रविवार, 3 फ़रवरी 2013

गवाक्ष – फरवरी 2013



जनवरी 2008 गवाक्ष ब्लॉग के माध्यम से हम हिन्दी ब्लॉग-प्रेमियों को विदेशों में रह रहे हिन्दी/पंजाबी के उन लेखकों/कवियों की समकालीन रचनाओं से रू--रू करवाने का प्रयास करते आ रहे हैं जो अपने वतन हिन्दुस्तान से कोसों दूर रहकर अपने समय और समाज के यथार्थ को अपनी रचनाओं में रेखांकित कर रहे हैं। गवाक्ष में अब तक विशाल (इटली), दिव्या माथुर (लंदन), अनिल जनविजय (मास्को), देवी नागरानी(यू.एस..), तेजेन्द्र शर्मा(लंदन), रचना श्रीवास्तव(लंदन), पूर्णिमा वर्मन(दुबई), इला प्रसाद(यू एस ए), भगत धवन (डेनमार्क), चाँद शुक्ला (डेनमार्क), वेद प्रकाश वटुक’(यू एस ए), रेखा मैत्र (यू एस ए), तनदीप तमन्ना (कनाडा), प्राण शर्मा (यू के), सुखिन्दर (कनाडा), सुरजीत(कनाडा), डॉ सुधा धींगरा(अमेरिका), मिन्नी ग्रेवाल(कनाडा), बलविंदर चहल (न्यूजीलैंड), बलबीर कौर संघेड़ा(कनाडा), शैल अग्रवाल (इंग्लैंड), श्रद्धा जैन (सिंगापुर), डा. सुखपाल(कनाडा), प्रेम मान(यू.एस..), (स्व.) इकबाल अर्पण, सुश्री मीना चोपड़ा (कनाडा), डा. हरदीप कौर संधु(आस्ट्रेलिया), डा. भावना कुँअर(आस्ट्रेलिया), अनुपमा पाठक (स्वीडन), शिवचरण जग्गी कुस्सा(लंदन), जसबीर माहल(कनाडा), मंजु मिश्रा (अमेरिका), सुखिंदर (कनाडा), देविंदर कौर (यू के), नीरू असीम(कैनेडा), इला प्रसाद(अमेरिका), डा. अनिल प्रभा कुमार(अमेरिका) और डॉ. शैलजा सक्सेना (टोरंटो,कैनेडा), समीर लाल (टोरंटो, कनाडा), डॉक्टर गौतम सचदेव (ब्रिटेन), विजया सती(हंगरी), अनीता कपूर (अमेरिका), सोहन राही (ब्रिटेन), प्रो.(डॉ) पुष्पिता अवस्थी(नीदरलैंड) और अमृत दीवाना(कैनेडा) आदि की रचनाएं और पंजाबी कथाकार-उपन्यासकार हरजीत अटवाल के उपन्यास सवारी के हिंदी अनुवाद की चौवनवीं किस्त आप पढ़ चुके हैं।

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गवाक्ष के इस ताज़ा अंक में प्रस्तुत हैं आस्ट्रेलिया  से हिंदी कवयित्री डॉ.भावना कुँअर के हाइकुअ और ब्रिटेन निवासी पंजाबी लेखक हरजीत अटवाल के धारावाहिक पंजाबी उपन्यास सवारी की पचपनवीं किस्त का हिंदी अनुवाद

-सुभाष नीरव

आस्ट्रेलिया से
डा.भावना कुँअर के सात हाइकु

नन्हें  हाथों से

मुझको जब छुआ

जादू -सा हुआ ।

खिड़की पर

है भोर की किरण

नृ़त्यागंना -सी ।

लेटी थी धूप

सागर तट पर

प्यास बुझाने।

यादों के मेले

हैं अब साथ तेरे

नहीं अकेले।

आई हिचकी

याद ही किया होगा

प्रियजनों ने ।

वो मृग छौना

बहुत ही सलौना

कुलाचें भरे ।

प्यासा सागर

सर्द हुआ सूरज

चाँद झुलसा ।
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डॉ० भावना कुँअर
शिक्षा - हिन्दी व संस्कृत में स्नातकोत्तर उपाधि, बी० एड०, पी-एच०डी० (हिन्दी)
शोध-विषय - ' साठोत्तरी हिन्दी गज़लों में विद्रोह के स्वर व उसके विविध आयाम'
विशेष - टेक्सटाइल डिजाइनिंग, फैशन डिजाइनिंग एवं अन्य विषयों में डिप्लोमा।
प्रकाशित पुस्तकें - 1. तारों की चूनर ( हाइकु संग्रह)
2.
साठोत्तरी हिन्दी गज़ल में विद्रोह के स्वर
प्रकाशन - स्तरीय पत्र-पत्रिकाओं में कविता, कहानी, गीत, हाइकु, बालगीत, लेख, समीक्षा, आदि का अनवरत प्रकाशन। अनेक राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय अंतर्जाल पत्रिकाओं में रचनाओं एवं लेखों का नियमित प्रकाशन, अपने ब्लॉग http://dilkedarmiyan.blogspot.com पर अपनी नवीन-रचनाओं का नियमित प्रकाशन तथा http://drbhawna.blogspot.com/ पर कला का प्रकाशन अन्य योगदान
स्वनिर्मित जालघर - http://drkunwarbechain.blogspot.com/
http://leelavatibansal.blogspot.com/
सिडनी से प्रकाशित "हिन्दी गौरव" पत्रिका की सम्पादन समिति में
संप्रति - सिडनी यूनिवर्सिटी में अध्यापन
अभिरुचि- साहित्य लेखन, अध्ययन,चित्रकला एवं देश-विदेश की यात्रा करना।
सम्पर्क - bhawnak2002@yahoo.co.in

धारावाहिक पंजाबी उपन्यास(किस्त- 55)



सवारी
हरजीत अटवाल
हिंदी अनुवाद : सुभाष नीरव


॥ साठ ॥
लंदन में प्रवेश करते ही बलदेव को उतावली-सी होने लगी। वह सोच रहा था कि इतनी ठंड में वह डिनर करता घूम रहा था। डौमनिक के इस आंमत्रण को गर्मियों तक स्थगित कर देना चाहिए था। वह ग्रीनिच गया। अनैबल और शूगर को उठाकर अंदर बैड पर डाला। वे इतनी थक गई थीं कि उठ नहीं रही थीं। वह वहाँ से चल पड़ा। सिमरन ने बहुत कहा कि सवेरे चले जाना या देरे से, कुछ आराम करके, पर वह न रुका। उसको अपने काम की चिंता थी। आज तो कुछ नहीं हो सकता था, पर कल के लिए तैयार रहना आवश्यक था। उसको मैरी को घर से पिक करना था। सुबह ट्यूब में आने में काफ़ी विलम्ब हो जाता।
      मैरी आजकल कुछ अजीब ही व्यवहार करने लगी थी। जब बलदेव ने अपने संग काम करने के लिए कहा था तो एकदम तैयार हो गई थी, पर अब बदली-बदली-सी थी। मैरी ने उसकी मदद बहुत अच्छे ढंग से करनी शुरू कर दी थी। उसको काम करना आता था। इतवार की वह छुट्टी करती थी। शनिवार शाम को वह चली जाती और सोमवार सवेरे आ जाती। सोमवार आते-आते कई बार दस बजा देती थी, इसलिए बलदेव उसको स्वयं ले आता। बाकी दिन वह बलदेव के पास ही रह लेती। बलदेव दिनभर डिलीवरी करता रहता। मैरी यार्ड में होती, नई डिलीवरी उसको फोन पर बता देती। मोबाइल फोन का उसको बहुत फायदा हुआ था। सारा काम उसके नियंत्रण के अधीन था, पर अब मैरी को जैसे बोझ लगने लगा था।
      बलदेव ने कार में से ही मैरी को फोन किया। घंटी बजती रही, किसी ने फोन न उठाया। उसने ब्लैकविल टनल पार करके कार का रुख उत्तरी लंदन की ओर कर लिया। फिर फोन घुमाया। मैरी ने फिर भी नहीं उठाया। बलदेव हैरान हो रहा था। इस समय मैरी अपने घर में बैठी बलदेव इंतज़ार किया करती थी। बलदेव आठ बजे उसके पास पहुँच जाया करता था। और अब भी आठ बज रहे थे। उसका मूड-सा देखकर बलदेव को डर लग रहा था कि कहीं काम ही छोड़कर न चली जाए, इसलिए वह उसको खुश रखने की कोशिश भी करता रहता।
      वह डार्ट माउथ हाउस पहुँच गया। सीढ़ियाँ चढ़कर मैरी के घर की घंटी बजाई। मैरी घर में नहीं थी। उसके मन में कई प्रकार के विचार आने लगे। वह सोचता था कि ठीक ही हो। वैसे तो मैरी जिम्मेदार औरत थी, भूलने वाली नहीं थी। वह नीचे उतरा तो बलिंडा मिल गई। अब वह मैरी को लेने-छोड़ने आता था, इसलिए उसका पुन: सबसे परिचय हो गया था। उसने बलिंडा से मैरी के बारे में पूछा तो वह कहने लगी -
      ''आज मैंने उसे जूडी के साथ बातें करते हुए देखा था। कहीं आसपास ही होगी। आ जा, मेरे घर बैठकर वेट कर ले।''
      ''शुक्रिया बलिंडा, मुझे जल्दी जाना है। पब में देखता हूँ।''
      ''हाँ, शायद नॉर्थ स्टार गई हो। वह कभी-कभी काम भी करती है न।''
      बलदेव नॉर्थ स्टार पहुँच गया। सभी लाल से मुँह वाले आयरिश लोग बैठे थे। इनसे बलदेव को एक ख़ास निकटता महसूस होने लगती। वह पब के अंदर गया। मैरी एक मेज़ पर बैठकर कुछ मित्रों के संग बातें कर रही थी। उसने सिगरेट सुलगा रखी थी। बात करते-करते वह सिर हिला रही थी जिससे लगता था कि वह नशे में थी। उसके साथ बैठे लोगों में से बलदेव एक औरत और एक मर्द को जानता था। वे मैरी के साथ ही उसे मिले थे। बलदेव ने सबसे हैलो की और उनके पास बैठ गया। उसने धीमे स्वर में मैरी से कहा-
      ''क्या प्रोग्रोम है ?''
      ''कैसा प्रोग्राम ?''
      ''चल, चलें अब।''
      ''चलते हैं, थोड़ा ठहर... जा अपने लिए ड्रिंक ले आ। और मेरे लिए भी।''
      वह उठकर काउंटर से ड्रिंक ले आया। मैरी उस टेबल से उठकर खड़ी हो गई और खाली टेबल की ओर जाते हुए बोली-
      ''सॉरी डेव, मैं पब में आ गई। मैं तेरा इंतज़ार न कर सकी। पर मैं क्या करती, मेरा मूड ठीक नहीं। मुझे तेरे साथ कुछ बातें करनी हैं पहले।''
      ''बातें भी करेंगे, पर हम लेट हो जाएँगे। घर चलते हैं, वहाँ चलकर जितनी कहेगी, करेंगे।''
      ''कौन से घर ?''
      ''बैटरसी।''
      ''नहीं, वहाँ नहीं। यहीं मेरे पास ही रह आज।''
      ''सवेरे बहुत जल्दी उठना पड़ेगा।''
      ''उठ जाना फिर।''
      ''तू नहीं उठेगी ?''
      ''मैं भी उठूँगी, पर कुछ बातें करके।''
      ''चल मैरी, तूने ड्रिंक ज्यादा पी ली है, हम यहीं चलते हैं, पर सारी बात घर चलकर ही करेंगे।''
      ''चल उठ।''
      मैरी ने अपनी ड्रिंक भी खत्म न की और उठकर चल पड़ी। वह झूलती हुई-सी चल रही थी। बलदेव ने पकड़कर उसको कार में बिठाया। वह बोली-
      ''डेव, न मैं तेरी रखैल हूँ और न मैं प्रॉस्टीच्यूट हूँ। बता, मैं क्या हूँ ?''
      ''क्या बकवास करती है मैरी।''
      ''यह बकवास नहीं, सच है... तू शनिवार अपनी बीवी के पास जा घुसता है और यहाँ रह जाती हूँ मैं अकेली। वीकएंड ही तो होता है मिलकर बैठने का। मैं आज ये सोचती रही कि मैं तेरी रखैल तो नहीं कहीं...। मैं किसी की रखैल नहीं बनना चाहती, इसलिए तू दफा हो जा और मुझे अकेली छोड़ दे।''
      बलदेव को लगा कि यह तो वही काम हो गया जिसका उसको डर था। वह सोचने लगा कि क्या जवाब दे उसकी बात का। उसने तो कभी सोचा ही नहीं था कि मैरी के साथ उसका रिश्ता क्या था। उसको कोई उत्तर न सूझा और उसने कार आगे बढ़ा ली। मैरी उसकी ठोड़ी पर उंगली रखती हुई प्यार में बोली-
      ''डेव बास्टर्ड ! मुझे जवाब दे मेरी बात का।''
      ''मैरी बिच, स्टीवी वंडर का वो गाना सुना है - यू एंड मी पार्ट टाइम लवर्ज़...''
      मैरी उसकी बात पर हँसने लगी। फिर बोली-
      ''डेव, मैं मजाक नहीं करती। मुझे बता तेरी ज़िन्दगी में मेरी क्या जगह है।''
      ''मैरी, मैंने तेरे साथ कभी कोई वायदा तो नहीं किया।''
      ''सारे वायदे शब्दों से नहीं होते। दो महीने हो गए मुझे इस बार तेरे संग रहते, अब बता मुझे मैं कहाँ खड़ी हूँ ?''
      ''मैरी, तू ही बता, तू कहाँ खड़ी होना चाहती है ?''
      ''मैं इस वक्त तेरे साथ काम करती हूँ। तूने मेरा काम देखा ही है...मैं डेव... लम्बे समय के लिए तेरे साथ प्रोग्राम बनाना चाहती हूँ।''
      ''कैसा प्रोग्राम ?''
      ''तेरे साथ हमेशा हमेशा के लिए रहने का प्रोग्राम, पर तू अपनी बीवी के पास जाने से नहीं हटता।''
      ''मैरी, वह मेरी निजी ज़िन्दगी है, जैसे तेरी भी है। तेरे पास टैंड और मिच हैं। याद है, एक दिन तूने एकदम उठकर कह दिया था कि मेरा पति और पुत्र आ रहे हैं।''
      उसकी बात सुनकर मैरी ने गर्दन झुका ली। बलदेव ने फिर कहा-
      ''ऐसी हालत में यह पार्ट टाइम लवर्ज वाला गीत ही गाया जा सकता है।''
      ''डेव, मैं पार्ट टाइम लवर्ज वाला गीत नहीं गा सकती। तू मेरे साथ बैठकर भविष्य का प्रोग्राम बना। मुझे बता कि तू अपनी बीवी के पास वापस जाना चाहता है ?''
      ''मैरी, मैं अभी इस बारे में स्पष्ट नहीं। शायद कभी भी न होऊँ। शायद यूँ ही वीकएंड डैडी बनकर ज़िन्दगी काट दूँ।''
      ''चल, तू ऐसा ही किए चल। वीकएंड डैडी बना रह उधर, पर मेरे साथ भी भविष्य के बारे में प्रोग्राम बना।''
      ''कौन सा प्रोग्राम ?''
      ''मैं यह चाहती हूँ कि हम दोनों एक साथ मिलकर कोई काम शुरू करें। कुछ भी। कोई पब, कोई रेस्टोरेंट, क्लब, दुकान... कुछ भी। मेरे पास हिस्सा डालने के लिए पैसे हैं। मैं आयरलैंड से अपना सबकुछ ले आई हूँ। मैं सोशल सिक्युरिटी के आसरे गुज़ारा नहीं करना चाहती और न ही तेरा ये डेढ़ सौ पाउंड काफी दिखता है। मेरी कैपेसिटी को तू भी जानता है।''
      कहकर मैरी चुप हो गई। बलदेव कहने लगा-
      ''मैरी, अब मैं दूसरे बिजनेस में कैसे पड़ सकता हूँ। देख, इसके बारे में मुझे जानकारी है, इस बिजनेस का मुझे अनुभव हो चुका है। मैं अभी बिजनेस नहीं बदलूँगा।''
      ''फिर तू इसमें मेरा हिस्सा डलवा ले। मुझे तनख्वाह पर काम नहीं करना।''
      बलदेव की समझ में नहीं आ रहा था कि मैरी की बात का क्या जवाब दे। वह मैरी का इस चलते बिजनेस में हिस्सा कैसे डलवा सकता था। फिर, उसने तो अपना भविष्य इस कारोबार के साथ बांध दिया था। मैरी ने फिर अपना प्रश्न दोहराया तो बलदेव ने कहा-
      ''मैरी, मेरे प्रोग्राम इतनी जल्दी नहीं बदला करते कि तूने कह दिया और मैंने कर लिया। जो बात तू आज कह रही है, उसके मन में बैठने और फिर पकने के लिए बहुत समय लग जाएगा।''
      ''फिर मैं क्या करूँ ?...तेरा इंतज़ार करूँ ?''
      ''नहीं मैरी, तू मेरा इंतज़ार न कर। यदि कोई विकल्प मिलता है तो ले ले।''
      ''डेव, यू आर बास्टर्ड !... तू मुझे झूठी तसल्ली भी नहीं दे सकता।''
      कहकर उसने बलदेव को कोहनी मारी। बलदेव ने कार आगे बढ़ा ली। जब डार्टमाउथ हाउस को पीछे छोड़ आया तो मैरी ने कहा-
      ''कहाँ ले चला है मुझे ?''
      ''बैटरसी।''
      ''बैटरसी क्यों ?... मैं तेरे साथ बैटरसी क्यों जाऊँ ? बता तो मुझे ?''
      बलदेव कार चलाते हुए एक हाथ उसके बालों में फिराने लगा। मैरी ने उसका हाथ पकड़ कर चूमा और सिगरेट सुलगाते हुए बोली -
      ''अब क्या फैसला है तेरा ?''
      ''मैरी, कोई फैसला नहीं। मेरे साथ ईस्टर तक काम करा दे अगर करवा सकती है तो। और फिर, तेरा मन तो डैरी से जुड़ा हुआ है जहाँ टैंड और मिच रहते हैं। तलाक तू दे नहीं सकती, इसलिए तेरी तांतें भी नहीं टूटेंगी।''
      ''मैं जानती हूँ डेव, मुझे पता है, इसीलिए मैं बिजनेस जैसी कोई कमिंटमेंट करना चाहती हूँ कि मैं उन तांतों से कहीं अधिक मजबूत तांतों के साथ बंध सकूँ।''
(जारी…)

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