रविवार, 10 अक्तूबर 2010

धारावाहिक पंजाबी उपन्यास(किस्त- 30)



सवारी
हरजीत अटवाल
हिंदी अनुवाद : सुभाष नीरव

॥ पैंतीस ॥
बलदेव काम पर से बाहर निकला तो पानी बरस रहा था। बारिश के कारण ठंड भी बहुत थी। उसने सिर पर कैप लगा ली ताकि ऐनक बारिश से बची रहे। बड़ी जैकेट के कॉलर खड़े किए और थेम्ज़ के किनारे की तरफ चल पड़ा। थेम्ज़ के साथ-साथ चलता वह सोचने लगा कि यह दरिया इस समय चढ़ रहा था या उतर रहा था। एक तो वैसे ही अँधेरा अच्छी तरह उतर चुका था, फिर बारिश इर्द-गिर्द की रोशनियों को रोक रही थी। दरिया की गति का कुछ पता न चल सका। हल्की-सी लहरें चमकतीं और एक-दूसरी में समा जातीं। दरिया किनारे इस वक्त कोई भी नहीं था। कारें गुजर रही थीं जो कि थोड़ा हटकर थीं। और वह अपने आप को बहुत अकेला पा रहा था।
मैरी ने टैड और मिच्च के आने की ख़बर सुनाई तो वह उसी वक्त अगले पड़ाव के लिए तैयार होने लगा था। सारा दिन काम पर इन्हीं सोचों में गुम हुआ घूमता रहा था। मैरी का इसमें कोई कसूर नहीं था। वह तो आयरलैंड से लौटते ही उसे इशारे करने लग पड़ी थी। जैसे वह कई बार स्थिति को स्पष्ट करने से झिझकता था, इसी तरह मैरी ने किया। जो कुछ भी हुआ, पर एक बार फिर वह हार गया था। इस हार को लेकर वह कहाँ जाए। गुरां के पास तो वह जाएगा ही नहीं। गैरथ का फ्लैट उसे पसन्द नहीं था, बदबू जो मारता था। शौन भी यहाँ नहीं था। शौन ने तो पलटकर फोन तक नहीं किया था कि कहाँ था वह और किस हालत में था।
बारिश कुछ तेज हो गई। उसने वैस्ट मनिस्टर ब्रिज पार कर लिया और अंडर ग्राउंड स्टेशन में जा घुसा। यहाँ गरमाहट थी। जैकेट उतार कर पानी झाड़ा। कैप को भी उतार कर फटका। ऐनक साफ की और एस्कालेटर से नीचे उतर गया। ट्यूब पकड़कर वह टफनल पॉर्क आ गया। उसने डार्टमाउथ हाउस की तरफ चलना आरंभ कर दिया। बरसात थम चुकी थी। एस्टेट के अन्दर आकर उसने मैरी के फ्लैट की ओर देखा। बत्तियाँ जल रही थीं। टैड और मिच्च आ गए होंगे। वह शीघ्रता से अपनी कार में बैठ गया। यह शुक्र था कि किसी ने उसे देखा नहीं था। कार स्टार्ट करके वह मेन रोड पर आ गया। अब स्टेयरिंग किसी तरफ नहीं घूम रहा था। गर्मी के दिन होते तो वह पहले की भांति कार पॉर्क में जाकर सो जाता। उसे ख़याल आया कि कोई बैड एंड ब्रेकफास्ट ही खोजा जाना चाहिए। वह कैमडन रोड पर आ गया। यहाँ कुछ बैड और ब्रेकफास्ट थे। कई लोगों ने विक्टोरियन हाउसिज़ को तब्दील करके होटल बना लिए थे। कैमडन रोड के घर कुछ-कुछ क्लैपहम हाई रोड के घरों से मिलते जुलते थे। यहाँ एलीसन रहती थी। फिर उसने सोचा, क्यों न वह एलीसन को फोन करे। शौन के विषय में ही पूछे। उसने एक टेलीफोन बूथ के आगे कार रोकी। पहले कुछ 'बैड एंड ब्रेकफास्ट' को फोन करके उनसे रात के लिए कमरे का किराया पूछा और हफ्तेभर के किराये के बारे में भी पूछताछ की। सभी मंहगे थे। फिर उसने एलीसन को फोन घुमा दिया।
''एलीसन, मैं डेव, शौन का दोस्त।''
''हाँ, शौन का फोन आया था, तेरे बारे में पूछता था।''
''कहाँ है वो ?''
''अमेरिका में ही है अभी वह। न्यूजीलैंड जाने की तैयारी में है।''
''मैं शौन के बारे में सोच रहा था कि तेरा ख़याल आ गया।''
''मैं तो तेरे फोन का बहुत दिनों से इंतज़ार कर रही थी। अगर मेरे पास तेरा नंबर होता तो मैं कर लेती। एक तो तेरी डाक आई पड़ी है, दूसरा यदि तेरा रहने का इंतज़ाम अभी नहीं हुआ हो तो तू यहाँ अस्थायी तौर पर रह सकता है।''
''डाक लेने कब आऊँ ?''
''आज ही आ जा।''
''तेरे लिए अब लेट तो नहीं ?''
''नहीं, लेट कैसा... तेरी मर्जी है।''
फोन रखकर वह सोचने लग पड़ा कि नया दरवाजा खुलता प्रतीत हो रहा है। उसकी कार एलीसन के घर की तरफ दौड़ती रही और वह सोचता रहा कि वह एलीसन के यहाँ ही रुक जाए या कोई दूसरा प्रबंध करे। एलीसन के द्वार तक पहुँचते-पहुँचते वह पूरी तरह तय नहीं कर सका था कि उसे क्या करना चाहिए। उसने बेल बजाई। फेह ने दरवाजा खोला और पूछने लगी-
''तुम डेव हो ?''
''हाँ, तुम्हें कैसे पता ?''
''उस दिन शौन अंकल के साथ आए थे तो मम्मी भी तेरे बारे में बातें करती थी।”
तभी, रसोई में से एलीसन भी आ गई और टेलीविजन के सामने से उठकर नील भी। एलीसन बोली-
''तू तो बहुत ही थका थका-सा लगता है। ठीक तो है ?''
''हाँ, मैं ठीक हूँ। तू कैसी है ?''
''मैं भी ठीक हूँ। आ बैठ जा। मैं कैटल ऑन करती हूँ।''
कुछ ही मिनट में वह चाय बना लाई। कप उसके हाथ में थमाते हुए बोली-
''संग कुछ खाएगा ?''
''नहीं।''
''डिनर करेगा ?''
''तुमने खा लिया ?''
''बच्चे तो खा चुके हैं। तू बता, खाना है तो चिप्स और पाई हैं।''
''हाँ, खा लूँगा।''
बलदेव चाय की चुस्कियाँ लेने लगा। एलीसन ने पुन: पूछा-
''डेव, तू ठीक तो है ?''
बलदेव अपने हाथों की ओर देखता हुआ कहने लगा-
''हाँ, मैं ठीक हूँ। यह मौसम खराब है।''
''रहने की समस्या है तो एक कमरा खाली ही है।''
''एलीसन, मैं यहाँ सैटी पर ही काम चला लूँगा।''
''नहीं, तू ऊपर आराम से सोना। मैं तो पहले से ही बच्चों के कमरे में ही सोती हूँ।'' कहती हुई वह उठ कर ऊपर चली गई। कुछ देर बार लौटकर आई और बोली-
''तेरा कमरा तैयार है, तू जब चाहे जाकर सो सकता है।''
''और शौन क्या बात करता था फोन पर ?''
''कुछ खास नहीं, तेरे भाई के घर उसने फोन करके तेरे बारे में पूछा था। तेरी बहुत फिक्र करता था।''
''दोस्त जो हुआ, हम बहुत समय से इकट्ठे हैं।''
''डेव, देख उसकी बदकिस्मती... कैसी पत्नी मिली। कैरन तेरे मुल्क की ही है न ?''
''नहीं, मॉरीशस की है। हाँ, मेरे रंग की ज़रूर है।''
''एक ही बात है... शौन बताता था कि वहाँ भी सब इंडियन ही हैं।''
''हाँ।''
''डेव, असल में मैं कैरन की समस्या को थोड़ा-थोड़ा समझती हूँ, उसे शौन पर बहुत आशाएँ थीं।''
''हाँ, शौन ने भी उसके लिए बहुत कुछ किया है, उसकी हर ख्वाहिश पूरी करने की कोशिश की है।''
''डेव, मुझे लगता है, कैरन को इस विवाह से जो वह चाहती थी, उसे मिला नहीं।''
''एलीसन, यह भी हो सकता है पर दोनों के स्वभाव की समस्याएँ भी हैं।''
''जो भी हो, पर देख शौन की तकदीर, कहाँ-कहाँ भटकता घूम रहा है इस वक्त, अपना घरबार छोड़कर। उसकी बेटी की बेकद्री हो रही है।''
कहते हुए एलीसन ने आँखें भर लीं। वह शौन की चिंता करती जा रही थी या फिर पैटर्शिया की। कैरन से उसकी अधिक हमदर्दी नहीं थी। एलीसन पूछने लगी-
''तू कैरन से कभी मिला है ?''
''नहीं।''
''डेव, मैं कैरन से मिली थी। शौन कहता था कि सब कुछ देखकर आऊँ। फॉदर जॉअ उसकी मदद कर रहा है। शौन में ही सब लोग दोष निकाल रहे हैं। वह अपनी जिम्मेदारी से भाग गया, यह सच्चे क्रिश्चियन को शोभा नहीं देता। मैं तो यही प्रार्थना करती हूँ कि वह अपने घर लौट आए।''
कहकर वह उठी और बच्चों को सोने की हिदायतें देनी लगी। तीन चार बोतलें लाकर बलदेव के सामने रखते हुए कहने लगी-
''ये सब शौन की पड़ी हैं, मैं तो पीती नहीं, तूने जो पीनी है, पी ले।''
''मैं नहीं पीता, कोई साथ अगर दे तो कभी कुछ ले लेता हूँ।''
''तेरा साथ ज़रूर दूँगी पर बहुत छोटी ड्रिंक के साथ।''
गिलासों में वोदका उंडेलता बलदेव एलीसन के बारे में सोचने लगा। मैरी से काफ़ी भिन्न थी वह। शरीर उससे अधिक गुदगुदा था। पीछा भी मैरी जितना तराशा हुआ नहीं था। घुंघराले भूरे बालों को कर्ल डाले हुए थे। एक लट रह-रह कर उसके चेहरे पर गिर रही थी जिसे वह झटक देती। बलदेव उसकी तरफ चोर निगाहों से देखता तो उसे अपनी ओर गौर से देखता हुआ पाता। बलदेव के मन में बेचैनी-सी होने लगती। मैरी का चेहरा उसके मन में से गायब हो रहा था। उसकी जगह एलीसन की सूरत उभरने लगी। वह हैरान था कि यह तो स्विच ऑन-ऑफ़ करने भर की ही देर लगी थी। शायद, यह नशे का सुरूर भी हो। जो भी था उसे अच्छा लग रहा था। उसने एलीसन से कहा-
''मैं नहीं जानता था कि शौन की बहन इतनी खूबसूरत है।''
''तू तब आया तो था।''
''पर मैं तेरी तरफ ध्यान से देख नहीं सका था।''
एलीसन कुछ शरमाकर कहने लगी-
''शौन, मेरा भाई मुझ पर बहुत हुक्म चलाता है। जिस दिन तुम दोनों आकर लौट गए थे, उस दिन गुस्से से भरा फोन आया कि मैं तेरे लिए इतना सुन्दर मर्द खोजकर लाया और तूने उसे ठीक से बुलाया भी नहीं। अब फोन पर भी यही झगड़ा करता था कि मुझे तेरे से अच्छा मर्द नहीं मिल सकता।''
''तू क्या कहती है फिर ?''
''ठीक है, देखने में तो ठीक है, दिल को लुभाता है पर इतनी जल्दी मैं क्या कह सकती हूँ।''
बलदेव के वह एकदम सामने बैठी थी। बलदेव ने उसकी तरफ हाथ बढ़ाया। उसने उसके हाथ पर अपना हाथ रख दिया। बलदेव ने उसे खींच कर अपने संग बिठा लिया और कहा-
''एलीसन, अब बता मेरे बारे में और क्या सोचती है ?''
''अभी मेरा कोई तर्जुबा नहीं, कल बताऊँगी।''
(जारी…)
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1 टिप्पणी:

Sanjeet Tripathi ने कहा…

shukriya padhwane k liye,
chaliye ab aage dekhte hain ki kahani kis tarah twist hoti hai..