शनिवार, 5 दिसंबर 2009

गवाक्ष – दिसम्बर 2009


“गवाक्ष” के माध्यम से हम हिन्दी ब्लॉग-प्रेमियों को हिन्दी/पंजाबी के उन प्रवासी लेखकों/कवियों की समकालीन रचनाओं से रू-ब-रू करवाने का प्रयास कर रहे हैं जो अपने वतन हिन्दुस्तान से कोसों दूर बैठकर अपने समय और समाज के यथार्थ को अपनी रचनाओं में रेखांकित कर रहे हैं। “गवाक्ष” के पिछ्ले तेरह अंकों में पंजाबी कवि विशाल (इटली) की कविताओं का हिन्दी अनुवाद, दिव्या माथुर (लंदन) की कहानी, अनिल जनविजय (मास्को) की कविताएं, न्यू जर्सी, यू.एस.ए. में रह रहीं देवी नागरानी की ग़ज़लें, लंदन निवासी कथाकार-कवि तेजेन्द्र शर्मा, रचना श्रीवास्तव, दिव्या माथुर की कविताएं, दुबई निवासी पूर्णिमा वर्मन की कविताएं, यू एस ए में रह रहीं हिन्दी कथाकार-कवयित्री इला प्रसाद, डेनमार्क निवासी कवि भगत धवन की कविताएँ और चाँद शुक्ला की ग़ज़लें, यू एस ए निवासी कवि वेद प्रकाश ‘वटुक’ तथा कवयित्री रेखा मैत्र की कविताएं, कनाडा अवस्थित पंजाबी कवयित्री तनदीप तमन्ना की कविताएं, यू के अवस्थित हिन्दी कवि-ग़ज़लकार प्राण शर्मा की ग़ज़लें, कैनेडा में अवस्थित पंजाबी कवि सुखिन्दर की कविताएं, कनाडा निवासी पंजाबी कवयित्री सुरजीत, अमेरिका अवस्थित डॉ सुधा धींगरा, कनाडा में अवस्थित हिंदी- पंजाबी कथाकार - कवयित्री मिन्नी ग्रेवाल की कविताएं, न्यूजीलैंड में रह रहे पंजाबी कवि बलविंदर चहल की कविता, कैनेडा में अवस्थित पंजाबी लेखिका बलबीर कौर संघेड़ा की कविताएं और पंजाबी कथाकार-उपन्यासकार हरजीत अटवाल के उपन्यास “सवारी” के हिंदी अनुवाद की उन्नीसवीं किस्त आपने पढ़ीं। “गवाक्ष” के दिसम्बर 2009 अंक में प्रस्तुत हैं – इंग्लैंड से शैल अग्रवाल की कविताएं तथा पंजाबी कथाकार-उपन्यासकार हरजीत अटवाल के धारावाहिक पंजाबी उपन्यास “सवारी” की बीसवीं किस्त का हिंदी अनुवाद…

इंग्लैंड से
शैल अग्रवाल की पाँच कविताएं

(1)

शब्द बनकर बह चले
देखो सब चन्दा और तारे
बहुत जतन से जो मैंने
अपनी चूनर पर थे टांके
पक्की गांठ लगाकर
टाँका वह जोड़ा था
सूई तो बहुत नुकीली थी
धागा ही कुछ छोटा था।

(2)

बेचैन ये तूलिका
ठहरे ना थमे
रंगों के मटमैले पानी में
आंसू और मुस्कान ज्यों
एक तुम्हारे
आने और जाने पर।

(3)

मन्दिर यह
उसने तो नहीं बनवाया था
हमने ही
सिंहासन पे बिठा
फूल माला चढ़ा
भगवान बनाया था
आलम अब यह है
कि डाली का वह फूल
चरणों पे चढ़कर
माथे से लगकर भी
बस सूखा ही सूखा
और मँदिर में
खड़ा भगवान फिर हँसा
एकनिष्ठ परवशता
असमर्थ आस्था
और हठी हमारी
मूर्खता पर।

(4)

अजीब तस्बीर थी वह
उदास और अस्पष्ट
रंगों की तहों में गुम
ढूंढती कुछ…
लाल पीले चंद छींटे
खुशी का लिबास ओढ़े
मचले बिखरे और बेतरतीब
जैसे नामुराद कोई जिन्दगी
डायरी के पन्नों सी
बेवजह ही खुद को
भरने की कोशिश में
छुप-छुप के रोए।
(5)

दोष किसी का नहीं
जब गति तेज हो
दृष्टि भटक जाती है
धुरी पर घूमती
एक अकेली तीली
सौ रूपों में नजर आती है
शेर की खाल ओढ़े
गीदड़ भी जंगल-जंगल
डर फैला आता है
दस्तानों के पीछे जादूगर
कबूतर उड़ा जाता है
पर जब तीली रुकी
खाल उघड़ी, जादू टूटा
बादलों के पीछे से
निकला फिर सूरज।
00

जन्म: 21 जनवरी 1947, वाराणसी में। शिक्षा: बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से प्रथम श्रेणी में आनर्स के साथ स्नातक संस्कृत, चित्रकला व अंग्रेज़ी साहित्य में और स्नातकोत्तर उपाधि अंग्रेज़ी साहित्य में। '
1968 से आज तक सपरिवार भारत से दूर इंग्लैंड में, एकांत में शब्दों, रंगों और स्वरलहरी में डूबना प्रिय, लिखने का शौक बचपन से, हिंदी और अंग्रेज़ी में निरंतर लेखन पिछले चंद वर्षों से। कविता, कहानी, लेख व नाटक चंद पत्रिकाओं और संकलनों में, कुछ रेडियो पर भी। '
प्रकाशित रचनाएँ :कहानी-संग्रह :'ध्रुव-तारा' काव्य-संग्रह 'समिधा' व 'नेति-नेति' '
शैल अग्रवाल अभिव्यक्ति में बर्तानिया का प्रतिनिधित्व करती हैं और परिक्रमा के अंतर्गत ‘लंदन पाती’ नाम से नियमित स्तंभ लिखती हैं। ' कई वर्षों से नेट पर हिन्दी-अंग्रेजी में द्विभाषिक वेब पत्रिका “लेखनी” का संचालन-संपादन।
संपर्क : shailagrawal@hotmail.com'

धारावाहिक पंजाबी उपन्यास(किस्त- 20)


सवारी
हरजीत अटवाल
हिंदी अनुवाद : सुभाष नीरव
चित्र : रुचिरा

॥ पच्चीस ॥
शौन की दो बजे की फ्लाइट थी। बारह बजे तक बलदेव को पहुँचना था। उसे शौन को एअरपोर्ट छोड़कर आना था। शौन ने अपना सामान पहले ही तैयार करके दरवाजे के नज़दीक रख लिया था। वह कमरे में घूम रहा था। कैरन एक ओर बैठी रो रही थी। वह सारी रात उसे रोकने की कोशिशें करती रही। बेटी की ज़िन्दगी का वास्ता देती रही थी। शौन उसे छोड़कर जाने को तुला हुआ था। कमरे में इधर-उधर घूमता शौन कभी घड़ी देखता और कभी खिड़की में से बाहर झांकने लगता। कैरन कुछ कह नहीं रही थी। वह सोच रही थी कि उसने जितना कहना था, कह लिया था। सारी रात कहती रही थी। बलदेव की कार को आता देख शौन उससे कहने लगा-
''लुक आफ्टर माय डॉटर।''
कैरन उठी और उसकी ओर झपटी। उसके थप्पड़ मारने लगी और कहने लगी-
''फक्क ऑफ़ यू बास्टर्ड ! गैट आउट फ्राम हेयर... यू रूइंड माय लाइफ ! यू मौंकी फेस, आय हेट यू बास्टर्ड, आय हेट यू अपटू योर डैथ।''
वह तब तक मारती रही जब तक थक न गई। शौन अपने मुँह को बचाता ज्यूं का त्यूं खड़ा रहा और फिर सामान उठाकर बाहर की ओर दौड़ पड़ा।
कैरन सिर पकड़कर बैठ गई और फिर से रोने लगी। वह कहती जा रही थी- ''मैं कहाँ गलत थी। मैं कहाँ गलत थी।''
शोर सुनकर साथ वाले कमरे में सो रही पैटर्शिया उठ गई। कैरन थपथपा कर उसे पुन: सुलाने लगी। फिर रसोई में जाकर उसके लिए दूध बनाया। बोतल उसे पकड़ाकर खिड़की में आ खड़ी हुई। सड़क खाली थी।
शौन को जाना था। बहुत समय से जाने की बात कर रहा था। सो चला गया। उसे तो फॉदर जोय ने रोक रखा था। अपने आप को धार्मिक कहने वाला शौन धर्म को ठेंगा दिखाता चला गया था। कैरन उसके धार्मिक पाखण्ड पर मन ही मन हँसने लगी।
शौन उसे तब मिला था जब वह पढ़ाई खत्म करके छुट्टियाँ बिताने लंदन आई थी। एक डिस्को पर वह मिला। डेटिंग होने लगी। शौन ने विवाह का प्रस्ताव रखा। वह विवाह के लिए अभी तैयार नहीं थी। हालांकि पढ़ाई में वह किसी किनारे नहीं लगी थी पर उसका भविष्य उजला था। उसका पिता अभी-अभी मॉरीशश का मंत्री बना था। वैसे भी उसके बिंगोहाल और सिनमा थे, जिनको संभालने में उसने पिता की मदद करनी थी। फिर उसे अच्छे से अच्छा लड़का मिलने की उम्मीद थी। उसकी बहन गायत्री कुछ वर्ष पहले लंदन आई थी तो उसने एक साधारण से लड़के के साथ विवाह करवा लिया था। लड़का यद्यपि उनके शहर का ही था, पर रुतबे में छोटे परिवार से था। पिता बहुत खीझा-खीझा रहने लगा था। कैरन पर पिता को बहुत आशाएँ थीं। जब शौन ने विवाह का प्रस्ताव रखा तो कैरन अपने पिता के बारे में सोचने लगी थी। शौन विवाह के लिए कुछ अधिक ही पीछे पड़ गया था। उसने अपने पिता को शौन के विषय में काफी कुछ बढ़ा-चढ़ा कर बताया। कितना कुछ झूठ बोलकर पिता को विवाह के लिए मनाया था।
वह माना तो शौन इंडिया चला गया। कैरन का मन बहुत दुखी हुआ। वह सबकुछ कैंसिल करके वापस मॉरीशश चली गई। शौन इंडिया से लौटकर फिर उसे खोजने लगा। उसे मॉरीशश फोन करता रहता। जब कैरन नहीं मानी तो वह स्वयं मॉरीशश पहुँच गया। शौन का इतना प्यार देखकर कैरन को पुन: मन बदलना पड़ा।
विवाह के बाद शौन अच्छा-भला था। कुछ धार्मिक अधिक था, पर कैरन को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता था। वह उसके संग चर्च चली जाती। उनके घर में धर्म को अधिक महत्व नहीं दिया जाता था। हिन्दू पृष्ठभूमि होने के कारण कुछ रस्म-रिवाज़ अलग थे, नहीं तो शौन के धर्म में कैरन को कुछ भी पराया नहीं लगा था। बल्कि फॉदर जोय उससे बहुत प्यार करता था। उसकी ओर विशेष ध्यान देता था। वह शौन के साथ आयरलैंड भी गई। वहाँ जाकर उसका मन बहुत खराब हुआ। बहुत ही साधारण से अनपढ़ परिवार में से था शौन। वैलज़ी के लोग एकदम गंवार से थे। उसके सामने ही उसके रंग की बातें करने लगते और कई तो नफ़रत का इज़हार भी कर जाते।
कैरन को बड़े-बड़े सपने दिखाने वाला शौन जल्द ही उसे झूठा-झूठा लगने लग पड़ा। उसकी नौकरी भी साधारण क्लर्की थी। उसका फ्लैट भी कौंसल का ही था। वह कंजूस भी हद दर्जे का था। कैरन को घूमने-फिरने का शौक था। अपने देश में हर वीक एंड उसका कहीं बाहर ही बीतता था, पर शौन तो घर में ही बैठा रहता। वह ज्यादा कहती तो झगड़ा हो जाता। फिर शौन ने हेराफेरी से उसे गर्भवती बना डाला ताकि बाहर आने-जाने के योग्य ही न रहे। कैरन अभी बच्चा नहीं चाहती थी। उसने गर्भपात करवाना चाहा तो शौन ने आसमान सिर पर उठा लिया। गर्भपात शौन के धर्म में महापाप था। शौन उसको चर्च में ले गया। फॉदर जोय ने गर्भपात के खिलाफ़ भाषण दे मारा।
इसके पश्चात् शौन उसे बुरा लगने लग पड़ा। उसने उसे एक तरह से कैदी बना रखा था। उसके सारे सपने किसी खाई में जा गिरे थे। वह विवाह के चक्कर में फंस कर रह गई थी। नहीं तो उसकी ज़िन्दगी कुछ और ही होती। किसी बड़े आदमी से ब्याही जानी थी वह। नौकर-चाकर होते। बड़ा-सा कारोबार होता। अब यहाँ छोटे से फ्लैट में फंसी बैठी थी। अपने पिता को अपनी असलीयत भी नहीं बता सकती थी। वह उससे धन लेकर कोई कारोबार आरंभ कर सकती थी, पर शौन ऐसा व्यक्ति नहीं था जो उसके कहने के अनुसार चल सके। अमीर बनने का सपना लिए वह घूमता था, पर काम करके वह खुश नहीं था। उसकी तनख्वाह से घर का खर्च बमुश्किल चलता था। फिर पैटर्शिया आ गई तो उनके खर्चे बढ़ गए। पैटर्शिया की क्रिश्चियनिंग के समय उन्हें किसी से पैसे पकड़ने पड़े थे। फिर तो उसने काम भी छोड़ दिया था और सोशल सिक्युरिटी लेने लगा था। पैसे की तंगी के कारण झगड़ा और बढ़ने लगा था। कैरन को अपनी ख्वाहिशें तो भूल ही गई थीं, उसे तो अपनी ज़रूरतें पूरी करने की चिंता सताती रहती थी। फिर बलदेव को एक कमरा किराये पर दिया तो कुछ मदद होने लगी थी। शौन का धार्मिक होना भी अब चुभने लगा था। कैरन को उसका धर्म में यकीन एक ढोंग प्रतीत होता। वह स्वयं सबकुछ धर्म के विपरीत करता था।
एक दिन चर्च गई तो फॉदर जोय उसे शौन से अकेला करके एक कमरे में ले गया और बोला-
''मेरी बच्ची, कन्फैशन करना चाहेगी।''
''कैसा कन्फैशन फॉदर ?''
''मेरी बच्ची, कन्फैशन कर लेगी तो जीसस माफ़ कर देंगे। सारे गुनाह बख्से जाएंगे।''
''कैसे गुनाह फॉदर, मैंने कोई गुनाह नहीं किया, मैं किसी के गुनाह की शिकार अवश्य बनी हुई हूँ।''
कन्फैशन वाली बात शौन ने भी उससे कही थी। कई बार घर में झगड़ा होता। शौन उसे सॉरी कहने के लिए कहता। वह सॉरी कह देती तो शौन कहता कि ऐसे नहीं, जाकर कन्फैशन बॉक्स में माफ़ी मांग। उसने सोचा कि ज़रूर शौन ने ऐसी कोई बात फॉदर को कही होगी। उसने फॉदर से पूछा-
''फॉदर, क्या शौन मेरे पर कोई इल्ज़ाम लगा रहा है ?''
''हाँ, कि तूने सिर्फ़ पासपोर्ट के लिए उससे विवाह करवाया है।''
''यह बिलकुल झूठ है फॉदर, बिलकुल झूठ ! मैं तो हर हालत में इसके साथ रहने को तैयार हूँ। इसके साथ रहने में मेरी और मेरे परिवार की इज्ज़त है। गुनाहगार तो शौन है फॉदर।''
फिर उसने शौन के प्रति अपने सभी गिले-शिकवे बता दिए कि कैसे अपनी अमीरी के बारे में झूठ बोला। कैसे घर की हालत बुरी कर रखी थी। कैसे उसके साथ हर वक्त झगड़ा किया करता था। उसे पाकि(पाकिस्तानी) कहकर नस्लवादी फ़र्क पैदा करता था और कैसे अपने धर्म पर पछता रहा था, जिसमें तलाक की सुविधा ही नहीं थी। इस विवाह से छुटकारा शौन चाहता था न कि वह। अपनी बात पूरी सही सिद्ध करने के लिए उसने पैटर्शिया का सहारा भी लिया। उसने शौन को ज़ालिम बनाने में अपनी पूरी ताकत लगा दी। फॉदर पर उसकी बातों का असर हो गया। उसने आशीर्वाद देते हुए उसे वापस भेज दिया था। उस दिन के बाद उसकी हर बात बहुत ध्यान से सुनने लगा था।
शौन के चले जाने के बाद उसने पैटर्शिया को बग्घी में डाला और फॉदर जोय को बताने चल पड़ी। उसने फॉदर से कहा-
''फॉदर, शौन मुझे छोड़कर चला गया है।''
''कहाँ गया ?''
''पता नहीं, यह देश ही छोड़ गया, किसी दूसरी देश में...।''
फॉदर मन ही मन कोई प्रार्थना करने लगा और फिर बोला-
''मेरी बच्ची, ज़िन्दगी में ऐसे इम्तिहान इन्सान को परखने के लिए आया ही करते हैं। तुम्हारी ज़िन्दगी में भी आया है। हौसला रखो, अगर वह सच्चा क्रिश्चियन हुआ तो ज़रूर लौटेगा। उसे आना पड़ेगा।''
''फॉदर, यह गुनाह नहीं ?''
''बेशक गुनाह है, वह कन्फैशन करेगा।''
''फॉदर, मैं बहुत अकेली रह गई हूँ।''
''नहीं, तू अकेली नहीं। जीसस तेरे संग है। यहाँ आया कर। देख, यहाँ कितने तेरे ब्रदर-सिसटर्स आते हैं, कोई जिम्मेदारी संभाल ले। मैं शौन को तलाशूँगा और वापस तेरे पास लौटने के लिए मज़बूर करूँगा।''
''फॉदर, मुझे आर्थिक सहायता की भी ज़रूरत पड़ेगी।''
''मेरी बच्ची, इस बारे में हमारे पास कोई सुविधा नहीं है पर सरकार कर ही रही है। यहाँ ब्रदर सिसल डौनोमोर है जो ऐसे मामलों में माहिर है, वह तेरी हर मदद करेगा, उसे मिल लेना।''
उस दिन के बाद कैरन हर रोज़ चर्च जाने लगी। वह सवेरे ही पैटर्शिया को तैयार करके संग ले जाती। बड़े-बड़े स्टोरों से बहुत सारा सामान चर्च के लिए आया करता था। जिस सामान की तारीख छोटी होती, वह दूसरे चर्चों या चैरिटेबल संस्थाओं को भेज दिया जाता। कैरन की खाने-पीने की समस्या हल हो गई। ऐसे सामान से उसका फ्रिज भरा रहता था। सोशल सिक्युरिटी की ओर से फ्लैट का किराया और उसके अपने और पैटर्शिया के पैसे निरंतर लग गए थे। उसकी ज़िंदगी पहले से अच्छी और आसान हो गई।
उसे यकीन था कि शौन नहीं लौटेगा। लेकिन फॉदर उसे विश्वास दिलाये रहता। उसे शौन के लौटने की चाहत भी नहीं थी। कई बार बैठकर सोचने लगती कि अब वह क्या करे। उसका दिल करता कि डिस्को आदि जाए, पर पैटर्शिया के कारण बंधी बैठी थी। इन दिनों में ही उसका अपनी बहन गायत्री से फोन पर सम्पर्क हो गया। गायत्री उसे मिलने आने लगी। उसका अपने पति से झगड़ा चल रहा था। बात तलाक तक पहुँची हुई थी। तलाक के बाद गायत्री ने अपने घर में से आधा हिस्सा लिया और कैरन के पास आकर रहने लगी। गायत्री के आने से उसको बहुत फायदा हुआ। अकेलापन भी कम हुआ और अब वह बच्ची को उसके पास छोड़कर बाहर भी जा सकती थी। गायत्री के तलाक से उनके बाप पर ऐसा असर हुआ कि उसे हार्ट अटैक हो गया। बड़ा हार्ट अटैक था और वह लम्बे समय के लिए बिस्तर पर पड़ गया। कई बार कैरन सोचा करती थी कि वापस पिता के पास ही चली जाए, पर अब उसने वापस जाने का विचार ही छोड़ दिया था। उसके पिता को अब उसकी ज़रूरत भी नहीं थी। उसका कारोबार लड़के ने संभाल लिया था। फिर कैरन अपनी समस्याएँ बताकर पिता की बीमारी में वृद्धि नहीं करना चाहती थी।
एक शाम वह बाहर जाने के लिए तैयार हो रही थी। उसने बढ़िया से बढ़िया ड्रैस पहनी। उससे मेल खाता मेकअप किया। चमकीला-सा पर्स हाथ में पकड़ा। नए ढंग से संवारे बालों को ठीक करती हुई वह गायत्री से हंसकर बोली-
''आज मेरी अच्छी किस्मत की कामना कर कि शिकार के बग़ैर वापस न आऊँ।''
00
(क्रमश: जारी…)

लेखक संपर्क :
67, हिल साइड रोड,साउथाल,
मिडिलसेक्स
इंग्लैंड
दूरभाष :020-85780393
07782-265726(मोबाइल)

शुक्रवार, 6 नवंबर 2009

गवाक्ष – नवम्बर 2009


“गवाक्ष” के माध्यम से हम हिन्दी ब्लॉग-प्रेमियों को हिन्दी/पंजाबी के उन प्रवासी लेखकों/कवियों की समकालीन रचनाओं से रू-ब-रू करवाने का प्रयास कर रहे हैं जो अपने वतन हिन्दुस्तान से कोसों दूर बैठकर अपने समय और समाज के यथार्थ को अपनी रचनाओं में रेखांकित कर रहे हैं। “गवाक्ष” के पिछ्ले तेरह अंकों में पंजाबी कवि विशाल (इटली) की कविताओं का हिन्दी अनुवाद, दिव्या माथुर (लंदन) की कहानी, अनिल जनविजय (मास्को) की कविताएं, न्यू जर्सी, यू.एस.ए. में रह रहीं देवी नागरानी की ग़ज़लें, लंदन निवासी कथाकार-कवि तेजेन्द्र शर्मा, रचना श्रीवास्तव, दिव्या माथुर की कविताएं, दुबई निवासी पूर्णिमा वर्मन की कविताएं, यू एस ए में रह रहीं हिन्दी कथाकार-कवयित्री इला प्रसाद, डेनमार्क निवासी कवि भगत धवन की कविताएँ और चाँद शुक्ला की ग़ज़लें, यू एस ए निवासी कवि वेद प्रकाश ‘वटुक’ तथा कवयित्री रेखा मैत्र की कविताएं, कनाडा अवस्थित पंजाबी कवयित्री तनदीप तमन्ना की कविताएं, यू के अवस्थित हिन्दी कवि-ग़ज़लकार प्राण शर्मा की ग़ज़लें, कैनेडा में अवस्थित पंजाबी कवि सुखिन्दर की कविताएं, कनाडा निवासी पंजाबी कवयित्री सुरजीत, अमेरिका अवस्थित डॉ सुधा धींगरा, कनाडा में अवस्थित हिंदी- पंजाबी कथाकार - कवयित्री मिन्नी ग्रेवाल की कविताएं, न्यूजीलैंड में रह रहे पंजाबी कवि बलविंदर चहल की कविता और पंजाबी कथाकार-उपन्यासकार हरजीत अटवाल के उपन्यास “सवारी” के हिंदी अनुवाद की अटठारहवीं किस्त आपने पढ़ीं। “गवाक्ष” के नवम्बर 2009 अंक में प्रस्तुत हैं – कैनेडा में अवस्थित पंजाबी लेखिका बलबीर कौर संघेड़ा की कविताएं तथा यू के निवासी पंजाबी कथाकार-उपन्यासकार हरजीत अटवाल के धारावाहिक पंजाबी उपन्यास “सवारी” की उन्नीसवीं किस्त का हिंदी अनुवाद…
कैनेडा से
बलबीर कौर संघेड़ा की दो कविताएं
मैं और वह
(अपनी पोती कमील के नाम)

वह जब मेरे पास आकर बैठती
एकटक मुझे निहारती
और कहती-
मैं तेरे आदि की
तेरे अन्त की
तेरे अनन्त की
सीमा भी हूँ
और -
तेरी सोटी भी
मैं तुझे पढ़ना चाहती हूँ
मैं तुझे पढ़ रही हूँ
मैं तुझे सुन रही हूँ
ताकि मैं स्वयं को जान सकूँ
तुझे पहचान सकूँ।

आज मैं सीख रही हूँ तुझसे
कैसे हँसी-ठहाकों की किलकारियों में
धुएं के गुबार निकाल दिए जाते हैं
कैसे सतरंगी पींग के रंग
हवा में उड़ाये जाते हैं
कैसे केसर के फूलों को
मन-मस्तक पर रचाया जाता है
और कैसे उजड़े घर
तिनका-तिनका एकत्र करके
बसाये जाते हैं
कैसे समय के दैत्य के हाथों
मर मरा जाते हैं
कैसे भूख की खातिर
स्वयं को खोया जाता है।

मैं सुन रही हूँ सब
मैं देख रही हूँ सब
पर मैं किसी भूख से
नहीं करूँगी समझौता
नहीं करूँगी मनफ़ी
सतरंगी पींग के रंग
अपने जीवन में से।

समय के पैरों में
जंजीर मेरी अपनी होगी
और मैं जानती हूँ
हर दैत्य को
पैरों तले रौंद कर
कैसे मारा जाता है।

मैं सब देख रही हूँ
और पहचान रही हूँ।

मैं रखूँगी अपना अस्तित्व
भोगूँगी हर ऋतु को
गर्व करूँगी अपनी कोख पर
दुलारूँगी उसे पल पल
रखूँगी स्मरण यह सब
जो तेरी नज़र में सवाल लटकता है
अम्बर मेरी उड़ान होगा
और मैं उन तारों की ओर हाथ बढ़ाऊँगी
जो तूने सपनों में सिरजे थे।

तोड़ लाऊँगी वह चमक
जो तेरी छाती में दफ़न है।
पर दादी -
जब तक तेरी नज़र में
सवाल जागता रहेगा
मैं हिम्मत नहीं हारूँगी।
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ज़ब्त

उसने कहा-
लगाना है तेरे ज़ब्त का अंदाजा
खुले आम
साँसों का शोर उठेगा ही कभी

और मैंनें-
आँखों की नदी में
आँसुओं का आना ही रोक लिया
घुट घुटकर पी लिया उसका सितम

सोचा -
मेरी हार का नंगा नाच
देखेंगे वे
चमकती आँखों से
और मैंने-
ज़ब्त कर लिया
हर वह लफ्ज
जो उनकी छाती से उठा
जो जुबान ने उगला

सोचा- मैं ?
मैं तो वह औरत हूँ
जिसे धरती की कोख ने जन्मा
और जो
धरती का सीना चीर
भस्म हो गई
कोई राम भी नहीं तोड़ सका
सीता के हठ की सीमा
ज़ब्त उसने तब भी किया
और आज भी कर रही है
अपनी सोच के अन्दर
घुट घुटकर मर रही है
उसकी एक आँख में
टपकता आँसू है
और दूसरी में
तीसरे नेत्र की लौ !
00
(पंजाबी से हिंदी रूपांतर : सुभाष नीरव)
कैनेडा में अवस्थित पंजाबी की एक संवेदनशील लेखिका। पंजाबी में दो उपन्यास -''हक दी मंग'' और ''इक ख़त नां सजणां दे'', तीन कहानी संग्रह - ''आपणे ही ओहले'', ''खंभे'' और ''ठंडी हवा'' तथा यादों की एक पुस्तक -''परछाइयां दे ओहले परिक्रमा'' प्रकाशित।
सम्पर्क : 1266, Roper Drive, Milton.L9T 6E6, Ont. Canada
ई मेल : balbirsanghera@yahoo.com

धारावाहिक पंजाबी उपन्यास(किस्त- 19)



सवारी
हरजीत अटवाल
हिंदी अनुवाद : सुभाष नीरव
चित्र : प्रो0 रमेश शर्मा

॥ चौबीस ॥
शौन बलदेव को अधिक फोन नहीं करता था। उसके पास वक्त की कमी नहीं थी पर वह हर समय अपने भविष्य को लेकर सोच में डूबा रहता था। कई तरह के प्रोग्राम बनाता, रद्द करता। आयरलैंड में जाकर बसने का विचार भी उसकी योजनाओं में आता था। लेकिन यह इतना आसान नहीं था। उसी आयरलैंड से भाग कर उसने लंदन में आकर शरण ली थी। वापस उन लोगों में जाकर बसना कठिन था। अगर बलदेव उसके संग साझा व्यापार करने के लिए राजी हो जाता तो यह काम कुछ आसान हो जाता, पर बलदेव तो लंदन को वापस इस तरह भागा जैसे कोई बच्चा माँ की तरफ भागता है।
आयरलैंड का विचार उसके मन में फादर जोय के साथ हुई बातचीत में उभरा था। वह कहता था कि कैरन ने उसके साथ विवाह सिर्फ़ पासपोर्ट के लिए किया था। फादर जोय कहता कि अगर ऐसा होता तो अब तक वह छोड़कर चली गई होती। उसे फादर जोय पर गुस्सा था कि उसने ही उसका विवाह किया था और अब उसके पक्ष में खड़ा नहीं हो रहा था। विवाह कैंसिल करवाने की उसकी कोशिश व्यर्थ गई थी। वह इस आस से वापस लंदन आया कि शायद अब तक कैरन बदल गई हो। कुछ सप्ताह दूर रहने के कारण उसके अन्दर प्यार जागा हो या उसकी आवश्यकता या महत्व का अहसास हुआ हो।
वापस लौटा तो कैरन वैसी की वैसी थी। एक दिन वे ठीक रहे और फिर वही फसाद शुरू हो गया। अब तो बलदेव भी उसके संग नहीं रहता था कि जिसकी कुछ शर्म करते या वह बीच में पड़ कर उन्हें शान्त करवा देता। उसने एक बार फिर कैरन को छोड़कर चले जाने के बारे में सोचना प्रारंभ कर दिया। अब आयरलैंड उसके मन में नहीं आ रहा था, वह किसी और देश के बारे में सोच रहा था। जहाँ उसको कोई जानता न हो। शायद वह एक नई ज़िन्दगी शुरू कर सके। उसके मन में आस्ट्रेलिया का विचार आया। वह इस देश के विषय में काफी कुछ पढ़ता रहता था। यह एक विकसित होता देश था जहाँ सैटल होना भी आसान था और भविष्य भी उज्जवल बन सकता था। लेकिन वहाँ उसका कोई परिचित नहीं था। वह जगह लंदन की तरह तो हो ही नहीं सकती थी कि अटैची उठाओ और जाकर बस जाओ। आस्ट्रेलिया के बाद दूसरे नंबर पर अमेरिका का नाम था उसके मन में। अमेरिका में वैलजी के कुछ लोग रहते थे जिनके सहारे पैर टिकाये जा सकते थे। लेकिन वहाँ उसे यह भय था कि अगर किसी को पता चल गया कि वह पत्नी और बच्चे को छोड़कर भागा है तो उसकी क्या इज्ज़त रह जाएगी। उसकी धार्मिक उलझने और बढ़ सकती थीं। वहाँ के चर्च वाले बॉयकाट करने तक पहुँच सकते थे। वह सोचता कि क्यों न बलदेव के साथ बात करके देखे, क्या मालूम उसका कोई परिचित आस्ट्रेलिया में रहता हो।
उसे यकीन था कि कैरन को एकबार पता चल जाए कि वह उसको सदा के लिए छोड़ गया है तो वह स्वयं ही कहीं ओर चली जाएगी। वापस अपने मुल्क अथवा कहीं ओर। कोई नया मर्द खोज लेगी क्योंकि अकेले रहना उसके लिए असंभव होगा। सोशल सिक्युरिटी के थोड़े से पैसों पर उसका खर्चीला स्वभाव टिक नहीं सकेगा।
दूसरी सोच जो उसको हर वक्त तंग किए रखती वह थी - बलदेव और ऐलिसन को मिलाना। शौन का ऐलिसन से गुस्सा कम नहीं हुआ था पर अब वह उसकी ज़रूरत थी। कैरन से लड़कर वह उसकी तरफ निकल जाया करता था। उसके पास रात भी बिता आता। उसके बच्चों को भी कुछ ले दिया करता। पर उसने दिल से बहन को पूरी तरह माफ नहीं किया था। उसे यह भी था कि बलदेव यदि ऐलिसन से जुड़ जाएगा तो वह कैरन की मदद नहीं कर सकेगा। जिसका उसे हर समय डर बना रहता था। उसने बलदेव को उसके काम पर फोन किया। वह किसी तरह के गिले-शिकवे करने-सुनने के मूड में नहीं था। उसने सीधे ही पूछा-
''तेरा आस्ट्रेलिया में कोई परिचित है ?''
''आस्ट्रेलिया में तो नहीं, न्यूजीलैंड में है, मेरे मामा का लड़का।''
''अच्छा आदमी है ?''
''बस, मेरे जैसा ही है। अच्छे-बुरे का तू खुद सोच। क्यों क्या काम पड़ गया ?''
''कोई खास नहीं। मिलूँगा तो बताऊँगा।''
शौन पल भर के लिए रुक कर बोला-
''डेव, तू मेरी बहन ऐलिसन से क्यों नहीं मिलता।''
''यूँ ही। मैं बहुत व्यस्त रहा हूँ।''
''डेव, मैं सच कहता हूँ, तू एकबार मिल कर देख। किसी एक्ट्रेस से कम नहीं। स्वभाव की भी अच्छी है। तू एकबार उसके संग बाहर जाकर तो देख, तेरे दिल में उतर जाएगी।''
''शौन, मैं अभी ऐसे मूड में नहीं हूँ।''
''मूड में नहीं है तो न सही, मिलने में क्या हर्ज़ है। आजकल वह अकेली रहती है, ब्वॉय फ्रेंड काफी समय से छोड़ रखा है उसने।''
बलदेव इस बारे में और अधिक न कह सका। शौन ने उससे शुक्रवार को क्लैपहम स्टेशन पर मिलने का वायदा ले लिया।
शौन ने ऐलिसन के साथ संबंध सुधारे तो सबसे पहले उसने उसका ब्वॉय फ्रेंड ही छुड़वाया। वह जेल भी जा चुका था। कैथोलिक भी नहीं था। जब शौन कहता कि डैरक प्रोटेस्टैंट है तो ऐलिसन को गुस्सा आने लगता। उसने कहा-
''शौन, तू डैरक को गुनहगार माने जा रहा है कि वह प्रोटेस्टैंट है, पर कैरन भी तो हमारे धर्म की नहीं।''
''कैरन तो क्रिश्चियन है ही नहीं, इसलिए उसका कोई कसूर नहीं पर डैरक तो क्रिश्चियन है और यह धर्म के गलत अर्थ निकाले जाता है, यह है असली गुनाह।''
ऐलिसन को शौन की बात बहुत वजनदार नहीं लगती थी पर शौन के बार बार उसके घर आने से डैरक से उसका झगड़ा रहने लगा था और डैरक को दूसरी लड़की मिल गई और वह चला गया था। एक दिन ऐलिसन ने बलदेव के बारे में भी सवाल किया था। उसने पूछा -
''शौन, तू कैरन को तो हर समय पाकि-पाकि कहता घूमता है कि पाकिस्तानी ने तेरी ज़िन्दगी खराब कर दी। अब एक पाकि को मेरे गले मढ़ना चाहता है।''
''जब कैरन के लिए पाकि शब्द इस्तेमाल करता हूँ, मैं गुस्से में होता हूँ। नहीं तो हमारा धर्म रंग में विश्वास नहीं करता।''
''फिर कालों के बारे में क्यों कहते हैं कि कोई माँ के संग सो गया था तो काले बच्चे पैदा हुए।''
''यह तो एक मिथ है जो कि काले रंग के धरती पर आने के कारण को बताती है। इसकी सच्चाई के बारे में भी भ्रम हैं, और फिर इस मिथ के बावजूद उन्हें कोई खराब या घटिया नहीं कहता। धर्म तो बिलकुल भी नहीं।''
शौन को जब भी समय मिलता, ऐलिसन के साथ धर्म को लेकर बातें करने लग जाता था। वह ऐलिसन से कन्फेशन करवाना चाहता था। उसने कन्फेशन तो नहीं किया था पर चर्च जाने लग पड़ी थी। शौन आता तो ले जाता। क्लैपहम के चर्च का पादरी फादर एडवर्ड उसके साथ बहुत प्यार से बात करता। फादर कहता कि बच्चों को धर्म से ज़रूर जोड़ो। इंग्लैंड में रहते बच्चे धर्म से दूर जा रहे थे। इस मुल्क में कैथलिक संस्थाओं की बहुत ज़रूरत थी।
बलदेव जानता था कि ऐलिसन क्लैपहम रहती थी। शौन के साथ आज उसके घर ही जाना होगा। या शौन ने ऐलिसन को बाहर बुलाया होगा। वह सातेक बजे क्लैपहम स्टेशन पर पहुँच गया। वह इस मुलाकात के लिए स्वयं को तैयार करने लगा। शौन बाहर कार में बैठा उसकी प्रतीक्षा कर रहा था। वे दोनों बहुत प्यार से मिले। शौन ने कार आगे बढ़ाई और कहा-
''तेरे साथ बहुत बातें करनी थीं पर वक्त ही नहीं मिला।''
''यह आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड का क्या चक्कर है ?''
''वही बताता हूँ। मैं कैरन को छोड़ कर जा रहा हूँ। कहीं और सैटल हो जाऊँगा।''
''अच्छा ! सोच-समझ कर कदम उठाना।''
''सोच लिया, बहुत सोच लिया। यहाँ धर्म ने मुझे बांध कर रखा हुआ है।''
आगे जाकर ट्रैफिक लाइट्स पर दायें मुड़कर बायें हाथ दूसरे घर के सामने गाड़ी रोक शौन ने कहा -
''तू मेरी एक मदद करना, मेरे बाद।''
''बता, कैसी मदद ?''
''कैरन तुझसे कंटेक्ट करे तो इग्नोर कर देना। कुछ बताना नहीं।''
''तू फिक्र न कर। वायदा रहा।''
शौन को उसकी बात से कुछ तसल्ली हुई।
अन्दर आकर उसने बलदेव और ऐलिसन का एक दूसरे से परिचय कराया। ऐलिसन उनके संग ही आकर बैठ गई। शौन बच्चों के बारे में बताता हुआ कहने लगा-
''यह बड़ी है- फेह। और यह है छोटा- नील। दोनों ही ट्रबल हैं, निरे डैविल !'' कहते हुए वह उनके साथ खेलने लगा। ऐलिसन ने बलदेव से उसके बच्चों के बारे में पूछना शुरू कर दिया। उसे उस वक्त एनेबल और शूगर याद आईं। वे फेह और नील की उम्र की ही थीं। ऐलिसन उससे काम आदि की बातें पूछती रही। उसने उसके पिता के निधन का अफसोस भी प्रकट किया। बलदेव को उसकी शक्ल थोड़ी सी याद थी। शौन के विवाह पर उसको देखा हुआ था। वह चोरी-चोरी ऐलिसन की तरफ देखता था। फिर दो पैग पिये तो सीधे देखने लगा। वह मैरी से कुछ भिन्न थी। मैरी से ज़रा-सा मोटी थी। बाल भी घुंघराले थे। उसका लहजा लंदन वाला था। पहली दृष्टि में पता ही नहीं चलता था कि वह आयरश है। उसने भी मैरी की तरह स्कर्ट पहन रखी थी। स्कर्ट के नीचे से मजबूत पिंडलियाँ झांक रही थीं। उसे स्कर्ट पसन्द आ रही थी। मैरी की स्कर्ट तो अच्छी लगती ही थी, अब ऐलिसन की स्कर्ट भी उसे सुन्दर लग रही थी। वह मन ही मन हँसा कि यही स्कर्ट थी जिसे पहनने के बारे में कभी सिमरन से झगड़ा हो जाया करता था। लम्बे बालों की अपेक्षा कटे हुए बाल अब अधिक आकर्षक लग रहे थे।
शौन ने उसके कंधे पर हाथ रख कर पूछा-
''भाजी ठीक हो ?''
''हाँ, ठीक हूँ।''
''कहाँ गुम है, वापस आ, अपनी ड्रिंक उठा।''
''ज्यादा नहीं पीनी। वापस भी लौटना है। तुझे पता है, मैं अधिक नहीं पी सकता।''
''वापस नहीं जाना। हम यहीं सोएंगे। मैं अब ड्राइव नहीं कर सकूँगा। जितनी चाहे, पी। अगर पीकर खराब भी हो गया तो अपना ही घर है।''
''खराब क्या ज़रूर होना है !''
पास बैठी ऐलिसन ने कहा। बलदेव को महसूस हुआ जैसे वह उसे अधिक पीने से रोक रही हो। शौन कहने लगा-
''डेव, मेरी तरफ तेरा कुछ सामान पड़ा था, उसे मैं यहाँ ले आया हूँ। जब चाहे ले जाना। साथ ही तेरी डाक भी मैंने यहीं री-डायरेक्ट करवा दी है।''
''शुक्रिया, मैं सोच ही रहा था कि चिट्ठियाँ लेने मैं तेरी तरफ कैसे जाऊँगा।''
शौन ने ऐलिसन का फोन नंबर बलदेव को लिखवा दिया कि कभी भी आकर डाक ले जाया करे। ऐलिसन उठकर रसोई में जा चुकी थी। रसोई में बन रहे खाने से उठती महक उसकी भूख को बढ़ाने लगी।
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(क्रमश: जारी…)

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शुक्रवार, 16 अक्तूबर 2009

गवाक्ष – अक्तूबर 2009



गवाक्ष” के माध्यम से हम हिन्दी ब्लॉग-प्रेमियों को हिन्दी/पंजाबी के उन प्रवासी लेखकों/कवियों की समकालीन रचनाओं से रू-ब-रू करवाने का प्रयास कर रहे हैं जो अपने वतन हिन्दुस्तान से कोसों दूर बैठकर अपने समय और समाज के यथार्थ को अपनी रचनाओं में रेखांकित कर रहे हैं। “गवाक्ष” के पिछ्ले तेरह अंकों में पंजाबी कवि विशाल (इटली) की कविताओं का हिन्दी अनुवाद, दिव्या माथुर (लंदन) की कहानी, अनिल जनविजय (मास्को) की कविताएं, न्यू जर्सी, यू.एस.ए. में रह रहीं देवी नागरानी की ग़ज़लें, लंदन निवासी कथाकार-कवि तेजेन्द्र शर्मा, रचना श्रीवास्तव, दिव्या माथुर की कविताएं, दुबई निवासी पूर्णिमा वर्मन की कविताएं, यू एस ए में रह रहीं हिन्दी कथाकार-कवयित्री इला प्रसाद, डेनमार्क निवासी कवि भगत धवन की कविताएँ और चाँद शुक्ला की ग़ज़लें, यू एस ए निवासी कवि वेद प्रकाश ‘वटुक’ तथा कवयित्री रेखा मैत्र की कविताएं, कनाडा अवस्थित पंजाबी कवयित्री तनदीप तमन्ना की कविताएं, यू के अवस्थित हिन्दी कवि-ग़ज़लकार प्राण शर्मा की ग़ज़लें, कैनेडा में अवस्थित पंजाबी कवि सुखिन्दर की कविताएं, कनाडा निवासी पंजाबी कवयित्री सुरजीत, अमेरिका अवस्थित डॉ सुधा धींगरा, कनाडा में अवस्थित हिंदी- पंजाबी कथाकार - कवयित्री मिन्नी ग्रेवाल की कविताएं और पंजाबी कथाकार-उपन्यासकार हरजीत अटवाल के उपन्यास “सवारी” के हिंदी अनुवाद की सत्रह किस्तें आपने पढ़ीं। “गवाक्ष” के अक्तूबर 2009 अंक में प्रस्तुत हैं –न्यूजीलैंड में रह रहे पंजाबी कवि बलविंदर चहल की कविता तथा यू के निवासी पंजाबी कथाकार-उपन्यासकार हरजीत अटवाल के धारावाहिक पंजाबी उपन्यास “सवारी” की अटठारहवीं किस्त का हिंदी अनुवाद…

न्यूजीलैंड से
बलविंदर चहल की कविता
हिन्दी अनुवाद : सुभाष नीरव
चित्र : देवेन्द्र पाल

मेरा सूरज बन

तू
मेरा पानी बन
पी लूँ
या फिर
तैर लूँ तेरे संग।

तू
मेरी हवा बन
सांस लूँ
या फिर
सन्देशा दूँ तेरे संग।

तू
मेरा तूफ़ान बन
फेंक दे कहीं
या फिर
तिनका-तिनका बिखेर दे।

तू
मेरा सूरज बन
रौशन कर दे
या फिर
भस्म कर दे सब कुछ।
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(मूल पंजाबी में यह कविता तनदीप तमन्ना के पंजाबी ब्लाग “आरसी” में प्रकाशित हुई थी, वहीं से साभार लेकर इसका हिन्दी अनुवाद “गवाक्ष” में प्रकाशित किया गया है)

बलविंदर चहल
जन्म : मानसा, पंजाब
वर्तमान निवास : ऑकलैंड, न्यूजीलैंड
प्रकाशित पुस्तकें : प्रौ0अजमेर औलख दी नाटक कला(1988), सूरज फेर जगावेगा(2009), कविता राहीं विज्ञान(2008) एवं आखिर प्रवास क्यूँ(2009)।

धारावाहिक पंजाबी उपन्यास(किस्त- 18)


सवारी
हरजीत अटवाल
हिंदी अनुवाद : सुभाष नीरव
चित्र : प्रो0 रमेश शर्मा

॥ तेईस ॥

बलदेव वापस काम पर चला गया पर उसका मन नहीं कर रहा था। एक तो कई महीने खाली रह कर मन हरामी हो गया था और दूसरा, उसे उन लोगों का सामना करना पड़ना था जिनके कारण उसने सिक मारी थी। सिमरन से अलग होने पर बलदेव बहुत शर्मिन्दा था। जब यह खबर उसके दफ़्तर पहुँची तो वह काम पर जाने से झिझकने लगा था। साल में दो या तीन पारिवारिक महफ़िले सजती थीं, जिनमें सिमरन भी आया करती और काम पर बहुत सारे लोग सिमरन को जानते थे। उनकी अलहदगी का अफ़सोस करने उसके पास आ जाते। उसके अन्दर हीनभावना आने लगी थी। वहमी सा हो गया था। शौन उससे पहले ही सिक पर था। शौन को कैरन ने चेतावनी दी हुई थी कि वह उससे खर्चा क्लेम करेगी, इसलिए शौन ने काम पर जाना बन्द कर दिया था। उसी के नक्शेकदम पर बलदेव भी पीठ दर्द का बहाना करके घर में बैठ गया था। अब डॉक्टर से फिटनेस लेकर वापस काम पर जा रहा था।
काम पर जाते समय यद्यपि उसमें उत्साह भी था। उसे आवश्यकता भी थी कि उसके पास नौकरी होगी तभी मोर्टगेज मिलेगी और फ्लैट ले सकेगा। दफ्तर में वापस आकर बाकी तो सबकुछ सह लिया था, पर उससे यह नहीं सहा जाता था कि उसे नौसिखिये क्लर्कों या अस्थायी कर्मचारियों में रखा जाए।
दफ्तर को कई सेक्सनों में विभाजित किया हुआ था। जैसे कि ए, बी, सी, डी। डी सेक्शन में नए लोग ही होते। बलदेव के संगी-साथी तो बी सेक्शन में थे। उसे बी न भी मिले पर सी तो मिलता। दूसरी दुख देने वाली बात यह थी कि उसके पुराने दोस्त उसे अपने से घटिया समझने लग पड़े थे। वे हैलो-सी करके टरका देते। फिर काम शुरू करते ही जल्द ही भाइया गुजर गया जिसके कारण वह दबाव में रहने लगा। काम से लौटते ही उसे अजमेर की दुकान पर कुछ घंटे मदद करवाने के लिए जाना पड़ता। वीक एंड पर तो पूरा दिन ही टोनी के संग खड़ा रहता। सवेरे छह बजे उठता। तैयार होते-हवाते आठ बजे घर से निकलता। टफनल पॉर्क से नॉदर्न लाइन पकड़ता और वाटरलू जा उतरता। वहाँ से कुछ मिनट का रास्ता था। नौ बजे से पहले पहले वह दफ्तर में होता। पाँच बजे काम छोड़ कर छह बजे घर पहुँचता। मैरी घर पर ही होती। सात बजे हाईबरी चला जाता जहाँ से दस बजे लौटता। मैरी को भी वक्त न दे पाता।
दुकान में मदद करते हुए उसे कुछ खुशियाँ भी मिलतीं। गुरां उसके पास आ खड़ी होती। शैरन उसके गले से लटक कर झूलने लगती। अब हरविंदर भी शरारतें करने लगता। गुंरिंदर कहती -
''तेरे भाजी के साथ इतना नहीं खुलते जितना तेरे साथ करते हैं।''
बलदेव को यह सुनना अच्छा लगता पर कई बार अजमेर उसे बहुत दु:खी कर जाता। किसी के साथ बात करते करते कहने लगता-
''रात को सौ पोंड की सेल में फर्क़ था, चलो कोई बात नहीं। कहीं गलती लग गई होगी।''
पहले तो बलदेव ने इस ओर ध्यान नहीं दिया, जब नोटिस में यह बात आई तो उसे बहुत बुरी लगी कि उसे चोर बनाया जा रहा था। जब शिन्दा आया तो उसने हाथ एकदम पीछे खींच लिया। शिन्दे ने जल्दी ही सोहन सिंह वाली जगह संभाल ली थी, बल्कि वह उससे भी बढ़िया काम करता। टिल्ल को अच्छी तरह चला लेता। उसे ग्राहक सर्व करना आ गया था। फिर बलदेव ने दुकान में आना बन्द ही कर दिया था क्योंकि अब काम चल ही रहा था।
एक दिन वह मैरी को बाहर घुमाने ले गया। थेम्ज़ के किनारे जा बैठे। दरिया भरा पड़ा था। किनारों से बाहर उछल रहा था। भरे हुए दरिया को देख उसकी रूह निहाल हो गई। उसने मैरी से कहा-
''मेरा दिल करता है कि दरिया के किनारे पैर लटका कर बैठा रहूँ और यह इसी तरह मेरे पैरों को छोड़ते छोड़ते उतर जाए, इसी तरह छूता हुआ चढ़े।''
''यह टाईडल दरिया है, ये समुंदर से प्रभावित होते हैं, इनके किनारे बैठना ठीक नहीं होता। इन्हें बगैर छुए महसूस करना चाहिए।''
''मैं कई कई घंटे यहाँ खड़ा रह कर इसे देख सकता हूँ, इसे उतरते-चढ़ते को, मानो इसे उजड़ते-बसते देख रहा होऊँ।''
''इतना भी क्या लगाव इसके साथ। यह दरिया ही तो है।''
''मैरी, मुझे लगता है कि यह मेरे बारे में सोच रहा है।''
''डेव, कहीं पागल न हो जाना।''
''नहीं मैरी, मैं सच कह रहा हूँ। ज़रा सोच कर देख, थेम्ज़ के बगैर लंदन कैसा लगेगा। शायद थेम्ज़ न होता तो लंदन भी न होता।''
''पुराने शहर बसते ही दरियाओं के किनारे थे, आवाजाही की सुविधाओं के कारण।''
''यही तो मैं कहता हूँ कि थेम्ज़ के कारण ही लंदन है। इसी कारण मुझे यह बहुत खास लगता है। लंदन का हिस्सा बन कर मैं दरिया के साथ जुड़ा हुआ हूँ। मुझे तो यहाँ तक लगता है कि लंदन के बिना कहीं और रह ही नहीं सकता।''
''देव, तूने दरिया का दूसरा पहलू नहीं देखा होगा, लगता है, इनकी भयानकता से तेरा वास्ता नहीं पड़ा, मेरे साथ डैरी चल, तुझे रिवर फोइल दिखाऊँ, देखने में वह इससे भी सुन्दर होगी, पर बहुत करूप है, सरहद है फोइल। एक तरफ प्रोटैस्टेंट और दूसरी तरफ कैथोलिक, दरिया का पार करना मतलब मौत... कुछ गज का दरिया सचाई में सैकड़ों मील का अन्तर संभाले बैठा है, अस्थायी से पुल हैं, फोइल पर बनते रहते हैं... तुझे उत्तरी आयरलैंड की राजनीति का पता ही है।''
बात करते करते मैरी भावुक हो गई। बलदेव ने कहा-
''मैरी, तेरे साथ कभी डैरी भी चलूँगा, तेरा फोइल भी देखूँगा पर इस वक्त हम थेम्ज़ के किनारे खड़े हैं।''
''तेरे मुल्क में कोई दरिया नहीं ?''
''हैं, मेरे घर के पास ही है सतलज।''
''उसके किनारे खड़े होकर नहीं देखा कभी तुमने ?''
बलदेव सोचने लग पड़ा कि सतलज को कितनी बार देखा था उसने। थेम्ज़ तो छोटा ही था। सतलज तो बहुत बड़ा था। एकदम शिखर पर झील मानसरोवर में से निकलता और सिन्ध तक का सफ़र तय करता दरिया। अब तो बंधा पड़ा था और बरसातों में ही चढ़ता था और कई बार तबाही भी मचाता था। मैरी ने पूछा -
''सतलज कैसा लगता है ?''
उसने सतलज को याद किया। उसे सतलज हँसता हुआ दिखाई दिया जब कि थेम्ज़ अहंकार में रहता था। सतलज को वह थेम्ज़ से ज्यादा जानता था। फिर उसने सोचा कि किन चक्करों में पड़ गया था वह। मैरी ने उसे उलझा हुआ देख कर कहा-
''यहाँ ठंड हो गई है, चल किसी रेस्टोरेंट में चल कर बैठते हैं।''
मैरी आयरलैंड चली गई। उसकी अनुपस्थिति में बलदेव को सबकुछ सूना-सूना लगने लगा। मैरी के बग़ैर उसे इस फ्लैट में रहना ही अच्छा नहीं लगता था पर और करता भी क्या। उसने कुछ घरों और फ्लैटों की लिस्टें देखी थीं पर उसकी पसंद का कहीं कुछ नहीं था। दो बार लिस्टें देखने के पश्चात् वह फिर बैठ गया। कभी कभी उसे नाइजल वाली दुकान हाथ से निकल जाने का दुख होता। अगर दुकान मिल जाती तो उसे काम पर वापस न जाना पड़ता। दुकान में मैरी भी उसकी मदद कर सकती थी। अब तो शिन्दा भी आ गया था। उससे भी काम चला सकता था।
सोहन सिंह के फ्यूनरल के बाद वह शॉप पर बहुत कम जा सका था। शिन्दे को मिलने ही जाता। अजमेर उससे उसके रहने का ठिकाना पूछता तो उसे कई तरह का झूठ बोलना पड़ता था। फ्यूनरल पर आए शौन से पता चल गया था कि शौन को भी उसके पते की जानकारी नहीं थी। शौन से उसने अभी भी मैरी वाली कहानी छिपा रखी थी। फ्यूनरल वाले दिन शौन से उसकी काफी बातें हुई थीं। उसे फोन करने या मिलने का वायदा भी किया था उसने, लेकिन ऐसा कर नहीं सका था। उसका मूड ही नहीं बनता था। काम पर रहने वाली निराशा उसे उदास सा किए रखती। शौन लौट कर काम पर नहीं गया था। उसने घर बैठे ही इस्तीफ़ा भेज दिया था। बलदेव का भी मन होता था कि वह यह काम छोड़ कर दूसरा तलाश ले। इतनी नौकरियाँ थीं लंदन में, मिल ही जाती।
मैरी के बगैर डार्टमाउस हाऊस अलग सा दिखता था और इसके लोग भी। उस दिन जूडी तो उसकी कार के आगे ही आ खड़ी हुई। उसे इमरजेंसी ब्रेक लगानी पड़ी। उसने खीझ कर जूडी की तरफ देखा तो वह हँसने लग पड़ी थी। उसे भी हँसी आ गई थी। जूडी बलिंडा की छोटी बेटी थी। उसने शीशा नीचे किया और कहा -
''क्यों जूडी, मरने का इरादा है ?''
''डेव, मुझे तुझसे एक काम है, ज़रूरी।''
''बता।''
जूडी घूम कर दूसरी ओर गई और कार का दरवाजा खोल कर उसके बराबर आ बैठी और बोली-
''मैरी कब आ रही है ?''
''पता नहीं, सारी रस्में पूरी करके ही लौटेगी। ग्रांट के फ्यूनरल पर जो गई है।''
''उसके बिना अकेला महसूस नहीं कर रहा ?''
''नहीं तो, क्यों पूछ रही है ?''
''डेव, सच यह है कि मैं ब्रोक हूँ, मुझे पैसे की सख्त ज़रूरत है। मैं तुझे गुड टाइम दे सकती हूँ, मुझे कुछ पोंड दे दे।''
''जूडी, मैं ऐसा नहीं हूँ।''
''मैं कहाँ ऐसी हूँ, यह तो मेरा बैनेफिट नहीं आया इसलिए कह रही हूँ, प्लीज़ डेव।''
''जूडी, इस काम के लिए मैं तुझे पैसे नहीं दे सकता। मैं तुझे जानता भी तो नहीं अच्छी तरह।''
''मैं साफ हूँ, विश्वास कर मेरा।''
''सॉरी जूडी, मैं तेरे किसी काम नहीं आ सकता।''
''उधार ही दे दे, दस पोंड, वायदा रहा लौटा दूँगी, प्लीज़ डेव !''
जूडी ने अनुनय की। बलदेव ने जेब में से पाँच पोंड निकाल कर उसे दिए और कहा-
''यही हैं, फाइव ही।''
जूडी ने धन्यवाद कह कर पाँच का नोट पकड़ा। कार में से उतरी और कहने लगी-
''अगर मेरी ज़रूरत हो तो बताना।''
जूडी चली गई। उसके बैठने के साथ ही कार में बू सी बिखर गई थी। यह बू ड्रग पीने के कारण थी। बलदेव ने भी कुछेक बार लेकर देखा हुआ है। उसे उसकी बू बहुत बुरी लगती थी। बलिंडा की दूसरी बेटी पैंट हालांकि सुन्दर थी। वह कहीं काम भी करती थी। बन-संवर कर रहती थी। ग्रांट के मरने पर बलिंडा के सारे परिवार ने ही बारी बारी से उससे अफ़सोस प्रकट किया था। जबकि वह ग्रांट से कभी मिला भी नहीं था। उसकी बॉडी देखने भी नहीं गया था। यह सोच कर वह मन ही मन हँसता और स्वयं को दोषी-सा महसूस करने लगता। बलिंडा का बड़ा बेटा माइकल उसे एक दिन अजमेर की दुकान पर मिला था। वह गे था। उसका ब्वॉय फ्रेंड भी साथ ही था। बलदेव को दुकान में देख कर हैरान होता हुआ बोला-
''डेव, यह तेरी दुकान है ?''
''नहीं, मैं काम करता हूँ, यूँ ही टेम्परेरी ही।''
''हम अपनी संस्था के लिए चंदा इकट्ठा कर रहे हैं, कुछ दे।''
बलदेव ने ना कर दी थी पर टोनी ने दो पोंड दे दिए थे और आँख मारते हुए कहा था -
''ये भले लोग हैं, कठिन समय में काम आते हैं।''
बलिंडा का छोटा बेटा डगलस उसे अक्सर ही सड़क पर या पॉर्क में घूमता मिल जाता। वह लोफरों की भांति उल्टी टोपी पहनता और नाराज़ सा हुआ चलता, पर बलदेव के साथ बढ़िया तरीके से पेश आता था।
कई लोग बलदेव की तरफ अजीब नज़रों से देखते। कई बार उसने घूंट भर पी होती तो राह में खड़े होकर बातें करने लगता। कई बार वह यह भी सोचने लगता कि क्या ये लोग ही उसकी मंजिल हैं या ये फ्लैट या इन फ्लैटों की ज़िन्दगी। उसे अपने आप पर गुस्सा आने लगता कि वह अपने भविष्य के प्रति क्यों लापरवाह हुआ बैठा था।
एक दिन डूडू ने फिर उसे शाम डेसाई की दुकान पर रोक लिया।
वह कहने लगा-
''डेव, तुमने ग्रांट के फ्लैट पर कब्ज़ा कर लिया, यह बहुतों को पसन्द नहीं। इन फ्लैटों में कई नस्लवादी लोग रहते हैं जो बहुत खतरनाक हैं।''
''डूडू, इस फ्लैट से मेरा कोई संबंध नहीं, यह तो मैरी ने संभाल रखा है। मैरी ग्रांट की बहन है।''
''पर लोगों को तू ही दिखाई दे रहा है। तेरा रंग दिख रहा है। मैरी की कोई बात नहीं करता। अपना ध्यान रखना। दरवाजे-खिड़कियाँ अच्छी तरह बन्द करके सोया कर, कोई रात में ही तेरे पर हमला न कर दे। आगज़नी की भी वारदातें होती रहती हैं, मैं पैंतीस नंबर में हूँ।''
00
(क्रमश: जारी…)
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रविवार, 6 सितंबर 2009

गवाक्ष – सितम्बर 2009



“गवाक्ष” के माध्यम से हम हिन्दी ब्लॉग-प्रेमियों को हिन्दी/पंजाबी के उन प्रवासी लेखकों/कवियों की समकालीन रचनाओं से रू-ब-रू करवाने का प्रयास कर रहे हैं जो अपने वतन हिन्दुस्तान से कोसों दूर बैठकर अपने समय और समाज के यथार्थ को अपनी रचनाओं में रेखांकित कर रहे हैं। “गवाक्ष” के पिछ्ले तेरह अंकों में पंजाबी कवि विशाल (इटली) की कविताओं का हिन्दी अनुवाद, दिव्या माथुर (लंदन) की कहानी, अनिल जनविजय (मास्को) की कविताएं, न्यू जर्सी, यू.एस.ए. में रह रहीं देवी नागरानी की ग़ज़लें, लंदन निवासी कथाकार-कवि तेजेन्द्र शर्मा, रचना श्रीवास्तव, दिव्या माथुर की कविताएं, दुबई निवासी पूर्णिमा वर्मन की कविताएं, यू एस ए में रह रहीं हिन्दी कथाकार-कवयित्री इला प्रसाद, डेनमार्क निवासी कवि भगत धवन की कविताएँ और चाँद शुक्ला की ग़ज़लें, यू एस ए निवासी कवि वेद प्रकाश ‘वटुक’ तथा कवयित्री रेखा मैत्र की कविताएं, कनाडा अवस्थित पंजाबी कवयित्री तनदीप तमन्ना की कविताएं, यू के अवस्थित हिन्दी कवि-ग़ज़लकार प्राण शर्मा की ग़ज़लें, कैनेडा में अवस्थित पंजाबी कवि सुखिन्दर की कविताएं, कनाडा निवासी पंजाबी कवयित्री सुरजीत, अमेरिका अवस्थित डॉ सुधा धींगरा और पंजाबी कथाकार-उपन्यासकार हरजीत अटवाल के उपन्यास “सवारी” के हिंदी अनुवाद की सोलह किस्तें आपने पढ़ीं। “गवाक्ष” के सित्म्बर 2009 अंक में प्रस्तुत हैं – कनाडा में अवस्थित हिंदी- पंजाबी कथाकार - कवयित्री मिन्नी ग्रेवाल की कविताएं तथा यू के निवासी पंजाबी कथाकार-उपन्यासकार हरजीत अटवाल के धारावाहिक पंजाबी उपन्यास “सवारी” की सत्रहवीं किस्त का हिंदी अनुवाद…

कनाडा से
मिन्नी ग्रेवाल की कविताएँ
पंजाबी से अनुवाद : सुभाष नीरव
कविताओं के साथ चित्र : रुचिरा

(१)
तेरे साथ की प्रतीक्षा
तेरे साथ की प्रतीक्षा करते करते
मैं थक गयी हूँ
नज़रें धुंधला गयी हैं
और इस
धुंधलके के कारण
हर अँधेरे पर
तेरे नक्श उभर आते हैं
हर गले में
मैंने बांहें डाल दी हैं.

तेरे स्पर्श का अहसास
अभी तक है
प्यार गुनाह है
तेरा नाम ले नहीं सकती
इस प्यार के अहसास को
घर के पीछे
गड्ढा खोद कर
दबा दिया है
हाथों में कुछ मिटटी
फिर भी
लगी रह गयी है.

(२)
आज फिर
तड़पें लहरें
चीखे हवा
तूफानों से
घिरी यह फिजा
उम्र पुकारती
मंझदार मंझदार

आज फिर
तेरा ख्याल
आता है
बार बार

(३)
चाहतें
उम्र की भट्टी
मोहब्बत की आग
अरमानों के दानें
शर्म की झोली में से
भुन भुन कर
बाहर गिर रहे हैं.

लोक लज्जा के पैमानें
चाहतों की कब्र पर
छलकते ढुलकते
सांसों को दबोच रहे हैं.

(४)
साझा पल
चौराहे पर लोगों का शोर
खंभे की पीली रोशनी
शाम के साये ढल गए.

तेरी प्रतीक्षा में मैं खड़ी हूँ
कि चौराहे से घर तक के
कुछ पल साझे हो सकें

पुराने कपड़े गर्माहट नहीं देते
ठण्ड से दांत बज रहे हैं
काम के बाद बहुत थक गयी हूँ.

कुछ रुपये, ओवर टाइम
गरीबी का लालच, और तू
हमेशा देर से आता है.

अपनी उम्र की पता नहीं
कितनी जवान शामें
इस चौराहे पर ढल जाएँगी.


(५)
रात ने

रात ने आकाश की चादर ओढी
और सो रही
चादर के माथे पर चाँद चमका
और चांदनी बरस पड़ी
चांदनी ने आँखों के दीये जलाये
और लौ हंस पड़ी

उस रात, पर उस रात
न रात सोयी, न चाँद सोया, न सोये तारे
एक अजीब-सा सवाल मुझसे पूछते रहे सारे
जज्बों का मचलना
खुशबुओं का महकना
दूर कहीं किसी की आहट

पत्तों का सरकना, होठों का फड़कना
यह कैसी जिस्म की थरथराहट
थके भंवरे, मदहोश कलियाँ
यह फिजा
रह रह कर मुझको
राज़ कोई समझा रही है.
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पिछले ३० वर्षों से कैनेडा में रह रहीं सुश्री मिन्नी ग्रेवाल पंजाबी की जानी-मानी लेखिका हैं. इनके अबतक पंजाबी में तीन कहानी संग्रह "कैक्टस दे फुल्ल", "फानूस" और "चांदी डा गेट" तथा हिंदी में "दो आसमान" प्रकाशित हो चुके हैं. इसके अतिरिक्त पंजाबी में एक कविता संग्रह "फुल्ल-पत्तियां" प्रकाशित हो चूका है और एक पुस्तक "सरहदों पार मील" प्रकाशनाधीन है.
संपर्क : 5, Sylvid Court, Loretto On LoG ILO, CANADA
ई-मेल : minniegrewal@sympatico.ca

धारावाहिक पंजाबी उपन्यास(किस्त- 17)



सवारी
हरजीत अटवाल
हिंदी अनुवाद : सुभाष नीरव
चित्र : रुचिरा

॥ बाईस ॥
तीनों भाई ही शिन्दे को एअरपोर्ट से लेने गए थे. बलदेव की कार थी. सतनाम और बलदेव पब में जा बैठे और अजमेर हांक लगने की प्रतीक्षा करता रिसेप्शनिस्ट के पास खडा हो गया, जहाँ इमिग्रेशन ऑफिसर ने शिन्दे की शिनाख्त और जिम्मेवारी के लिए आना था. अजमेर थोडा नर्वस हो रहा था की कहीं लौटा ही न दें. अभी वीज़ा सिस्टम शुरू नहीं हुआ था. शोर था कि जल्द ही दिल्ली से ही वीज़ा लेकर आना पड़ा करेगा. अभी सिर्फ एंट्री ही हुआ करती थी और एंट्री में स्पांसरशिप भेजने वाले की जिम्मेवारी अहम् होती थी.

सतनाम अपनी मस्ती में बैठा बियर पीता रहा. बलदेव ने हाफ बियर ही ली थी. कुछ देर बाद शिन्दा अजमेर के पीछे रोता हुआ चला आ रहा था. उनके पास पहुँच कर उसका रोना और तेज़ हो गया. आस पास के लोगों ने उनकी तरफ देखना शुरू कर दिया. सतनाम गुस्से में बोला -
"गला क्यों फाड़ रहा है ?... साला राजिंदर कुमार !"
शिन्दा थोडा शांत हुआ. जब वह उनके गले मिला तो फिर उसने पुकारा -
"हाय भाइया !"
"ओय तू चुप कर, अपने हिस्से का ही रो, हमारा भी टैम न उठाये जा."
बलदेव ने उसका कन्धा थपथपा कर उसे हौसला दिया. कार में बैठने तक शिन्दा सिसकता रहा था. सतनाम ने कहा-
"शिन्दे, रुमाल है ?"
"हाँ, है. चाहिए ?"
"नहीं, अपना ही नाक साफ़ कर ले."
शिन्दा शर्मिंदा सा होकर मुस्कराया और नाक और आँखें साफ़ करने लगा. थोडा और आगे पहुंचे तो शिन्दा बलदेव से बोला-
"बलदेव, कहीं राह में रेहड़ी के पास रोकना, बच्चों के लिए केले ले चलें."
"साले, तूने लन्दन को चबेयाल का अड्डा समझ लिया है क्या ?"
सभी हंसने लगे. शिन्दा शर्मिंदा सा हो गया. फिर अजमेर ने मिन्दो और बच्चों का हाल चाल पूछा. शिन्दा राह में आयी मुश्किलों के बारे में बताने लगा. सतनाम उससे जहाज़ में बैठने के तजुर्बे के बारे में पूछ रहा था. बात घूम कर फिर सोहन सिंह पर आ गयी. शिन्दा फिर रोने लगा. सतनाम ने अजमेर से पूछा-
"भाई, मोर्चरी कितने बजे बंद करते हैं ?"
"मेरे हिसाब से तो चौबीस घंटे खुली रहती है. हम तो रात में आठ - नौ बजे ही जाया करते हैं."
“फिर शिन्दे पुत्त को भाइये के दर्शन करवा कर ही चलें. कहीं रो रो कर यह भी हार्ट अटैक न करा बैठे."
बलदेव ने कार अस्पताल की तरफ मोड़ ली. वो भी भाइये को देखना चाहता था. सिर्फ एकबार ही आया था. मन में खुद को बस यही दलील देता रहता की भाइया तो अब मिटटी है. मिटटी का क्या देखना ? मैरी ग्रांट को देख कर लौटने के बाद रोती रहती थी. उसे अधिक रोना बुरा लगता था. मैरी ग्रांट की देह को आयरलैंड लेकर गयी थी. सारी कागजी कारवाई के दौरान वह मैरी के संग रहा था इसी शर्त पर कि वह रोएगी नहीं. मैरी फिर भी अपना और ग्रांट का बचपन याद करके सिसकने लगती. भाइये का फ्यूनरल शिन्दे के इंतजार में बहुत लेट हो गया था. बलदेव को कोफ्त सी होने लगती थी कि इस कारण कितने ही काम रुके पड़े थे.

विटिंगटन हॉस्पिटल के ऐन पीछे बड़ी सी शैड नुमा ईमारत थी, जहाँ लाशें अंडरटेकर द्वारा ले जाने कि प्रतीक्षा कर रही होती थीं. और जहाँ आगे उनका संस्कार होना होता था.

उस दिन सभी जज्बाती हो गए जब वे सोहन सिंह को स्नान करवाने गए थे. अजमेर कहने लगा-
"तुम लोग जाओ, मुझे तो कुछ हो जायेगा, मेरा तो दिल है नहीं, कमज़ोर है."
"हमने कौन सा दिल को रिबटें लगवा रखी हैं."
सतनाम ने उसे संग ले जाते हुए कहा. अजमेर ने दिल मज़बूत करने के लिए एक पैग लगा लिया. फिर बाकी के भी पीछे न रहे. टोटनहैम हाई रोड पर अंडरटेकर का दफ्तर था. दफ्तर के पीछे कफ़न बनाने वालों का कारखाना था और उसके पीछे लाशों को नहलाने का प्रबंध था. प्लेटफोर्म के ऊपर देह को डाला हुआ था. साथ ही शावर लगा हुआ था.बिज़ली की शक्ति से प्लेटफोर्म आडा -तिरछा हो जाता था ताकि देह को इधर उधर पलटा जा सके. उन सबने सोहन सिंह की देह को दही से नहलाया. नए कपडे पहनाये. शिन्दे ने उसके सिर पर पगडी बाँधी. वे सभी ये सब काम चुपचाप करते रहे. शिन्दे के साथ साथ अजमेर भी हल्का-सा रोता रहा. सतनाम और बलदेव भी खुद को रोक न पाए. जब तैयार करके उसे कफ़न में लपेटा तब सभी रोने लग पड़े. आँखे पौंछते हुए सतनाम ने कहा-
"बच गए. कहीं भाइया वस्मा लगता होता तो इसकी दाढी भी काली करनी पड़ती."
वे सभी हंस पड़े. हँसे भी इतनी जोर से कि अंडरटेकर का एक कर्मचारी उन्हें देखने आ गया. उनका मूड अब कुछ बदला. शिन्दा बोला -
"यह तो भाई तुम्हारा सिस्टम बढ़िया है. वहां इंडिया में तो कुछ नहीं, ऊँचे खू (कुएं) वालों का बूढा मर गया, साले का सवा क्विंटल भार, दस बन्दों से भी ना संभाला जाए."
सतनाम ने अजमेर से कहा -
"भाई, आज तो हमें भाइये वाली ब्रांडी पीनी चाहिए थी, उसके नाम पर. और फिर ठण्ड भी है."
"अब जाकर पी लेते हैं."
अजमेर ने उत्तर दिया और कल के बारे में सोचने लगा. कल फ्यूनरल था. फ्यूनरल उसके लिए बहुत बड़े दिन की तरह था. इस दिन की उसने बहुत तैयारी कर रखी थी. दूर-दूर तक इसके खबर भेजी थी. पंजाबी की साप्ताहिक अख़बार में भी निकाला था. वह सबके कार्य व्यवहारों में पहुंचा करता था. उसे आस थी कि सभी आयेंगे और आये भी सब. मंजीत के रिश्तेदार, गुरिंदर की मौसी और दूर का लगता एक मामा. अजमेर के गाँव के लोग भी पहुंचे.

ग्यारह बजे लाश को लेकर काली लम्बी कार उनके घर आ पहुंची. सारा हाईबरी कोर्नर ही लोगों से भर गया. कारें खडीं करने के लिए तो जगह ही नहीं बची. ट्रैफिक रुक गया. पुलिस को आकर लोगों की मदद करनी पड़ी. आधा घंटा भर लाश घर में रही. बॉक्स को स्टैंड पर रखा हुआ था. इस काम के लिए उन्होंने पिछला स्टोर रूम खाली कर लिया था. एक एक करके लोग आते और सोहन सिंह का दर्शन करके आगे बढ़ जाते. भाई ने अरदास की. बॉक्स को कार में रखा. दो और लम्बी कारें थीं जिनमें परिवार और अन्य करीबी औरतें -बच्चे बैठे. यह काफिला साउथ गेट गुरूद्वारे की तरफ रवाना हो लिया. पूरे उत्तरी लन्दन को यही गुरुद्वारा लगता था. वहां पहुँच कर फिर बक्से को कार में से उतार कर स्टैंड पर टिकाया गया. अन्दर भाई ने अरदास की. बक्से का ढक्कन खोल दिया गया. जिन्होंने सोहन सिंह के दर्शन नहीं किये थे, उन्होंने भी कर लिए. आधा घंटा वहां रुके. यहाँ से फिर एक लम्बे काफिले के रूप में फिंचले कैरीटोरियम की ओर चल दिए. वे चारों भाई एक ही कार में थे. सतनाम कहने लगा-
"ले भाई भाइया खट गया . इतने लोग, इतनी कारें कि सडकों का ट्रैफिक जाम हो गया. मानो भाइया ना हुआ, कोई हीरो हो गया."
"यही तो मैं तुमसे कहा करता हूँ कि भाई बना कर रखो. अब इतने लोगों के आने से अपनी कितनी इज्ज़त बढ़ी. हम इक्कठे चलते हैं तो शोभा होती है."
"भा, ठीक है तेरी बात, पर यह सब तेरे कारण ही है. भाइया तो सांई लोक था. यह सब तेरे कारण ही आये हैं." सतनाम ने कहा. अजमेर यही सुनना चाहता था. बलदेव को चुप देख कर सतनाम ने उसे छुआ. वह भी सतनाम की हाँ में हाँ मिलाने लगा. कार में से निकल कर सतनाम बलदेव से धीमे से बोला-
"तूने मुंह को क्यों ताला लगा रखा था, अगर प्रेम चोपडा की बडाई हो जाती है तो फ्युनरल पर खर्च किये गए उसके पैसे हरे हो जायेंगे."
"सारा टब्बर ही मरासियों का हो जाए तो अच्छी बात नहीं."
"बाहर जाकर तो नहीं करते हम किसी की चमचागिरी. बड़े भाई की ही करते हैं. और एक बात तुझे भी बताऊँ, तू कुछ ज्यादा ही चुप रहने लगा है, जल्दी ही कोई औरत ढूंढ ले अपने लिए."
औरत के नाम पर शिन्दा भी उनके पास आ खडा हुआ. सतनाम ने कहा-
"इसे देख कैसे टोह लेता फिरता है कुत्ते की तरह."

बातें करते हुए वे हाल के अन्दर जा घुसे. हाल बहुत छोटा रह गया था. इतनी भीड़ के आगे. सोहन सिंह का बक्सा मंच पर रखा गया. भाई ने फिर अरदास की. अजमेर ने बटन दबाया. बॉक्स धीरे धीरे अन्दर जाने लगा. फिर परदे की ओट हो गया. कुछेक लोग सबूत के लिए बॉक्स को बिजली से जलता देखने के लिए अन्दर चले गए. शेष लोग बाहर निकल कर चिमनी की ओर देखने लगे, जहाँ से धुंआ निकलना था.
कैरीटोरियम से सब लोग गुरूद्वारे में आ गए. जहाँ भोग पड़ना था. लोगों ने रोटी खाकर अपने घरों को वापस लौट जाना था. कुछ लोग पब को जाने वाले थे, ख़ास तौर पर पैट्रो, माइको, जुआइस, मगील आदि. कुछ और अजमेर के गौरे ग्राहक भी थे, जिन्होंने रस्म के बाद बियर पीनी थी. साउथ गेट के गुरूद्वारे के साथ ही पब था. बलदेव की ड्यूटी सब को पब में ले जाने की लगी हुई थी. शौन और गैरथ के आने के कारण उसे पब में वैसे भी जाना ही था.
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(क्रमश: जारी…)

लेखक संपर्क :
67, हिल साइड रोड,
साउथहाल, मिडिलसेक्स
इंग्लैंड
दूरभाष : 020-85780393
07782-265726(मोबाइल)

शुक्रवार, 24 जुलाई 2009

गवाक्ष – जुलाई 2009


“गवाक्ष” के माध्यम से हम हिन्दी ब्लॉग-प्रेमियों को हिन्दी/पंजाबी के उन प्रवासी लेखकों/कवियों की समकालीन रचनाओं से रू-ब-रू करवाने का प्रयास कर रहे हैं जो अपने वतन हिन्दुस्तान से कोसों दूर बैठकर अपने समय और समाज के यथार्थ को अपनी रचनाओं में रेखांकित कर रहे हैं। “गवाक्ष” के पिछ्ले तेरह अंकों में पंजाबी कवि विशाल (इटली) की कविताओं का हिन्दी अनुवाद, दिव्या माथुर (लंदन) की कहानी, अनिल जनविजय (मास्को) की कविताएं, न्यू जर्सी, यू.एस.ए. में रह रहीं देवी नागरानी की ग़ज़लें, लंदन निवासी कथाकार-कवि तेजेन्द्र शर्मा, रचना श्रीवास्तव, दिव्या माथुर की कविताएं, दुबई निवासी पूर्णिमा वर्मन की कविताएं, यू एस ए में रह रहीं हिन्दी कथाकार-कवयित्री इला प्रसाद, डेनमार्क निवासी कवि भगत धवन की कविताएं, डेनमार्क निवासी चाँद शुक्ला की ग़ज़लें, यू एस ए निवासी कवि वेद प्रकाश ‘वटुक’ तथा कवयित्री रेखा मैत्र की कविताएं, कनाडा अवस्थित पंजाबी कवयित्री तनदीप तमन्ना की कविताएं, यू के अवस्थित हिन्दी कवि-ग़ज़लकार प्राण शर्मा की ग़ज़लें, कैनेडा में अवस्थित पंजाबी कवि सुखिन्दर की कविताएं, कैनडा निवासी पंजाबी कवयित्री सुरजीत की कविताएं और पंजाबी कथाकार-उपन्यासकार हरजीत अटवाल के उपन्यास “सवारी” के हिंदी अनुवाद की पन्द्रह किस्तें आपने पढ़ीं। “गवाक्ष” के जुलाई 2009 अंक में प्रस्तुत हैं – अमेरिका में अवस्थित हिंदी- पंजाबी कथाकार - कवयित्री सुधा ओम ढींगरा की कविताएं तथा यू के निवासी पंजाबी कथाकार-उपन्यासकार हरजीत अटवाल के धारावाहिक पंजाबी उपन्यास “सवारी” की सोलहवीं किस्त का हिंदी अनुवाद…


अमेरिका से
डॉ0 सुधा ओम ढींगरा की दो पंजाबी कविताएं
हिंदी रूपांतर : सुभाष नीरव


(1) माँ मैं खुश हूँ

परदेस से चिट्ठी आई
माँ की आँख भर आई
बेटी ब्याही
परदेस गई
बरस बीते, लौट कर न आई
चिट्ठी खोली,
पढ़ न पाई
ऑंसुओं ने झड़ी लगाई।

लिखा था-
माँ, मैं खुश हूँ
चिंता न करना
घर ले लिया है किस्तों पर
कार ले ली है किस्तों पर
फर्नीचर ले लिया किस्तों पर
यहाँ तो सब कुछ
खरीदा जाता है किस्तों पर।

आगे लिखा था-
घर के सारे काम
मैं करती हूँ
खानसामा यहाँ मैं
सफाईवाली यहाँ मैं
हलवाई यहाँ मैं
सब कुछ मैं ही हूँ माँ।
न रोक, न टोक
सवेर से शाम तक बिजी।

और लिखा था-
ना शोर, ना शराबा
हवा तक न कुसकती
परिन्दों की आवाज़
भी नहीं आती
साफ-सुथरा है यह देश
मुझे भाता है इसका वेश
लम्बा पहनो या छोटा पहनो
कुछ भी पहनो या ना पहनो
कोई परवाह नहीं किया करते।

माँ तू कहा करती थी
चादर देख पैर पसारो
पर यहाँ रिवाज निराला
चादर के बाहर पैर पसारो
इसी में देश की खुशहाली है
क्रैडिट कार्ड पर खर्चा करो
बैंकों से कर्ज़ा लो...

माँ पढ़ती गई...

पाँच दिन खूब काम करते हैं
रात में जल्दी सो जाते हैं
हफ्ते के अन्त में
पार्टियाँ किया करते हैं
बात बात पर बस
देश को याद करते हैं।

यह पढ़ माँ उदास हो गई...

देश बहुत याद आता है माँ
यहाँ की खुशहाली
सजावट, दिखावट में
वह रस नहीं
जो अभावों के मारे
अपने देश में है
यहाँ की रंगीनी में
वे रंग नहीं जो
अपने सरल देश में हैं
यहाँ की सुन्दरता, तरक्की में
वो प्यार अपनापन नहीं
जो मेरे गरीब देश में है
माँ मैं खुश हूँ
तुम चिंता न करना
दो बरस और नहीं आ पाऊँगी
ग्रीन कार्ड मिलने में
अभी टाइम है।

(2) दिल

अनेक भावों को इकट्ठा करके
कुदरत ने जब
नौ रस में मिलाया
फिर नौ रसों को एक रस करके
एक आकार बनाया
जब आई प्रियतम की याद
लगा वह फड़कने
यह फड़कन जब बन गई धड़कन
तब यह ‘दिल’ कहलाया।
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सुधा ओम ढींगरा
जन्मस्थान : जालंधर, पंजाब (भारत)
शिक्षा : बी.ए.आनर्ज़, एम.ए. ,पीएच.डी ( हिंदी ), पत्रकारिता में डिप्लोमा.
विधायें : कविता, कहानी, उपन्यास, इंटरव्यू, लेख एवं रिपोतार्ज.

प्रकाशित साहित्य : मेरा दावा है (काव्य संग्रह-अमेरिका के कवियों का संपादन),तलाश पहचान की (काव्य संग्रह) ,परिक्रमा (पंजाबी से अनुवादित हिन्दी उपन्यास), वसूली (कथा- संग्रह हिन्दी एवं पंजाबी), सफर यादों का (काव्य संग्रह हिन्दी एवं पंजाबी), माँ ने कहा था (काव्य सी .डी ). पैरां दे पड़ाह , (पंजाबी में काव्य संग्रह), संदली बूआ (पंजाबी में संस्मरण). १२ प्रवासी संग्रहों में कविताएँ, कहानियाँ प्रकाशित.

अन्य गतिविधियाँ एवं विशेष : विभौम एंटर प्राईसिस की अध्यक्ष, हिन्दी विकास मंडल (नार्थ कैरोलाइना) के न्यास मंडल में हैं. अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी समिति (अमेरिका) के कवि सम्मेलनों की राष्ट्रीय संयोजक हैं. 'प्रथम' शिक्षण संस्थान की कार्यकारिणी सदस्या एवं उत्पीड़ित नारियों की सहायक संस्था 'विभूति' की सलाहकार हैं. हिन्दी चेतना (उत्तरी अमेरिका की त्रैमासिक पत्रिका) की सह- संपादक हैं. पत्रकार हैं -अमेरिका से भारत के बहुत से पत्र -पत्रिकाओं एवं वेब पत्रिकाओं के लिए लिखतीं हैं. अमेरिका में हिन्दी के प्रचार-प्रसार के लिए अनगिनत कार्य किये हैं. हिन्दी पाठशालाएं खोलने से ले कर यूनिवर्सिटी में हिन्दी पढ़ाई. इंडिया आर्ट्स ग्रुप की स्थापना कर हिन्दी के बहुत से नाटकों का मंचन कर लोगों को हिन्दी भाषा के प्रति प्रोत्साहित कर अमेरिका में हिन्दी भाषा की गरिमा को बढ़ाया है. अनगिनत कवि सम्मेलनों का सफल संयोजन एवं संचालन किया है. रेडियो सबरंग (डेनमार्क) की संयोजक. टी.वी , रेडियो एवं रंगमंच की प्रतिष्ठित कलाकार. पंजाबी एवं हिन्दी में लेखन.
पुरस्कार- सम्मान : १) अमेरिका में हिन्दी के प्रचार -प्रसार एवं सामाजिक कार्यों के लिए वाशिंगटन डी.सी में तत्कालीन राजदूत श्री नरेश चंदर द्वारा सम्मानित. २) चतुर्थ प्रवासी हिन्दी उत्सव २००६ में ''अक्षरम प्रवासी मीडिया सम्मान.'' ३) हैरिटेज सोसाइटी नार्थ कैरोलाईना (अमेरिका ) द्वारा ''सर्वोतम कवियत्री २००६'' से सम्मानित , ४) ट्राईएंगल इंडियन कम्युनिटी, नार्थ - कैरोलाईना (अमेरिका) द्वारा ''२००३ नागरिक अभिनन्दन''. हिन्दी विकास मंडल , नार्थ -कैरोलाईना(अमेरिका), हिंदू- सोसईटी , नार्थ कैरोलाईना (अमेरिका), अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी समिति (अमेरिका) द्वारा हिन्दी के प्रचार-प्रसार एवं सामाजिक कार्यों के लिए कई बार सम्मानित.
संपर्क--101 Guymon Ct., Morrisville, NC-27560. U.S.A.
E-mail-sudhaom9@gmail .com
Phone-(919) 678-9056

धारावाहिक पंजाबी उपन्यास(किस्त- 16)


सवारी
हरजीत अटवाल
हिंदी अनुवाद : सुभाष नीरव

॥ इक्कीस ॥

दुकान में से निकलकर उसने पीछे की ओर देखा। उसे लगा मानो वहाँ भाइया खड़ा हो और उसने हँसते हुए उससे कुछ कहने के लिए मुँह खोला हो। वह सोचने लगा कि वह अभी पत्थर नहीं हुआ जैसा कि सभी कह रहे थे। उसके अन्दर अभी भी भावनाएँ जिन्दा थीं। वह पिता को याद करता हुआ कार की तरफ चल पड़ा। न-न करने के बावजूद सतनाम ने उसे दो भारी पैग पिला ही दिए थे। उसके लिए ये काफी थे। कार चलाने के लिए भी खतरनाक थे। वह अपने लायसेंस को लेकर बहुत भयभीत रहता था। आजकल रोका भी बहुत जाता था। राहों में पुलिसवाले स्पॉट चैक के लिए खड़े हो जाते थे। उसने डरते हुए ही कार स्टार्ट की। कार आगे बढ़ी तो उसे यकीन हो गया कि वह कार ठीक चला रहा था, कोई खतरा नहीं था। हौलो वे रोड तक वह बिलकुल ठीक आया। आगे सिनेमा के पास से सीधी टफनल पार्क की ओर मोड़ ली। सामने से पुलिस की कार आ रही थी। एक बार तो वह सिर से पांव तक कांप उठा। लेकिन पुलिस आगे बढ़ गई। उसकी सांस में सांस आया। जब से उसके एक परिचित का लायसेंस गया था, वह स्वयं डर-डर कर कार चलाने लगा था।
स्टेशन के साथ लगने वाले ऑफ़ लायसेंस के सामने कार रोक ली। घर के लिए उसे ड्रिंक चाहिए थी। वह मैरी का खर्चा नहीं करवाना चाहता था इसलिए घर का सारा सामान स्वयं ही लाता। मैरी के नाम पर फोन भी लगवा दिया था। घर की कुछ और भी वस्तुएं ली थीं। उसने वोदका की बड़ी बोतल और जूस के डिब्बे लिए। वह व्हिस्की पीता आया था, पर मैरी वोदका पसंद करती थी। दुकान का मालिक शाम देसाई कुछ ही दिनों में उसका परिचित बन गया था। वह उसका बड़ा ग्राहक था। पन्द्रह बीस पौंड की शॉपिंग कर लेता। शाम देसाई उसको देखते ही खुश हो जाता, पर आज बलदेव की आँखें चढ़ी होने के कारण चुप रहा। उसे अनुभव था कि शराबी आदमी के साथ अधिक बात नहीं करते।
दुकान में खड़े एक अन्य ग्राहक ने उससे कहा-
''हैलो मिस्टर, हाउ आर यू ?''
''फाइन...फाइन।'' कह कर बलदेव ने उसकी तरफ देखा। वह व्यक्ति न तो काला था, न ही इंडियन। वह उसे पहचानने की कोशिश करने लगा कि उसने हैलो क्यों कहा होगा। उस व्यक्ति ने बलदेव के मन की बात समझते हुए कहा-
''मेरा नाम डूडू है। मैं पैंतीस नंबर में रहता हूँ। तू ग्रांट वाले फ्लैट में आया है ना ?''
''नहीं डूडू, वहाँ मेरी गर्ल फ्रेंड मैरी रहती है।''
''उसका तो मुझे पता है, पर सभी कहते हैं कि तू ही रहता है।''
''नहीं डूडू, मेरा कुछ पता नहीं। पर तू क्यों फिक्र कर रहा है ?''
''क्योंकि मैं तेरा शुभचिंतक हूँ, तेरा भला सोचता हूँ। इस जगह तू नया है, मैं बहुत समय से रह रहा हूँ। अगर कोई ज़रूरत पड़े तो पैंतीस नंबर याद रखना।''
''शुक्रिया डूडू, जो भी तुझे हमदर्दी मेरे साथ है, उसके लिए शुक्रिया।''
''पाकिस्तानी है ?''
''नहीं, इंडियन।''
''मैंने तो यूँ ही मूंछें देख कर पूछ लिया... मैं भी इंडियन ही हूँ, पर मेरे बड़े बुजुर्ग़ वैस्ट इंडीज जा कर बस गए थे, अब वैस्ट इंडियन ही हूँ।''
बलदेव उसे बॉय-बॉय कह कर चल पड़ा। उसने पैंतीस नंबर एक बार फिर याद करवाया। बलदेव कार में बैठा डूडू के बारे में सोचने लगा कि उसने ऐसा क्यों कहा। शायद लोग उसके बारे में बातें करते हों। नये आए व्यक्ति के बारे में किया ही करते हैं। लोग सोचते होंगे कि मैं ग्रांट वाला फ्लैट हथियाना चाहता हूँ। अपनी ओर अजीब नज़रों से झांकते लोग तो उसने कई बार देखे थे। कोई उसे खतरा समझेगा, ऐसा उसने कभी नहीं सोचा था। उसने कार खड़ी की। बैग उठा कर फ्लैट की सीढ़ियाँ चढ़ने के लिए आगे बढ़ा। ग्राउंड फ्लोर वाले फ्लैट में हमेशा की तरह कुत्ते के भौंकने की आवाज़ आई। यहाँ एक स्कॉटिश परिवार रहता था। माँ और चार जवान बच्चे। दो लड़कियाँ और दो लड़के। कई बार उनसे हैलो-हैलो हो जाया करती थी। दरवाजा खुला होने के कारण कुत्ता बाहर की ओर दौड़ा आया। बलदेव की ओर झपटने ही लगा था कि बलदेव ने उसे डांटा और उंगली दिखाते हुए कहा-
''क्वाइट एंड सिट डाउन।''
कुत्ता पूंछ हिलाता हुआ बैठ गया। फिर उसने इशारा करते हुए कहा- ''गो इन साइड।''
कुत्ता अन्दर की ओर दौड़ गया। कुत्ते को काबू में करने का यह गुर उसे गैरथ डेवी ने सिखाया था। उसने कहा था, ''कुत्ता तुम्हें अजनबी समझ कर भौंकेगा, हुक्म मानेगा अपना समझ कर। कुत्ते को आर्डर दो, वह तुम्हें अपना नया मालिक समझ कर कहना मानेगा। कुत्ते के दो ही प्रमुख काम होते हैं, एक भौंकना और दूसरा कहना मानना।''
गैरथ की बातें सुन कर बलदेव कह उठा था-
''वाह गैरथ ! क्या साइंटेफिक उदाहरण दी है, बहुत सारी फिलॉसफी से भरी हुई। कुत्ता भले ही आदमी के भेस में ही क्यों न हो, उसके दो ही काम है- भौंकना और सुनना।''
वह गैरथ के विषय में सोच रहा था कि बूढ़ी बलिंडा का छोटा बेटा डगलस दरवाजे में आ खड़ा हुआ। वह भी कुत्ते को झिड़कता हुआ बोला-
''सॉरी डेव, यह खतरनाक नहीं है।''
''कोई बात नहीं डग्गी, खतरनाक भी हो तो कोई बात नहीं, कुत्तों को संभालना मुझे आता है।''
कह कर वह हँसा। डगलस उससे बातें करना चाहता था, पर बलदेव अलविदा कहते हुए सीढ़ियाँ चढ़ गया। वह सोच रहा था कि अब तक तो सारी एस्टेट ही उसका नाम जान गई होगी। इस कम्युनिटी का हिस्सा ही बन गया था वह हालांकि कई लोग उसे पसंद भी नहीं करते होंगे। उसे इस बात की खुशी थी कि मैरी के साथ उसकी ठीक ठाक निभ रही थी। इतने दिन हो गए थे एक साथ रहते, वे खुश थे। कितने दिन और खुश रहेंगे, इसका उसे पता नहीं था। फिर उसे चिंता सताने लगी कि अपना फ्लैट खरीदने के बारे में वह देर किए जा रहा था। उसे चाहिए था कि जल्दी ही कुछ करे।
उसने दरवाजा खोला। मैरी अभी तक लौटी नहीं थी। अवश्य कहीं बैठ गई होगी। अस्पताल का विजिटिंग टाइम आठ बजे तक का था। वह आठ बजे तक बैठने वाली नहीं थी और अब नौ बजने को थे। उसने बोतल, जूस और गिलास मेज पर रखे और मैरी का इंतज़ार करने लगा। मैरी की प्रतीक्षा करते हुए वह सोच रहा था कि उसे उसके साथ मोह हो गया था। उसके अन्दर मोह की भावना बहुत प्रबल थी। उसे गुरां के साथ कितना मोह था, फिर शैरन के साथ, फिर अपनी दोनों बेटियों के साथ। सिमरन ही थी जिससे उसका मोह नहीं हो सका था। भाइये के साथ भी उसका बहुत प्यार था। भाइया भी उसकी तरह बहुत खुल कर बात नहीं करता था। उसे पहले ताया ने दबाये रखा और फिर अजमेर ने। उसे अपने फैसले करने का अवसर ही नहीं मिला। यही हालत उसकी अपनी थी। भाइये की तरह उसमें भी कहीं आत्म-विश्वास की कमी रह गई होगी। उसे भाइया अपने आस पास महसूस होने लगा।
उसने उठ कर अपने लिए पैग बना लिया। मैरी जब आएगी, तब आएगी। वह क्यों ऐसे ही बैठा रहे। मैरी के साथ बैठ कर उसे शराब पीना अच्छा लगता था। मैरी के साथ वह बहुत सारी बातें खुल कर करता। वह जल्दी ही समझ गया था कि एक मुद्दत से ढकी हुई रूह को वह मैरी के सामने किसी भी हद तक नंगा कर सकता था। कभी कभी वह हैरान भी होने लगता कि जो अपने हैं, उनसे पर्दे रखने पड़ते हैं, पर बेगानों से कैसा पर्दा !
उसे फिर भाइया की याद आने लगी। उसे लग रहा था कि वह कहीं अनावश्यक रूप से भावुक न हो बैठे। भावुक होना उसे अच्छा नहीं लगता था।
वह फिर से मैरी के विषय में सोचने लगा कि कहाँ रह गई वह। एक बार तो दिल किया कि उठ कर नॉर्थ स्टार पब में ही देख आए, पर वह बैठा रहा।
उसे पता था कि मैरी अभी आ जाएगी। अपने कपड़े इस तरह उतार कर फेंकेगी मानो वे उसके लिए जंजीरें हों और आस पास इस तरह फेंकेगी मानो दुबारा उनकी ज़रूरत ही नहीं पडेग़ी। वैसे भी घर में वह अधिकांश समय अंडी में ही रहती। उसकी छातियाँ बहुत खूबसूरत थीं। बलदेव तारीफ करने लगता तो वह कहती-
''अभी तो मिच ने इन्हें चूसा है, टैंड ने भी शेप खराब की है, नहीं तो मेरी छातियों की सही शेप और सही जगह...।''
वह सोच ही रहा था कि वह आ गई। बलदेव ने मैरी की ओर गौर से देखा। उसका चेहरा उतरा हुआ था। वह नशे में थी। बलदेव ने उसकी तरफ देख कर मुस्कराने की कोशिश की और कहा -
''बहुत लेट हो गई ?''
''हाँ, पीने बैठ गई थी।''
कह कर वह कपड़े उतारने लगी जैसे वह प्राय: उतारा करती थी और फिर बलदेव के पास आ बैठी। बलदेव ने उसे पैग पकड़ाया और पूछा-
''आज का दिन कैसा रहा ?''
''ठीक था।'' उसने अपने पैग में से बड़ा सा घूंट भरा और एक ओर रख दिया। उसने बलदेव को चूमा और कहा-
''डेव, आय लव यू।''
''मी टू डार्लिंग।''
बलदेव ने कहा। मैरी उसकी कमीज के बटन खोलने लगी और बैड पर ले गई। उसके अंगों को सहलाते हुए उसने उसे कस कर आलिंगन में भर लिया और रोने लगी। बोली-
''डेव, ग्रांट मर गया है।'' और फिर उसे बेतहाशा चूमते हुए कहने लगी-
''कम ऑन माई लव ! कम ऑन !''
00
(क्रमश: जारी…)

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अनुरोध
“गवाक्ष” में उन सभी प्रवासी लेखकों/कवियों की समकालीन रचनाओं का स्वागत है जो अपने वतन हिंदुस्तान की मिट्टी से कोसों दूर बैठ अपने समय और समाज के यथार्थ को हिंदी अथवा पंजाबी भाषा में अपनी रचनाओं के माध्यम से रेखांकित कर रहे हैं। रचनाएं ‘कृतिदेव’ अथवा ‘शुषा’ फोन्ट में हों या फिर यूनीकोड में। रचना के साथ अपना परिचय, फोटो, पूरा पता, टेलीफोन नंबर और ई-मेल आई डी भी भेजें। रचनाएं ई-मेल से भेजने के लिए हमारा ई-मेल आई डी है- gavaaksh@gmail.com

शनिवार, 27 जून 2009

गवाक्ष –जून 2009



गवाक्ष” के माध्यम से हम हिन्दी ब्लॉग-प्रेमियों को हिन्दी/पंजाबी के उन प्रवासी लेखकों/कवियों की समकालीन रचनाओं से रू-ब-रू करवाने का प्रयास कर रहे हैं जो अपने वतन हिन्दुस्तान से कोसों दूर बैठकर अपने समय और समाज के यथार्थ को अपनी रचनाओं में रेखांकित कर रहे हैं। “गवाक्ष” के पिछ्ले तेरह अंकों में पंजाबी कवि विशाल (इटली) की कविताओं का हिन्दी अनुवाद, दिव्या माथुर (लंदन) की कहानी, अनिल जनविजय (मास्को) की कविताएं, न्यू जर्सी, यू.एस.ए. में रह रहीं देवी नागरानी की ग़ज़लें, लंदन निवासी कथाकार-कवि तेजेन्द्र शर्मा, रचना श्रीवास्तव, दिव्या माथुर की कविताएं, दुबई निवासी पूर्णिमा वर्मन की कविताएं, यू एस ए में रह रहीं हिन्दी कथाकार-कवयित्री इला प्रसाद, डेनमार्क निवासी कवि भगत धवन की कविताएं, डेनमार्क निवासी चाँद शुक्ला की ग़ज़लें, यू एस ए निवासी कवि वेद प्रकाश ‘वटुक’ तथा कवयित्री रेखा मैत्र की कविताएं, कनाडा अवस्थित पंजाबी कवयित्री तनदीप तमन्ना की कविताएं, यू के अवस्थित हिन्दी कवि-ग़ज़लकार प्राण शर्मा की ग़ज़लें, कैनेडा में अवस्थित पंजाबी कवि सुखिन्दर की कविताएं और पंजाबी कथाकार-उपन्यासकार हरजीत अटवाल के उपन्यास “सवारी” के हिंदी अनुवाद की चौदह किस्तें आपने पढ़ीं। “गवाक्ष” के जून 2009 अंक में प्रस्तुत हैं – टोरंटो, कैनेडा में अवस्थित पंजाबी कवयित्री सुरजीत की कविताएं तथा यू के निवासी पंजाबी कथाकार-उपन्यासकार हरजीत अटवाल के धारावाहिक पंजाबी उपन्यास “सवारी” की पन्द्रहवीं किस्त का हिंदी अनुवाद…


टोरंटो, कैनेडा से
पंजाबी कवयित्री सुरजीत की दो कविताएं
हिंदी अनुवाद : सुभाष नीरव


गुमशुदा

बहुत सरल लगता था
कभी
चुम्बकीय मुस्कराहट से
मौसमों में रंग भर लेना

सहज ही
पलट कर
इठलाती हवा का
हाथ थाम लेना

गुनगुने शब्दों का
जादू बिखेर
उठते तुफानों को
रोक लेना

और बड़ा सरल लगता था
ज़िन्दगी के पास बैठ
छोटी-छोटी बातें करना
कहकहे मार कर हँसना
शिकायतें करना
रूठना और
मान जाना…

बड़ा मुश्किल लगता है
अब
फलसफों के द्वंद में से
ज़िन्दगी के अर्थों को खोजना
पता नहीं क्यों
बड़ा मुश्किल लगता है…
00

दहलीज़

पहली उम्र के
वे अहसास
वे विश्वास
वे चेहरे
वे रिश्ते
अभी भी चल रहे हैं
मेरे साथ-साथ।

यादों के कुछ कंवल
अभी भी मन की झील में
तैर रहे हैं ज्यों के त्यों।

सुन्दर-सलौने सपने
अभी भी पलकों के नीचे
अंकुरित हो रहे हैं
उसी तरह।

तितलियों को पकड़ने की
उम्र के चाव
अभी भी मेरी हथेलियों पर
फुदक-फुदक कर नाच रहे हैं।
इन्द्र्धनुष के सातों रंग
अभी भी मेरी आँखों में
खिलखिलाकर हँस रहे हैं।

मेरे अन्दर की सरल-सी लड़की
अभी भी दो चुटियाँ करके
हाथ में किताबें थामे
कालेज में सखियों के संग
ज़िन्दगी के स्टेज पर
‘गिद्धा’ डालती है।

हैरान हूँ कि
मन के धरातल पर
कुछ भी नहीं बदलता
पर आहिस्ता-आहिस्ता
शीशे में अपना अक्स
बेपहचान हुआ जाता है।
00
(सुरजीत जी की उक्त दोनों कविताओं का हिन्दी अनुवाद तनदीप तमन्ना के पंजाबी ब्लॉग “आरसी” में छपी उनकी पंजाबी कविताओं से किया गया है।)

धारावाहिक पंजाबी उपन्यास(किस्त- 15)



सवारी
हरजीत अटवाल
हिंदी अनुवाद : सुभाष नीरव

॥ बीस ॥

सतनाम और मनजीत हाईबरी पहुँचे तो दुकान बन्द देख कर थोड़ा हैरान हो गए। सतनाम ने कहा-
''ये प्रेम चोपड़ा तो कहता था कि दुकान बंद नहीं करनी, कहीं साला टोनी भी पैट्रो न बन गया हो।''
मनजीत ने घंटी बजाई। गुरिंदर ने आकर दरवाजा खोला। सतनाम पूछने लगा-
''शॉप नहीं खोली ?''
''अभी टोनी नहीं आया। तू पहले ऊपर आ, तेरी खबर लेती हूँ।''
''जट्टिये, सुख तो है। हमें तो भाइये की मौत ने ही मारा हुआ है, ऊपर से तू डराने लगी है।''
ऊपर अजमेर शराबी हुआ बैठा था। गुरिंदर गुस्से में भरी कहने लगी-
''देख, इनको तूने पिलाई है, सवेरे-सवेरे शुरू कर दी। कोई शर्म है कि नहीं ? भाइये का जिसे भी पता चलेगा, दौड़ा चला आएगा तो बताओ तुम्हारी क्या इज्जत रह जाएगी ?''
सतनाम हँसने लगा। उसे हँसता देख मनजीत भी गुस्से में आ गई और बोली-
''बेशरमी की भी कोई हद होती है !''
सतनाम गंभीर होकर बोला-
''सीता और गीता, मेरी बात सुनो, तुम जानती हो कि गोरे मरने पर शराब पीते हैं।''
''पर हम तो गोरे नहीं।''
''पैट्रो एंड पार्टी ने मजबूर कर दिया, चलो सॉरी कर दो।''
''देख तो, सॉरी भी ऐसे मांगता है जैसे चाय मांग रहा हो।”
गुरिंदर ने हाथ मारते हुए कहा। सतनाम फिर हँस पड़ा। मनजीत भी हँसी और पीछे से गुरिंदर भी। अजमेर इतना शराबी हुआ पड़ा था कि उससे बोला तक नहीं जा रहा था। गुरिंदर ने कहा-
''देखो अजीब बात ! बाप मरा पड़ा है, अभी तक इस बारे में किसी को फोन तक नहीं किया। यहाँ पुत्त नशे में धुत्त है।''
''ला फोन, इंडिया में तो कर दें। जट्टिये, तू घबरा मत।''
''वहाँ मैंने कर दिया है, बहन को भी और शिन्दे को भी।''
''जट्टिये, एक बात सोच रहा हूँ कि क्यों न शिन्दे को भाइये के फ्यूनरल पर यहाँ बुला लें। इस बहाने उसका इधर आना भी हो जाएगा।''
''पर उसके पास पासपोर्ट भी होगा ?''
''पासपोर्ट तो सारा इंडिया ही बनवा कर जेब में लिए घूमता है, जैसे पासपोर्ट न हो, शोले फिल्म की टिकटें हों।''
तभी घंटी बजी। गुरिंदर दौड़कर सीढ़ियाँ उतरी। टोनी था। किसी कारण से लेट हो गया था। उसे सोहन सिंह के निधन का पता चला तो वह रोने लगा और रोते-रोते नीचे फर्श पर ही बैठ गया। गुरिंदर उसे हौसला देते हुए उठाने लगी। फिर उसके साथ लगकर दुकान खुलवाई। टोनी बोला-
''सिस्टर, मेरा काम करने को मन नहीं कर रहा। इतना अच्छा बन्दा, मेरा तो जैसे बाप था, मुझ से तो खड़ा ही नहीं हुआ जा रहा, मैं घर को जा रहा हूँ। शाम को आ जाऊँगा। ऐंडी कहाँ है?''
''वह बाहर गया है।'' गुरिंदर को भय था कि टोनी अपना ही रोना लेकर बैठ जाएगा।
''उसे बता देना, मैं चारेक बजे आ जाऊँगा।''
टोनी चला गया। टोनी ने काम पर तो शाम को ही आना होता था। उसे सुबह अजमेर ने फोन करके बुला लिया था लेकिन फोन पर सोहन सिंह के बारे में कुछ नहीं बताया था कि कहीं पैट्रो की तरह दुकान पर काला कपड़ा ही न डलवा दे। उसने सोचा था, टोनी यहाँ आएगा तो उसे समझा देगा। पर वही हो गया।
सतनाम अजमेर की शराब उतारने के लिए नींबू-पानी पिलाने लगा। मनजीत को कहकर लस्सी बनवाई। जब तक गुरिंदर भी आ गई। वह भुनभुनाती हुई बोली-
''घरवालों से ज्यादा तो बाहर वालों को दुख है। टोनी दहाड़ें मारता हुआ लौट गया है कि उससे खड़ा नहीं हुआ जाता।''
''पाखंड करता है साला।''
''तुझे पाखंड ही दिखाई देता है।”
''जट्टिये, बता भला, भाइया इसके लिए गड्डा और बैलों की जोड़ी छोड़ गया है जिन्हें देखकर वो रोए जाता है।''
गुरिंदर ने गुस्से में कोई उत्तर नहीं दिया और दूसरे कमरे में चली गई।
फिर उसने मनजीत से कहा-
''बलदेव को भी बुला लेते तो वो भी इनके ड्रामे में शामिल हो जाता।''
''फोन नहीं किया ?''
''मिला नहीं। पता नहीं कहाँ है। अजीब टब्बर है। कई बार तो इस तरह बिहेव करने लग पड़ेंगे, मानो एक दूजे को जानते तक न हों।''
अजमेर का नशा उतरने में तीन घंटे लग गए। फिर भी पूरी तरह ठीक नहीं था। मुँह धोया, सिर में पानी डाला, खट्टी चीजें खाईं। फिर उन्होंने भाइये की मौत की खबर लोगों तक पहुँचानी आरंभ कर दी। शिन्दे को बुलाने की सलाह भी बन गई। सैटियों को एक तरफ करके चादरें बिछा दी गईं। मनजीत कहीं से गुरबाणी की टेपें ले आई और लगा दीं। टेप सुनते ही सतनाम बोला-
''यह कामरेड परगट सिंह का घर है, यह टेप ठीक नहीं।''
''यह घर हमारा भी है, हमें पसंद है और ठीक भी लगती है।''
मनजीत ने कहा। सतनाम कुछ न बोल सका। गुरिंदर आँखें फाड़कर उसकी तरफ देखने लगी कि दे जवाब अब। सतनाम ने धीमे से कहा-
''यह अब मैडम एक्स बनी घूमती है।''
जब सभी काम हो गए तो वे बलदेव को खोजने लगे, पर उसका किसी को पता हो तो वह मिले। शोन के घर से वह जा चुका था। वे बैठते-उठते यह बात करते रहते कि बलदेव को कहाँ ढूँढ़ें। हालांकि फ्यूनरल में अभी कई दिन लग सकते थे क्योंकि शिन्दे के आने पर ही तारीख पक्की करनी थी। फिर भी बलदेव का उनमें शामिल होना ज़रूरी था। अफसोस करने के लिए आने वाले लोग क्या कहेंगे। लोग तो आने भी लग पड़े थे। मिडलैंड से कारें भर कर आ बैठते। सतनाम कहता कि इनके लिए तो यह अफसोस की घड़ी जैसे मुश्किल से नसीब हुई हो।
तीसरे दिन बलदेव का फोन आया। अजमेर ने ही उठाया और झिड़कते हुए कहने लगा-
''कहाँ है तू ? तुझे मालूम भी है कि इधर क्या हो गया है?''
''क्या हुआ ? मैंने सतनाम की दुकान पर काला कपड़ा टंगा हुआ अभी अभी देखा है।''
''भाइया पूरा हो गया, जल्दी आ जा।''
बलदेव एकदम ही चल पड़ा। मैरी अस्पताल गई हुई थी। उसे आठ बजे के करीब लौटना था। उसने मैरी के लिए नोट लिखकर छोड़ दिया कि वह किसी ज़रूरी काम से जा रहा है, शायद लौटने में देर हो जाए। हाईबरी आया तो सभी वहीं पर थे। सतनाम, मनजीत और बच्चे भी। सतनाम उसे देखते ही बोला-
''क्यों भई ऐंनक बाबू, तुझे किसी की फिक्र है कि नहीं ?... इधर दिल एक मंदिर हुआ पड़ा है और तू पता नहीं कहाँ ईद का चाँद बना घूम रहा है।''
''ईद का चाँद बनने लायक होता तो वहीं क्यों छोड़ती।''
अजमेर ने ताना मारा। आमतौर पर वह ऐसी बात करता नहीं था, पर वह बलदेव से बहुत खीझा पड़ा था और इस ताने के जरिये उसने सारी खीझ निकाल ली। बलदेव कुछ न बोला, पर उसे बात चुभी बहुत। सतनाम की बात का उसे कभी दुख नहीं लगता था। अजमेर की यह बात उसे दिल से कहीं हुई प्रतीत हुई थी। उसने कहा -
''इसमें घबराने वाली कौन सी बात है... मैं काम पर जाने लग पड़ा हूँ इसलिए चक्कर नहीं लगा।''
फिर वह भाइये के अन्तिम समय के बारे में पूछने लगा। कुछ दूसरी भी बातें हुई। फिर अजमेर ने कहा-
''फ्यूनरल पर पन्द्रह सौ खर्च हो रहा है, अपने हिस्से का पाँच सौ निकाल दे।''
''मेरे पास तो पाँच सौ हैं नहीं।''
''तू तो कहता है कि मैं काम पर जाने लगा हूँ।''
''हाँ, वेजज़ मंथली मिलती है, और मेरे सिर पर कर्ज भी बहुत हुआ पड़ा है।''
''सीधे सीधे कह कि तू हिस्सा नहीं देगा। तू क्या समझता है कि वह अकेले हमारा ही बाप था।''
''बात तो बेशक साझा था पर वह कौन-सा कंगाल था, पेंशन...।''
उसने बात बीत में ही छोड़ दी। कहने को तो वह कहना चाहता था कि वह तो दुकान में भी काम करता था। अजमेर पेंशन की बात सुन कर ही बौखला उठा और कहने लगा-
''तुम्हें उसकी पेंशन बहुत चुभती है। कितनी पेंशन लेता था वह भला... किसी ने कभी बूढ़े का हाल आकर तो पूछा नहीं, कोई दो रातें तो उसे अपने पास रख नहीं सका, बातें करते हैं पेंशन की...।''
सतनाम बलदेव की बात पर दिल से खुश था लेकिन जब उसने बात बिगड़ती देखी तो अजमेर को शान्त करने के लिए बोला-
''भाई, इसके कहने के पीछे कोई बैड फीलिंग नहीं... यह तो यूँ ही ज़रा हाथ तंग होने के कारण कह रहा है... अब सारे काम भी तो तू बाप की जगह पर करता है, सारे काम काज...अब शिन्दे ने आना है तो इसकी भी तुझे ही फिक्र है...।''
अजमेर कुछ ठंडा पड़ा। वह थोड़ी नरम आवाज में सतनाम से बोला-
''तू इससे पूछ जरा। भाइये को लेकर इसे कभी बाप जैसी फीलिंग हुई ? पूछ तो जरा...।''
''इसका जवाब भाई मैं देता हूँ। असल में इसने तो बाप का प्यार तेरे में ही देखा है, छोटा-सा था जब भाइया इधर आ गया। वैसे भी भाइया सीधा सा बन्दा था, अपने अस्तित्व को पहचानता ही नहीं था कभी, एक्सट्रा की तरह एक ओर खड़े रह कर ही खुश था। हम तुझमें ही बाप को देखते रहे हैं। और फिर माँ के चले जाने के बाद भी इसका स्वभाव कुछ बदल गया, अभी बाल कलाकार के रूप में था उस समय यह।''
सतनाम की बातों से अजमेर की आँखें भर आईं। गुरिंदर और मनजीत भी उनके पास आकर खड़ी हो गई थीं। वे भी उदास हो उठी थीं। सतनाम ने सब की ओर देखकर कहा-
''मुझे लगता है, मैं गलती से 'मैं चुप रहूँगी' का डायलॉग बोल गया हूँ।''
अजमेर ने सैटी पर से उठते हुए कहा-
''अगर किसी ने हिस्सा नहीं डालना, तो तुम्हारी मर्जी, मुझे तो फ्यूनरल अच्छी तरह करना है। गाजे-बाजे के साथ। गाँव वाले क्या कहेंगे !''
अजमेर के उठ खड़े को अर्थ था कि अब पब में चलें। गुरिंदर ने खीझते हुए कहा-
''नीचे, दुकान में टोनी अकेला है, अगर तुम्हें ज्यादा ही हुड़क उठ रही है तो शॉप में कुछ नहीं है क्या ?''
''जट्टी तो भाई अब ध्यान चन्द की तरह ज्यादा ही गोल मारे जा रही है।''
कहकर सतनाम अजमेर के संग नीचे उतरने लगा। बलदेव ने शैरन को अपने पास बुला कर गोदी में बिठा लिया। गुरां भी उसके पास ही बैठ गई और मनजीत भी। मनजीत कहने लगी-
''भाजी, तुम्हें शैरन सबसे अच्छी लगती है। कभी हमारे बच्चे नहीं उठाये। कभी हरविंदर को पास नहीं बुलाया।''
बलदेव को लगा मानो उसकी चोरी पकड़ी गई हो। उसने अवसर को संभालते हुए कहा-
''असल में बात यह है कि मैं बच्चों के साथ बात नहीं कर पाता। ये शैरन ज़रा बड़ी है और मेरी बात सुन लेती है।''
गुरिंदर ने बात बदलते हुए कहा-
''सुन बलदेव, अब तू अपनी भाजी की मदद करा दे शॉप में, अफसोस करने वाले आ जाते हैं तो टोनी को अकेला छोड़ना पड़ता है। रात में रश भी हो जाता है।''
''गुरां, मैं वीक एंड पर ही आ सकता हूँ, पाँच बजे तो काम छोड़ता हूँ।''
''काम पर यहीं से चला जाया कर और रात में ही हैल्प करा दिया कर।''
''तू फिक्र न कर गुरां, मैं कोशिश करता हूँ।''
कहते हुए बलदेव ने शैरन को अपनी बांहों में कसा और उठ खड़ा हुआ। मनजीत के पास होने के कारण गुरां ने उसे रुकने के लिए भी नहीं कहा।
बलदेव जाने के लिए नीचे शॉप में आया तो सतनाम और अजमेर बोतल खोले बैठे थे। न-न करते भी उन्होंने बलदेव के लिए पैग बना दिया और सतनाम कहने लगा-
''बात सुन ओए, कोई सहेली भी है कि फांग (अकेला) ही है।''
''फांग ही समझ ले।''
कहकर उसने अजमेर की तरफ देखा। सतनाम ने फिर कहा-
''अपना मगील है न, बहुत बढ़िया शै है, बात करवाऊँ।''
00
(क्रमश: जारी…)

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