मंगलवार, 17 अगस्त 2010

गवाक्ष – अगस्त 2010


“गवाक्ष” ब्लॉग के माध्यम से हम हिन्दी ब्लॉग-प्रेमियों को हिन्दी/पंजाबी के उन प्रवासी लेखकों/कवियों की समकालीन रचनाओं से रू-ब-रू करवाने का प्रयास करते आ रहे हैं जो अपने वतन हिन्दुस्तान से कोसों दूर बैठकर अपने समय और समाज के यथार्थ को अपनी रचनाओं में रेखांकित कर रहे हैं। “गवाक्ष” में अब तक पंजाबी कवि विशाल (इटली) की कविताओं का हिन्दी अनुवाद, दिव्या माथुर (लंदन) की कहानी, अनिल जनविजय (मास्को) की कविताएं, न्यू जर्सी, यू.एस.ए. में रह रहीं देवी नागरानी की ग़ज़लें, लंदन निवासी कथाकार-कवि तेजेन्द्र शर्मा, रचना श्रीवास्तव, दिव्या माथुर की कविताएं, दुबई निवासी पूर्णिमा वर्मन की कविताएं, यू एस ए में रह रहीं हिन्दी कथाकार-कवयित्री इला प्रसाद, डेनमार्क निवासी कवि भगत धवन की कविताएँ और चाँद शुक्ला की ग़ज़लें, यू एस ए निवासी कवि वेद प्रकाश ‘वटुक’ तथा कवयित्री रेखा मैत्र की कविताएं, कनाडा अवस्थित पंजाबी कवयित्री तनदीप तमन्ना की कविताएं, यू के अवस्थित हिन्दी कवि-ग़ज़लकार प्राण शर्मा की ग़ज़लें, कैनेडा में अवस्थित पंजाबी कवि सुखिन्दर की कविताएं, कनाडा निवासी पंजाबी कवयित्री सुरजीत, अमेरिका अवस्थित डॉ सुधा धींगरा, कनाडा में अवस्थित हिंदी- पंजाबी कथाकार - कवयित्री मिन्नी ग्रेवाल की कविताएं, न्यूजीलैंड में रह रहे पंजाबी कवि बलविंदर चहल की कविता, कैनेडा में अवस्थित पंजाबी लेखिका बलबीर कौर संघेड़ा की कविताएं, इंग्लैंड से शैल अग्रवाल की पाँच कविताएं, सिंगापुर से श्रद्धा जैन की ग़ज़लें, इटली में रह रहे पंजाबी कवि विशाल की कविताएं, यू एस ए में रह रहीं हिन्दी कथाकार-कवयित्री इला प्रसाद की एक लघुकथा, कैनेडा निवासी पंजाबी कवि डा. सुखपाल की कविता, यू.एस.ए. में अवस्थित हिंदी कवयित्री डॉ. सुधा ओम ढींगरा की कविताएं, यू.एस.ए. में अवस्थित पंजाबी कवि-कथाकार प्रेम मान की पंजाबी कविताएं और पंजाबी कथाकार-उपन्यासकार हरजीत अटवाल के उपन्यास “सवारी” के हिंदी अनुवाद की सत्ताइसवीं किस्त आपने पढ़ीं। “गवाक्ष” के अगस्त 2010 अंक में प्रस्तुत हैं –(स्व.) इकबाल अर्पण की एक ग़ज़ल तथा यू.के. निवासी पंजाबी कथाकार-उपन्यासकार हरजीत अटवाल के धारावाहिक पंजाबी उपन्यास “सवारी” की अट्ठाइसवीं किस्त का हिंदी अनुवाद…

कैनेडा से
(स्व.) इकबाल अर्पण की एक ग़ज़ल


हम दुआ मांगे जिनकी ख़ुशी के लिए
वो ही बोलें हमें ख़ुदकुशी के लिए

सांस रुक रुक के चलती रही उम्र भर
बहुत तरसा हूँ मैं ज़िन्दगी के लिए

ग़म के सांचे में ढलकर जीएं किस तरह
कुछ तो सामने हो दिलकशी के लिए

नस्ले-आदम के खूं पे आमादा हैं क्यूँ
हाथ उठते थे जो बन्दगी के लिए

शहर आ कर अँधेरों में जो खो गया
निकला गाँव से था रोशनी के लिए

सब के पीने के पीछे कोई राज़ है
कोई पीता नहीं मयकशी के लिए

आदमी बहुत कुछ बन गया है मगर
ना बना आदमी आदमी के लिए।
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इकबाल अर्पण
जन्म : 15 जून 1938, निधन : 15 जून 2006
जगराओं(पंजाब) छोड़कर इकबाल अर्पण अफ्रीका, इंग्लैंड, अमेरिका में रहे और बाद में वह कैलगरी, कैनेडा में बस गए थे। वह पंजाबी के बहुत अच्छे कवि और कथाकार रहे। उनके दो कविता संग्रह ‘सुनत्था दर्द’(1977), ‘कब्र दा फुल’(1980), चार कहानी-संग्रह –‘गुआचे राह’(1980), ‘मौत दा सुपना’(1983)। ‘आफ़रे होये लोक’(1984) और ‘चानण दे वणजारे’(2006), एक उपन्यास – ‘पराई धरती’ (1980) छप चुके हैं।

धारावाहिक पंजाबी उपन्यास(किस्त- 28)



सवारी
हरजीत अटवाल
हिंदी अनुवाद : सुभाष नीरव

॥ तैंतीस ॥

सतनाम ने घर के आगे लाकर वैन खड़ी कर दी और आहिस्ता से उतरा। आहिस्ता से ही दरवाजा खोला। दरवाजे का खटका सुनते ही परमजोत और सरबजोत दौड़े आए। उसने उन्हें नित्य की तरह 'हैलो छांगू एंड मांगू' नहीं कहा और जल्दी से सैटी पर बैठ गया। परमजोत बोली-
''डैड, यू आलराइट ?''
''हाँ हाँ, ठीक हूँ। जाओ, बोतल लाओ। गिलास और पानी लाओ।''
उसने सरबजोत का कंधा थपथपाते हुए कहा। सरबजोत बोला-
''मैं बोतल लाऊँ कि पानी ?''
''जो मर्जी ले आ, पर हरी अप।''
रसोई में से मनजीत ने उसकी ओर देखा और पास आकर बोली-
''ज्यादा पी ली ?''
''नहीं सितारा बाई। आज तो वैसे ही हो गया, पता नहीं उम्र हो गई।''
''क्या हो गया ?''
''बहुत ही थकावट हो गई। शरीर गर्म-सा लगता है। सवेरे डिलीवरी आनी है।''
''फिर शराब न पियो, गोली खा लो और आराम करो।''
''अगर आराम आया तो शराब से आएगा, गोली से कभी आता है ?''
''तुम्हें दौड़भाग जो बहुत रहती है, आदमी कोई ढंग का तुम रखते नहीं।''
''आदमी मिलते ही कहाँ है, साले लौरल हार्डी जैसे ही घूमते फिरते हैं।''
''कोई अच्छा-सा बुच्चर देख लो और थोड़ी रैस्ट किया करो।''
''आज तो कुछ ज्यादा ही मीना कुमारी बनी फिरती हो... बुच्चर तो है एक आर्थर, पैसे बहुत मांगता है। इतने अफोर्ड नहीं होते।''
''तुम तो कहते थे कि इललीगल से बहुत मिल जाते हैं।''
''वो यहाँ नहीं, साउथाल में लगता है मेला, लुधियाने वाले लेबर चौक की तरह।''
एक पैग पीकर उसका मूड ठीक होने लगा और थकावट भी कम हो गई। बच्चे उसका मूड देखकर करीब आ बैठे।
परमजोत बोली-
''डैड, स्क्रैच माय बैक।''
''हाउ टू से ?''
''प्लीज डैड।''
''दैट्स बैटर।'' कहता हुआ वह उसकी पीठ पर खाज करने लगा। कुछ देर बाद परमजोत ने कहा-
''दैट्स इट।''
''वट ?''
''थैंक्यू डैडी।''
''दैट्स बैटर।''
वह बच्चों को 'प्लीज़' और 'थैंक्स' सिखाने के चक्कर में ही रहता है। परमजोत उठकर गई तो सरबजोत पीठ पर खाज करवाने आ बैठा। मनजीत बोली-
''तुम्हें तो कभी थकावट हुई नहीं, आज क्या हो गया ?''
''शायद मैंटली टायर्ड हो गया।''
''ऐसा क्या हो गया ?''
''आज प्रेम चोपड़ा ने मेरा बहुत सिर खाया, प्रैशर भी डाला, इसी कारण। जो वहाँ पेट्रो के साथ दो पैग लगाए उनका तो मेरे पर कोई असर हुआ ही नहीं था। यह काम करने लगी है।'' वह हाथ में पकड़े पैग की तरफ इशारा करते हुए बोला और फिर कहा-
''प्रेम चोपड़ा एक पब ले रहा था। किसी गोरे के साथ मिलकर। गोरा पॉल पार्टनर उसे सूट नहीं करता और अब वह मुझे अपने संग मिलाना चाहता है।''
''मिल जाओ।''
''मैं तो गोरे पॉल से दूसरे स्थान पर हो गया न, उसकी पहली च्वाइस पॉल था। पॉल के पास पैसे न होने के कारण अब मुझे कहता है कि आ जाऊँ।''
''तो क्या हुआ। आखिर उन्होंने तुम्हें अपने संग शेयर करने के लिए कहा है। पहले कह दिया या बाद में।''
''जानी, अपना भी कोई स्टैंडर्ड है।''
मनजीत को उसकी बात अधिक समझ में नहीं आई। उसकी दिलचस्पी भी नहीं थी। रोटी खाता सतनाम फिर कहने लगा-
''मैंने प्रेम चोपड़ा को कहा- भाई, तू अकेला ही ले ले, कौन सी ऐसी बात है। पता क्या कहता ?''
''क्या ?''
''कहता है कि मैं डरता हूँ, कहीं घाटा न पड़ जाए। मैंने दिल में सोचा कि रहा न - वही का वही। मुझे यह पार्टनर घाटे के सौदे का ही बनाना चाहता है। अगर इसे मालूम हो कि प्रोफिट होगा तो मुझे पार्टनर क्यों बनाए।''
''तुमने तोड़कर जवाब तो नहीं दे दिया ? आखिर भाई है।''
''नहीं, तोड़ कर देना ही पड़ेगा। वह तो कहे जाता था कि मैंने तुझे कभी कुछ करने को नहीं कहा, मेरे कहने पर इस पब में हिस्सा डाल।''
''तुम सोच लो। अगर ठीक लगता है तो डाल लो।''
''ठीक तो लगता है, मैं पब भी देख आया हूँ पर यह बिजनेस मेरे लिए बिलकुल नया है। और फिर इधर से ही फुर्सत नहीं मिलती। असल में असरानी जैसे के आ जाने से वो हो गया खाली-सा, अब ऐसी बातें सोचता रहता है। एक तरफ तो कहे जाता है कि शिन्दा किसी काम का नहीं, और दूसरी तरफ सारा दिन उसे रगड़े जाता है।''
''अगर शिन्दा भाजी उसके काम का नहीं तो तुम ले आओ।''
उस वक्त सतनाम कुछ न बोला पर सवेरे उठते ही कहने लगा-
''मेरी श्रीदेवी, बात तो तेरी बहुत बढ़िया है। रातोंरात मैंने सोच लिया कि क्या करना है। प्रेम चोपड़ा शिन्दे को पचास में रगड़ना चाहता है, क्यों न मैं सौ का ऑफर करूँ, उसे वही सुविधाएँ देकर।''
''देखो, मैंने घर में नहीं रखना किसी को।''
''क्यों ? मेरा भाई है।''
''ठीक है, भाई है, पर मेरे से गैर आदमी घर में नहीं रखा जाता। हमने घर में सौ बार लड़ना-झगड़ना, मर्जी से उठना-बैठना होता है। किसी दूसरे के होने पर आदमी बंध जाता है।''
''बन गई न मिनट भर में ही हीरोइन से वैम्प। अगर भाई ही भाई के घर में नहीं रहेगा तो कहाँ रहेगा।''
''रहेगा वो भाजी के घर में ही।''
''इसका मतलब, जट्टी तेरे से लाख दर्जे अच्छी है।''
''मुझे अच्छा बनने की ज़रूरत नहीं। मुझे अपना घर भी लुक-आफ्टर करना है। वह तो सारा दिन घर में ही रहती है और मुझे जॉब भी करनी होती है।''
''तू मेरी बनी-बनाई खेल खत्म करेगी। मैं साला मुफ्त में ही तुझे नंबर वन बनाए बैठा हूँ। शिन्दा आएगा और यहीं रहेगा, तू लिख ले कहीं।''
मनजीत कुछ न बोली। सतनाम कहने लगा-
''साला, एक प्रॉब्लम का हल खोजें तो दूसरी आ खड़ी होती है।''
फिर सतनाम सोचने लगा कि यह तो बाद की प्रॉब्लम है। पहले अजमेर को बातों में घेर कर शिन्दे को हथियाया जाये ताकि काम का बोझ कम हो।
सुबह दुकान में गया। दुकान शुरू करवा कर वह अजमेर की तरफ निकल गया। उसने बाहर से ही देखा कि दुकान में शिन्दा और टोनी खड़े थे। टोनी को जल्दी बुलाने का अर्थ था कि अजमेर कहीं गया हुआ होगा। फिर उसने घूमकर वैन देखी। वैन भी नहीं थी। वह दुविधा में ही था कि रुके या नहीं कि शिन्दे ने उसकी वैन देख ली और अन्दर आ जाने के लिए हाथ हिलाने लगा। उसके पहुँचने पर शिन्दा बोला-
''तू तो भाई मिलने से ही गया, उधर बलदेव कहीं छिप गया और इधर तू भी।''
''संडे को मैं आया करता हूँ, पर तू आसपास देखता ही नहीं।''
''क्या बताऊँ भाई, मेरा तो बुरा हाल है। बस, चलो ही चल है। ऊपर से भाई भी डांट मारने में मिनट नहीं लगाता। गिरेगा खोते(गधे) पर से और गुस्सा मेरे पर।''
''चल, अच्छा है। जट्टी का बचाव हो जाता होगा, नहीं तो हर वक्त उसकी ही जान के पीछे लगा रहता था।''
''भाई, वो भी कम नहीं, बस चुप ही भली है। तू बता, आज किधर ?''
''प्रेम चोपड़ा कहाँ है ?''
''बैंक गए हैं दोनों, क्या काम है ?''
''मैं तुझे मांगने आया हूँ।''
''फिर से ?''
''हाँ, फिर से, साला मुकरी न हो तो। तुझे एक बार मुश्किल से मांगा था। मैं तो कहता हूँ, अगर उसे तेरी ज़रूरत नहीं तो मेरे संग आ जा।''
''ले जा यार, मुझे इस नरक से भाई बनकर ले जा। वहाँ किसी से ओए नहीं कहवाई थी और यहाँ ओए के बग़ैर और कुछ कोई कहता ही नहीं।''
''वो तो कहता है कि तू निकम्मा है।''
''वो बड़ा भाई है, जो मर्जी कहे।''
''यह पचास देता है, मैं सो दूँगा।''
सौ सुनकर शिन्दे का चेहरा खिल उठा। बोला-
''तुम दोनों भाई आपस में सलाह कर लो, मेरा क्या है, बैल ने तो पट्ठे ही खाने हैं।''
तब तक अजमेर की वैन दुकान के सामने आ रुकी। गुरिंदर बाहर निकली और अजमेर गाड़ी खड़ी करने चला गया। सतनाम ने पूछा-
''जट्टिए, प्रेम चोपड़ा ने वापस आना है कि कहीं और चला गया ?''
''मेरा प्रेम चोपड़ा और तेरी परवीन बॉबी।''
''वो अब श्रीदेवी हो गई है, ज़रा-सी तरक्की कर गई।''
''तू आज दिन में कहाँ घूमता फिरता है ?''
''उसके साथ बात करने आया हूँ कोई। तुम किधर से आ रहे हो ?''
''बैंक जाना था इन्होंने, मुझे ज़रा घर की शॉपिंग करनी थी।''
अजमेर हाथ में दो बैग थामे आ गया। बैग गुरिंदर को पकड़ाते हुए सतनाम से बोला-
''कैसे, सलाह बदली फिर ?''
''किसकी ?''
''पब वाली।''
''नहीं भाई, मैंने सोचा, यह सब ठीक है, प्रोपर्टी मंहगी नहीं मिल रही पर इस वक्त रेट ऑफ इंटरेस्ट भी बहुत है, फिर प्राइज़िज का भी कुछ पता नहीं, अगर गिर पड़ीं तो ?... तुम्हारी दुकान तो बोझ उठा लेगी पर मेरी ने फालतू बोझ नहीं उठाना।''
अजमरे कुछ नहीं बोला और घड़ी देखने लगा। गुरिंदर बोली-
''टैम न देखो, ऊपर आ जाओ, चाय पियो, पब नहीं जाना अब।''
अजमेर ने गुरिंदर की बात का उत्तर नहीं दिया। कुछ देर की चुप के बाद कहने लगा-
''अगर तू साथ खड़ा हो जाता तो मैं भी रिस्क ले सकता था। न भी खोलते, बिल्डिंग ऐसे ही पड़ी रहती।''
''हाँ, पर किस्त तो देनी ही पड़ती।''
''किस्त तो देनी ही है। पर प्रापर्टी का मालिक भी तो बनेगा तू।''
''यही मैं कहता हूँ कि दुकान किस्त का बोझ नहीं उठा सकती। तुम्हारी दुकान फ्रीहोल्ड है, मुझे किराया भी देना पड़ता है और दुकानों की हालत यह है कि जितने ओवर हैड्ज़ कम हों, उतना ही ठीक है।''
गुरिंदर ऊपर चली गई और वे दोनों फिर पब में जा बैठे। पॉल राइडर उनसे उतने उत्साह से नहीं मिला। अजमेर सतनाम से पूछने लगा-
''शिन्दा कहता था कुछ ?''
''नहीं तो, क्यों ?''
''वैसे ही, ये टोनी से खीझता रहता है। टोनी ने तो एक दिन कह दिया था कि तुझे ये पचास भी मेरी तनख्वाह में से कट कर मिलते हैं।''
बात सुनकर सतनाम खुश हो गया। गाड़ी खुद-ब-खुद पटरी पर आ गई थी। सतनाम बोला-
''भाई, वैसे काम में वह अब कैसा है ?''
''निकम्मा !... मुझे तो इसकी ज़रूरत भी नहीं। टोनी पेपरों में काम करता है, उसे कैसे हटा दूँ ? मैं हूँ, गुरिंदर भी है, दुकान भला कितने बन्दे संभालेगी। इसलिए मैं तो पचास पाउंड ही दे सकता हूँ। वो भी तो इसके बचते ही हैं। सारा खर्चा मैंने उठा रखा है।''
''भाई, अगर शिन्दे की तुम्हें ज़रूरत नहीं तो मैं रख लूँ ?''
बात सुन कर अजमेर की हालत पतली हो गई। सतनाम ने फिर कहा-
''मुझे है आदमी की ज़रूरत।''
''तेरा काम तो चल ही रहा है। और फिर यह तेरे काम का नहीं। तेरा काम है हैवी, इससे नहीं होगा। भारी काम करने लायक यह है नहीं।''
''देखा जाएगा, मगील से तो बुरा नहीं यह।''
''वैसे, दुकानों में बन्दे कभी फालतू भी नहीं होते।''
अजमेर ने शिन्दे को देने से आनाकानी-सी करते हुए कहा। सतनाम बोला-
''मैं इसे पाउंड भी सौ देता रहूँगा।''
''यह सौ के लायक नहीं, सौ देकर इसकी आदत न बिगाड़।''
(जारी…)
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लेखक संपर्क :
67, हिल साइड रोड,
साउथाल, मिडिलसेक्स
इंग्लैंड
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