शुक्रवार, 8 जून 2012

गवाक्ष – जून 2012


 जनवरी 2008 गवाक्ष ब्लॉग के माध्यम से हम हिन्दी ब्लॉग-प्रेमियों को विदेशों में रह रहे हिन्दी/पंजाबी के उन लेखकों/कवियों की समकालीन रचनाओं से रू--रू करवाने का प्रयास करते आ रहे हैं जो अपने वतन हिन्दुस्तान से कोसों दूर रहकर अपने समय और समाज के यथार्थ को अपनी रचनाओं में रेखांकित कर रहे हैं। गवाक्ष में अब तक विशाल (इटली), दिव्या माथुर (लंदन), अनिल जनविजय (मास्को), देवी नागरानी(यू.एस..), तेजेन्द्र शर्मा(लंदन), रचना श्रीवास्तव(लंदन), पूर्णिमा वर्मन(दुबई), इला प्रसाद(यू एस ए), भगत धवन (डेनमार्क), चाँद शुक्ला (डेनमार्क), वेद प्रकाश वटुक’(यू एस ए), रेखा मैत्र (यू एस ए), तनदीप तमन्ना (कनाडा), प्राण शर्मा (यू के), सुखिन्दर (कनाडा), सुरजीत(कनाडा), डॉ सुधा धींगरा(अमेरिका), मिन्नी ग्रेवाल(कनाडा), बलविंदर चहल (न्यूजीलैंड), बलबीर कौर संघेड़ा(कनाडा), शैल अग्रवाल (इंग्लैंड), श्रद्धा जैन (सिंगापुर), डा. सुखपाल(कनाडा), प्रेम मान(यू.एस..), (स्व.) इकबाल अर्पण, सुश्री मीना चोपड़ा (कनाडा), डा. हरदीप कौर संधु(आस्ट्रेलिया), डा. भावना कुँअर(आस्ट्रेलिया), अनुपमा पाठक (स्वीडन), शिवचरण जग्गी कुस्सा(लंदन), जसबीर माहल(कनाडा), मंजु मिश्रा (अमेरिका), सुखिंदर (कनाडा), देविंदर कौर (यू के), नीरू असीम(कैनेडा), इला प्रसाद(अमेरिका), डा. अनिल प्रभा कुमार(अमेरिका) और डॉ. शैलजा सक्सेना (टोरंटो,कैनेडा) आदि की रचनाएं और पंजाबी कथाकार-उपन्यासकार हरजीत अटवाल के उपन्यास सवारी के हिंदी अनुवाद की सैंतालीसवीं किस्त आपने पढ़ीं। गवाक्ष के जून 2012 अंक में प्रस्तुत हैं टोरंटो, कनाडा से हिंदी कवि-कथाकार समीर लाल की दो ग़ज़लें तथा हरजीत अटवाल के धारावाहिक पंजाबी उपन्यास सवारी की अड़तालीसवीं किस्त का हिंदी अनुवाद

टोरंटो, कनाडा से
समीर लाल की दो ग़ज़लें

1
जाने क्या बात है जो तुमसे बदल जाती है
जिन्दगी मौत के साये से निकल जाती है
नब्ज को छू के वो खुशहाल हुए जाते है
सांस तो रेत है हाथों से फिसल जाती है
देख तो आज के मौसम का नजारा क्या है
ये तबियत भी हमारी तो मचल जाती है
मुझको तो चाँद दिखे या कि तुम्हारी सूरत
दिल की हस्ती मेरी दोनों से बहल जाती है
कैसे जीना है किसी को ये सिखाना कैसा
वक्त के साथ में हर सोच बदल जाती है
जब भी होता है दीदार तेरा साहिल पर
डूबी कश्ती मेरी किस्मत की संभल जाती है
बात करने का सलीका जो सिखाया हमको
बात ही बात में नई बात निकल जाती है
दास्तां प्यार की तुमको ही सुनाई है समीर
दर्द के देश में यह बन के गज़ल जाती है.

 
2
लाखों रावण गली गली हैं,
इतने राम कहाँ से लाऊं ?
चीर हरण जो रोक सकेगा
वो घनश्याम कहाँ से लाऊँ ?
बापू-सा जो पूजा जाये
प्यारा  नाम कहाँ से लाऊँ
श्रद्धा से खुद शीश नवा दूँ
अब वो धाम कहाँ से लाऊँ ?
जो सच कहने से बन जाये
ऐसा काम कहाँ से लाऊँ ?
जीवन की कड़वाहट हर ले
मीठा जाम कहाँ से लाऊँ ?
मन में जो उजियारा कर दे
वैसा दीप कहाँ से लाऊँ ?
दिल मेरा खुश होकर गाये
ऐसी शाम कहाँ से लाऊँ ?
00
 
जन्म २९ जुलाई१९६३ को रतलाम म.प्र. में। विश्वविद्यालय तक की शिक्षा जबलपुर म.प्र से प्राप्त कर ४ साल बम्बई में रहे और चार्टड एकाउन्टेन्ट बन कर पुनः जबलपुर में १९९९ तक प्रेक्टिस की. सन १९९९ से टोरंटो, कनाडा में निवास। कनाडा की सबसे बड़ी बैक के लिए तकनीकी सलाहकार। इसके अतिरिक्त साहित्य के पठन और लेखन की ओर रुझान है। सन् २००५ से नियमित लिख रहे हैं। कवितागज़लव्यंग्यकहानीलघु कथा आदि अनेकों विधाओं में दखल रखते हैं एवं कवि सम्मेलनों के मंच का एक जाना पहचाना नाम हैं। भारत के अलावा कनाडा में टोरंटोमांट्रियलऑटवा और अमेरीका में बफेलोवाशिंग्टन और आस्टीन शहरों में मंच से कई बार अपनी प्रस्तुति दे चुके हैं।
सर्वाधिक लोकप्रिय ब्लॉग “उड़नतश्तरी” इनका ब्लॉग है।
पुस्तकें : काव्य संग्रह ‘बिखरे मोती’‘ वर्ष २००९ में एवं उपन्यासिका देख लूँ तो चलूँवर्ष २०११ में शिवना प्रकाशनसिहोर के द्वारा प्रकाशित। अगला कथा संग्रह ‘द साईड मिरर’ (हिन्दी कथाओं का संग्रह) शीघ्र ही प्रकाशित होने वाला है।
सम्मान: आपको सन २००६ में तरकश सम्मानसर्वश्रेष्ट उदीयमान ब्लॉगरइन्डी ब्लॉगर सम्मानविश्व का सर्वाधिक लोकप्रिय हिन्दी ब्लॉगवाशिंगटन हिन्दी समिति द्वारा साहित्य गौरव सम्मान सन २००९ एवं अनेकों सम्मानों से नवाजा जा चुका है।
ईमेल sameer.lal@gmail.com

धारावाहिक पंजाबी उपन्यास(किस्त- 48)




सवारी
हरजीत अटवाल
हिंदी अनुवाद : सुभाष नीरव

॥ तिरपन ॥

डौमनिक जब अपनी पत्नी की कहानी सुना रहा था तो बलदेव सिमरन के बारे में सोचने लग पड़ा। अब तक ली हारवे या जो भी उसका ब्वॉय-फ्रेंड होगा, घर में आकर रहने लगा होगा। अब तो लड़कियों के लिए डैडी भी शायद वही हो। यही सोचकर उसको अपनी बेटियाँ -अनैबल और शूगर- याद आने लगीं। अब तो काफ़ी बड़ी हो चुकी होंगी। चार वर्ष से अधिक का समय हो चला है उन्हें देखे हुए। पिछली बार सिमरन से उन्हीं की खातिर मिलने गया था। सिमरन ने कहा था कि यदि निरन्तर ले जा सकता हो तभी ले कर जाना। उस समय तो उसके पास खुद के रहने के लिए जगह नहीं थी। अब है और छोटा-सा बिजनेस भी है। उसने योजनाएँ बनानी प्रारंभ कर दीं कि सिमरन को फोन करके दिन तय करे और लड़कियों को अपने फ्लैट में ले आए। दिनभर उसके साथ खेले और शाम को छोड़ आए। रविवार का दिन हो। रविवार के दिन वह अधिक व्यस्त नहीं होता था। अभी तो गर्मियाँ ही थी, कोई भी दिन चल सकता था। कितना कुछ सोचते हुए उसने अपने आप को रोका कि जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए, इस बारे में अभी और सोचे।
      एक दिन बैठे-बैठे उसके मन में कुछ ऐसा आया कि उसने सिमरन को फोन घुमा दिया। वह हैरान था कि उसका नंबर अभी तक उसको याद था। फिर उसको ख़याल आया कि यह सिमरन का ही नहीं, उसका अपना नंबर भी तो था। सिमरन ने उसकी आवाज़ एकदम पहचान ली और कहा-
      ''हैलो डेव, हाऊ आर यू ?''
      ''मैं ठीक हूँ। लड़कियाँ कैसी हैं ?''
      ''वे भी ठीक हैं। अभी-अभी सोई हैं।''
      ''मैं उनसे मिलना चाहता हूँ।''
      ''अप टू यू, मैंने क्या कभी मना किया है, अब तू रैगुलर मिलने के लिए रेडी है?''
      ''हाँ, अब मैं कुछ-कुछ सैटिल हूँ, फ्लैट ले लिया है।''
      ''दैट्स बैटर, फिर तो तू इन्हें अपने पास ही रख। वहीं कोई इनका स्कूल ढूँढ़। मैं भी कु देर रिलैक्स होकर देख लूँ।''
      ''इतना बोझ मैं अभी नहीं उठा सकूँगा, बट लैट्स सी।''
      ''अप टू यू, बता कब आना चाहता है। तब तक मैं इन्हें मैंटली तैयार कर सकूँ। नाउ दे डोंट रिमेंबर यू एट ऑल। इसी वीक एंड पर आएगा ?''
      ''नहीं, अभी मेरे पास कार नहीं है। मे बी नेक्स्ट वीक।''
      ''कार तेरी किधर गई ?''
      ''कार... कार मुझे ड्यू टू सम रीज़न बेचनी पड़ी।''
      ''हाँ, जब मैं नहीं रही तो कार रखकर भी तुझे क्या करना था।''
      ''नहीं सिम, दैट्स नॉट दा रीज़न... मुझे अपने बिजनेस के लिए पिकअप चाहिए थी और मेरे पास पैसे नहीं थे, इसलिए आय हैव टू सैल।''
      ''नेवर माइंड... तुझे जब भी इन्हें लेने आना हो तो मुझे फोन कर देना।''
      ''इन्हें बता देना कि मेरा फोन आया था।''
      ''यह तो मैं तभी बताऊँगी जब तू आएगा और आएगा भी रैगुलर, नहीं तो मैं उन्हें अपसेट नहीं करना चाहती।''
      ''मैं आऊँगा, इन्हें लेकर जाऊँगा डैफीनेटली... हर वीक लेकर जाया करूँगा।''    
      ''डेव, तू रहता किधर है ?'' 
      ''मैं... फुल्हम में।''
      ''कहाँ पर है ?''
      ''बस, थेम्ज़ के किनारे ही।''
      ''मुझे अपना एड्रेस और फोन नंबर लिखवा।''
      सिमरन के साथ बात करके बलदेव को कुछ तसल्ली हुई और उसके अन्दर अजीब-सी बेचैनी भी होने लगी और अगले दिन भी होती रही। उसने मन ही मन अनैबल और शूगर के चेहरे चित्रित करने की कोशिश की। वह सोचने लगा कि दोनों लड़कियों के आने पर उसका फ्लैट कैसा लगेगा। वह उठकर लिज़ वाला कमरा उनके लिए तैयार करने लगा। कुछ सप्ताह पहले लिज़ यहाँ से मूव हो गई थी। वह सोच रहा था कि यदि लड़कियाँ उसके संग रच-बस गईं तो रात में भी रह सकती हैं। उसे यह अच्छा लगेगा। ऐसी बातें सोचते हुए उसका दिन बीत गया। रात में उसके फोन की घंटी बजी। उसे अधिक फोन नहीं आया करते थे। डौमनिक का ही आया करता था। कभी कभार शौन आस्ट्रेलिया से कर देता। उसने रिसीवर उठाया। सिमरन का था। बलदेव ने सोचा कि उसने इतनी जल्दी क्यों फोन कर लिया। उसे नंबर देना ही नहीं चाहिए था। पर फिर उसे इस तरह फोन का आना अच्छा लगने लगा। सिमरन कह रही थी-
      ''डेव, मैंने आज इनसे बात की है। इनके मन में कुछ भी रजिस्टर नहीं हो रहा। मैं सजेशन दूँगी कि पहले तू कुछ देर के लिए घर आ, इनका फेथ जीत, फिर ये तेरे साथ जाएँगीं। इट विल टेक टाइम।''
      ''फिर अभी कुछ समय के लिए पोस्टपोन कर देते हैं। और तब तक मैं कार भी ले लूँगा।''
      ''कार की तुझे तभी ज़रूरत पड़ेगी जब इन्हें तू बाहर लेकर जाएगा। अभी कुछ मीटिंग्स कर पहले।''
      ''यह तो ठीक है, मैं सोचकर फोन करूँगा।''
      ''फिर तू यहीं क्यों नहीं आ जाता, चाहे घंटे भर के लिए आ। यहाँ घर में बैठकर इनके साथ खेल।''
      ''मुझे सोचने के लिए टाइम चाहिए।''
      ''डेव, यह तेरा भी घर है, ये तेरी ही लड़कियाँ हैं। अगर तू कहेगा तो तेरे आने पर मैं घर से चली जाऊँगी।''
      ''आय विल सी।''
      अगले सप्ताह के अन्त में बलदेव ने अनैबल और शूगर से मिलने जाने की योजना बना ली। उनके लिए तोहफ़े खरीदने लगा। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि क्या खरीदे। कभी किसी बच्चे के लिए कुछ लिया ही नहीं था उसने। वह एक्सफॉर्ड स्ट्रीट चला गया। कभी कपड़े की दुकान में जा घुसता और कभी खिलौनों की दुकान में। अन्त में उसने फैसला किया कि एक-एक खिलौना और कुछ चॉकलेट ले जाए और बाकी उन्हें संग लेकर उनकी मर्जी का खरीद कर दे।
      शनिवार सवेरे दस बजे ग्रीनविच उसके घर के सामने पहुँच गया। बाहर से घर वैसा ही था। पर्दे बदल लिए थे। दरवाज़ा भी नया लगवाया प्रतीत होता था। सिमरन ने दरवाज़ा खोला। वह पहले जैसी ही लगती थी। बालों का स्टाइल अभी भी वही था। उसने पंजाबी सूट पहन रखा था। बलदेव समझ गया कि उसके आने के कारण ही पहना होगा, नहीं तो यह उसे पसन्द नहीं था। सिमरन बोली-
      ''हैला डेव।''
      ''हैलो।''
      ''यू लुक वैल।''
      ''यू टू।''
      बलदेव उसके पीछे-पीछे अन्दर प्रवेश कर गया। अनैबल और शूगर लॉन्ज़ में थीं। बलदेव खड़ा होकर उनकी तरफ़ देखने लगा। वे दोनों जैसे जुड़वा हों। सिमरन के कंधों तक पहुँच रही थीं। बलदेव उनकी तरफ़ बढ़ा कि बांहों में ले ले, पर वे दौड़कर सिमरन से लिपट गईं और आँखें फाड़ कर बलदेव की ओर देखती रहीं थीं। बलदेव ने कहा-
      ''व्हट यू लुकिंग ऐट... आय एम योर डैड।''
      सिमरन ने उनसे कहा-
      ''जाओ बेटा, गो टू योर डैड।''
      पर दोनों लड़कियाँ वैसे ही खड़ी रहीं। बलदेव ने लाई हुई वस्तुओं वाला बैग सिमरन को देते हुए कहा-
      ''नेवर माइंड... स्लोली स्लोली विन्ज़ दा रेस।'' कहकर वह सैटी पर बैठ गया। उसने कमरे में निगाह घुमाकर देखा। बहुत कुछ पहले जैसा ही था। सिमरन ने अनैबल के कान में कुछ कहा और वह आहिस्ता-आहिस्ता चलकर बलदेव के पास आ गई। उसके पीछे-पीछे शूगर भी। वे बलदेव के साथ लगकर खड़ी हो गईं। बलदेव ने उन्हें अपनी बांहों में ले लिया और कितनी ही देर तक अपने से सटाये रहा। फिर उसके मुँह से निकला-
      ''आय एम सॉरी गर्ल्ज, आय एम टू लेट।''
      सिमरन की आँखें भर आईं। वह बोली-
      ''नो डेव, यू आर नॉट लेट, यू आर इन टाइम, दे नीड यू नाउ।''
      कुछ देर के लिए चुप-सी पसर गई। फिर लड़कियाँ बलदेव से अपने आप को छुड़ाकर दूर हटकर खेलने लगीं। सिमरन ने बलदेव से उसके काम को लेकर प्रश्न करने आरंभ कर दिए। बाकी परिवार का हालचाल भी पूछा। बलदेव ने भी सिमरन के माता-पिता की राज़ी-खुशी पूछी। सिमरन बलदेव की ओर देखे जा रही थी। उसकी आँखों में अजीब टिमटिमाहट थी जैसे वे कुछ कहना चाह रही हों। फिर सिमरन चाय बनाने के लिए उठ गई।
      बलदेव वहाँ कई घंटे ठहरा। वह इकट्ठा ही समीप के एक शॉपिंग सेंटर भी गए। बलदेव ने लड़कियों को बहुत कुछ खरीद कर दिया। जो चीज़ उन्हें पसन्द आती, वह ले देता। शॉपिंग से लौटने तक दोनों लड़कियाँ उसके साथ बातें भी करने लग पड़ी थीं।
      बलदेव वहाँ से चलने लगा तो सिमरन बोली-
      ''डेव, वो रूम, तेरे कपड़े और अन्य सामान वैसे का वैसा पड़ा है, देखना चाहेगा?''
 (जारी…)



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