुभाष नीरव

॥ पचपन ॥

कार पा कर बलदेव बहुत खुश था। वह कार लेने की हिम्मत नहीं कर पा रहा था। पैसे इकट्ठे नहीं हो पा रहे थे। नई जगह आने से खर्चे भी बढ़ गए थे। अभी सीज़न भी शुरू नहीं हुआ था। वैसे कार की ज़रूरत उसको हमेशा महसूस होती थी। पिकअप में घूमते फिरना उसको अच्छा नहीं लगता था। वह चाहता था कि अपनी खुशी किसी से साझी करे। डौमनिक को फोन करके वह उसके साथ कितनी देर तक इस बारे में बातें करता रहा था। डौमनिक और पौलीन में सुलह हो गई थी। अब वह साउथ एंड पर ही काम पर आया करता इसलिए मिलना नहीं हो पाता था पहले की भाँति। शौन उसका मित्र था जिससे यह बात करनी चाहता था, पर उसके पास शौन का नंबर नहीं था। आस्ट्रेलिया जाकर अभी तक उसका कोई स्थायी ठिकाना नहीं बना था, इसलिए वह स्वयं ही फोन करता। बलदेव का यह फोन नंबर उसके पास अभी था भी नहीं।
      उसे गुरां की याद आई। गुरां को फोन किए काफ़ी समय हो गया था। उसको फुर्सत भी नहीं मिली थी। यदि गुरां को पता चले कि अनेबल और शूगर उससे मिला करती हैं तो वह बहुत खुश होगी। खुशी तो सतनाम और अजमेर को भी होगी, पर वे अपने लेक्चर भी देने लग जाएँगे। वह सोचने लगा कि गुरां को मंगलवार या वीरवार सवेर को फोन करेगा। यही दो दिन थे जब अजमेर शॉपिंग करने जाता था और गुरां घर पर अकेली होती थी। उसका मन बेचैन होने लगा। मंगलवार सवेरे उसने फोन घुमाया। उसके मन में लड्डू फूट रहे थे। उधर फोन शिन्दे ने उठाया। बलदेव ने बिना हैलो कहे फोन रख दिया और सोचने लगा कि शिन्दा अजमेर के साथ नहीं गया होगा। वीरवार को फोन किया तो अजमेर ने उठाया। उसने दो बार कोशिश की। वह सोचने लगा कि गुरां कहीं इंडिया ही न चली गई हो। उसे अपने आप पर गुस्सा आ रहा था कि उसने अपना फोन नंबर भी गुरां को नहीं दिया था। अगले हफ्ते फिर शिन्दा ही फोन पर मिलता रहा। वह गुरां के बारे में जानने के लिए उतावला होने लगा। उसने सतनाम की दुकान पर फोन किया। उधर पैट्रो ने फोन उठाया। पैट्रो ने बलदेव की आवाज़ पहचान ली और बोला-
      ''डेव, तू कहाँ है ?... सभी तेरे बारे में पूछते हैं कि कोई फोन तो नहीं आया तेरा।''
      ''क्यों ?... सैम कहाँ है ?''
      ''सैम ऐंडी की तरफ गया है।''
      ''पैट्रो, सब ठीक तो है ?''
      ''नहीं, ऐंडी की पत्नी अस्पताल में है, दो हफ्ते हो गए।''
      ''क्या बात हो गई ?''
      ''उसका ब्लॅड प्रैशर हाई है, डाउन नहीं हो रहा।''
      उसने पैट्रो का धन्यवाद करते हुए फोन रख दिया। फिर उसने यार्ड और दुकान पर ताला लगाया और 'दुकान बन्द है' का नोटिस टांग नॉर्थ लंदन की ओर कार दौड़ा ली। वह विटिंग्टन हॉस्पीटल जा पहुँचा। इसी अस्पताल में पर गुरां को होना चाहिए था। यही लोकल अस्पताल था और बड़ा भी था। विटिंग्टन जाने के लिए उसको डॉर्टमाउथ हाउस के आगे से गुज़रना पड़ा। उसे याद आया कि कभी यहाँ भी दिन कटी की थी उसने। फिर मैरी का ख़याल आया कि अपने पति और पुत्र के साथ रहती होगी। आशा है, टैड के यहाँ से चले जाने पर लूना से उसका पीछा छूट गया होगा। अस्पताल जाकर उसने इन्कुआरी से पूछा कि गुरिंदर कौर बैंस कौन से वार्ड में है। रिसेप्सनिस्ट ने मुस्करा कर जवाब दिया कि नाइटिंगेल वार्ड में सेंकेड फ्लोर।
      वह वार्ड में जा पहुँचा। गुरां दायीं ओर एक बैड पर पड़ी थी। उसको दूर से ही दिखाई दे गई। गुरां ने उसकी तरफ़ देखा। कुछ पल तो वह उसकी तरफ़ देखती रही मानो पहली बार देख रही हो। फिर उसने मुँह घुमा लिया और रोने लगी। बलदेव आहिस्ता-आहिस्ता उसके पास गया। रोती हुई गुरां ने अपना मुँह हाथों में छिपा लिया। बलदेव उसके करीब कुर्सी पर बैठ गया। उसने उसके मुँह पर से हाथ हटाने की कोशिश की, पर गुरां ने करवट बदल कर उसकी ओर पीठ कर ली। बलदेव ने कहा-
      ''ऐसा न कर गुरां, प्लीज़। मैं मर जाऊँगा।''
      गुरां सीधी हो गई। उसने चेहरे पर से हाथ हटाए। उसकी आँखें आँसुओं से भरी हुई थीं। बलदेव की आँखें भी सजल हो उठीं। उसने गुरां के दोनों हाथ पकड़कर चूमे। वह रोती हुई बोली-
      ''मुझे मारकर खुश है !''
      ''तेरे से पहले मैं न मर जाऊँ।''
      ''फिर कहाँ है तू ?... ना आया, न ही फोन... मैंने तेरा क्या बिगाड़ा है ?''
      बलदेव के पास इसका कोई जवाब नहीं था। वह उसके हाथों को अपने हाथों में दबाये बैठा था। गुरां ने फिर कहा-
      ''उस दिन चोरों की तरह विंडों में से हाथ हिलाता चला गया, सोचा भी नहीं कि बाद में किसी का क्या हाल होगा। बाद में मुझे हल्का-हल्का बुखार हो गया और कई दिन तक रहा। न किसी को बताने लायक और न ही और कुछ...।''
      ''आय एम सॉरी गुरां।''
      ''तेरी सॉरी क्या कर लेगी ? किसी की जान ले लेगी।''
      कहकर वह फिर से रोने लग पड़ी। उसको रोता देख कर नर्स आ गई और कहने लगी-
      ''मिसेज बैन्ज, तुझे भावुक नहीं होना है... तेरी सेहत के लिए ख़तरनाक है।''
      फिर नर्स बलदेव से बोली-
      ''कौन है तू जो मरीज़ को रुला रहा है ?... विज़टिंग टाइम तो दो बजे शुरू होगा, तू इतनी जल्दी कैसे अन्दर आ गया ?''
      ''सिस्टर, मैं नीचे से इजाज़त लेकर आया हूँ।''
      ''यह वार्ड मेरे अंडर है, कोई दूसरा इजाज़त नहीं दे सकता। उठ कर जा और दो बजे आना।''
      ''सिस्टर, प्लीज़... मैं बहुत दूर से आया हूँ और जल्दी लौटना है। मैं कुछ मिनट ही और बैठूँगा और वादा करता हूँ कि मरीज़ को काफ़ी हद तक ठीक करके जाऊँगा।''
      नर्स मुस्कराई और उसने कहा-
      ''ठीक है, पर इसको रुलाना नहीं।''
      ''थैंक्यू सिस्टर।''
      नर्स चली गई। गुरां हँसने की कोशिश करते हुए कहने लगी-
      ''रुलाना तो इसकी हॉबी है, मुझे रुलाये बग़ैर इसे चैन कहाँ आएगा !''
      ''नहीं गुरां, ऐसा न कह प्लीज़।''
      ''फिर आया क्यूँ नहीं ?''
      ''मैंने एक कारोबार शुरू कर लिया है, उसी में फंस गया।''
      ''किसका ?''
      ''गैस के सिलेंडरों का जो घरों को गरम करते हैं। पर तू बता, तेरा ये बी.पी. कैसे बढ़ गया ?''
      ''कुछ भी पता नहीं, पहले तो थोड़ा ही हाई था, गोलियों से ठीक हो जाता था, फिर गोलियों ने असर करना छोड़ दिया।''
      ''डॉक्टर क्या कहते हैं ?''
      ''कुछ नहीं। उन्हें भी समझ में नहीं आ रहा कि इतना हाई क्यों है। यहाँ मुझे सिर्फ़ अब्जर्वेशन के लिए रखा है। कहते हैं, हाई ब्लड प्रैशर दिल के लिए खतरनाक है।''
      अब गुरां बिल्कुल नार्मल हो गई थी। वह उठकर बैठ गई। उसके चेहरे पर रंगत-सी आ गई थी। उसको देख नर्स आई और बोली-
      ''बस, इसी तरह रहा कर।''
      गुरां ने बलदेव से कहा-
      ''एक तो तू मिलने नहीं आता, मैं सोचती रहती हूँ कि ठीक ही हो, दूसरा तेरा भाई हर वक्त घर में भूचाल उठाये रखता है और तीसरा, शैरन अब तंग करने लग पड़ी है।''
      ''क्या कहती है मेरे बेटी ?''
      ''सुनेगा तो तू भी परेशान होगा।''
      ''फिर भी, बता तो सही।''
      ''है पन्द्रह साल की और बातें करती है, बीस-बाईस साल की लड़की जैसी। कोई भी लड़का बुलाए, उसके साथ खिलखिलाकर बातें करने लगती है। दुकान में खड़ी कर दो तो लड़के ही चक्कर लगाने से बाज नहीं आते। लड़कों के फोन पर फोन आने लगे थे। और तू तो अपने भाजी को जानता ही है।''
      ''गुरां, तू ज्यादा सोचा न कर। देख मेरी तरफ़, मैं कोई चिन्ता नहीं करता, जैसी गुज़रती है, गुज़ारे जाता हूँ। नहीं तो मुझे ब्लड-प्रैशर हो जाए।''
      ''तू तो सच में पत्थर हो गया है। तुझे मेरा भी फिक्र नहीं, और किसी का तो क्या होगा। अगर तुझे मेरा रत्ती भर भी ध्यान होता तो अपना फोन नंबर ही देकर जाता।''
      ''फोन नंबर और पता मैं तुझे देकर ही जाऊँगा।''
      उसने जेब में से एक कार्ड निकालकर उसे दे दिया।
      ''इस पर सबकुछ लिखा है। यह मैं ग्राहकों को दिया करता हूँ। अब जो बात तू शैरन की कर रही है, तो यह टीन-एज है, इसमें कई बदलाव आते ही रहते हैं, तू ज़्यादा  न घबरा। और जो भाजी वाली बात है, जैसा कि सतनाम कहता है कि अगर प्रेम चोपड़ा के साथ ब्याह करवाया है अब सब्र कर।''
      यह कहकर बलदेव हँसने लगा और गुरां भी खुलकर हँसी। फिर वे दोनों इधर-उधर की बातें करते रहे मानो पिछले सभी घाटे पूरे करने हों, पर बलदेव ने सिमरन के घर जाकर रातें बिताने वाली कोई बात नहीं बताई। इतना भर ही बताया कि बेटियों से अब वह मिलता रहता है। दो बज रहे थे, तब तक अजमेर और बच्चे भी आ गए। अजमेर बलदेव को देखकर खुश होते हुए बोला-
      ''अपनी भरजाई को देखने आ गया, हम तो जैसे कुछ होते ही नहीं।''
      ''नहीं भाजी, ऐसा नहीं।''
      शैरन उसको जफ्फी डालकर मिली और गिला करते हुए बोली-
      ''चाचा जी, वेयर यू बीन ?''
      ''आय वाज़ अराउंड।''
      ''यू नेवर विज़िट अस, नो फोन, एंड आय हैवंट युअर फोन।''
      ''मैं बहुत बिजी था इसलिए।''
      फिर बलदेव ने एक कार्ड उसको भी दे दिया, फिर बलदेव हरविंदर को अपने बराबर खड़ा करता हुआ बोला-
      ''शैरन तो अपनी मम्मी से भी लम्बी हो गई, ये भी हमारे से ऊपर जाएगी !''
      तब तक सतनाम भी अपने परिवार के साथ आ पहुँचा। उसने बलदेव को देखते हुए कहा-    
      ''ओए, तू है अभी ?''
      ''क्यों ? मुझे क्या है ?''
      ''मैंने सोचा 'गाइड' वाला साधू हो गया या फिर काले पानी जा घुसा है।''
      वे सभी हँसने लगे। सतनाम उससे इतने दिन न आने का कारण पूछने लगा। बलदेव ने अपने बिजनेस के बारे में बताते हुए एक कार्ड उसको भी दे दिया। गुरां बोली-
      ''मैंने तो सोचा कि तुम सब मुझे मिलने आए हो, पर देखती हूँ कि तुम तो बलदेव को ही...।''
      ''जट्टिये, तेरे बहाने 'यादों की बारात' आई है।''
      तभी एक नर्स आकर कहने लगी-
      ''एक समय में सिर्फ़ दो विज़िटर ही रुक सकते हैं, बाकी सब बाहर जाओ।''
      बलदेव शाम तक उनके पास ही ठहर गया। अजमेर अभी अस्पताल में ही था कि सतनाम और बलदेव हाईबरी में शिन्दे के पास आ गए। शिन्दा भी उसको आँखें भरकर देखता रहा। बलदेव को उसकी सेहत अच्छी प्रतीत न हुई। उसने पूछा-
      ''तुझे क्या हो गया भई ?''
      ''मुझे क्या होना है, अच्छा-भला हूँ, और क्या।'' शिन्दा बोला।
      फिर सतनाम कहने लगा-
      ''शिन्दा बेचारा काम बहुत करता है।''
      ''भाजी को भी शिन्दों जैसों की ज़रूरत है। मुझे लेकर भी तो यही परेशानी है कि मैं शिन्दा क्यूँ नहीं बनता।''
      ''पर ये कुछ ज्यादा ही शिन्दा है।''
      ''इसकी तो मुझे भी अपने कारोबार में ज़रूरत है। भाजी से बात करके मैं सर्दी-सर्दी इसको अपने साथ ले जाऊँगा।''
      ''न भाई, यह नहीं हो सकता। तेरा भाजी तो इसको मेरे पास नहीं आने देता, ज़रूरत तो इसकी मुझे भी है। और वहाँ मेरे पास काला गुड़ खाने को मिलता है इसे।''
      सतनाम के मन में एक बार तो आ गया था कि वह क्यों न सचमुच ही शिन्दे को अपने संग अभी ले जाए। अगर वह बलदेव के साथ चला गया तो फिर शायद ही वह उसके हाथ आए। शिन्दे ने कहा-
      ''बात ऐसी है भाई कि मेरा हाल तो दंगों में लाई औरत जैसा है। जिसका दिल करता है, कुछ दिनों के लिए ले जाता है।''
      ''चल तेरी पूछ तो है। पर यह जो तू शराबी-सा हो चला है, यह खराब है।''
      सतनाम ने कहा। फिर सतनाम शिन्दे की शराब की आदत के विषय में बलदेव को बताने लग पड़ा। उसका मकसद था कि वह शिन्दे को अपने साथ ले जाने का विचार त्याग दे।
      अब बलदेव गुरां से मिलने हर रोज़ आने लगा। अस्पताल के बाद वह शिन्दे के पास आ जाता। उसे शराब छोड़ने की सलाहें देता हुआ कहता-
      ''शिन्दे, यह तेरी लाइफ़ है, ये तो तेरे से काम लेने में कोई छूट नहीं देंने वाले।
      ''फिर तू ले चल अपने साथ, अब तो तू भी बिजनेसमैन हो गया है।''
      ''मैं ले तो जाऊँ, पर मेरा काम सीज़नल है। सीज़न के बाद तुझे तनख्वाह कैसे दूँगा। यहाँ पर तेरी रैगुलर जॉब बनी हुई है। और फिर मेरा काम कुछ भारी है। फिर भी, भाजी से बात करके देखता हूँ।''
      शिन्दा चुप हो जाता है।
      इन दिनों में शैरन उसके साथ और अधिक खुलकर बातें करने लगी थी। उसने शैरन को संग लिया और गुरां के लिए सुन्दर-से फूल खरीदे और उसके सिरहाने रख आए। फिर वे हर रोज़ ही एक साथ जाकर फूल लेकर आते। अजमेर शैरन को बलदेव के साथ इतनी बातें करते देख खुश नहीं होता था, अपितु दुखी होने लगता कि लड़की पर उसका कोई बुरा प्रभाव न पड़ जाए।
      एक दिन बलदेव गुरां के पास बैठा था कि कुछ बैड छोड़कर एक विज़िटर औरत उसकी ओर देखे जा रही थी। बलदेव ने गौर से देखा, वह तो मैरी थी। अपने बदले हुए हेयर-स्टाइल के कारण पहचानी नहीं जा रही थी। बलदेव बाहर गया तो मैरी भी उसके पीछे बाहर निकल आई। बाहर आकर वे दोनों तपाक से मिले। मैरी ने पूछा -
      ''वो बीमार औरत तेरी पत्नी है ?''
      ''नहीं, मेरे भाई की पत्नी है।''
      ''फिर तू मुझे देखकर मुँह क्यूँ घुमा लेता था। मैं तो तुझे रोज़ देखती हूँ यहाँ।''
      ''सॉरी मैरी, मैं पहचान नहीं सका था। तू तो एकदम बदल गई है।''
      ''मैंने सोचा कि शायद मेरे साथ अभी भी नाराज है।''
      ''नहीं, मुझे कोई गुस्सा नहीं रहा अब, मैं ठीक हूँ। कैसे है तेरा पति और बेटा ?''
      ''डेव, वो बात बन नहीं सकी, टैड को जल्दी लौटना पड़ गया था।''
      ''उसकी गर्ल-फ्रैंड ने उसको वापस बुला लिया होगा। क्या नाम था उसका?''
      ''लूना...। नहीं, लूना से भी बड़ी मुश्किल यहाँ की पुलिस ने खड़ी कर दी थी। पता नहीं किसी ने यूँ ही रिपोर्ट कर दी या कुछ और, पर पुलिस उसके पीछे लग गई थी। तुझे नहीं पता होगा कि ये गौरी पुलिस हमारे आयरिश लोगों के साथ कैसा भेदभाव वाला व्यवहार करती है। रोज़ ही बहाने से उसको घेर लेती थी। हार कर वह लौट ही गया, मिच को भी साथ ही ले गया था।''
      ''तू नहीं गई ?''
      ''नहीं, वह चुड़ैल जो वहाँ है। मैंने अब सबकुछ छोड़ दिया है।''
      ''अब ज़िन्दगी कैसी है ?''
      ''मैं बार मेड की नौकरी करती हूँ एक पब में।''
      ''तू तो टीचर थी ?''
      ''हाँ, पर यहाँ भी नस्लवाद जीत गया, मुझे नौकरी नहीं मिली। कहते हैं कि मेरे उच्चारण में फ़र्क़ है। कोई बहाना घड़कर मना कर देते हैं।''
      एकाएक बलदेव के मन में आया कि यदि वह उसके साथ सीज़न लगवा दे तो कैसा रहे। उसने मैरी को अपने कारोबार के बारे में बताया और कहा-
      ''आज शाम मेरे साथ चलना है बैटरसी, मेरे घर।''
      मैरी कुछ क्षण रुकी और फिर बोली-
      ''चल, यह मेरी जॉब इतनी पक्की नहीं और खास भी नहीं है। अस्थाई सी है।''
      मैरी बातें करती हुई उसके साथ कार-पॉर्क तक आ गई। उसके साथ कार में बैठ गई। बलदेव ने कार आगे बढ़ाई और हाईबरी पर आ गया। मैरी से कहने लगा-
      ''मैरी, मैं भाई की दुकान में सन्देशा दे आऊँ, अभी आया।''
      शिन्दा टिल्ल पर खड़ा था। शैरन उसके साथ थी। बलदेव ने शिन्दे से कहा-
      ''मैं चलता हूँ, मुझे ज़रूरी काम पड़ गया है। और फिर ठंड भी हो गई है, मैं बिजी हो जाऊँगा। अब ज्यादा आना नहीं हो सकेगा।''
      बलदेव अपनी बात बता ही रहा था कि मैरी भी आ गई और बलदेव से कहने लगी-
      ''मेरी सिगरेटें खत्म हो गई थीं।''
      उसने सिगरेट की डिब्बी खरीदी और बोली-
      ''डेव, मैं टॉयलेट जाना चाहती हूँ।''
      ''हाँ-हाँ, क्यों नहीं।'' कहकर बलदेव ने शैरन को इशारा किया कि टॉयलेट दिखा आए। शिन्दा झिझकते हुए आहिस्ता से बोला-
      ''यह तो वो ही गौरी है।''
      ''मैं इसे कहकर आया था कि कार में बैठे।''
      ''डरता होगा कि मैं न देख लूँ, अब तो सारी दुनिया देखेगी...।''
      तब तक शैरन नीचे आ गई और पूछने लगी-
      ''चाचा जी, युअर गर्ल-फ्रेंड ?''
      ''नहीं नहीं, आय जस्ट नो हर, जस्ट गिविंग हर लिफ्ट।''
      ''बट शी शेज़, शी इज़ युअर गर्ल-फ्रेंड।''
      ''नो नो बेटे, नथिंग लाइक दिस।''
      बलदेव के बात करते समय ही मैरी आ गई और वे दोनों उनको बाई-बाई करते हुए चले गए।
      शाम-सी गुज़री तो अजमेर का फोन आ गया, बोला-
      ''बलदेव, तू इतने दिनों बाद आया और आते ही गन्द फैलाने लग गया। इससे तो तू न ही आता। यह जो तू राख उड़ा रहा है, बाहर ही उड़ाये जाता, मेरे घर क्यों ?... तुझे क्या पता, हमारे बच्चे तो पहले ही हमारे हाथों से बाहर हुए फिरते हैं, यह तू कौन सी एक्ज़ेंपल सैट कर गया। कोई शरम है कि नहीं ?''
 (जारी…)

लेखक संपर्क :
67, हिल साइड रोड,
साउथाल, मिडिलसेक्स, इंग्लैंड
दूरभाष : 020-85780393,07782-265726(मोबाइल)