शुक्रवार, 26 फ़रवरी 2010

गवाक्ष – फरवरी 2010


“गवाक्ष” ब्लॉग के माध्यम से हम हिन्दी ब्लॉग-प्रेमियों को हिन्दी/पंजाबी के उन प्रवासी लेखकों/कवियों की समकालीन रचनाओं से रू-ब-रू करवाने का प्रयास करते आ रहे हैं जो अपने वतन हिन्दुस्तान से कोसों दूर बैठकर अपने समय और समाज के यथार्थ को अपनी रचनाओं में रेखांकित कर रहे हैं। “गवाक्ष” में अब तक पंजाबी कवि विशाल (इटली) की कविताओं का हिन्दी अनुवाद, दिव्या माथुर (लंदन) की कहानी, अनिल जनविजय (मास्को) की कविताएं, न्यू जर्सी, यू.एस.ए. में रह रहीं देवी नागरानी की ग़ज़लें, लंदन निवासी कथाकार-कवि तेजेन्द्र शर्मा, रचना श्रीवास्तव, दिव्या माथुर की कविताएं, दुबई निवासी पूर्णिमा वर्मन की कविताएं, यू एस ए में रह रहीं हिन्दी कथाकार-कवयित्री इला प्रसाद, डेनमार्क निवासी कवि भगत धवन की कविताएँ और चाँद शुक्ला की ग़ज़लें, यू एस ए निवासी कवि वेद प्रकाश ‘वटुक’ तथा कवयित्री रेखा मैत्र की कविताएं, कनाडा अवस्थित पंजाबी कवयित्री तनदीप तमन्ना की कविताएं, यू के अवस्थित हिन्दी कवि-ग़ज़लकार प्राण शर्मा की ग़ज़लें, कैनेडा में अवस्थित पंजाबी कवि सुखिन्दर की कविताएं, कनाडा निवासी पंजाबी कवयित्री सुरजीत, अमेरिका अवस्थित डॉ सुधा धींगरा, कनाडा में अवस्थित हिंदी- पंजाबी कथाकार - कवयित्री मिन्नी ग्रेवाल की कविताएं, न्यूजीलैंड में रह रहे पंजाबी कवि बलविंदर चहल की कविता, कैनेडा में अवस्थित पंजाबी लेखिका बलबीर कौर संघेड़ा की कविताएं, इंग्लैंड से शैल अग्रवाल की पाँच कविताएं, सिंगापुर से श्रद्धा जैन की ग़ज़लें और पंजाबी कथाकार-उपन्यासकार हरजीत अटवाल के उपन्यास “सवारी” के हिंदी अनुवाद की इकीसवीं किस्त आपने पढ़ीं। “गवाक्ष” के फरवरी 2010 अंक में प्रस्तुत हैं – इटली में रह रहे पंजाबी कवि विशाल की नई कविताओं का हिन्दी अनुवाद तथा पंजाबी कथाकार-उपन्यासकार हरजीत अटवाल के धारावाहिक पंजाबी उपन्यास “सवारी” की बाईसवीं किस्त का हिंदी अनुवाद…
होली 2010 की शुभकामनाएं !

इटली से
विशाल की तीन पंजाबी कविताएँ
हिंदी रूपांतर : सुभाष नीरव
कविताओं के संग चित्र : रुचिरा

एक रिश्ता

अगर उन्होंने लौटना होता
तो इस तरह न जाते
जा कर सुख-सन्देशा भेजते
लौट आने का कोई बहाना घड़ते
ज़रूर भीतर की बात कुछ और होगी
नहीं तो किसके अन्दर
घरों का मोह नहीं जागता।

जाते समय, न आँख उठाकर देखा
न चेहरे पर कोई शिकन आभा
और न ही जाने की कोई उतावली
मोड़ मुड़ते हुए मुड़कर नहीं देखा
नहीं तो एक रिश्ता तो होता ही है
अन्दर-बाहर चलता हिलोरा देता
जीने की चाहत भरता, आलिंगन बनता
पर वे तो सब कुछ तोड़ कर
संयम-सलीकों से भरे
रिश्तों से किनारा कर चलते बनें
तनिक भी ज़ाहिर नहीं किया
हलचल नहीं कोई
नहीं तो, किसी एक को तो
निहारता ही है आदमी
यह किस तरह का जाना था उनका...

वैसे जाने से पहले
उनकी कई बातों की चर्चा भी थी
तितलियों के परों जैसे शोख रंग
उनकी आँखों में दिखाई देते
गरम हो जातीं महफ़िलें उनके साथ
बेपरवाह बनजारे, अस्थिर से
जिधर से भी गुजरते, हवाएँ नाच उठतीं।

पर पता नहीं अचानक क्या हो गया
सब कुछ फिसल सा गया
छिपा गए वे सारी बातें
गहरी-सी चुप
गहरी-सी रात का पहरा हो गया
धरे-धराये रह गए सारे चाव
वे अचानक चले गए।

क्या मालूम
ऐसा अधिक मोह के कारण ही हुआ हो
नहीं तो किसके अन्दर
घरों के लिए मोह नहीं जागता
लौट आने का
कोई बहाना तो होता ही है

क्या पता, क्या हो अन्दर की बात ?
0

रहस्य

मैं तो बहुत पहले आ गया था
तेरा सपना
अपनी आँखों में धर कर लाया था
तुझसे ही पहचाना नहीं गया
न मैं और न ही तेरा अपना सपना।

तू पूछ बैठी-
कौन हो ऋषि ?
मैंने अपनी आँखें तेरी हथेलियों पर रख दीं
कि तू अपना सपना चुन ले
पर तू खोल कर बैठ गई
अपने फलसफों की अधूरी यात्रा
अपनी डायरी के उखड़े हुए पन्नों को तरतीब देती
'कौन तू', 'कौन मैं' के शोर में उलझी
न हुंकारा भरा
न ही शोर खत्म हुआ

पहचान के मेलों में एक बार फिर गुम हो गए
वो तेरे मेरे दरम्यान कैसी घड़ी थी
और मिले या और बिछुड़ गए
ये रहस्य और गहरे हो गए।
0
तेरा अपूर्ण

कई जन्मों से
तेरा नाम जप रहा हूँ
पर हर बार तू अजप हो गई
मेरी महायात्रा
मैं फिर आया हूँ
तू एक श्राप और दे दे
मेरी कोई भी सतर पूरी न हो
मेरी यात्रा टूट जाए अधबीच में
मेरा कभी भी सृजन न हो
कुछ गूंध ही इस तरह मेरे मिट्टी को
कि कोई मूरत न बने
कोई बहाना घड़
अपने हाथों से गिराने का
मैं आधा-अधूरा
कभी भी न होऊँ पूरा
मैं अधूरा, तेरा अपूर्ण
तुझ अजप को जपता
तिड़क जाए मेरी यात्रा।
0
पंजाबी के बहु चर्चित कवि। कविता की अनेक पुस्तकें प्रकाशित। पिछ्ले कई वर्षों से इटली मे।

सम्पर्क :
PZA, MATTEOTTI-34
46020-PEGOGNAGA(MN)
ITALY
मोबाइल नं0 : 0039-3495172262, 0039-3280516081
ई मेल : vishal_beas@yahoo.com

धारावाहिक पंजाबी उपन्यास(किस्त- 22)


सवारी
हरजीत अटवाल
हिंदी अनुवाद : सुभाष नीरव
चित्र : रुचिरा


॥ सत्ताइस ॥

सुबह उठते ही बलदेव ने रोज़ की तरह पर्दे खींचे। उसने देखा कि बर्फ़ पड़ी हुई थी। उसका मन खिल उठा। बहुत वर्षों बाद बर्फ़ देखने को मिली थी। टेलीविजन वाले कहते थे कि लंदन में बर्फ़ न पड़ने का कारण 'ग्लोबल वार्मिंग' है। इस धरती नामक प्लैनट का मौसम गरम हो रहा है। गैसों का इतना धुआं बन बनकर आसमान की ओर उड़ता है कि आसमान में छेद हो रहे हैं। सूरज की गरमी ओजोन लेअर को चीरती हुई आसानी से धरती पर पहुँचने लगी है। पर आज इन सभी दावों को झुठलाती बर्फ़ अपनी सफ़ेदी बिखेरने आ पहुँची थी। डार्टमाउथ हाउस ऊँची जगह पर था और उसका यह फ्लैट भी तीसरी मंजिल पर था। खिड़की में से दूर तक देखा जा सकता था। बर्फ़ अभी भी पड़ रही थी। रूई के फाहे कभी चिंदी-चिंदी होकर गिरते तो कभी सघन हो जाते। एस्टेट का पॉर्क बर्फ़ से भरा हुआ था। कारें बर्फ़ के नीचे छिपी हुई थीं। घरों की छतों ने सफ़ेद लिहाफ ओढ़ रखे थे। दरख्तों को जैसे सफ़ेद फूल लगे हों।
वह वहाँ से हट कर फ्लैट की पिछली खिड़की में जा खड़ा हुआ। यहाँ से दूसरी खिड़की जैसा नज़ारा तो नहीं था पर चारों ओर बर्फ़ ही बर्फ़ थी, बर्फ़ के सिवा कुछ नहीं दिखता था। टफनल रोड को भी बर्फ़ ने इस तरह ढक रखा था मानो यह सड़क न होकर सफ़ेद रंग की नहर हो। कभी-कभी कोई कार गुजरती थी। सफेद रंग में कालिमा भर जाती, पर शीघ्र ही रूई के नये गोले कालिमा को मिटा देते।
बलदेव का मन हुआ कि वह नीचे जाए और बर्फ़ की गेंदें बना-बना कर खेले। फिर उसने सोचा कि गुरां करीब हो तो उसके साथ या शैरन के साथ खेलने लगे। उसे अनैबल और शूगर भी याद आने लगीं। इतवार का दिन होने के कारण वे तो अभी सो ही रही होंगी। एक पल के लिए उसके मन में ख़याल आया कि अब उन्हें भी मिलना चाहिए। बहुत समय हो गया था। गैप बड़ा होता जा रहा था। फिर सोचने लगा कि रहने का कोई सही ठिकाना हो तभी सोच सकेगा।
फिर उसे गैरथ डेवी का ख़याल आया। ऐसे मौसम में वह ज़रूर किसी तरफ़ फोटोग्राफी करने निकल जाएगा। फिर वह फोटो किसी लोकल अख़बार को देकर कुछ पैसे प्राप्त कर लेगा। कहने को तो वह लोकल अख़बार का फोटोग्राफर था, पर खर्च के मामले में वह हमेशा तंगहाल ही रहता। एक फोटो के बदले में उसे अधिक कुछ न मिलता। बलदेव सोच रहा था कि आज की खिंची फोटो ज़रूर मंहगी बिकेगी। उसका दिल हुआ कि क्यों न गैरथ को मिल आए। उसका पुराना मित्र था। उन दिनों का जब वह इंडिया से आया ही था और फरन-पॉर्क में रहा करता था। उसने घड़ी देखी। अभी आठ नहीं बजे थे। वह तैयार होने लगा।
गैरथ को वह अधिक नहीं मिला करता था। जब कभी उस तरफ जाना होता, तभी जाता था। अब जब वह टफनल पॉर्क आया था, उसकी तरफ़ नहीं गया था। उस दिन सोहन सिंह के फ्युनरल पर गैरथ आया था पर खास बातें नहीं हो सकी थीं। वह तो उससे उसकी बिल्ली टैग - लिली का हालचाल भी नहीं पूछ सका था। इस बिल्ली के साथ अनैबल और शूगर की कितने ही फोटो थे। गैरथ ने बलदेव की सिमरन के साथ भी फोटो खींची थीं। सिमरन से अलग होकर भी वह गैरथ के फ्लैट में जा बैठता। अपना गम हल्का करने के लिए भी चला जाता। यह गैरथ ही था जिसने उसे कुत्ते को काबू में रखने का गुर भी सिखाया था।
गैरथ को कुत्तों के साथ इतना प्यार था कि जब उसका अपनी पत्नी सिलविया से मुकदमा चल रहा था तो गैरथ अपने कुत्ते टाईगर के बदले अपने घर आदि छोड़ने तक के लिए तैयार था। सिलविया भी ऐसी निकली कि टाईगर गैरथ को नहीं दिया। गैरथ के पास उस वक्त एक कमरे का स्टुडिओ फ्लैट ही हुआ करता था और कोर्ट ने कुत्ते का हक उसे नहीं दिया था। उसे सिर्फ़ इतनी इजाज़त मिली थी कि वह सप्ताह में केवल एक घंटे के लिए जाकर कुत्ते से खेल सकता था। इस घटना से मायूस होकर उसने कुत्ते को तो क्या, अपने तीन बच्चों को भी कभी जाकर नहीं देखा था, घर में से भी कोई हिस्सा नहीं लिया था।
तैयार होता हुआ बलदेव सोच रहा था कि पिछले कुछ दिनों से गैरथ की याद उसे अक्सर आ रही थी, इसका क्या कारण हो सकता था। फिर उसे ख़याल आया कि गैरथ उसका इमरजेंसी का ठिकाना था। यदि कहीं दूसरी जगह रात बिताने का मन न हो या कोई इंतज़ाम न हो तो वह गैरथ के फ्लैट में आ सकता था। यह सोचता हुआ वह जल्दी-जल्दी तैयार होने लगा।
वह फ्लैट से बाहर निकला तो बर्फ़ पड़नी बन्द हो गई थी लेकिन ठंडी शीत लहर चल पड़ी थी जिसका अर्थ था कि यह बर्फ़ अब जम जाएगी। शीघ्र पिघलने वाली नहीं। इससे फिसलने का खतरा भी होगा। उसने इसी कारण ऐसे ट्रेनर्ज पहन लिए थे कि अगर जमी हुई बर्फ़ में चलना पड़ा तो आसानी रहेगी। कपड़े भी भारी ही पहने थे। असल में उसकी मंशा हाईगेट के पॉर्क में जाकर गैरथ के साथ मिलकर फोटोग्राफी करने की थी। फोटोग्राफी का उसे गैरथ जितना तो नहीं पर थोड़ा-बहुत शौक था।
सीढ़ियाँ उतरता हुआ वह सोचने लगा कि इतनी ठंड में कहीं कार की बैटरी ही डाउन न हो गई हो। कार स्टार्ट भी होगी या नहीं। एस्टेट के पॉर्क में पड़ी बर्फ़ पर कदमों का एक भी निशान नहीं था। मानो सभी अभी तक सो ही रहे थे। कोई उठकर किसी तरफ़ गया ही नहीं था। वह धीमे कदमों से चलकर कार तक पहुँचा। बर्फ़ इतनी थी कि कार को पहचानना कठिन हो रहा था। बर्फ़ हटाता वह कार के दरवाजे तक बमुश्किल पहुँचा। बड़ी कठिनाई से दरवाजा खोला। जैसे तैसे होकर कार में बैठ गया। चाबी डालकर घुमाई। इग्निशन ठीक ऑन हो गया। सैल्फ़ मारी तो इंजन नहीं घूमा। फिर कोशिश की। पहले से ज्यादा हिलजुल हुई। धीरे से उसने कार स्टार्ट कर ही ली। अब मसला था, कार को यहाँ से निकालकर मेन रोड पर ले जाने का। एक बार तो उसका दिल हुआ कि लौट कर बिस्तर में जा घुसे। फिर सोचने लगा कि तैयार होने में इतना समय लगाया था, अब चक्कर लगा कर तो देखना ही चाहिए। बर्फ़ के ऊपर कार चलाने का भी एक अलग ही मजा था। उसने धीरे धीरे कार खिसकाई। स्लिपरी से बचता-बचाता बाहर टफनल रोड पर ले आया। बाहर ट्रैफिक चल पड़ने के कारण बर्फ़ कीचड़ बन गई थी और कारों के लिए आसानी हो गई थी। और फिर, कौंसल वाली लॉरी नमक का छिड़काव भी कर गई थी। आगे जंक्शन रोड पर भी ट्रैफिक ठीक चल रहा था। होर्नज़ी रोड को वह आराम से क्रॉस कर गया, पर आगे ट्रैफिक का एरिया न होने के कारण फिर बर्फ़ ही बर्फ़ मिली। सड़क की चढ़ाई के कारण कार स्लिप भी होने लगी। जिस रोड पर गैरथ के फ्लैट वाला ब्लॉक था, वहाँ तक सड़क और भी ज्यादा खराब थी। उसे लगता था कि उसकी कार अभी आस पास खड़ी कारों में बजी कि बजी। बहुत ही कठिनाई से वह ब्लॉक के गेट के आगे पहुँचा।
उसने गैरथ के फ्लैट की घंटी बजाई। ऊपर से कोई उत्तर न आया। सिक्युरिटी गेट लगा होने के कारण वह ब्लॉक के गेट के अन्दर नहीं जा सकता था। अन्दर से ही फ्लैट का मालिक गेट खोलता, तभी जाना संभव हो सकता था। वह कितनी ही देर तक घंटी बजाता रहा। वह सोच रहा था कि गैरथ इतनी देर तक तो सोने वाला नहीं है और इतनी जल्दी उठकर बाहर फोटोग्राफी करने जाने वाला भी नहीं। वह काफी समय खराब करके वापस कार में आकर बैठ गया। कार स्टार्ट करके आगे बढ़ाने लगा तो देखा, सामने से गैरथ चला आ रहा था। सिर पर वही टोप, वही लम्बी दाढ़ी और लम्बा कोट पहने बर्फ़ को पांवों तले कुचलता, छोटे-छोटे डग भरता चला आ रहा था। बलदेव को देखकर वह दूर से ही हँसा और ऊँची आवाज़ में कहने लगा-
''यू बगर ! इतनी ठंड में तू किधर ?''
''मैंने सोचा, देखकर आऊँ, कहीं ठंड में जम न गया हो।''
''डेव, यह ठंड मुझे नहीं जमा सकती।''
बात करता वह उसके नज़दीक पहुँच गया और गर्मजोशी से हाथ मिलाया और बोला-
''तू अपने बारे में बता, तेरे साथ यह ठंड कैसा बर्ताव कर रही है।''
''गैरथ, तुझे तो मालूम ही है, अकेले मर्दों को ठंड कितना कुछ याद करवाने लगती है।''
''तू अभी तक अकेला ही है ?''
कह कर उसने बलदवे को संग आने का इशारा भी कर दिया। बलदेव ने कार लॉक की और उसके पीछे-पीछे चल पड़ा। गैरथ ने अपना सवाल फिर दोहराया तो बलदेव ने कहा-
''ऐसा ही समझ ले।''
''डेव, ये तू अपने संग बहुत ज्यादती कर रहा है। तू अभी नौजवान है, सुन्दर है, तू कम से कम अपने हिस्से की औरतें तो संभाल।''
गैरथ की फिलॉसफी थी कि हर मर्द के हिस्से में एक सौ औरतें होती हैं जिन्हें उसे सारी उम्र भोगना होता है। हर मर्द को अपना हिस्सा ज़रूर लेना चाहिए।
गैरथ ने अपना फ्लैट खोला। एक बदबू का भभका बलदेव के नाक में चढ़ गया। बलदेव को पता था कि यह उसकी बिल्ली की बदबू थी। वैसे फ्लैट अन्दर से गरमाहट से भरा था। कुछ देर बाद बदबू ठीक हो गई। गैरथ ने पूछा-
''क्या पियेगा ? कॉफी या फिर कुछ ठंडा ?''
''ठंडे में क्या है ?''
''बियर मैंने खुद बनाई हुई है। वाइन भी तैयार होने को है। वैसे मेरे पास कुछ ब्रांडी भी है और व्हिस्की भी, जो कहे...।''
''ब्रांडी ले आ।''
''तू ब्रांडी पी और मैं व्हिस्की पीता हूँ।''
उसने मैले से गिलासों में पैग बनाए। पैग क्या बनाए, सारी व्हिस्की एक गिलास में डाल ली और ब्रांडी दूसरे गिलास में। दो-दो गिलासों का पोज होगा। वे नीट ही पी लेंगे। बलदेव ने घूंट भर कर पूछा-
''अपनी लव लाइफ के बारे में बता।''
''हैज़ल है, कामचलाऊ सी। पर है बहुत मूडी। तब से तो बहुत ही मूडी हो गई है जब से मेनोपॉज आरंभ हुआ। पिछले हफ्ते उसका पचासवां बर्थ डे था, बहुत रोई कि मैं बूढ़ी हो गई हूँ।''
इतने में बिल्ली ने बलदेव की गोदी में छलांग लगाई। उसे बहुत घिन्न सी आई। उसने आहिस्ता से उसे उठाकर एक तरफ बिठा दिया। उसने बाहर झांका तो बर्फ़ फिर से पड़नी शुरू हो गई थी। बलदेव ने पूछा-
''गैरथ, बस एक ही कहानी है ?''
''इस उम्र में एक कहानी भी बहुत है। वैसे एक और भी है, पर वह लड़की अभी यंग है। नई-नई अफ्रीका से आई है। मेरे में बहुत दिलचस्पी लेती है। बहुत प्यारी चीज़ है, जवान, तरोताज़ा !''
''कितनी उम्र होगी उसकी ?''
''अट्ठारह साल की।''
''गैरथ इतनी जवान लड़की तेरे साथ ?''
''डेव, तू शायद नहीं जानता, काली लड़कियाँ गोरे रंग पर ही मरती है। वे उम्र नहीं देखा करतीं।''
कहते हुए गैरथ हँसने लगा। बलदेव ने कहा-
''गैरथ, किसी काले को पता चला तो बात उलटी भी पड़ सकती है।''
''यह खतरा तो है।''
वह फिर हँसा और साथ ही बलदेव भी। बाहर मौसम की ओर देखता गैरथ पूछने लगा-
''इतने खराब मौसम में तू किस मार में घूम रहा है ?''
''मैं सोच रहा था कि हाईगेट चलकर फोटोग्राफी करें।''
उसकी बात का गैरथ ने कोई उत्तर न दिया, अपितु उदास हो गया। बलदेव ने कहा-
''गैरथ, क्या बात हो गई ?''
''डेव, फोटोग्राफी तो गई अब... एक वीक मेरा चैक लेट हो गया और उधार मुझे किसी ने दिया नहीं, लिहाजा कैमरा बेचना पड़ा। बहुत बढ़िया कैमरा था वह। जान से भी प्यारा।''
कह कर गैरथ और भी ज्यादा उदास हो गया और बलदेव भी। गैरथ ने कुछ देर बाद पूछा-
''तू बता, किस काम से आया है मेरे पास ?''
''गैरथ, मैं इस काम से आया हूँ कि जहाँ मैं रहता हूँ, वहाँ कोई ट्रबल सी आ सकती है। हो सकता है, रात-बेरात किसी इमरजेंसी में मुझे तेरे पास रहने के लिए आना पड़ जाए।''
(जारी…)
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67, हिल साइड रोड,
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