“गवाक्ष” ब्लॉग के माध्यम से हम हिन्दी ब्लॉग-प्रेमियों को हिन्दी/पंजाबी के उन प्रवासी लेखकों/कवियों की समकालीन रचनाओं से रू-ब-रू करवाने का प्रयास करते आ रहे हैं जो अपने वतन हिन्दुस्तान से कोसों दूर बैठकर अपने समय और समाज के यथार्थ को अपनी रचनाओं में रेखांकित कर रहे हैं। “गवाक्ष” में अब तक पंजाबी कवि विशाल (इटली) की कविताओं का हिन्दी अनुवाद, दिव्या माथुर (लंदन) की कहानी, अनिल जनविजय (मास्को) की कविताएं, न्यू जर्सी, यू.एस.ए. में रह रहीं देवी नागरानी की ग़ज़लें, लंदन निवासी कथाकार-कवि तेजेन्द्र शर्मा, रचना श्रीवास्तव, दिव्या माथुर की कविताएं, दुबई निवासी पूर्णिमा वर्मन की कविताएं, यू एस ए में रह रहीं हिन्दी कथाकार-कवयित्री इला प्रसाद, डेनमार्क निवासी कवि भगत धवन की कविताएँ और चाँद शुक्ला की ग़ज़लें, यू एस ए निवासी कवि वेद प्रकाश ‘वटुक’ तथा कवयित्री रेखा मैत्र की कविताएं, कनाडा अवस्थित पंजाबी कवयित्री तनदीप तमन्ना की कविताएं, यू के अवस्थित हिन्दी कवि-ग़ज़लकार प्राण शर्मा की ग़ज़लें, कैनेडा में अवस्थित पंजाबी कवि सुखिन्दर की कविताएं, कनाडा निवासी पंजाबी कवयित्री सुरजीत, अमेरिका अवस्थित डॉ सुधा धींगरा, कनाडा में अवस्थित हिंदी- पंजाबी कथाकार - कवयित्री मिन्नी ग्रेवाल की कविताएं, न्यूजीलैंड में रह रहे पंजाबी कवि बलविंदर चहल की कविता, कैनेडा में अवस्थित पंजाबी लेखिका बलबीर कौर संघेड़ा की कविताएं, इंग्लैंड से शैल अग्रवाल की पाँच कविताएं, सिंगापुर से श्रद्धा जैन की ग़ज़लें, इटली में रह रहे पंजाबी कवि विशाल की कविताएं, यू एस ए में रह रहीं हिन्दी कथाकार-कवयित्री इला प्रसाद की एक लघुकथा, कैनेडा निवासी पंजाबी कवि डा. सुखपाल की कविता, यू.एस.ए. में अवस्थित हिंदी कवयित्री डॉ. सुधा ओम ढींगरा की कविताएं और पंजाबी कथाकार-उपन्यासकार हरजीत अटवाल के उपन्यास “सवारी” के हिंदी अनुवाद की छब्बीसवीं किस्त आपने पढ़ीं। “गवाक्ष” के जुलाई 2010 अंक में प्रस्तुत हैं – यू.एस.ए. में अवस्थित पंजाबी कवि-कथाकार प्रेम मान की पंजाबी कविताएं तथा यू.के. निवासी पंजाबी कथाकार-उपन्यासकार हरजीत अटवाल के धारावाहिक पंजाबी उपन्यास “सवारी” की सत्ताइसवीं किस्त का हिंदी अनुवाद…
यू.एस.ए. से
प्रेम मान की तीन पंजाबी कविताएं
हिंदी अनुवाद : सुभाष नीरव
रिश्ते
कुछ रिश्ते स्वयं ही उगते हैं
कुछ रिश्ते उगाये जाते हैं
रिश्ते स्वयं नहीं पलते
रिश्ते पाले जाते हैं
रिश्ते खुद नहीं समझते
इन्हें समझाना पड़ता है
रिश्तों को जिंदा रखने के लिए
लेने से अधिक
देना पड़ता है
रिश्ते आग हैं
ये जला भी सकते हैं
ये गर्मराहट भी देते हैं
रिश्ते बर्फ़ की तरह हैं
खूबसूरत भी लगते हैं
इस जिस्म को
जमा भी सकते हैं
रिश्ते दो-तरफा
सड़क की तरह हैं
इन्हें इकतरफा
समझकर
ज़लील होने वाली बात है
रिश्ते रूह की
खुराक भी बन सकते हैं
और ज़हर भी
रिश्ते खुदगर्ज भी
हो सकते हैं
और नाखुदगर्ज भी
रिश्ते वफ़ा भी
हो सकते हैं
और बेवफ़ा भी
रिश्ते निभाने ही कठिन नहीं
रिश्तों की बात करना भी
कठिन हो रहा है।
0
भिन्नता
यू.एस.ए. से
प्रेम मान की तीन पंजाबी कविताएं
हिंदी अनुवाद : सुभाष नीरव
रिश्ते
कुछ रिश्ते स्वयं ही उगते हैं
कुछ रिश्ते उगाये जाते हैं
रिश्ते स्वयं नहीं पलते
रिश्ते पाले जाते हैं
रिश्ते खुद नहीं समझते
इन्हें समझाना पड़ता है
रिश्तों को जिंदा रखने के लिए
लेने से अधिक
देना पड़ता है
रिश्ते आग हैं
ये जला भी सकते हैं
ये गर्मराहट भी देते हैं
रिश्ते बर्फ़ की तरह हैं
खूबसूरत भी लगते हैं
इस जिस्म को
जमा भी सकते हैं
रिश्ते दो-तरफा
सड़क की तरह हैं
इन्हें इकतरफा
समझकर
ज़लील होने वाली बात है
रिश्ते रूह की
खुराक भी बन सकते हैं
और ज़हर भी
रिश्ते खुदगर्ज भी
हो सकते हैं
और नाखुदगर्ज भी
रिश्ते वफ़ा भी
हो सकते हैं
और बेवफ़ा भी
रिश्ते निभाने ही कठिन नहीं
रिश्तों की बात करना भी
कठिन हो रहा है।
0
भिन्नता
मेरे दोस्त कहते हैं
मैं दूसरों से
बहुत भिन्न हूँ
मुझे कच्चे अनार
अच्छे लगते हैं
मुझे धूपों से डर लगता है
मुझे मूसलाधार बारिश
तेज बहती हवायें
और आँधियों से
बहुत मोह है
मुझे पूरनमासी की रात से अधिक
अमावस्या की रात के गले लगकर
बहुत गर्माहट मिलती है
मुझे पक्के रास्तों से अधिक
कच्ची राहों की
उबलती धूलों पर
नंगे पैर चलना
और पैरों में पड़े
छालों की पीर में खुश होना
दिलचस्प लगता है
मुझे खूबसूरत लोगों से अधिक
बदसूरत लोगों को
आलिंगन में कस कर
अधिक आनन्द मिलता है
कुछ बिगड़ने पर
मैं किस्मत से अधिक
अपने आप को इल्ज़ाम देना
अधिक पसन्द करता हूँ
दोस्त कहते हैं
मैं अजीब इन्सान हूँ
पता नहीं क्यूँ
मैं बहुत से लोगों से
इतना भिन्न हूँ।
0
पता
जब मैं
अपना घर
और देश छोड़कर
एक अनजाने और
बेगाने मुल्क में
किस्मत आजमाने के लिए चला था
तो मेरे एक दोस्त ने
कहा था
'अपनी नई जगह का
पता तो बता जा
चिट्ठी-पतरी के लिए।'
मैंने उसकी ओर
गहरी और उदास
नज़रों से देखकर
कहा था-
'दोस्त, बेघर लोगों का
कोई पता नहीं होता।'
आज अपने पुराने देश में
जाते समय सोचता हूँ-
बेघर लोगों का
सचमुच कोई भी
पता नहीं होता।
0
प्रेम मान सन् 1970 से 1975 तक पंजाबी साहित्य में काफ़ी सक्रिय रहे। सन् 1970 में इनका कहानी संग्रह 'चुबारे की इट्ट' और सन् 1972 में ग़ज़ल संग्रह 'पलकां डक्के हंझु' प्रकाशित हुए। पंजाबी की मासिक पत्रिका 'कविता' का अप्रैल 1973 अंक दो जिल्दों में 'कहानी अंक' के रूप में इनके संपादन में प्रकाशित हुआ। पंजाब यूनिवर्सिटी से इकनॉमिक्स की एम.ए. करके इन्होंने गुरू गोबिंद सिंह कालेज, चंडीगढ़ में 1971 से 1975 तक अध्यापन किया। सितम्बर 1975 में जब हिंदुस्तान को अलविदा कहा तो पंजाबी साहित्य से भी विलग गए। इंग्लैंड में फिर इकनॉमिक्स की एम.ए. करने के बाद यूनिवर्सिटी ऑफ कैलीफोर्निया, लास ऐंजल से पी.एच.डी. की और संग-संग पाँच साल कैलीफोर्निया स्टेट युनिवर्सिटी में पढ़ाया। 1986 से यह ईस्टर्न कनैटीकट स्टेट युनिवर्सिटी में इकनॉमिक्स पढ़ा रहे हैं जहाँ वर्ष 1994 से विभागाध्यक्ष भी हैं। इन्होंने अपने विषय पर अनेक किताबें लिखी हैं जो कई देशों की बहुत सारी युनिवर्सिटीज़ में कोर्स के रूप में प्रयोग में लाई जाती है। वर्ष 2004 में यह न्यूयार्क के कुछ पंजाबी साहित्यकारों की संगत में आने पर पुन: साहित्य के जुड़े हैं।
वेब साइट : www.premmann.com, www.punjabiblog.com
ई मेल : prem@premmann.com
मैं दूसरों से
बहुत भिन्न हूँ
मुझे कच्चे अनार
अच्छे लगते हैं
मुझे धूपों से डर लगता है
मुझे मूसलाधार बारिश
तेज बहती हवायें
और आँधियों से
बहुत मोह है
मुझे पूरनमासी की रात से अधिक
अमावस्या की रात के गले लगकर
बहुत गर्माहट मिलती है
मुझे पक्के रास्तों से अधिक
कच्ची राहों की
उबलती धूलों पर
नंगे पैर चलना
और पैरों में पड़े
छालों की पीर में खुश होना
दिलचस्प लगता है
मुझे खूबसूरत लोगों से अधिक
बदसूरत लोगों को
आलिंगन में कस कर
अधिक आनन्द मिलता है
कुछ बिगड़ने पर
मैं किस्मत से अधिक
अपने आप को इल्ज़ाम देना
अधिक पसन्द करता हूँ
दोस्त कहते हैं
मैं अजीब इन्सान हूँ
पता नहीं क्यूँ
मैं बहुत से लोगों से
इतना भिन्न हूँ।
0
पता
जब मैं
अपना घर
और देश छोड़कर
एक अनजाने और
बेगाने मुल्क में
किस्मत आजमाने के लिए चला था
तो मेरे एक दोस्त ने
कहा था
'अपनी नई जगह का
पता तो बता जा
चिट्ठी-पतरी के लिए।'
मैंने उसकी ओर
गहरी और उदास
नज़रों से देखकर
कहा था-
'दोस्त, बेघर लोगों का
कोई पता नहीं होता।'
आज अपने पुराने देश में
जाते समय सोचता हूँ-
बेघर लोगों का
सचमुच कोई भी
पता नहीं होता।
0
प्रेम मान सन् 1970 से 1975 तक पंजाबी साहित्य में काफ़ी सक्रिय रहे। सन् 1970 में इनका कहानी संग्रह 'चुबारे की इट्ट' और सन् 1972 में ग़ज़ल संग्रह 'पलकां डक्के हंझु' प्रकाशित हुए। पंजाबी की मासिक पत्रिका 'कविता' का अप्रैल 1973 अंक दो जिल्दों में 'कहानी अंक' के रूप में इनके संपादन में प्रकाशित हुआ। पंजाब यूनिवर्सिटी से इकनॉमिक्स की एम.ए. करके इन्होंने गुरू गोबिंद सिंह कालेज, चंडीगढ़ में 1971 से 1975 तक अध्यापन किया। सितम्बर 1975 में जब हिंदुस्तान को अलविदा कहा तो पंजाबी साहित्य से भी विलग गए। इंग्लैंड में फिर इकनॉमिक्स की एम.ए. करने के बाद यूनिवर्सिटी ऑफ कैलीफोर्निया, लास ऐंजल से पी.एच.डी. की और संग-संग पाँच साल कैलीफोर्निया स्टेट युनिवर्सिटी में पढ़ाया। 1986 से यह ईस्टर्न कनैटीकट स्टेट युनिवर्सिटी में इकनॉमिक्स पढ़ा रहे हैं जहाँ वर्ष 1994 से विभागाध्यक्ष भी हैं। इन्होंने अपने विषय पर अनेक किताबें लिखी हैं जो कई देशों की बहुत सारी युनिवर्सिटीज़ में कोर्स के रूप में प्रयोग में लाई जाती है। वर्ष 2004 में यह न्यूयार्क के कुछ पंजाबी साहित्यकारों की संगत में आने पर पुन: साहित्य के जुड़े हैं।
वेब साइट : www.premmann.com, www.punjabiblog.com
ई मेल : prem@premmann.com
5 टिप्पणियां:
अपनी मिट्टी अपनी ही होती है। अपनों से मिलते हैं तो अपनेपन की बात होती है। रिश्तों की महक होती है, यादों की चहक होती है। और ये सब क्या किसी घर से कम होता है? मुझे तो लगता है आपके भावों में, आपके शब्दों में आपका पता होता है!
सुभाष जी ,
बड़े दिनों से इधर आ नहीं पाई थी ......पहले आपके मेल मेरे याहू मेल पर मिल जाया करते थे ...पर इधर दो तीन महीने से मेरा याहू मेल नहीं खुल रहा तो मैंने स्थाई तौर पे उसे बंद ही कर दिया .....कृपया अब ' harkirathaqeer @mail .कॉम पर ही मेल भेजें .....
प्रेम मान जी का परिचय जान गर्व हुआ .....रचनायें भी बहुत अच्छी लगीं ......
मेरे दोस्त कहते हैं
मैं दूसरों से
बहुत भिन्न हूँ
भिन्न तो हैं ही ....
सघश्मय जीवन रहा इनका ......
मुझे मूसलाधार बारिश
तेज बहती हवायें
और आँधियों से
बहुत मोह है
ऐसे इंसान अपना परिचय यूँ ही देते हैं .......
कुछ बिगड़ने पर
मैं किस्मत से अधिक
अपने आप का इल्ज़ाम देना
अधिक पसन्द करता हूँ
बहुत खूब .......
(यहाँ तीसरी पंक्ति में 'को' की जगह 'का' शायद टंकण की गलती से रह गया सुधार लें )
आज अपने पुराने देश में
जाते समय सोचता हूँ-
बेघर लोगों का
सचमुच कोई भी
पता नहीं होता।
बहुत सुंदर.......
आपकी पारखी नज़रों का कोई सानी नहीं ......आभार .....!!
प्रेम मान की तीनों कविताएं सहज होने के साथ ही गंभीर अर्थ देती हैं. लेकिन नीचे के शब्दप्रयोग समझ नहीं पाया.
मुझे धूपों से
एक और बहुबचन दोनों में ’धूप’ ही पढ़ता आया हूं. यहां ’धूपों’ का कुछ और अर्थ तो नहीं---
नीरव तुम बताना. अनुवाद तुम्हारा तो सदैव उम्दा ही होता है.
चन्देल
हरकीरत जी, आपकी इस टिप्पणी के लिए शुक्रिया। अच्छा लगता है जब आप मेरे किसी ब्लॉग पर आकर अपनी राय देती हैं। आपने जो अपना मेल आई डी दिया है, उसे मैंने नोट कर लिया है और भविष्य में उसी का प्रयोग करूंगा। आपने मान साहिब की कविता में जिस शाब्दिक गलती की ओर इशारा किया है, उसके लिए भी धन्यवाद। दर असल बहुत सावधानी बरतने पर भी टंकण की गलती चली जाती है। मैंने गलती को सुधार दिया है।
भाई चन्देल, तुमने "धूपों" शब्द के बारे में प्रश्न उठाया, वह सही है। यह शब्द धूप से ही संबंधित है लेकिन बहुवचन के रूप में धूप से धूपों हो गया है, जो हिंदी व्याकरण से गलत लगता है। पर पंजाबी भाषा की अपनी एक टोन है। वह 'सोच' शब्द का जब प्रयोग करते हैं तो "सोचां"(सोचों) के रूप में करते हैं जैसे "उह गहरी सोचां विच डुब गिया सी" अर्थात "वह गहरी सोच में डूब गया था"। इसी प्रकार 'धूप' का धुप्प की जगह 'धुप्पां' हुआ है जिसका अनुवाद करते समय मैंने जान-बूझकर "धूपों" रहने दिया हैं। कई बार पंजाबी भाषा के लहजे की खुशबू को बनाये रखने के लिए मैं ऐसी छूट अनुवाद में ले लेता हूँ, हो सकता है कइयों को यह गलत लगे। तुम्हारा भी धन्यवाद कि तुमने प्रेम मान की कविताओं को इतनी गहराई से इंजाय किया जब कि तुम जैसा कि खुद कहा करते हो कि कविता की फील्ड के व्यक्ति नहीं हो।
प्रेम मान की कविताएँ अच्छी लगी --
बेघर लोगों का
सचमुच कोई भी
पता नहीं होता।
सच कहा प्रेम जी ने..
हम प्रवासियों की यही नियति है..
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