शनिवार, 27 मार्च 2010

गवाक्ष – मार्च 2010


“गवाक्ष” ब्लॉग के माध्यम से हम हिन्दी ब्लॉग-प्रेमियों को हिन्दी/पंजाबी के उन प्रवासी लेखकों/कवियों की समकालीन रचनाओं से रू-ब-रू करवाने का प्रयास करते आ रहे हैं जो अपने वतन हिन्दुस्तान से कोसों दूर बैठकर अपने समय और समाज के यथार्थ को अपनी रचनाओं में रेखांकित कर रहे हैं। “गवाक्ष” में अब तक पंजाबी कवि विशाल (इटली) की कविताओं का हिन्दी अनुवाद, दिव्या माथुर (लंदन) की कहानी, अनिल जनविजय (मास्को) की कविताएं, न्यू जर्सी, यू.एस.ए. में रह रहीं देवी नागरानी की ग़ज़लें, लंदन निवासी कथाकार-कवि तेजेन्द्र शर्मा, रचना श्रीवास्तव, दिव्या माथुर की कविताएं, दुबई निवासी पूर्णिमा वर्मन की कविताएं, यू एस ए में रह रहीं हिन्दी कथाकार-कवयित्री इला प्रसाद, डेनमार्क निवासी कवि भगत धवन की कविताएँ और चाँद शुक्ला की ग़ज़लें, यू एस ए निवासी कवि वेद प्रकाश ‘वटुक’ तथा कवयित्री रेखा मैत्र की कविताएं, कनाडा अवस्थित पंजाबी कवयित्री तनदीप तमन्ना की कविताएं, यू के अवस्थित हिन्दी कवि-ग़ज़लकार प्राण शर्मा की ग़ज़लें, कैनेडा में अवस्थित पंजाबी कवि सुखिन्दर की कविताएं, कनाडा निवासी पंजाबी कवयित्री सुरजीत, अमेरिका अवस्थित डॉ सुधा धींगरा, कनाडा में अवस्थित हिंदी- पंजाबी कथाकार - कवयित्री मिन्नी ग्रेवाल की कविताएं, न्यूजीलैंड में रह रहे पंजाबी कवि बलविंदर चहल की कविता, कैनेडा में अवस्थित पंजाबी लेखिका बलबीर कौर संघेड़ा की कविताएं, इंग्लैंड से शैल अग्रवाल की पाँच कविताएं, सिंगापुर से श्रद्धा जैन की ग़ज़लें, इटली में रह रहे पंजाबी कवि विशाल की कविताएं और पंजाबी कथाकार-उपन्यासकार हरजीत अटवाल के उपन्यास “सवारी” के हिंदी अनुवाद की बाइसवीं किस्त आपने पढ़ीं। “गवाक्ष” के मार्च 2010 अंक में प्रस्तुत हैं - यू एस ए में रह रहीं हिन्दी कथाकार-कवयित्री इला प्रसाद की एक लघुकथा तथा पंजाबी कथाकार-उपन्यासकार हरजीत अटवाल के धारावाहिक पंजाबी उपन्यास “सवारी” की तेइसवीं किस्त का हिंदी अनुवाद…



यू.एस.ए. से
इला प्रसाद की लघुकथा

समुद्र : एक प्रेमकथा

उसने जीवन में कभी समुद्र नहीं देखा था। और देखा तो देखती ही चली गई। अपने छोटे-छोटे हाथ हिला-हिलाकर पास बुलाता समुद्र... किनारों से टकराता, सिर धुनता, अपनी बेबसी पर मानो पछाड़ खाता समुद्र और अंत में सब कुछ लील जाने को आतुर, पागल समुद्र !

उसे लगा, समुद्र तो उसकी सत्ता ही समाप्त कर देगा। वह घबराकर पीछे हट गई।
लेकिन, तब भी समुद्र के अपने आसपास ही कहीं होने का अहसास उसके मन में बना रहा। बरसों। उसे लगता, अब समुद्र कहीं बाहर न होकर उसके अंदर समा गया है और वह एक भंवर में चक्कर काट रही है... विवृति उसकी नियति नहीं है।

वह रह-रह कर चौंकती। समुद्र उसके आसपास ही है कहीं। वह लौट नहीं आई है और न समुद्र उससे दूर है।
फिर उसने पहचाना, समुद्र भयानक था लेकिन उसका उद्दाम आकर्षण अब भी उसे खींचता है। वह लौटने को बेचैन हो उठी।

उसने खुद को अर्घ्य-सा समर्पित करना चाहा।
लेकिन, ज्वार थम गया था। लौटती लहरें उसे भिगोकर किनारे पर ही छोड़ गईं। उसके पैर कीचड़ और बालू में सन गए।

समुद्र ने उसे कहीं नहीं पहुँचाया था। बस, मुक्त कर दिया था। मुक्ति का बोध उसे था लेकिन, उसने स्वीकारना नहीं चाहा। अब सचमुच समुद्र उसके अंदर भर गया था। वह चुपचाप, अकेले में लौटने को बेचैन, रोती-बिसूरती, अपने ही अंदर डूबती-उतराती, अपने पर पछाड़ खाती, किनारों से टकरा-टकराकर टूटती रही।

फिर एक दिन उसने सुना।
समुद्र में फिर तूफान आया था और किसी ने लहरों पर खुद को समर्पित कर अपनी नियति पा ली।

उसने महसूसा, उसके अंदर कुछ मर गया।
वह जानती थी, समुद्र में अब कभी तूफान नहीं आएगा...।
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झारखंड की राजधानी राँची में जन्म। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से सी. एस. आई. आर. की रिसर्च फ़ेलॊशिप के अन्तर्गत भौतिकी(माइक्रोइलेक्ट्रानिक्स) में पी.एच. डी एवं आई आई टी मुम्बई में सी एस आई आर की ही शॊध वृत्ति पर कुछ वर्षों तक शोध कार्य । राष्ट्रीय एवं अन्तर-राष्ट्रीय शोध पत्रिकाओं में शोध पत्र प्रकाशित । भौतिकी विषय से जुड़ी राष्ट्रीय एवं अन्तरराष्ट्रीय कार्यशालाओं/ सम्मेलनों में भागीदारी एवं शोध पत्र का प्रकाशन/प्रस्तुतीकरण।
कुछ समय अमेरिका के कालेजों में अध्यापन।
कृतियाँ : "धूप का टुकड़ा " (कविता संग्रह) एवं "इस कहानी का अंत नहीं" ( कहानी- संग्रह) । एक कहानी संग्रह शीघ्र प्रकाश्य्।
सम्प्रति :स्वतंत्र लेखन ।
सम्पर्क : ILA PRASAD
12934, MEADOW RUN
HOUSTON, TX-77066
USA
ई मेल ;
ila_prasad1@yahoo.com

8 टिप्‍पणियां:

तेजेन्द्र शर्मा ने कहा…

Ila jee, aap ki ye laghu katha almost ek kavita hai. Badhaai.

Amitraghat ने कहा…

बहुत अच्छी लघु-कथा, दर्शन से लबरेज़ और काफी अच्छे शब्दों का यथा-उद्दाम,बिसूरती सुन्दर प्रयोग..."
amitraghat.blogspot.com

sunil gajjani ने कहा…

sunder laghu kathaon ke liye ila jee ko aabhar ,

सुरेश यादव ने कहा…

इला प्रसाद की लघु कथा कविता सी भावपूर्ण लगी एक लय समेटे हुए मन के भीतर तक ज्वार पैदा कराती हुई हार्दिक बधाई .नीरव जी को इस चुनाव के लिए धन्याद

रूपसिंह चन्देल ने कहा…

इस रचना को पहले भी पढ़ा और इला जी इसके विषय में लिखा भी था. इसे काव्यात्मक लघुकथा मैंने कहा था. दरअसल इला जी की कहानियों की यह विशेषता है कि उनका कवि अनायास ही उनमें उपस्थित हो जाता है और रचना को काव्यात्मक बनाकर उसे महत्वपूर्ण बना देता है. शायद ऎसा उनके कवि स्वरूप के कारण होता है और उनकी कथा रचनाओं की यह सबसे बड़ी उपलब्धि कही जाएगी.

चन्देल

Urmi ने कहा…

बहुत बढ़िया लगा लघुकथाएं! बेहतरीन, भावपूर्ण और उम्दा प्रस्तुती! बधाई!

ashok andrey ने कहा…

Ila jee ki rachnaon se gujarna ek sukhad anubhav se gujarne ke samaan hai iss sundar v kavyatmak laghu kathaa ke liye mai unhen badhai detaa hoon

निर्मला कपिला ने कहा…

सुन्दर लघुकथा और् अनुवाद के लिय बधाई। आज कल बहुत व्यस्त हूँ इस लिये किसी ब्लाग पर हर बार नहीर आ पा रही। शुभकामनाये़