सोमवार, 11 अप्रैल 2011

धारावाहिक पंजाबी उपन्यास(किस्त- 36)


सवारी
हरजीत अटवाल

हिंदी अनुवाद : सुभाष नीरव

॥ इकतालीस ॥

बलदेव की सिमरन से अलहदगी गुरिंदर के लिए बड़ी ख़बर नहीं थी जबकि बाकी सब इस बात के लिए तैयार नहीं थे। सभी यही समझते थे कि बलदेव ने सिमरन से समझौता कर लिया था। पर गुरां को लगता था कि वह अभी भी सिमरन में से गुरां को ही तलाशता रहता था। शुरू-शुरू में जब वह कहा करता कि सिमरन को गुरां जैसी बनना चाहिए तो कइयों ने इस बात का बुरा मनाया था। सतनाम और मनजीत ने भी। अजमेर को अच्छा लगा था कि बलदेव उसकी पत्नी को आदर्श पत्नी के रूप में देख रहा था। गुरिंदर को यह कभी पता नहीं चल सका था कि उनके अलग होने का बड़ा कारण ली-हार्वे बना था।

गुरिंदर बलदेव की प्रतीक्षा करने लगी थी कि अब वह उसके पास आकर ठहेरगा। वह तो उसकी हमेशा ही प्रतीक्षा करती रहती थी। पर जब कभी वह अजमेर द्वारा सताई हुई होती तो वह चाहती कि बलदेव आज न आए। एक दिन उसने अजमेर और सतनाम से कहा -

''तुम्हें नहीं लगता कि बलदेव भी तुम्हारे बीच बैठा होता तो कितना अच्छा होता।''

''जट्टिये, हम तो चाहते हैं, वही हमें अनटचेबल समझे बैठा है। छोटी-छोटी बात पर रूठकर भागता है।''

''तुम्हारा भाई है, दुखी है। तुम कौन-सा उसके दुख को समझने की कोशिश करते हो।''

''वो अपना दुख हमारे साथ साझा भी तो करे। वह आता है और राज कुमार की तरह डायलॉग बोल कर चला जाता है।'' सतनाम ने कहा।

अजमेर अभी तक चुप था, बोला-

''ढ़िया बात यही है कि विवाह करवा ले, पर वो मानता ही नहीं। जब भी बात करो, मुँह फेर लेता है।''

''तुम लोग लड़की देखो, विवाह के लिए मैं मनाऊँगी।''

''लड़कियों की कौन-सी कमी है। इंडिया जाए, पचास लड़कियाँ हैं। और फिर अब तो बहाने से जा भी सकता है, बंसो बहन की लड़की का विवाह है।'' अजमेर ने कहा।

उस समय भी वे विवाह पर जाने की सलाह करने के लिए ही इकट्ठे हुए थे। सतनाम ने काम के कारण असमर्थता दिखा दी थी, क्योंकि उसके पीछे काम संभलना नहीं था। अजमेर को ही जाना पड़ रहा था और जाना भी वह खुद ही चाहता था। अजमेर की अनुपस्थिति में शिन्दे ने ही दुकान संभालनी थी।

गुरिंदर को लगा, अजमेर उसकी बात को यूँ ही समझ कर टाल रहा था। वह थोड़ा खीझ कर बोली-

''बंसो बहन की लड़की का विवाह अभी कौन-सा आ गया, ज़रा-सी चिट्ठी पर तुम मीटिंगें करने बैठ गए और य भाई तुम्हारे सामने दर-दर घूमता फिरता है, इसका कोई फिक्र नहीं कर रहा। जैसे वह कोई पराया हो।''

''जट्टिये, यूँ ही गुस्सा न कर, करते हैं कुछ। इस बार मैं उसके साथ बात करता हूँ। विवाह करवाने से पहले टिक कर भी बैठे।''

एक दिन अजमेर कैश एंड कैरी से लौटा तो दूर से देखकर ही मुस्कराने लगा। गुरिंदर के लिए यह एक अचम्भे वाली बात थी। उसने मन ही मन कहा कि आज खैरियत हो। वह करीब आया तो वह पूछने लगी-

''क्या हुआ ?''

''आज तेरे दिल की बात करके आया हूँ।''

''क्या ?''

''तेरे लाडले के लिए लड़की देखकर आया हूँ।''

''कहाँ ?''

''रैडिंग, लड़की रैडिंग में अपनी बहन के पास रहती है। सैर के लिए आई है, एम.ए. पास है, साढ़े पाँच फुट लम्बी, खूबसूरत, बड़ी बड़ी आँखें, लम्बे बाल, यानी तेरे से हर तरफ़ से दो रत्ती अधिक।''

''तुम रैडिंग कब चले गए ?''

''खीझ मत, मैंने तो फोटो ही देखी है। मेरा एक जानकार है प्रीतम सिंह। मुझे कैश एंड कैरी में मिला करता है। लड़की सैर के लिए बुलाई थी और अब लड़का खोजते फिरते हैं। वह फोटो जेब में ही डाले घूमता है। मैंने बलदेव के बारे में बताया तो मेरे पीछे ही पड़ गया... देख, अब तू जाने, तेरा काम जाने दुबारा मेरे से न झगड़ना।''

उन्होंने उसी वक्त बलदेव के काम पर फोन करके उसके लिए सन्देशा छोड़ दिया। वह अगले दिन ही आ गया। गुरिंदर ने कहा-

''तू हमारी एक बात माने, तो कहें।''

बलदे 'हाँ' कहने से कतरा रहा था। समीप बैठे अजमेर ने कहा-

''पहले ये हमारी कितनी मानता रहा है, जो अब मान जाएगा।''

''भाजी, कोई मानने वाली बात तो हो, मैं कभी भागता हूँ, बताओ तो सही।''

''शॉर् कट यह है कि तेरे भाजी ने तेरे लिए लड़की देखी है। ये शर्त लगाते हैं कि वो मेरे से ज्यादा सुन्दर है।''

सुनकर बलदेव ने गुरां की ओर देखा, फिर अजमेर की तरफ़ और बोला-

''भाजी, तुम्हें भ्रम हुआ होगा।''

''यह तू खुद जाकर देख ले।''

''बाकी सबकुछ हो सकता है, गुरां से सुन्दर नहीं हो सकती।''

बलदेव स्वयं को रोक नहीं पाया, वह कह गया। उसकी बात से अजमेर की छाती फूल गई। वह बोला-

''कहने वाले तो यही कहते हैं, जाकर देख। शायद तेरा दावा गलत हो।''

'' तो जाना ही पड़ेगा।''

''ठीक है, मैं फोन करके अभी टाइम फिक्स कर लेता हूँ।''

अजमेर प्रीतम सिंह को फोन मिलाने लगा। गुरिंदर बलदेव को समझाने के अंदाज में बोली-

''तुझे उसको वहाँ तोलने नहीं जाना, बात सिर्फ़ इतनी है कि तू विवाह करवा ले अगर थोड़ी-बहुत भी पसन्द है तो।''

अजमेर फोन से मुक्त होकर कहने लगा-

''हते हैं कि मंडे को आ जाओ, संडे उन्होंने कहीं जाना है।''

''मंडे ! मंडे को फिर तुम दोनों भाई हो आना।''

''हम वहाँ क्या करेंगे, तेरी भी तो ज़रूरत है।''

''मैं दुकान खोलूँगी, तुम सतनाम को संग ले जाओ।''

''नहीं गुरां, सतनाम को रहने दे। मैं नहीं चाहता कि बात फैले। मैं और भाजी ही चले जाएँगे। तू सतनाम के स्वभाव को जानती है, मजाक करने का बहाना ढूँढ़ता है।''

तय किए गए दिन बलदेव ने काम से छुट्टी ले ली और हाईबरी पहुँच गया। उसके पहुँचते ही सारा प्रोग्राम बदला पड़ा था। वाइन की डिलीवरी आ रही थी, जिस कारण अजमेर नहीं जा सकता था। गुरां कह रही थी-

''अगर तुमने नहीं जाना तो रहने दो, तुम्हारे बिना कैसा जाना ?''

''यह अब मुश्किल से तो राजी हुआ है, मौका न गवां। तुम दोनों चले जाओ।''

''नहीं भाजी, कैंसल कर दो, मैं फिर छुट्टी कर लूँगा।''

''नहीं भई, वो वेट करता होगा, रोज़ मिलता है। अब दुविधा में न पड़ो और चले जाओ।''

बलदेव एक आज्ञाकारी की तरह बाहर निकला और कार घुमाकर दुकान के सामने ही ले आया। गुरां चुन्नी ठीक करती हुई उसके बराबर आकर बैठ गई। बलदेव ने कार चला ली। चलाई नहीं बल्कि भगा ली। वह गुरिंदर की ओर देखता हुआ बोला-

''मुझे यकीन नहीं आ रहा कि तू मेरे संग बैठी है। सबकुछ इतनी जल्दी और अचानक...!''

''तू ज़रूर गुरुद्वारे जाकर कुछ मांग कर आया होगा।''

''मैं बहुत मांगता रहा हूँ, पर किसी रब ने मेरा कुछ नहीं किया। सब साले फिज़ूल हैं।''

''और, आज तो तेरी सुनी गई।''

''हाँ, आज वाकई सुनी गई।''

कुछ देर चुप रहकर गुरां बोली-

'' बता, तेरी प्रॉब्लम क्या है ?''

''मेरी प्रॉब्लम यह है कि मैं अन्दर से स्टेबल नहीं हूँ शायद या फिर मुझे स्टेबल होना नहीं आ रहा।''

''बलदेव, अब तो इतना समय हो गया हमें दूर हुए। अब तो तू जीना सीख ले।''

''गुरां तूने जीना सीख लिया ?''

''मेरा क्या है ! तू अपने बारे में सोच अब।''

''गुरां, मुझे लगता है, जीने के लिए लोग सपने लेते रहते हैं, स्कीमें घड़ते रहते हैं, पर मैं ऐसा कुछ नहीं करता। मेरे स्वभाव में है ही नहीं। तू मेरे साथ होती तो शायद मैं ऐसा न होता। मेरी सपने लेने की हसरत तेरे साथ ही चली गई।''

गुरां ने ठंडा साँस भरा और कहा-

''तूने मुझे इंडिया से आने ही क्यों दिया था। तू एक बार कहता, मैं रुक जाती।''

''अगर इधर मेरा भाई न होता तो हम सोचते ऐसा कुछ।''

''यह गोरी वाली क्या कहानी है ? तेरा भाई रोज़ ही लेकर बैठ जाता था।''

''एक गोरी से मेरी थोड़ी-सी निकटता बनी थी बस...।''

''फिर विवाह करवा लेता।'' गुरां ने गिला-सा करते हुए कहा।

''विवाह !... तू भी बाकी लोगों की तरह सोचती है। मैंने पहले विवाह करवाकर क्या पाया, तूने क्या पाया... और फिर हर निकटता का अर्थ विवाह नहीं हुआ करता।''

''विवा हो जाए तो आदमी का मन बिजी हो जाता है, भटकता नहीं।''

''शायद, पर मेरी और प्रॉब्लम है कि न मुझे गुरां मिले और न मैं विवाह करवाऊँ। सच्चाई यह है कि मैं विवाह करवाने के हक में नहीं।''

गुरां चुप रही। बलदेव ने फिर कहा-

''इसका वैसे एक हल बहुत बढ़िया है।''

''कौन-सा ?''

''वह यह कि भाजी गुरां को मेरे लिए छोड़ दे और खुद विवाह करवा ले।''

''मैं तैयार हूँ, अगर तेरे में हिम्मत है तो कर ले। मैं तैयार हूँ।''

''हिम्मत ही न होने के कारण मैं मार खा रहा हूँ। अगर हिम्मत होती तो मैं तुझे अभी न भगा कर ले जाता''

''मैं इसके लिए भी तैयार हूँ, ले चल जहाँ मर्जी।''

कहकर गुरां उसकी तरफ़ देखने लगी। वे दोनों ही कुछ देर न बोले। दोनों के पास ही कितनी सारी बातें थी, पर इस वक्त सूझ नहीं रही थीं। यदि बोलने लगते तो एक साथ बोल पड़ते या फिर चुप रहते।

बलदेव ने कार एम.फोर पर चढ़ा ली। साइन पढ़ती हुई गुरां बोली-

''ले, रैडिंग तो आ भी गया, इतनी जल्दी ?''

''यह तो आना ही था।''

''तू ऐसा कर, राह भूल जा।''

बलदे कार को मोटर-वे पर से उतार कर छोटी सड़कों पर ले आया। वे अगली-पिछली बातें करते रहे। कार चलाता बलदेव उसकी तरफ़ देखने लगता तो देखता ही रहता। घंटा भर गाँवों में कार घुमाते रहे और रैडिंग पहुँच गए।

प्रीतम की दुकान मेन रोड पर ही थी। जल्दी मिल गई। वहाँ सभी उनकी प्रतीक्षा कर रहे थे। दुकान के पीछे ही घर था। प्रीतम सिंह और उसकी पत्नी ने पूरे आदर से उनको बिठाया। चाय पीते समय ही लड़की आ गई। प्रीतम सिंह कहने लगा-

''यह है हमारी इंदरजीत, मैथ में एम.ए. है।''

बलदेव ने एक नज़र लड़की की ओर देखा। कद ज़रूर लम्बा था, आँखें भी बड़ी थीं, पर चेहरे की बनावट गुरां के मुकाबले कुछ भी नहीं थी। बलदेव ने गुरां की ओर देखा कि कोई बात करे, पर गुरां के पास भी कहने के लिए कुछ नहीं था। वह सोच रही थी कि रास्ते में इस बारे में सलाह करके क्यों नहीं आए। प्रीतम सिंह की पत्नी ने ही बात शुरू की। इंदरजीत के बारे में बताती रही और कुछ बातें उसने बलदेव के बारे में भी पूछीं। चाय का कप पिया और उठ आए। चलने लगे तो प्रीतम सिंह ने कहा-

''हमें हाँ या ना तो बता जाओ।''

''यह आपको खुद ही फोन करेंगे।'' कहती हुई गुरां कार में आ बैठी थी। फिर वह बलदेव से पूछने लगी-

''कैसी थी लड़की ?''

''गुरां से सुन्दर !... माई फुट!''

बलदेव ने कार को रोड पर लाते हुए कहा और दोनों हँसने लगे। कुछ देर बाद बलदेव ने कहा-

''क्या सोच रही है ?''

''सोचती हूँ कि मैंने कभी सोचा भी नहीं था कि यह दिन लौटकर मेरी ज़िन्दगी में आएगा... बलदेव, यह तो हमारी रब ने करीब होकर सुनी है।''

''हाँ गुरां, मेरा मन भी कई बार उतावला पड़ने लगता है इसीलिए एक गैप रखता हूँ मैं, कि कहीं कोई गल हरकत ही न कर बैठें।''

''यह जो लव-शव है, पहले तो इसकी समझ ही नहीं थी, पर अब लगता है कि ये फिल्मों वाले, टेलीविज़न वाले, झूठे नहीं। इतने वर्ष हो गए मुझे तेरी प्रतीक्षा अभी भी पहले की तरह ही रहती है। कई बार अकेली बैठी हुई पुरानी बातें याद आने लगती हैं तो रूह आनन्दित हो जाती है।''

बात करती गुरां ने आँखें मूंद ली। कुछ देर बाद बोली-

''बलदेव, याद है वो क्षण जब बैठक में मैं गा रही थी और तू सामने बैठा था।''

''भला मैं कैसे भूल सकता हूँ। तेरा गीत तो अभी भी मेरे ज़हन में चलता रहता है। गीत की एक-एक ल, एक-एक अक्षर मेरे अन्दर अंकित हुआ पड़ा है, जैसे शिलालेख खुदे होते हैं।''

गुरां अपनी सीट पर से उठती हुई उसकी तरफ़ झुकी और उसका हाथ पकड़कर बोली-

''बलदेव, क्या वो क्षण किसी तरह वापस आ सकते हैं ?''

(जारी…)

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