रविवार, 12 अप्रैल 2009

लोकार्पण

“तेजेंद्र शर्मा - वक़्त के आईने में" पुस्तक का लोकार्पण"

समकालीन हिंदी कथा साहित्य में तेजेंद्र शर्मा एक चर्चित नाम है. हरि भटनागर और बृजनारायण शर्मा द्वारा संपादित और रचना समय, भोपात से प्रकाशित पुस्तक “तेजेन्द्र शर्मा- वक़्त के आईने में” पुस्तक का लोकार्पण गत ४ अप्रैल, २००९ को नई दिल्ली के राजेंद्र भवन सभागार में किया गया। इस पुस्तक में न केवल तेजेन्द्र शर्मा द्वारा लिखी चुनिंदा कहानियाँ, कविताएँ, गजलें, संवाद शामिल किए गए हैं बल्कि इसमें कई आलोचकों व समीक्षकों की राय, उनके मित्रों के विचार, एक ख़त और माँ का आशीर्वाद भी संकलित है। समारोह में हिंदी आलोचक नामवर सिंह, वरिष्ठ लेखिका कृष्णा सोबती, कथाकार, उपन्यासकार व हिंदी पत्रिका "हंस" के संपादक राजेंद्र यादव तथा पत्रकार अजित राय मंच पर विराजमान थे।
रचना समय के संपादक व मध्य प्रदेश की पत्रिका "साक्षात्कार" के सम्पादक हरी भटनागर ने अपना सम्पादकीय वक्तव्य बताया की "वक्त के आईने में" पुस्तक प्रकाशन कैसे हुआ। उन्होंने एक घटना का जिक्र किया जब उन्होंने तेजेंद्र शर्मा जी की कहानी "कब्र का मुनाफा" को इंडिया टुडे में बीस सब से अच्छी कहानियो में रखा तब उन्हें कई प्रतिक्रियाएं मिली जो कि शायद कहानी को बिना पढ़े ही दे दी गई थीं। उन्होंने कहा कि तेजेन्द्र की कहानियाँ दो सभ्यताओं के संगम की कहानियां है व जीवन के सत्य से खुराक लेती हैं. तेजेन्द्र की कहानियाँ इस धारणा का खंडन करती हैं कि तेजेन्द्र के लेखन पर हिंदुत्व का प्रभाव है और वह मार्क्सवाद के पीछे डंडा ले कर फिरते हैं. हरि भटनागर ने अपने वक्तव्य में यहा स्पष्ट किया कि यह पुस्तक अभिनन्दन ग्रन्थ नहीं है।अजित राय ने मंच संचालन के दौरान खुलासा कि दो वर्ष पूर्व तक वह तेजेन्द्र शर्मा को कहानीकार नहीं मानते थे। उनके लंदन प्रवास के दौरान तेजेन्द्र ने उन्हें जो कहानियों की पुस्तकें दीं तो उन्होंने उन पुस्तकों को रद्दी कि टोकरी में फेंक दिया था क्योंकि उनकी धारणा थी कि विदेश में बसे हुए लेखक और कुछ नहीं हिन्दुत्व को मानने वाले बी जे पी के अनुयायी मात्र हैं। बाद में जब उन्होंने वही कहानियां पढ़ी तो उन्हें लगा कि वह गलत थे। उन्हें लगा कि तेजेन्द्र के लेखन में हिन्दुत्व वाली कोइ बात नहीं है और उनकी कहानियों के पात्र आम आदमी के जीवन के बहुत करीव हैं।
हिंदी के युवा कथाकार अजय नावरिया ने पुस्तक पर बोलते हुए प्रश्न उठाया कि यह पुस्तक अभिनन्दन ग्रन्थ क्यों नहीं है? अभिनन्दन ग्रथ की जो परिभाषा शब्द कोष में वर्णित है, उसके अनुसार यह पुस्तक अभिनन्दन ग्रंथ क्यों नहीं है? उन्होंने कहा कि हरी भटनागर जी शायद इसको अभिनन्दन ग्रन्थ इस लिए नहीं मानते क्यों कि वह विनम्र हैं और इस पुस्तक में चाटुकारिता का कोइ स्थान नहीं है। तेजेन्द्र की कहानियो में देश विदेश के उन अंचलों का प्रतिबिंब है जिन्हें आम पाठक सोच भी नहीं पाता।
श्रीमती नूर जहीर ने पुस्तक के खंड ५ में छपे "अमेरिका से एक ख़त" को मंच पर पढ़कर सुनाया जिसे डा0 सुधा ओम ढींगरा ने लिखा है। नूर जहीर ने पत्र पढ़ने से पूर्व कहा कि इस पत्र को पढ़ने के लिए उन्हें ही क्यों चुना गया, इस बात को लेकर वह हैरत में थीं परन्तु उस ख़त को पढ़ने के बाद उन्होंने कहा कि यदि वो इसको न पढती तो शायद उन्हें इस का अफ़सोस रह जाता।
नामवर जी ने हरी भटनागर को बधाई दी कि उन्होंने एक बहुत अच्छे ग्रन्थ का संपादन किया। इस कार्य को एक मिसाल कहते हुए उन्होंने कहा कि उनकी समझ में नहीं आ रहा वह किस को बधाई दें- पुस्तक के हीरो को या जिसने उसे हीरो को बनाया- "शिवा को सराहूं या सराहूं छत्रसाल को"। तेजेन्द्र को इन्दु सम्मान की स्थापना के लिए बधाई देते हुए नामवर जी ने कहा कि वह (तेजेन्द्र जी) तो हाउस ऑफ़ लॉर्ड्स का जलवा भी देख चुके हैं और यह तो हाउस ओफ कोमन है. उन्होंने कहा कि साहित्यकार का फर्ज है कि वह सत्य को उजागर करे और यह तेजेन्द्र बहुत बखूबी कर रहे हैं।
तेजेंद्र शर्मा जी ने मंच और सभागार में उपस्थित सभी का स्वागत करते हुए कहा कि यह दिन उनके लिए बहुत ख़ास है क्यों कि साहित्य से उनका परिचित करवाने वाले उनके प्रोफ़ेसर सोमनाथ जी, प्रोफ़ेसर प्रताप सहगल यहाँ उपस्थित हैं। उन्होंने अपनी हिंदी रुचि को अपनी पत्नी इन्दु शर्मा की पी एच डी से जोडा. उन्होंने कहा कि आज दुनिया उनकी कहानिया पढ़ रही है और आलोचक भी उसे देख रहे हैं यह उनके लिए बहुत बड़ी उपलब्धि है्। उन्होंने अजित राय और हरी भटनागर को पुस्तक के प्रकाशन के लिये धन्यवाद दिया व किताब पर मेहनत करने के लिए उन्होंने मधु अरोरा जी का आभार प्रकट किया।
राजेन्द्र यादव जी ने अपने पुराने दिनों को याद करते हुये कहा कि उन्हें एक पुरानी घटना याद आ रही है. यह घटना किशोर साहू (अभिनेता) से सम्बन्धित है. उनके पिता श्री राजेन्द्र यादव जी के काफ़ी करीब थे और अक्सर उन्हे पत्र लिखा करते थे. किशोर साहू एक कथाकार भी थे यह बहुत कम लोग जानते हैं. उनकी तरफ़ से आत्मकथा छापने का प्रस्ताव आया परन्तु जैसे ही यादव जी ने इसको स्वीकार कर लिया था। परन्तु जब वह उसमें कुछ चित्र और अन्य सामाग्री भी प्रकाशित भी प्रकाशित करवाने की जिद्द करने लगे तो उन्हें पुस्तक प्रकाशित न करने का निर्णय लेना पड़ा। लेकिन आज उन्हें लगता है कि उनका यह निर्णय उचित नहीं था। यादव जी ने कहा कि यदि आज वह किताब उन्हें मिल जाये तो वह उसे छापना चाहेंगे। अपने वक्तव्य में यादव जी ने बताया कि उनके मन में एक अवधारणा है कि विदेश में रहने वाले लोग हिन्दुत्व से ग्रसित होते हैं क्योंकि यह उनके जीवन का प्रश्न हो सकता है व उनकी रचनाये बडी बचकानी होती हैं। उन्होने भारत में आतंकवाद को बाबरी मस्जिद के गिरने से जोडा। उन्होंने निर्मल जी के लेखन का जिक्र करते हुए कहा कि उनकी कहानियों के पात्र आत्मलीन होते है और अपने आप से ही बातचीत करते हैं परन्तु तेजेन्द्र की कहानियों के पात्र आम आदमी से जुडे है और तेजेन्द्र जानते हैं कि किस तरह से किसी घटना या चरित्र से एक सफ़ल कहानी बनाई जा सकती है।
अन्त में हिंदी की वरिष्ठ कथाकार- उपन्यासकार श्रीमती कृष्णा सोबती जी ने मंच से कहा कि जो लोग विदेश में हैं, निश्चित रूप से अपने देश से इसलिये अधिक जुडे रहते हैं क्योंकि यह उनकी सुरक्षा का प्रश्न है। उन्होंने तेजेन्द्र शर्मा जी की कहानियों में से कुछ अंश पढ कर उनकी गहराई पर अपने विचार दिये और सुझाया कि किस तरह तेजेन्द्र जी एक आम घटना को एक सबल कहानी में परिवर्तित कर देते हैं।
समारोह में दिल्ली और दिल्ली से बाहर से आए अनेक गणमान्य लेखक, कवि, आलोचक, पत्रकार उपस्थित थे जिनमें मिस मारिया, असगर वजाहत, कन्हैया लाल नन्दन, सूरज प्रकाश, मधु अरोरा, श्रीमती विजया शर्मा, प्रेम जनमेजय, रूपसिंह चन्देल, सुभाष नीरव, अलका सिन्हा, अविनाश वाचस्पति, शैलेश भारतवासी आदि प्रमुख थे।

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