शनिवार, 5 दिसंबर 2009

धारावाहिक पंजाबी उपन्यास(किस्त- 20)


सवारी
हरजीत अटवाल
हिंदी अनुवाद : सुभाष नीरव
चित्र : रुचिरा

॥ पच्चीस ॥
शौन की दो बजे की फ्लाइट थी। बारह बजे तक बलदेव को पहुँचना था। उसे शौन को एअरपोर्ट छोड़कर आना था। शौन ने अपना सामान पहले ही तैयार करके दरवाजे के नज़दीक रख लिया था। वह कमरे में घूम रहा था। कैरन एक ओर बैठी रो रही थी। वह सारी रात उसे रोकने की कोशिशें करती रही। बेटी की ज़िन्दगी का वास्ता देती रही थी। शौन उसे छोड़कर जाने को तुला हुआ था। कमरे में इधर-उधर घूमता शौन कभी घड़ी देखता और कभी खिड़की में से बाहर झांकने लगता। कैरन कुछ कह नहीं रही थी। वह सोच रही थी कि उसने जितना कहना था, कह लिया था। सारी रात कहती रही थी। बलदेव की कार को आता देख शौन उससे कहने लगा-
''लुक आफ्टर माय डॉटर।''
कैरन उठी और उसकी ओर झपटी। उसके थप्पड़ मारने लगी और कहने लगी-
''फक्क ऑफ़ यू बास्टर्ड ! गैट आउट फ्राम हेयर... यू रूइंड माय लाइफ ! यू मौंकी फेस, आय हेट यू बास्टर्ड, आय हेट यू अपटू योर डैथ।''
वह तब तक मारती रही जब तक थक न गई। शौन अपने मुँह को बचाता ज्यूं का त्यूं खड़ा रहा और फिर सामान उठाकर बाहर की ओर दौड़ पड़ा।
कैरन सिर पकड़कर बैठ गई और फिर से रोने लगी। वह कहती जा रही थी- ''मैं कहाँ गलत थी। मैं कहाँ गलत थी।''
शोर सुनकर साथ वाले कमरे में सो रही पैटर्शिया उठ गई। कैरन थपथपा कर उसे पुन: सुलाने लगी। फिर रसोई में जाकर उसके लिए दूध बनाया। बोतल उसे पकड़ाकर खिड़की में आ खड़ी हुई। सड़क खाली थी।
शौन को जाना था। बहुत समय से जाने की बात कर रहा था। सो चला गया। उसे तो फॉदर जोय ने रोक रखा था। अपने आप को धार्मिक कहने वाला शौन धर्म को ठेंगा दिखाता चला गया था। कैरन उसके धार्मिक पाखण्ड पर मन ही मन हँसने लगी।
शौन उसे तब मिला था जब वह पढ़ाई खत्म करके छुट्टियाँ बिताने लंदन आई थी। एक डिस्को पर वह मिला। डेटिंग होने लगी। शौन ने विवाह का प्रस्ताव रखा। वह विवाह के लिए अभी तैयार नहीं थी। हालांकि पढ़ाई में वह किसी किनारे नहीं लगी थी पर उसका भविष्य उजला था। उसका पिता अभी-अभी मॉरीशश का मंत्री बना था। वैसे भी उसके बिंगोहाल और सिनमा थे, जिनको संभालने में उसने पिता की मदद करनी थी। फिर उसे अच्छे से अच्छा लड़का मिलने की उम्मीद थी। उसकी बहन गायत्री कुछ वर्ष पहले लंदन आई थी तो उसने एक साधारण से लड़के के साथ विवाह करवा लिया था। लड़का यद्यपि उनके शहर का ही था, पर रुतबे में छोटे परिवार से था। पिता बहुत खीझा-खीझा रहने लगा था। कैरन पर पिता को बहुत आशाएँ थीं। जब शौन ने विवाह का प्रस्ताव रखा तो कैरन अपने पिता के बारे में सोचने लगी थी। शौन विवाह के लिए कुछ अधिक ही पीछे पड़ गया था। उसने अपने पिता को शौन के विषय में काफी कुछ बढ़ा-चढ़ा कर बताया। कितना कुछ झूठ बोलकर पिता को विवाह के लिए मनाया था।
वह माना तो शौन इंडिया चला गया। कैरन का मन बहुत दुखी हुआ। वह सबकुछ कैंसिल करके वापस मॉरीशश चली गई। शौन इंडिया से लौटकर फिर उसे खोजने लगा। उसे मॉरीशश फोन करता रहता। जब कैरन नहीं मानी तो वह स्वयं मॉरीशश पहुँच गया। शौन का इतना प्यार देखकर कैरन को पुन: मन बदलना पड़ा।
विवाह के बाद शौन अच्छा-भला था। कुछ धार्मिक अधिक था, पर कैरन को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता था। वह उसके संग चर्च चली जाती। उनके घर में धर्म को अधिक महत्व नहीं दिया जाता था। हिन्दू पृष्ठभूमि होने के कारण कुछ रस्म-रिवाज़ अलग थे, नहीं तो शौन के धर्म में कैरन को कुछ भी पराया नहीं लगा था। बल्कि फॉदर जोय उससे बहुत प्यार करता था। उसकी ओर विशेष ध्यान देता था। वह शौन के साथ आयरलैंड भी गई। वहाँ जाकर उसका मन बहुत खराब हुआ। बहुत ही साधारण से अनपढ़ परिवार में से था शौन। वैलज़ी के लोग एकदम गंवार से थे। उसके सामने ही उसके रंग की बातें करने लगते और कई तो नफ़रत का इज़हार भी कर जाते।
कैरन को बड़े-बड़े सपने दिखाने वाला शौन जल्द ही उसे झूठा-झूठा लगने लग पड़ा। उसकी नौकरी भी साधारण क्लर्की थी। उसका फ्लैट भी कौंसल का ही था। वह कंजूस भी हद दर्जे का था। कैरन को घूमने-फिरने का शौक था। अपने देश में हर वीक एंड उसका कहीं बाहर ही बीतता था, पर शौन तो घर में ही बैठा रहता। वह ज्यादा कहती तो झगड़ा हो जाता। फिर शौन ने हेराफेरी से उसे गर्भवती बना डाला ताकि बाहर आने-जाने के योग्य ही न रहे। कैरन अभी बच्चा नहीं चाहती थी। उसने गर्भपात करवाना चाहा तो शौन ने आसमान सिर पर उठा लिया। गर्भपात शौन के धर्म में महापाप था। शौन उसको चर्च में ले गया। फॉदर जोय ने गर्भपात के खिलाफ़ भाषण दे मारा।
इसके पश्चात् शौन उसे बुरा लगने लग पड़ा। उसने उसे एक तरह से कैदी बना रखा था। उसके सारे सपने किसी खाई में जा गिरे थे। वह विवाह के चक्कर में फंस कर रह गई थी। नहीं तो उसकी ज़िन्दगी कुछ और ही होती। किसी बड़े आदमी से ब्याही जानी थी वह। नौकर-चाकर होते। बड़ा-सा कारोबार होता। अब यहाँ छोटे से फ्लैट में फंसी बैठी थी। अपने पिता को अपनी असलीयत भी नहीं बता सकती थी। वह उससे धन लेकर कोई कारोबार आरंभ कर सकती थी, पर शौन ऐसा व्यक्ति नहीं था जो उसके कहने के अनुसार चल सके। अमीर बनने का सपना लिए वह घूमता था, पर काम करके वह खुश नहीं था। उसकी तनख्वाह से घर का खर्च बमुश्किल चलता था। फिर पैटर्शिया आ गई तो उनके खर्चे बढ़ गए। पैटर्शिया की क्रिश्चियनिंग के समय उन्हें किसी से पैसे पकड़ने पड़े थे। फिर तो उसने काम भी छोड़ दिया था और सोशल सिक्युरिटी लेने लगा था। पैसे की तंगी के कारण झगड़ा और बढ़ने लगा था। कैरन को अपनी ख्वाहिशें तो भूल ही गई थीं, उसे तो अपनी ज़रूरतें पूरी करने की चिंता सताती रहती थी। फिर बलदेव को एक कमरा किराये पर दिया तो कुछ मदद होने लगी थी। शौन का धार्मिक होना भी अब चुभने लगा था। कैरन को उसका धर्म में यकीन एक ढोंग प्रतीत होता। वह स्वयं सबकुछ धर्म के विपरीत करता था।
एक दिन चर्च गई तो फॉदर जोय उसे शौन से अकेला करके एक कमरे में ले गया और बोला-
''मेरी बच्ची, कन्फैशन करना चाहेगी।''
''कैसा कन्फैशन फॉदर ?''
''मेरी बच्ची, कन्फैशन कर लेगी तो जीसस माफ़ कर देंगे। सारे गुनाह बख्से जाएंगे।''
''कैसे गुनाह फॉदर, मैंने कोई गुनाह नहीं किया, मैं किसी के गुनाह की शिकार अवश्य बनी हुई हूँ।''
कन्फैशन वाली बात शौन ने भी उससे कही थी। कई बार घर में झगड़ा होता। शौन उसे सॉरी कहने के लिए कहता। वह सॉरी कह देती तो शौन कहता कि ऐसे नहीं, जाकर कन्फैशन बॉक्स में माफ़ी मांग। उसने सोचा कि ज़रूर शौन ने ऐसी कोई बात फॉदर को कही होगी। उसने फॉदर से पूछा-
''फॉदर, क्या शौन मेरे पर कोई इल्ज़ाम लगा रहा है ?''
''हाँ, कि तूने सिर्फ़ पासपोर्ट के लिए उससे विवाह करवाया है।''
''यह बिलकुल झूठ है फॉदर, बिलकुल झूठ ! मैं तो हर हालत में इसके साथ रहने को तैयार हूँ। इसके साथ रहने में मेरी और मेरे परिवार की इज्ज़त है। गुनाहगार तो शौन है फॉदर।''
फिर उसने शौन के प्रति अपने सभी गिले-शिकवे बता दिए कि कैसे अपनी अमीरी के बारे में झूठ बोला। कैसे घर की हालत बुरी कर रखी थी। कैसे उसके साथ हर वक्त झगड़ा किया करता था। उसे पाकि(पाकिस्तानी) कहकर नस्लवादी फ़र्क पैदा करता था और कैसे अपने धर्म पर पछता रहा था, जिसमें तलाक की सुविधा ही नहीं थी। इस विवाह से छुटकारा शौन चाहता था न कि वह। अपनी बात पूरी सही सिद्ध करने के लिए उसने पैटर्शिया का सहारा भी लिया। उसने शौन को ज़ालिम बनाने में अपनी पूरी ताकत लगा दी। फॉदर पर उसकी बातों का असर हो गया। उसने आशीर्वाद देते हुए उसे वापस भेज दिया था। उस दिन के बाद उसकी हर बात बहुत ध्यान से सुनने लगा था।
शौन के चले जाने के बाद उसने पैटर्शिया को बग्घी में डाला और फॉदर जोय को बताने चल पड़ी। उसने फॉदर से कहा-
''फॉदर, शौन मुझे छोड़कर चला गया है।''
''कहाँ गया ?''
''पता नहीं, यह देश ही छोड़ गया, किसी दूसरी देश में...।''
फॉदर मन ही मन कोई प्रार्थना करने लगा और फिर बोला-
''मेरी बच्ची, ज़िन्दगी में ऐसे इम्तिहान इन्सान को परखने के लिए आया ही करते हैं। तुम्हारी ज़िन्दगी में भी आया है। हौसला रखो, अगर वह सच्चा क्रिश्चियन हुआ तो ज़रूर लौटेगा। उसे आना पड़ेगा।''
''फॉदर, यह गुनाह नहीं ?''
''बेशक गुनाह है, वह कन्फैशन करेगा।''
''फॉदर, मैं बहुत अकेली रह गई हूँ।''
''नहीं, तू अकेली नहीं। जीसस तेरे संग है। यहाँ आया कर। देख, यहाँ कितने तेरे ब्रदर-सिसटर्स आते हैं, कोई जिम्मेदारी संभाल ले। मैं शौन को तलाशूँगा और वापस तेरे पास लौटने के लिए मज़बूर करूँगा।''
''फॉदर, मुझे आर्थिक सहायता की भी ज़रूरत पड़ेगी।''
''मेरी बच्ची, इस बारे में हमारे पास कोई सुविधा नहीं है पर सरकार कर ही रही है। यहाँ ब्रदर सिसल डौनोमोर है जो ऐसे मामलों में माहिर है, वह तेरी हर मदद करेगा, उसे मिल लेना।''
उस दिन के बाद कैरन हर रोज़ चर्च जाने लगी। वह सवेरे ही पैटर्शिया को तैयार करके संग ले जाती। बड़े-बड़े स्टोरों से बहुत सारा सामान चर्च के लिए आया करता था। जिस सामान की तारीख छोटी होती, वह दूसरे चर्चों या चैरिटेबल संस्थाओं को भेज दिया जाता। कैरन की खाने-पीने की समस्या हल हो गई। ऐसे सामान से उसका फ्रिज भरा रहता था। सोशल सिक्युरिटी की ओर से फ्लैट का किराया और उसके अपने और पैटर्शिया के पैसे निरंतर लग गए थे। उसकी ज़िंदगी पहले से अच्छी और आसान हो गई।
उसे यकीन था कि शौन नहीं लौटेगा। लेकिन फॉदर उसे विश्वास दिलाये रहता। उसे शौन के लौटने की चाहत भी नहीं थी। कई बार बैठकर सोचने लगती कि अब वह क्या करे। उसका दिल करता कि डिस्को आदि जाए, पर पैटर्शिया के कारण बंधी बैठी थी। इन दिनों में ही उसका अपनी बहन गायत्री से फोन पर सम्पर्क हो गया। गायत्री उसे मिलने आने लगी। उसका अपने पति से झगड़ा चल रहा था। बात तलाक तक पहुँची हुई थी। तलाक के बाद गायत्री ने अपने घर में से आधा हिस्सा लिया और कैरन के पास आकर रहने लगी। गायत्री के आने से उसको बहुत फायदा हुआ। अकेलापन भी कम हुआ और अब वह बच्ची को उसके पास छोड़कर बाहर भी जा सकती थी। गायत्री के तलाक से उनके बाप पर ऐसा असर हुआ कि उसे हार्ट अटैक हो गया। बड़ा हार्ट अटैक था और वह लम्बे समय के लिए बिस्तर पर पड़ गया। कई बार कैरन सोचा करती थी कि वापस पिता के पास ही चली जाए, पर अब उसने वापस जाने का विचार ही छोड़ दिया था। उसके पिता को अब उसकी ज़रूरत भी नहीं थी। उसका कारोबार लड़के ने संभाल लिया था। फिर कैरन अपनी समस्याएँ बताकर पिता की बीमारी में वृद्धि नहीं करना चाहती थी।
एक शाम वह बाहर जाने के लिए तैयार हो रही थी। उसने बढ़िया से बढ़िया ड्रैस पहनी। उससे मेल खाता मेकअप किया। चमकीला-सा पर्स हाथ में पकड़ा। नए ढंग से संवारे बालों को ठीक करती हुई वह गायत्री से हंसकर बोली-
''आज मेरी अच्छी किस्मत की कामना कर कि शिकार के बग़ैर वापस न आऊँ।''
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(क्रमश: जारी…)

लेखक संपर्क :
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1 टिप्पणी:

Roop Singh Chandel ने कहा…

अटवाल जी लंदन में रहते हुए वहां पहुंचे भारतीयों ; खासकर पंजाबी समाज को; केन्द्र में रखकर वास्तविक जीवन चित्रित कर रहे हैं. पूरा उपन्यास एक साथ पढ़ना कृति के साथ अधिक तादात्म्य स्थापित कर सकेगा.

चन्देल